अब जब माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सहारा-बिड़ला
डायरी मामले में स्पष्ट व दो टूक फैसला दे दिया है कि इस केस में कोई एसआईटी जांच नहीं
होगी तो उम्मीद है कि अब यह मुद्दा समाप्त समझा जाए। अदालत ने एफआईआर दर्ज करने का
आदेश देने से इंकार करते हुए कहा कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को
औद्योगिक घरानों की ओर से घूस देने का कोई सबूत नहीं है। कोर्ट के मुताबिक इस मामले
में डायरी नोटिंग्स को सबूत की तरह नहीं लिया जा सकता। गौरतलब है कि कांग्रेस और अन्य
विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (बतौर मुख्यमंत्री, गुजरात) समेत कई दलों
से जुड़े मौजूदा और पूर्व मुख्यमंत्रियों पर बड़े कारपोरेट घरानों से पैसे लेने का
आरोप लगाया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने कांग्रेस व इन विपक्षी दलों के आरोपों
की हवा निकाल दी है। महत्वपूर्ण यह नहीं कि सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों के तौर पर पेश
किए जा रहे कथित दस्तावेजों को अविश्वसनीय पाया, बल्कि उसका यह कथन है कि राजनीतिक
लक्ष्यों की पूर्ति के लिए कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता। इसका मतलब
तो यही है कि कांग्रेस ने सहारा-बिड़ला की डायरियों के बहाने सियासी हित साधने की तैयारी
की। वैसे भी यह किसी से छिपा नहीं कि दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल ने किस तरह दिल्ली
विधानसभा का एक दिन का सत्र केवल इन संदिग्ध डायरियों की एंट्रियों की नुमाइश करने
के लिए विशेष रूप से बुलाया और राहुल गांधी ने तो यहां तक घोषणा कर दी कि मैं रहस्योद्घाटन
करके भूकंप ला दूंगा। इस प्रकरण से जैन हवाला कांड की याद आना स्वाभाविक है। नरसिंह
राव सरकार के समय एक व्यवसायी एसके जैन के यहां मिली डायरी में कुछ नेताओं के नाम के
समक्ष धनराशि का विवरण भी दर्ज था। इस विवरण से यह आशय निकाल लिया गया कि उस व्यवसायी
ने नेताओं को पैसे दिए हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट गया और जांच के आदेश हो गए। लाल कृष्ण
आडवाणी समेत कई नेताओं ने संसद सदस्यता छोड़ी। तमाम गहन जांच के बाद मामला फर्जी निकला।
जिन नेताओं ने इस्तीफा दिया था उन्होंने खुद को ठगा हुआ महसूस किया। सुप्रीम कोर्ट
के इस फैसले के बाद अब यह बात कहीं ज्यादा
भरोसे के साथ बोली जाने लगी है कि अगर ऐसे किसी भी कागज या डायरी के आधार पर जांच होने
लगे तो फिर सिस्टम का चलना ही मुश्किल हो जाएगा। प्रधानमंत्री पर हमला बोलने वाले राहुल
गांधी ने इसका जिक्र नहीं किया कि डायरियों में शीला दीक्षित का भी नाम है, बल्कि उन्होंने
इसकी भी अनदेखी की कि खुद शीला दीक्षित ने इन दस्तावेजों को झूठा बताया है। नोटबंदी
पर सरकार को घेरने में नाकाम रहे विपक्ष के लिए इस मुद्दे का फुस्स हो जाना हताशाजनक
तो है ही, साथ ही उसकी सामूहिक दिशाहीनता का भी परिचायक है।
thanks sir bahut satik
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