Wednesday, 11 January 2017

पंजाब में बिसात बिछ चुकी है

पांच राज्यों के चुनावों की घोषणा के बाद सारे देश की नजरें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश और पंजाब पर टिक गई हैं। पंजाब के लोगों के पास अपने मन की बात कहने के लिए चुनाव कमिशन ने 30 दिन का वक्त दिया है। पंजाब में आम तौर पर अकाली-भाजपा गठबंधन बनाम कांग्रेस के बीच मुकाबला होता रहा है। पर इस बार आम आदमी पार्टी के चुनावी दंगल में कूदने के बाद मुकाबला त्रिकोणीय बनता नजर आ रहा है। चार फरवरी को होने जा रहे विधानसभा चुनाव में इन्हीं तीनों के बीच कड़ा संघर्ष होगा। पहले बात हम अकाली दल की करते हैं। 10 साल में राजसत्ता का सुख भोग चुके शिरोमणि अकाली दल के नेताओं ने पिछले छह महीनों के दौरान वह सब कुछ करने की तमाम कोशिशें की हैं जो उन्होंने पिछले साढ़े नौ साल के दौरान नहीं कीं। पार्टी का ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत आधार है और भाजपा के साथ गठबंधन से प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे का भी लाभ है। हरमंदिर साहिब स्वर्ण मंदिर का विकास, त्रिकोणीय मुकाबले में विरोधी वोटों का संभावित बंटवारे का भी पार्टी को लाभ मिल सकता है। दूसरी ओर इस गठबंधन के सामने चुनौतियां भी कम नहीं। एंटी इनकम्बेंसी से जूझना होगा। नशे का कारोबार और नोटबंदी के बाद बढ़ती बेरोजगारी, कानून व्यवस्था बड़ी चुनौतियां होंगी। कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस की इस जंग में नेतृत्व कर रहे हैं। नवजोत सिंह सिद्धू अगर कांग्रेस में शामिल होते हैं तो वातावरण में कांग्रेस को मजबूती मिलेगी। कांग्रेस की ताकत होगी, ड्रग्स, कारोबार, कानून व्यवस्था, बेरोजगारी और नाभा जेल व पठानकोट हमले जैसे मुद्दे। पर कांग्रेस के सामने भी चुनौतियां कम नहीं। कांग्रेस के लिए विभिन्न धड़ों को एकजुट करना, पार्टी नेताओं के बीच बेहतर तालमेल बैठाना, ग्रामीण क्षेत्रों में  पार्टी का प्रभाव बढ़ाना और सत्ता विरोधी वोटों के बंटवारे को रोकना कुछ चुनौतियां हैं। अकाली दल के साथ नवजोत सिंह सिद्धू जी की निजी रंजिश बहुत गहरी है, जिसका फायदा कांग्रेस को अवश्य मिलेगा। दूसरी तरफ उनकी जुबां आप पार्टी को भी नहीं बख्शने वाली होगी, क्योंकि सिद्धू ने आप की कुछ ऐसी-ऐसी हरकतें देखी हैं जिनके बाद वह चुप नहीं रहेंगे। आप पार्टी को अकाली दल और कांग्रेस से नाराज लोगों के व्यक्तित्व के बजाय मुद्दों पर आधारित सरकार का विकल्प देने वाले दल के रूप में उभरने का अवसर मिलेगा। नई पार्टी होने से जनता में शासन प्रणाली को लेकर किसी तरह की नाराजगी या असंतोष नहीं होगा। पर पंजाब में संगठन का सीमित दायरा, दिल्ली में केजरीवाल सरकार की कारगुजारी, आप से अलग हुए असंतुष्टों से बचना, पार्टी में एक प्रभावी सिख चेहरे की फिलहाल कमी यह है कुछ चुनौतियां केजरीवाल के सामने हैं। कुल मिलाकर पंजाब में चुनावी बिसात बिछ चुकी है। देखें, चुनावी प्रचार कैसा होता है।

-अनिल नरेन्द्र

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