Tuesday, 10 January 2017

चुनाव से तीन दिन पहले बजट पर विपक्षी आपत्ति

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव शुरू होने के तीन दिन पहले पेश होने वाले आम बजट को लेकर सियासी घमासान शुरू हो चुका है। विपक्ष ने निर्वाचन आयोग से आम बजट को चुनाव बाद पेश करने की मांग की है जबकि सरकार ने तारीख बदलने से इंकार करते हुए कहा है कि बजट एक फरवरी को ही पेश होगा। विपक्षी दलों के एक प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग से मुलाकात करके मांग की है कि पहली फरवरी को बजट पेश करने की सरकारी तैयारी को रोका जाए। वे मानते हैं कि यह आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन होगा। इसके लिए कई दलों ने राष्ट्रपति को भी चिट्ठी लिखी है। कहा जा रहा है कि यह बजट उस समय पेश किया जाएगा, जब देश के पांच राज्यों में चुनाव प्रक्रिया चल रही होगी। बजट पेश होने के तीन दिन बाद ही मतदान शुरू हो जाएगा। इन दलों को डर है कि केंद्र सरकार इस बजट में लोक-लुभावन नीतियों व योजनाओं को इस तरह से पेश कर सकती है जिससे मतदाता को प्रभावित किया जा सके। कांग्रेस, सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, जेडीयू और आरएलडी के नेता अपनी इस मांग को लेकर चुनाव आयोग पहुंचे। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहाöहमें बजट सत्र से एतराज नहीं है बल्कि चुनाव के बीच बजट पेश करने पर आपत्ति है। गौरतलब है कि ठीक पांच साल पहले जब यूपी, उत्तराखंड, पंजाब और गोवा, मणिपुर में विधानसभा चुनावों के कार्यक्रम घोषित हुए थे, तब संसद के मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने यूपीए सरकार को आम बजट की तारीख बदलने के लिए बाध्य कर दिया था। तब मौजूदा विपक्षी दल भाजपा ने कांग्रेस की तरह सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए चुनाव आयोग से हस्तक्षेप की गुहार लगाई थी। दबाव में झुकते हुए तत्कालीन यूपीए सरकार ने साल 2012 में पूर्व घोषित तारीख एक मार्च की जगह 16 मार्च को आम बजट पेश किया था। उनकी बात में दम हो सकता है, लेकिन कानूनी रूप से बजट को रोकना किस हद तक संभव हो पाएगा, यह कहना मुश्किल है। ज्यादातर विशेषज्ञ यही मान रहे हैं कि राज्यों के चुनाव के लिए केंद्र के बजट को रोकना संभव नहीं है। ऐसा कोई उदाहरण नहीं है। लोकसभा चुनाव के मामले में यह जरूर होता है कि बजट तो पेश किया जाना रोक दिया जाता है, उसकी जगह सिर्फ अंतरिम बजट पेश होता है और एक बार जब आम चुनाव की प्रक्रिया खत्म हो जाती है तो पूर्ण बजट संसद के पटल पर रखा जाता है। विपक्षी दल यही परंपरा विधानसभा चुनावों के मामले में भी चाहते हैं। वैसे इस बार का आम बजट सरकार के लिए काफी अहम भी है। इस बार बजट की पूरी परंपरा को बदला जा रहा है। बजट फरवरी के अंतिम दिन पेश होने की बजाय महीने के पहले दिन ही पेश होगा। जहां तक लोक-लुभावन नीतियों का मामला है तो हमें नहीं लगता कि अब इसमें ज्यादा गुंजाइश है। हाल ही में प्रधानमंत्री ने नववर्ष की संध्या पर ही कई नई लोक-लुभावनी योजनाओं की घोषणा कर दी है। इन पर भी विपक्षी दलों ने एतराज किया था। कहा गया था कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संदेश नहीं दिया बल्कि एक तरह से मिनी बजट पेश किया है। केंद्र सरकार ने विपक्षी दलों के एतराज को देखते हुए अटार्नी जनरल की राय लेने का फैसला किया है। उसका मानना है कि चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा के बावजूद बजट पेश करने में कोई संवैधानिक या कानूनी अड़चन नहीं है। मगर विपक्षी दलों की आपत्ति को देखते हुए सरकार अटार्नी जनरल से मशविरा करेगी और अपना पक्ष चुनाव आयोग के समक्ष भी रखेगी। अंतिम फैसला चुनाव आयोग को करना है।

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