Sunday, 15 January 2017

न थमता किसानों की आत्महत्या का सिलसिला

मोदी सरकार किसानों के हित में भले ही `किसान कल्याण' जैसी तमाम योजनाओं की घोषणा करने में लगी हुई है लेकिन राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने चौंकाने वाले आंकड़ों का खुलासा किया है। इनके आंकड़ों के मुताबिक 2015 में 2014 से ज्यादा किसानों और कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की हैं। कहने को मोदी सरकार 2014 में ही बनी थी। लेकिन 2015 में पूरी तरह सरकार में थी। यहां यह बता दें कि एनसीआरबी एक साल के पहले के डाटा ही जारी करता है। गौरतलब है कि मोदी सरकार ने किसानों की आय को दोगुना करने, फसल बीमा योजना जैसी तमाम योजनाएं शुरू की हुई हैं। इससे पहले अगर 2014 और 2015 के आंकड़ों पर नजर डालें तो पाएंगे कि वर्ष 2015 में कुल 8007 किसानों ने आत्महत्या की थी, जो वर्ष 2014 में आत्महत्या करने वाले 5650 किसानों की संख्या से 42 प्रतिशत अधिक है। हालांकि इस दौरान कृषि श्रमिकों की आत्महत्या में कमी भी दर्ज की गई है। 2014 के मुकाबले में 31 प्रतिशत किसानों ने कम आत्महत्याएं की हैं। आंकड़ों के अनुसार 2014 में जहां 6710 कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की थी, वहीं 2015 में 4595 कृषि श्रमिकों ने मौत को गले लगा लिया। एनसीआरबी की रिपोर्ट `एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया 2015' नाम की इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 के मुकाबले 2015 में किसानों और कृषि मजदूरों की कुल आत्महत्या में दो प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। वर्ष 2015 में कुल 12602 किसानों और कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की, जबकि वर्ष 2014 में कुल 12360 किसानों और कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की। किसानों की 87 प्रतिशत से अधिक आत्महत्याएं सात राज्योंöमहाराष्ट्र (4291), कर्नाटक (1569), तेलंगाना (1400), मध्यप्रदेश (1290), छत्तीसगढ़ (954), आंध्रप्रदेश (916) और तमिलनाडु (606) में हुई हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2014 और 2015 में कम वर्षा के चलते देश का बड़ा हिस्सा सूखे की चपेट में था। बताया जा रहा है कि इनमें 38.7 प्रतिशत किसानों ने कंगाली, कर्ज और खेती में दिक्कत के चलते जान ली। इनमें भी 73 प्रतिशत आत्महत्या करने वाले किसानों के पास दो एकड़ या उससे कम जमीन थी। आंकड़ों पर नजर डालें तो जहां आत्महत्या करने वाले राज्यों में महाराष्ट्र सबसे आगे है वहीं दक्षिण भारत के राज्यों का नाम भी किसानों की आत्महत्या के मामलों में दर्ज है। इन आंकड़ों में उत्तर प्रदेश जैसे राज्य का कोई ब्यौरा नहीं दिया गया। हमें लगता है कि आत्महत्या करने वाले किसानों का आंकड़ा और भी ज्यादा है। तमाम उपायों, सुविधाओं के बावजूद किसानों की आत्महत्या रोकना किसी भी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए जो नहीं हो रही।

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