Saturday, 21 January 2017

अस्तित्व बचाने के लिए उतरेगी बहुजन समाज पार्टी

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही है। बहन जी अपने सियासी जीवन के शायद सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही हैं। 2007 से 2012 तक पूर्ण बहुमत की अच्छी सरकार चलाने के बावजूद वह सत्ता से बाहर हो गई, जबकि उस दौर में भी कई अन्य राज्यों की सरकारें दोबारा सत्ता पाने में सफल रहीं। 2014 के लोकसभा चुनाव में तो पार्टी ने सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ा पर पार्टी अपना खाता तक नहीं खोल सकी। इस चुनाव के लिए मायावती ने अपने खास सिपहसालारों को छिटके मतदाताओं को अपनी ओर करने की मुहिम चला रखी है और उन्हें इसकी जिम्मेदारी सौंप रखी है। अगर हम पिछले विधानसभा चुनाव को छोड़ दें तो पहले के सभी चुनावों में बसपा का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ रहा था। लेकिन 2012 के चुनाव में पांच प्रतिशत से अधिक वोट कम होने से वह सत्ता से बाहर हो गई थीं। बसपा इस बार ऐसा नहीं होने देना चाहती। इसी वजह से बहन जी ने अपने पारंपरिक दलित और मुस्लिम वोट बैंकों पर इस बार विशेष ध्यान देना शुरू किया है। सपा-कांग्रेस के संभावित गठबंधन ने मायावती की चिन्ता बढ़ा दी है। बसपा के भरोसेमंद सूत्रों की मानें तो मायावती ने अपने करीबी ओहदेदारों को साफ कह दिया है कि इस बार ऐसी कोई गलती न हो जिसका असर उनके वोट बैंक पर पड़े। चुनाव आयोग की ओर से चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले दिल्ली और लखनऊ में हुई आधा दर्जन से अधिक बैठकों में बहन जी इस नतीजे पर पहुंच गईं कि 2012 में पार्टी की जो हार हुई, वह उसके पीछे मुस्लिम वोट बैंक के समाजवादी पार्टी के खाते में ट्रांसफर होने की वजह से हुई। मुसलमानों का एकजुट वोट किसी भी सियासी समीकरण को बिगाड़ सकता है। इसीलिए मायावती ने इस बार मुस्लिमों को ज्यादा से ज्यादा टिकट दिए हैं। मायावती लगभग हर प्रेस कांफ्रेंस में खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के एकमात्र मजबूत विरोधी के तौर पर पेश करती हैं और वे मुसलमानों से कहती हैं कि सांप्रदायिक शक्तियों को रोकने के लिए मुस्लिम कौम सपा और कांग्रेस को वोट देकर उसे बेकार करने की बजाय बसपा को एकजुट होकर वोट करें। बसपा ने इस बार सभी 403 सीटों पर चुनावी उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। उनमें से 87 टिकट दलितों को, 97 टिकट मुसलमानों को और 106 अन्य सीटें पिछड़े वर्ग से संबंध रखने वाले उम्मीदवारों को दी हैं। पर कुछ महीने पहले से पार्टी के नेताओं व विधायकों के दल छोड़ने या निकालने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह अभी तक बंद नहीं हुआ है। ऐसे हालात में बसपा सत्ता की मास्टर चाबी पाने की लड़ाई लड़ रही है।

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