Thursday, 26 January 2017

पंजाब के चुनाव में इन डेरों का विशेष महत्व होता है

पंजाब विधानसभा चुनावों में हमेशा से डेरों का विशेष महत्व रहा है। पंजाब की राजनीति में डेरों का बहुत असर होता है। ब्यास नदी के किनारे छोटे से शहर ब्यास में यह ऐसा नजारा है जो आपको आसानी से हैरान कर सकता है। यह है पंजाब का सबसे बड़ा आश्रम डेरा ब्यास। कई वर्ग किलोमीटर में फैला विस्तृत इलाका, किसी छावनी की तरह चारों ओर सुरक्षित चारदीवारी, भारी सुरक्षा व्यवस्था, हरियाली और चौड़ी सड़कों के साथ ही बड़ी संख्या में शानदार रिहायशी इमारतें पूरे इलाके की शोभा बढ़ाती हैं। आध्यात्मिक शांति और सत्संग के नाम पर चलने वाले पंजाब के बड़े डेरों का कमोबेश ऐसा ही दृश्य है। पिछले 400 साल से चल रही पंजाब की डेरा परंपरा अब काफी बदल गई है। यहां भव्यता है, भीड़ है और साथ ही राजनेताओं की कतार भी है। मौजूदा धर्मों, उनके प्रतीकों और व्यवस्था का विरोध कर खड़े हुए इन डेरों ने अपने अलग सख्त प्रतीक और परंपराएं तो बना ही ली हैं। अब सत्ता की डोर भी अपने हाथ में रखना चाहते हैं। इन डेरों पर विस्तृत अध्ययन कर चुके पंजाब विश्वविद्यालय के प्रो. रौणकी राय के मुताबिक पंजाब में नौ हजार से ज्यादा डेरे हैं। लेकिन इनमें लगभग 10 ही ऐसे हैं जिनमें श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में है। हाल के दिनों में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविन्द केजरीवाल जैसे नेता इन डेरों के चक्कर लगा चुके हैं। इनमें अकाली दल अध्यक्ष व राज्य के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल भी शामिल हैं। हालांकि अकाली दल सैद्धांतिक रूप से ऐसे डेरों के खिलाफ है। सिख धर्म किसी जीवित गुरु को नहीं मानता। लेकिन हाल के वर्षों में अकाली नेताओं ने डेरों से काफी अच्छे संबंध बना लिए हैं। डेरा ब्यास प्रमुख गुरिन्दर सिंह ढिल्लों के करीबियों को अकाली दल ने न सिर्फ टिकट दिए हैं, बल्कि सरकार के प्रमुख पदों पर भी नियुक्त कर रखा है। सुखबीर सिंह बादल के साले और कैबिनेट मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया की पत्नी डेरा प्रमुख की रिश्तेदार भी हैं। ऐसे में डेरा ब्यास यानि राधास्वामी सत्संग ब्यास का लगातार विस्तार लेते जाना हैरान नहीं करता। ऐसी ही भव्यता और श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या डेरा सच्चा सौदा की भी है। यह ऐसा डेरा है जिसकी बाकायदा राजनीतिक शाखाएं हैं और इन्हें चुनाव में किसका समर्थन करना है फैसला करती हैं। इसका मुख्यालय भले ही हरियाणा में हो, लेकिन पंजाब की राजनीति में इसका भारी दखल है। हाल के वर्षों में इसने खुलकर भाजपा का समर्थन किया है। मगर इस बार मतदान करीब आने पर ही यह अपने पत्ते खोलेंगे। इसी तरह दलितों के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय जालंधर का डेरा सचखंड भी राजनीति को प्रभावित करता है। दोआबा में इसका काफी प्रभाव है। बसपा की स्थापना के समय से यह उसके बेहद करीब रहा है। बाद में कुछ और पार्टियों से भी इसकी करीबी रही, मगर अब खुलकर किसी के पक्ष में बोलने से बच रहा है। इसके अनुयायी खुद को सिख या हिन्दू नहीं मानते, बल्कि रविदासिया मानते हैं। इसी तरह डेरा दिव्य ज्योति जागृति संस्थान को भाजपा के तो निरंकारी को कांग्रेस के करीब माना जाता रहा है। अकाली सिर्फ उन डेरों से जुड़े हैं जो पूरी तरह सिख धर्म के अनुसार चलते हैं। ऐसे डेरों में रायकोट के नानकसार और होशियारपुर के संत बाबा हरनाम सिंह डेरा तो हैं ही, इसके अलावा दमदमी टकसाल से भी सीधे अकाली जुड़े रहे हैं, जिसके प्रमुख कभी जरनैल सिंह भिंडरावाले थे। इन डेरों का पिछले कुछ समय से चुनाव में महत्व बहुत बढ़ गया है और सभी प्रमुख दल इनका समर्थन हासिल करने की रेस में शामिल हैं।

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