Tuesday 31 January 2017

सपा-कांग्रेस दल तो मिले पर क्या दिल भी मिले हैं?

दावा भले ही बिहार की तर्ज जैसा किया जा रहा हो पर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच वैसा गठबंधन हुआ नहीं। बिहार में दलों के साथ उनके दिल भी मिले थे इसलिए नतीजे भी अच्छे आए लेकिन क्या यही वास्तविक स्थिति यूपी में भी है? सपा-कांग्रेस के बीच हुए इस समझौते से कांग्रेस के कई नेता और कार्यकर्ता अपने को ठगा-सा महसूस कर रहे हैं। चूंकि फैसला हाई कमान का है इसलिए भारी मन से स्वीकार करना मजबूरी है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि राहुल और प्रियंका के इतने अपमान के बाद हुए इस समझौते को कांग्रेस के समर्थक और कार्यकर्ता जमीन पर कैसे उतारेंगे? प्रदेश कांग्रेस के नेता सपा के साथ ऐसे किसी समझौते के लिए तैयार नहीं थे जो झुककर किया गया हो। अमेठी और रायबरेली की सीटों पर रार बनी हुई है। कांग्रेस इन दोनों जिलों की सभी सीटों पर अपना दावा ठोक रही है जबकि सपा 2012 में जीती हुई अपनी सीटों को छोड़ने को तैयार नहीं है। अलबत्ता वह गठबंधन की मजबूरी को देखते हुए कुछ सीटें छोड़ने के लिए तैयार है। इस रार का असर साझा चुनाव अभियान पर भी पड़ सकता है। फिलहाल चुनाव के लिए सियासी कैमेस्ट्री तैयार करने में दोनों को खासी मशक्कत करनी पड़ेगी। महागठबंधन रोकने के लिए कहते हैं कि भाजपा के रणनीतिकारों ने पहले अजीत सिंह के रालोद को बाहर निकलवाया। इससे कांग्रेस का दबाव कमजोर हुआ। परिवार और पार्टी में यादवी घमासान में विजेता होने के बाद अखिलेश का सियासी ग्राफ एकाएक खासा ऊपर चला गया। इस घमासान में कांग्रेस ने परोक्ष रूप से अखिलेश का समर्थन किया। कांग्रेस-सपा की यह दोस्ती दोनों भाजपा और बसपा के लिए खतरे की घंटी है। कांग्रेस की नजर 2019 के लोकसभा चुनाव पर टिकी है। पार्टी को लग रहा है कि सपा के कंधे पर सवार होकर अगर इस बार यूपी में अपनी ताकत में इजाफा कर लेती है तो 2019 में उसे इतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी जितनी 2014 में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए करनी पड़ी थी। वहीं सपा को उम्मीद है कि कांग्रेस के साथ आने से जो मुस्लिम वोट बसपा की ओर झुक रहा था वह अब इस गठबंधन के साथ आ जाएगा। इसके साथ सपा को यह उम्मीद भी है कि सपा का यादव वोट भी जहां-जहां कांग्रेस उम्मीदवार खड़ा है उसे मिल जाएगा। इससे कांग्रेस का वोट शेयर और सीटें दोनों बढ़ जाएंगी। पर क्या यह गठबंधन जमीनी स्तर पर उतरेगा? क्या दोनों दलों के कार्यकर्ताओं का मन भी मिलेगा यह बड़ा सवाल है। अभी भी कुछ सीटें बची हैं जिन पर फैसला होना बाकी है। अखिलेश ने गठबंधन को प्रोजेक्ट करने के लिए जो नया पोस्टर बनाया है उसमें मुलायम, डिम्पल यादव के अलावा राहुल और प्रियंका भी हैं। देखें यह गठबंधन जमीन पर कितना उतरता है?

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