Sunday 22 January 2017

सशस्त्र सैन्य अधिकरण का दूरगामी व ऐतिहासिक फैसला

एक ओर जहां सेना और अर्द्धसैनिक बलों में भेदभाव के कई मुद्दे उछल रहे हैं वहीं एक ऐतिहासिक फैसले में सशस्त्र सैन्य अधिकरण लखनऊ ने एक सैन्य अधिकारी के कोर्ट मार्शल को रद्द करके तहलका मचा दिया है। सशस्त्र सैन्य अधिकरण ने सैकेंड लेफ्टिनेंट रहे एसएस चौहान का कोर्ट मार्शल रद्द ही नहीं किया बल्कि पांच करोड़ रुपए का जुर्माना भी लगाया। चौहान को बहाल कर सेवा के सभी लाभ देने का भी आदेश दिया। जुर्माने की रकम में से चार करोड़ रुपए याची को बतौर मुआवजा दिए जाएंगे जबकि एक करोड़ रुपए सेना के केंद्रीय कल्याण फंड में जमा किए जाएंगे। राजपूत रेजीमेंट में सैकेंड लेफ्टिनेंट शत्रुघ्न सिंह चौहान श्रीनगर में तैनात थे। 11 अप्रैल 1990 को बटमालू मस्जिद के लंगड़े इमाम के यहां से सोने के 147 बिस्किट बरामद किए गए थे। कर्नल केआरएस पवार और सीओ ने चौहान पर दबाव डाला कि वे इन्हें दस्तावेजों में न दिखाएं। बाकी अफसर भी चुप्पी साध गए। तब याची ने मामला पार्लियामेंट्री कमेटी को भेजा। सेना मुख्यालय ने जांच कराई और कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आदेश दिए गए। जांच के दौरान ही टैंट में सोते समय सेना के अफसरों ने कंबल ओढ़कर याची को पीटकर अधमरा कर दिया। 1991 में शुरू हुए कोर्ट मार्शल में उन्हें सात साल की सजा सुनाई गई। सशस्त्र सैन्य अधिकरण लखनऊ ने अपने फैसले में कई अहम और गंभीर टिप्पणियां कीं। पीठ ने कहा कि सेना ने कोर्ट मार्शल की कार्रवाई के दौरान चौहान द्वारा पेश साक्ष्यों की अनदेखी की। अधिकरण ने कहा कि कोर्ट मार्शल के दौरान चौहान की बातों और साक्ष्यों पर गंभीरता से गौर नहीं किया गया। ऐसा करना साक्ष्य अधिनियम के खिलाफ था। चौहान को कोई मौका भी नहीं दिया गया। यह सेना के नियम-कायदों के खिलाफ है बल्कि उन्हें पागल बताया गया। चौहान पर कई बार जानलेवा हमले भी हुए लेकिन शिकायत के बावजूद अधिकारियों ने कोई सुनवाई नहीं की। अधिकरण ने कहा कि चौहान द्वारा दिए साक्ष्यों की अनदेखी कर दी गई। इस मामले में जल्द ट्रायल की भी जरूरत है। सच और हक की लड़ाई में अंतिम जीत चौहान की हुई। इस लड़ाई में उन्हें 26 साल लग गए। इतने सालों में चौहान और उनके पूरे परिवार ने बहुत कुछ खोया है। मान-सम्मान, लोगों की दुत्कार और न जाने क्या-क्या। एसएस चौहान की कहानी चक दे इंडिया के नायक शाहरुख खान से काफी कुछ मिलती-जुलती है। जो अपने सम्मान को पाने के लिए 26 साल तक लड़ाई लड़ते रहे। एसएस चौहान के पिता भी सेना में कैप्टन थे। हर पिता की तरह एसएस चौहान के पिता का भी सपना था कि वह बड़ा होकर देश की सेवा करे। यह एक ऐतिहासिक और दूरगामी फैसला है। सेना में जिस-जिस से भी अन्याय हुआ है उनके लिए भी रास्ता खुलता है।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment