Saturday, 28 January 2017

उत्तराखंड में 77… वोटरों की मर्जी के बगैर बनती सरकारें

पिछले 17 सालों में उत्तराखंड को देश का सबसे अस्थिर राज्य होने का गौरव हासिल हुआ है यह कहना शायद गलत नहीं होगा। इस दौरान यहां आठ बार मुख्यमंत्री बदले जा चुके हैं। आठ मुख्यमंत्रियों में केवल एक नारायण दत्त तिवारी ही पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा कर सके। लेकिन इन पांच सालों में भी ऐसे कई मौके आए जब लगा कि सरकार गिरने वाली है। उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता की शुरुआत राज्य के पहले मुख्यमंत्री के साथ 2000 में जब उत्तराखंड नया पर्वतीय राज्य बना तभी से शुरू हो गई थी। वर्ष 2012 के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को बराबर की सीटें मिलीं। इस बार के चुनाव में भाजपा की उत्तराखंड की सीटों की घोषणा ने बगावती सुरों को उभार दिया है। यही फुटौवल कांग्रेस में भी देखने को मिल रही है। टिकट न मिलने से नाराज कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने देहरादून में प्रदेशाध्यक्ष किशोर उपाध्याय और मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ जमकर हंगामा किया, नारेबाजी और तोड़फोड़ की। कांग्रेस कार्यालय में तोड़फोड़ और हंगामे का यह सिलसिला दो घंटे तक चलता रहा। लगता यह है कि उत्तराखंड में चुनाव मोदी बनाम हरीश रावत होगा। भाजपा नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने जा रही है। भाजपा के पास वहां मुख्यमंत्री के पद के लिए कई चेहरे हैं, लेकिन पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि चेहरा घोषित करते पार्टी में भीतरघात का खतरा बढ़ जाएगा। इसको देखते हुए ही भाजपा चुनावों में कोई मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित नहीं करना चाहती है। यह भी साफ है कि उत्तराखंड में भाजपा की सीधी टक्कर कांग्रेस से है और कांग्रेस का चेहरा भी साफ है कि वहां उनके लिए हरीश रावत हैं। वर्तमान में रावत मुख्यमंत्री भी हैं। इससे पहले बीच में वहां पर राष्ट्रपति शासन भी लागू रहा है। इसे लोकतंत्र की विडंबना कहा जाए या कुछ और, देवभूमि (उत्तराखंड) में जो सरकारें बनी हैं अब तक उन्हें 77 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन नहीं होता। या यूं कहें कि लगभग 15 से 33 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन पाकर सरकारें बनती रही हैं। हालांकि चुनाव दर चुनाव वोटों का प्रतिशत बढ़ रहा है मगर अब तक जो जीता है वह प्रदेश में मतदाताओं के काफी छोटे हिस्से का समर्थन पाकर सत्ता हासिल करने में कामयाब हो जाता है। सीएम कैंडिडेट का ऐलान न करने और मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने से भाजपा को जहां कुछ फायदे नजर आ रहे हैं वहीं इसके नुकसान भी हैं। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने माना है कि भाजपा में नेता इतने ज्यादा हो गए हैं कि उनकी निजी महत्वाकांक्षाएं पार्टी पर भारी पड़ सकती हैं। सीएम पद के दावेदारों की आपसी टकराहट से पार्टी की दिक्कतें बढ़ सकती हैं। इसलिए किसी एक के नाम पर चुनाव नहीं लड़ना चाहती भाजपा। बहरहाल कांग्रेस में हरीश रावत ही एक चेहरा हैं जिनके दम पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है।
-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment