Wednesday 18 January 2017

टीपू तो साइकिल चलाएंगे पर मुलायम अब क्या करेंगे?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मतदान से पहले ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को एक बड़ी जीत हासिल हुई है। अखिलेश यादव जिन्हें मुलायम सिंह यादव परिवार में टीपू के नाम से कहा जाता है को चुनाव आयोग ने दोनों पार्टी व चुनाव चिन्ह साइकिल सौंप दी है। चुनाव आयोग ने समाजवादी पार्टी का विधिवत विभाजन कर दिया है। चुनाव आयोग का यह फैसला मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक जीवन की सबसे करारी हार के रूप में है। जिस पार्टी को उन्होंने अपना खून-पसीना एक करके खड़ा किया वह एक झटके में ही उनके हाथ से निकल गई। सोमवार को पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव के तमाम दावों को दरकिनार करते हुए अखिलेश गुट को ही असली सपा माना गया। कहा जाता है कि मुलायम सिंह राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं और कब क्या दांव लगाना है वह भलीभांति जानते हैं। पर इस बार वह मात खा गए। सियासी धुरंधर होने के बावजूद वह हवा का रुख नहीं देख पाए। पार्टी भी गई, साइकिल भी गई और पुत्र भी हाथ से निकल गया। अब मुलायम के सामने तीन ही विकल्प बचे हैं। पहला कि कोर्ट जाकर चुनाव आयोग के फैसले पर स्टे की अपील करें। हमें नहीं लगता कि सुप्रीम कोर्ट अब ऐसा करेगा क्योंकि चुनाव आयोग ने ठोस सबूतों पर ही ऐसा महत्वपूर्ण फैसला दिया है। रामगोपाल यादव ने कहा है कि मुलायम गुट कोई ठोस सबूत चुनाव आयोग के समक्ष पेश ही नहीं कर सका। इसमें फायदा भी नहीं दिखता क्योंकि चुनाव आयोग यूपी चुनाव की अधिसूचना जारी कर चुका है। एक बार अधिसूचना जारी हो जाए तो मामले में न्यायपालिका के दखल की गुंजाइश कम हो जाती है। दूसरा यह कि मुलायम अब शिवपाल एंड कंपनी का साथ छोड़कर अखिलेश को राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वीकार कर लें और सपा के संरक्षक की भूमिका स्वीकार कर लें। उनके समधी लालू प्रसाद यादव ने भी यह सलाह दी है कि गुस्सा थूक कर सांप्रदायिक ताकतों को हराने के लिए अखिलेश को आशीर्वाद दें। पर हमें संदेह है कि मुलायम इस विकल्प को चुनें क्योंकि इसका एक मतलब यह होगा कि मुलायम राजनीतिक संन्यास के लिए तैयार हैं, ऐसा शायद ही वह करने पर तैयार हों। अंतिम विकल्प है मुलायम सिंह अलग चुनाव लड़कर जनमत को अपना पक्ष दिखाएं। अगर अखिलेश गुट से ज्यादा वोट और सीटें ले आएं तो उन्हें ही असली समाजवादी पार्टी माना जाएगा, पर इसकी संभावना बहुत कम है। अब जब चुनाव चिन्ह, पार्टी का भी फैसला हो गया है तो अब सबका ध्यान चुनाव पर लग जाएगा। अखिलेश गुट का मानना है कि पूरे विवाद में अखिलेश को बहुत फायदा हुआ है और उनका पुन सत्ता में आना तय है। महागठबंधन बनने की संभावना इस फैसले से बढ़ गई है, अगर ऐसा होता है तो भाजपा-बसपा दोनों के लिए चुनौती बढ़ जाएगी।

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