Thursday, 5 January 2017

क्या परिवर्तन रैली से यूपी में भाजपा का वनवास खत्म होगा?

प्रधानमंत्री की सोमवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जो रमा बाई अम्बेडकर मैदान में परिवर्तन रैली हुई उसमें आई भीड़ ने सूबे की सियासत को और गरमा दिया है। समाजवादी पार्टी के पारिवारिक कलह से माहौल पहले से ही गरमाया हुआ था, प्रधानमंत्री की रैली ने उसे और गरमा दिया है। रैली में अभूतपूर्व भीड़ थी। खुद प्रधानमंत्री परिवर्तन रैली में उमड़े हुजूम को देखकर गद्गद् हो गए। उन्होंने कहा कि अपने राजनीतिक जीवन में देश में तमाम रैलियों को संबोधित कर चुका हूं  लेकिन आज जीवन की सबसे बड़ी रैली करने का मौका मिला है। उन्होंने बताया कि ट्विटर के जरिये उन्हें 10 बजे से ही रैली में बड़ी तादाद में भीड़ आने की सूचना दिल्ली में मिलने लगी थी। रमा बाई अम्बेडकर पार्क को भरना आसान काम नहीं है। सोमवार को पीएम की रैली में पांच लाख से ऊपर लोगों का आना इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि नोटबंदी के बाद यह सबसे सफल रैली थी। क्या नोटबंदी से आई दिक्कतों को लोग भूल गए हैं? या फिर वह सपा-बसपा के शासनों से तंग आ चुके हैं और सत्ता में परिवर्तन चाहते हैं? इस रैली के बाद भाजपा में उत्साह है। देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा को त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय मुकाबले की बजाय अब राज्य की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ सीधा मुकाबला होने के आसार लग रहे हैं। चुनाव आयोग ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की घोषणा कर दी है। भाजपा के आत्मविश्वास की सबसे बड़ी वजह है पार्टी जहां अपने राज्य में चाक-चौबंद हो चुकी संगठन है वहीं द्विपक्षीय मुकाबले की दूसरी बड़ी वजह बसपा का खिसकता आधार है। पार्टी के एक आला नेता की मानें तो बहुजन समाज पार्टी एक वैचारिक आंदोलन की उपज थी जो कांशीराम के साथ ही खत्म हो गई। रही-सही कसर दलित वोट के बंटने से पूरी हो गई। उनके अनुयायियों ने कांशीराम की मेहनत को तो 10 साल तक भुनाया जरूर पर मायावती ने उसे आगे बढ़ाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए। जिसके चलते 2014 के आम चुनावों में राज्य में वह अपना खाता भी नहीं खोल सकीं। राज्य की 403 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 10 प्रतिशत सीटें ऐसी हैं जहां सपा-बसपा का सीधा मुकाबला है अर्थात 41-42 सीटें ही ऐसी हैं जहां भाजपा लड़ाई में नहीं है। शेष लगभग 360 सीटों पर भाजपा मुख्य मुकाबले में है। अर्थात तो इन 360 सीटों पर उसकी प्रतिद्वंद्वी या तो समाजवादी पार्टी है या फिर बसपा या कांग्रेस। भाजपा यूपी के चुनावी दंगल में खुद को इसलिए सपा से थोड़ा ऊपर रख रही है क्योकि सपा के पांच साल के कामकाज के चलते  लोगों में काफी नाराजगी व रोष है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार की इस रैली में एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश की। विपक्षी दलों को निशाने पर रखते हुए यूपी की तकदीर बदलने के लिए मतदाताओं से विधानसभा चुनाव में समर्थन की अपील की तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को याद करके लखनऊ से सीधे कनैक्ट होने की कोशिश भी की। कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्त और राजनाथ सिंह के शासनकाल की याद दिलाकर यह साबित करने में भी पीछे नहीं रहे कि गैर भाजपा दलों की सरकारों में यूपी विकास की दौड़ में पीछे छूट गया है। सूबे में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का मंसूबा बताते हुए मोदी ने यह कहने में चूक नहीं की कि परिवर्तन आधा-अधूरा नहीं होना चाहिए। मोदी ने दावा किया कि इस बार प्रदेश में विकास के 14 साल का बनवास खत्म होगा। 14 साल पहले प्रदेश की जनता ने भाजपा को यूपी की सेवा का अवसर दिया था। बोलेöयूपी का भाग्य बदलने के लिए सूबे के  लोगों को अपने-पराये, जाति-पाति से ऊपर उठकर वोट करना होगा। देखें, चुनाव घोषणा से ठीक पहले हुई इस परिवर्तन रैली का यूपी विधानसभा चुनावों पर क्या असर पड़ेगा?

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