Sunday 8 January 2017

सुदीप बंधोपाध्याय की गिरफ्तारी पर बवाल क्यों?

पश्चिम बंगाल में कथित रोज वैली चिटफंड घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के सांसद और लोकसभा में पार्टी के नेता सुदीप बंधोपाध्याय की गिरफ्तारी से सियासी बवाल मच गया है। बंधोपाध्याय को सीबीआई ने मंगलवार को गिरफ्तार कर लिया। मामले में पार्टी के एक और सांसद तापस पाल की गिरफ्तारी के बाद यह पहली बार है जब सुदीप को गिरफ्तार किया गया है। रोज वैली समूह पिछले दो साल से सीबीआई व अन्य जांच एजेंसियों के राडार पर था। रोज वैली घोटाला करीब 6000 करोड़ का है, जो पोंजी घोटालों में सबसे बड़ा है। यह सारदा घोटाले से कम से कम 16 गुना बड़ा है। सीबीआई के मुताबिक रोज वैली ने निवेशकों से करीब 17 हजार करोड़ रुपए ठगे। सीबीआई ने अपनी प्रारंभिक चार्जशीट में रोज वैली के प्रमुख गौतम कुंडू को मुख्य आरोपी बताया है। गौतम की 700 एकड़ की भूसम्पत्ति 12 राज्यों में फैली है। बताया जाता है कि उसके पास 150 कारें जिसमें कई लग्जरी कारें शामिल हैं। भारतीय राजनीति का यह वह चरण है जिसमें यह चलन आम होता जा रहा है कि अपने विरोधी दलों के नेताओं के भ्रष्टाचार को बढ़ाचढ़ा कर प्रचारित करते हैं, लेकिन जब उनके किसी नेता पर भ्रष्टाचार का आरोप लगता है और उसे गिरफ्तार किया जाता है तो इस कार्रवाई को केंद्र सरकार का उत्पीड़न बताया जाता है। इससे नाराज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर बदले की भावना से काम करने का आरोप लगाया है। सीबीआई का कहना है कि उनके पास तृणमूल कांग्रेस के दोनों नेताओं के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं। पर ममता का कहना है कि जिन नेताओं ने नोटबंदी का विरोध किया, मोदी सरकार उन्हें सबक सिखाने की मंशा से ऐसे कदम उठा रही है, कुछ तर्कसंगत नहीं माना जा सकता। पश्चिम बंगाल में चिटफंड कंपनियों की धोखाधड़ी पिछले कई दशकों से चल रही थी। सारदा घोटाले में भी कई नेताओं पर आरोप लगे थे। उनमें भी तृणमूल के कुछ नेताओं पर अंगुली उठी थी। यह समझना मुश्किल नहीं है कि जब चिटफंड कंपनियों के जरिये लघु निवेश पर रोक है तो यह कंपनियां किसकी शह पर चल रही थीं। रोज वैली अकेली ऐसी कंपनी नहीं है  जिस पर गरीब लोगों के पैसे की धोखाधड़ी का मामला दर्ज है। सहारा समूह के मुखिया को भी ऐसे ही घोटाले के आरोप में दो साल से ज्यादा जेल में रहना पड़ा। पश्चिम बंगाल में ही सारदा घोटाले से जुड़े कई लोगों पर कानूनी शिकंजा कस रहा है। फिर अगर सीबीआई ने तृणमूल के कुछ नेताओं को इसमें शामिल पाया है या इन कंपनियों को शह देने में उनका हाथ देखा है तो इस जांच को राजनीतिक रंग देने की बजाय निष्पक्ष रूप से पूरा हो जाने देने में किसी को क्यों परहेज या विरोध करना चाहिए? वैसे भी अगर सीबीआई गलत करती है तो अदालतें बैठी हैं।

-अनिल नरेन्द्र

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