Tuesday, 28 February 2017

पांचवां चरण तय करेगा सत्ता का मालिक कौन होगा

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के चार चरणों में हुए मतदान से 403 सीटों में से 262 सीटों पर चुनाव पूरा हो चुका है। चौथे चरण में 53 सीटों पर 60.37 प्रतिशत मतदान हुआ जो 2012 से इन सीटों पर दो प्रतिशत ज्यादा था। चार चरणों के बाद पांचवें चरण में आज 27 फरवरी को 11 जिलों की 51 सीटों पर मतदान हो गया। इस चरण में बहराइच जिले की सात, श्रावस्ती की दो, बलरामपुर जिले की चार, गोंडा जिले की सात, सुल्तानपुर जिले की पांच, अमेठी की चार, फैजाबाद की पांच अम्बेडकर नगर की चार, सिद्धार्थ नगर जिले की पांच, बस्ती जिले की पांच और संत कबीर नगर जिले की कुल तीन विधानसभा सीटों पर सोमवार को वोट 57.36 प्रतिशत मत पड़े। उल्लेखनीय है कि अम्बेडकर नगर में आलापुर विधानसभा क्षेत्र में सपा प्रत्याशी चन्द्रशेखर कनौजिया के निधन के कारण चुनाव आयोग ने यहां मतदान की तारीख नौ मार्च निर्धारित की है। इसलिए पांचवें चरण में 51 सीटों पर मतदान हुआ। पांचवें चरण की 51 सीटों में दो सीटें ऐसी हैं जिन पर सपा-कांग्रेस के प्रत्याशी आमने-सामने हैं। ये दोनों सीटें हैंöराहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र की अमेठी व गौरीगंज। इन दोनों सीटों पर राहुल और अखिलेश अपने-अपने उम्मीदवारों के लिए वोट मांग चुके हैं। हालांकि अन्य सीटों पर गठबंधन चुनाव लड़ रहा है। इस चरण में अखिलेश व राहुल की दोस्ती की भी परीक्षा होगी। सभी की निगाहें इस पर लगी हैं कि गठबंधन अपनी सीटें बरकरार रख पाएगा या नहीं। 2012 में इस चरण में हो रही वोटिंग में 52 सीटों में से 42 सीटों पर सपा-कांग्रेस का कब्जा था। अवध क्षेत्र व पूर्वांचल से अखिलेश सरकार के नौ मंत्रियों और सिद्धार्थ नगर में विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय की किस्मत का फैसला भी इसी चरण में होगा। पीएम, सीएम और कांग्रेस उपाध्यक्ष, बसपा प्रमुख समेत तमाम दिग्गजों के दौरों से इस इलाके का चुनावी माहौल पूरा गर्माया हुआ है। अपने गढ़ में सपा को भाजपा और बसपा से कड़ी चुनौती मिल रही है। यह चरण सपा से झटका खाने के बाद बसपा में शामिल हुए अंसारी बंधुओं का असली इम्तिहान होगा। वैसे तो पूर्वांचल के कई जिलों में मुख्तार अंसारी व अफजल अंसारी का प्रभाव होने की बात कही जा रही है, लेकिन उनके गृह जिले गाजीपुर समेत तीन अन्य जिलों की करीब 28 सीटें ऐसी हैं जहां पर अंसारी बंधुओं का खासा असर माना जाता है। यही वजह है कि अंसारी बंधुओं पर कभी सपा तो कभी बसपा डोरे डालती रही है। इसलिए अब की बार बसपा ने मुसलमानों को साधने के लिए फिर से अंसारी बंधुओं का साथ लिया है। दरअसल पूर्वांचल के करीब दो दर्जन जिलों के मुस्लिम समाज पर अंसारी बंधुओं के प्रभाव को सभी सियासी दल जानते हैं। हालांकि यह पहचान इनकी सियासतदां से अधिक दबंग के तौर पर है, फिर भी राजनीतिक दल इनका सहारा लेकर चुनावी समीकरण को साधते हैं। लोकसभा और विधानसभा के कई चुनावों में लगातार जीत दर्ज कर अंसारी बंधु भी अपनी कौम पर मजबूत पकड़ रखने का संदेश देते हैं। इसी वजह से सपा और बसपा इनका सहारा लेती रही है। उत्तर प्रदेश का यह पूर्व क्षेत्र यानि पूर्वांचल दशकों से झूठे वादों का दंश झेलता आ रहा है। यहां का युवा बेरोजगारी के मारे दर-दर फिरता है तो किसान खेतों से लागत भर भी नहीं निकाल पाते। पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस इलाके में बिजली-पानी का संकट अभी तक बदस्तूर कायम है। चौबीस घंटे बिजली देने के वादे पर सरकार फेल है। शहरों को छोड़ दिया जाए तो गांवों में बिजली बमुश्किल आठ से 10 घंटे रही है। बड़े उद्योग धंधे के अभाव में पूर्वांचल के किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। युवाओं का पलायन अन्य बड़े शहरों की ओर तेजी से हो रहा है। नेपाल से सटे होने के कारण पूर्वांचल तस्करी व अपराध के लिए मुफीद माना जाता है। हेरोइन, गांजा, चरस व रुपए की तस्करी की बराबर यहां घटनाएं होती रहती हैं। यहां तक नेपाल से ह्यूमन ट्रैफिकिंग भी खूब होता है। जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते इस अपराध पर लगाम नहीं लग पा रही है। भारतीय राजनीति की दिशा यदि यूपी के विधानसभा चुनाव के किसी क्षेत्र को जाता है तो वह यह पांचवां चरण ही है। इस बार भी यूपी के विधानसभा चुनाव का पांचवां चरण ही तय करेगा कि कौन पार्टी प्रदेश की सत्ता पर काबिज होगी। ऐसा माना जाता है कि पांचवें चरण में जिस दल या गठबंधन को भारी जीत मिलती है, सरकार भी उसी दल या गठबंधन की किसी न किसी प्रकार से बनती है। इसके पहले 2012 के चुनाव के पांचवें चरण की 52 सीटों में से 37 सीटें अकेली समाजवादी पार्टी को मिली थीं और सूबे में सरकार भी सपा की ही बनी थी। पांचवें चरण में देश की नजरें फैजाबाद जिले की अयोध्या विधानसभा सीट पर भी हैं। भारतीय जनता पार्टी के लिए अयोध्या सीट शुरू से ही प्रतिष्ठा का प्रश्न बनी है। लेकिन 2012 में भाजपा 25405 मतों से सपा से हार गई थी। जहां राहुल गांधी की भी परीक्षा होनी है वहीं बगल के जिले सुल्तानपुर के सांसद उनके चचेरे भाई वरुण गांधी की भी परीक्षा होने जा रही है। हालांकि वरुण गांधी फिलहाल इस चुनाव में क्षेत्र में प्रचार के लिए नहीं आए हैं। सुल्तानपुर जिले से ही कांग्रेस के राज्यसभा सांसद राजा संजय सिंह की भी प्रतिष्ठा इस चरण से जुड़ी हुई है। उनकी पूर्व रानी और मौजूदा रानी में जबरदस्त संघर्ष चल रहा है। सो जहां भाजपा के लिए इस चरण में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की चुनौती है वहीं सपा-कांग्रेस गठबंधन की भी अग्नि-परीक्षा है। बहन जी भी यहां पूरा जोर लगा रही हैं और अन्य दलों को कड़ी टक्कर दे रही हैं। बहरहाल आज मतदान हो गया है। देखें, ऊंट किस करवट बैठता है?

-अनिल नरेन्द्र

Sunday, 26 February 2017

हज सब्सिडी खत्म करने की मांग

हैरान करने वाली बात यह है कि हज सब्सिडी एक ऐसा मसला है, जहां मुस्लिम लीडर इसके पक्षधर हैं कि यह सब्सिडी खत्म कर देनी चाहिए, लेकिन केंद्र में सत्तारूढ़ सरकार चाहे, कांग्रेस की हो, भाजपा की हो या फिर तीसरे मोर्चे की रही हो, कोई इसे खत्म नहीं करना चाहती। कहा यह जाता है कि इसके पीछे उसके अपने हित छिपे हुए हैं। साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने भी 10 वर्षों के अंदर हज सब्सिडी खत्म करने को कहा था, उस पर अमल कैसे हो, इसके लिए कमेटी बनाने में ही केंद्र सरकार को पांच साल लग गए। अब केंद्र सरकार ने छह सदस्यों वाली कमेटी बनाई है। भारत से हज पर जाने वाले यात्रियों की संख्या पिछले साल एक लाख, 36 हजार के करीब थी। इस बार कोटा बढ़ाया गया है। सऊदी अरब सरकार ने हज के लिए भारतीय कोटा एक लाख, 70 हजार, 520 कर दिया है। हज पर जाने वाले यात्रियों को दो कैटेगरी में आवेदन करने के विकल्प होते हैं। एक ग्रीन कैटेगरी कहलाती है और दूसरी अजीजीया। यह फर्क वहां रहने के इंतजाम के दृष्टिगत होते हैं। इस साल ग्रीन कैटेगरी के लिए एक लाख, 85 हजार और अजीजीया कैटेगरी के लिए दो लाख, 19 हजार रुपए तय किए गए हैं। केंद्र सरकार हज यात्रा के लिए जो सब्सिडी देती है, वह आने-जाने के लिए हवाई टिकट में उपयोग की जाती है। मुस्लिम लीडरान कहते हैंöहज सब्सिडी की जरूरत ही कहां बची है? श्रद्धालु से जो राशि बतौर किराया ली जा रही है वही काफी है। इस तरह केंद्र सरकार द्वारा हज यात्रियों को सब्सिडी के नाम पर दी जा रही अरबों रुपए की राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही है। इसलिए मुस्लिम लीडरान हज सब्सिडी को खत्म कराना चाहते हैं। उनका कहना है कि ग्लोबल टेंडर के जरिये एयरलाइंस को आमंत्रित किया जाए। जिस भी एयरलाइंस को इतने ज्यादा यात्री एक साथ मिलेंगे वह और भी सस्ती दरों पर टिकट देने को मान जाएंगी। हज यात्रियों के भी पैसे बचेंगे और सरकार को किसी भी तरह की सब्सिडी देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। केंद्र सरकार ग्लोबल टेंडर को राजी नहीं है। केंद्र सरकार पर इल्जाम लगता है कि वह इंडियन एयरलाइंस को मुनाफा दिलाने के लिए महंगे टिकट खरीदती है और सब्सिडी वाली रकम उसके खाते में चली जाती है। केंद्र सरकार का कहना है कि सऊदी अरब सरकार के साथ हमारा अनुबंध है, जिसके तहत हमें 50 प्रतिशत यात्रियों को सऊदी एयरलाइंस से भेजना होता है और 50 प्रतिशत अपनी से। सऊदी एयरलाइंस क्या किराय लेती है यह उस पर दबाव नहीं डाला जा सकता और न ही उन पर दबाव बना सकते हैं कि वह हज यात्रा के लिए ग्लोबल टेंडर करें। अब देखें, कमेटी क्या कहती है।

-अनिल नरेन्द्र

महाराष्ट्र निकाय चुनावों के नतीजों का संदेश

महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों में जब शिवसेना और भाजपा दोनों ने अलग-अलग लड़ने का फैसला किया तो लगा कि शायद इस झगड़े में दोनों को नुकसान होगा पर जब परिणाम आए तो उल्टा ही हुआ। शिवसेना की अस्मिता बच गई और भाजपा की प्रतिष्ठा बढ़ गई। दोनों ने मिलकर कांग्रेस और एनसीपी का लगभग सूपड़ा साफ कर दिया है। ऐसा लगता है कि शिवसेना और भाजपा ने यह ड्रामा किया था, बड़ी सोच-समझ कर क्रिप्ट तैयार की ताकि कांग्रेस और एनसीपी की वोटें खा जाएं। नतीजों से भाजपा और शिवसेना भले ही आज जश्न मनाएं लेकिन कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस (एनसीपी) और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के लिए तो बड़ा झटका ही है। इस बात के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं जब स्थानीय निकायों के चुनावों के नतीजे लोकसभा और विधानसभा से भिन्न रहे हों। लेकिन यह भी सही है कि महाराष्ट्र में शहरी निकायों के चुनावों का महत्व दूसरे राज्यों के मुकाबले अधिक रहा और इन पर काबिज होने का मतलब राज्यस्तरीय राजनीति में भी ताकत बढ़ना है। महाराष्ट्र के निकाय चुनाव आमतौर पर नितांत स्थानीय माने जाते रहे हैं, लेकिन इस बार प्रदेश भाजपा नेतृत्व और खासकर मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गए थे। न केवल इन चुनावों से ठीक पहले भाजपा से शिवसेना ने गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया, बल्कि उसके बाद भाजपा के प्रदेश और राष्ट्रीय नेतृत्व पर खुलकर हमला भी करती रही। हालांकि मुंबई का किंग एक बार फिर शिवसेना ही साबित हुई। कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की पेशकश भले ही कर दी हो, लेकिन कांग्रेस और एनसीपी, दोनों के लिए यह सोचने का वक्त है कि अलग-अलग राह अलग-थलग ही करती है, जैसा कि उनके मामले में नतीजों ने दिखाया है। दोनों को सोचना होगा कि अब भी नजरिया और आचरण न बदला और मिलकर साथ चलने की रणनीति नहीं अपनाई, तो दोनों की राजनीति के लिए भविष्य के रास्ते बंद होने को हैं। इतना तो स्पष्ट ही है कि अगर ये दोनों साथ खड़े होते तो इन्हें यह दिन न देखना पड़ता। यह चुनाव शिवसेना और भाजपा के बीच तल्खी के लिए भी जाना जाएगा। कुछ समय से उद्धव ठाकरे भाजपा और मोदी को लगातार निशाना बनाते रहे हैं। क्या वे अब भी वैसा ही करेंगे और अगर करेंगे तो क्या भाजपा खामोश रहेगी? या यह माना जाए कि उद्धव के हमले नगरपालिकाओं के चुनावों के मद्देनजर थे और अब दोनों के बीच सब कुछ सामान्य हो जाएगा? चुनाव हो गए हैं और क्या पता दोनों की बोली बदल जाए और दोनों फिर से गलबहियां डाले नजर आएं। भारतीय जनता पार्टी के लिए यह 2017 की शानदार शुरुआत है। पहले ओडिशा में अप्रत्याशित समर्थन अब महाराष्ट्र में शानदार प्रदर्शन। 2014 के चुनाव में कांग्रेस के राजनीतिक पतन का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह जारी है। बेशक कांग्रेस के मुंबई चीफ संजय निरूपम ने पद छोड़ने की पेशकश की है पर साथ-साथ पार्टी नेताओं पर ही हरवाने का आरोप जड़ दिया। यह चुनाव एनसीपी के घटते प्रभुत्व का भी संकेत है। पार्टी को और तो और शरद पवार के गढ़ में भी हार मिली। अब तक मुंबई में भाजपा की पहचान शिवसेना के छोटे भाई की थी, पर अब वह अपने दम पर शिवसेना के समानांतर बड़ी ताकत बनकर उभरी है। महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों ने क्या एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि नोटबंदी का कोई नेगेटिव प्रभाव भाजपा के लिए नहीं है? अब देखना यह है कि इस जीत का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों पर क्या असर पड़ता है? यूपी विधानसभा चुनाव के तीन चरण अभी बाकी हैं। मुंबई में पूर्वांचल के बहुत वोटर हैं। वह इस जीत का संदेश यूपी में देने की पूरी कोशिश करेंगे। जहां तक शिवसेना का सवाल है उसके लिए यही बेहतर होगा कि वह भाजपा के साथ मिलकर ही आगे बढ़े।

Saturday, 25 February 2017

जेल में बंद हैं पर फिर भी दांव ठोक रहे हैं चुनाव में

यूपी की राजनीति में हमेशा जेलों की अहम भूमिका रही है। विधानसभा चुनाव 2017 में भी यूपी जेलों के कई बंदी चुनावी दंगल में अपने दांव आजमा रहे हैं। कई बंदी जहां जेलों में रहकर खुद ताल ठोक रहे हैं तो कइयों के रिश्तेदार चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। यूपी के चुनावों में जेलों से चुनाव लड़ने वालों का इतिहास लंबा है। माफिया मुख्तार अंसारी अपने सभी चुनाव जेल में रहकर लड़े हैं। इस बार भी वह जेल में हैं। उन्हें 17 फरवरी से चार मार्च तक की पैरोल मिली थी लेकिन चुनाव आयोग की अर्जी पर तीन दिन की रोक लगा दी गई। वह हर बार चुनावों के दौरान जेल से चिट्ठी भेजकर अपने लिए वोट मांगते हैं। इस बार वह अपने साथी भाई सिगबतुल्ला और बड़े बेटे अब्बास अंसारी के लिए भी वोट मांग रहे हैं। मधुमिता कांड से पूरे देश में चर्चा में आए बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी गोरखपुर जेल में बंद हैं। उनके बेटे अमनमणि को भी चुनावों की घोषणा से पहले सीबीआई ने उसकी पत्नी सारा सिंह की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया है। अमनमणि को पहले सपा ने टिकट दी और फिर काट दी। अब वह पिता की विरासत महाराजगंज की नौतनवा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। अमनमणि की बहन तनुश्री भाई के जेल में होने की दुहाई देकर वोट मांग रही हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में कई ऐसी सीटें हैं जहां जेल से ही वोटों की फसल उगाने की कोशिश चल रही है। बाहुबली उम्मीदवारों को चुनावी समीकरण की बजाय अपने लोगों की ताकत पर ज्यादा भरोसा है। चंदौली की सैयदराजा सीट से बसपा उम्मीदवार श्याम नारायण उर्फ विनीत सिंह पर वाराणसी, भदोही के साथ ही झारखंड और बिहार में हत्या, हत्या का प्रयास, रंगदारी, अपहरण जैसे दो दर्जन से ज्यादा संगीन मामले हैं। सैयदराजा सीट से भाजपा के सुशील सिंह को वाराणसी, भदोही, चंदौली और दिल्ली में हत्या सहित आधा दर्जन मामलों में आरोपी बताया जाता है। इंजीनियर हत्याकांड में बाराबंकी जेल में बंद पूर्व बसपा विधायक शेखर तिवारी का दिवियापुर सीट पर प्रभाव देखते हुए जेल में उनकी निगरानी की जा रही है। इसके अलावा आगरा जेल में बंद अमित गर्ग फिरोजाबाद की सदर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। लखनऊ जेल में बंद भगवती सिंह का भतीजा मनीश सिंह रायबरेली के हरचंदपुर से चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे दर्जनों केस हैं जहां या तो बाहुबली जेलों से चुनाव लड़ रहे हैं या फिर उनके करीबी रिश्तेदार व खासमखास चुनाव मैदान में हैं। एडीजे जेल जीएल मीणा का कहना है कि जेल प्रशासन ने उन सभी बंदियों की सूची बनाकर रखी है जो या खुद चुनाव लड़ रहे हैं या उनके रिश्तेदार मैदान में हैं। उन पर नजर रखी जा रही है।

-अनिल नरेन्द्र

यह पहला चुनाव है जिसमें सोनिया गांधी नहीं आईं

पांच दशक तक गांधी परिवार का मजबूत गढ़ रहे रायबरेली में सपा गठबंधन के बावजूद कांग्रेस को भाजपा और बसपा की चुनौती का सामना करना पड़ा है। दो सीटों पर कांग्रेस और सपा के बीच दोस्ताना मुकाबला भी है। लंबे अरसे के बाद यह पहला चुनाव है जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कोई चुनावी सभा नहीं की है। एक वक्त था, जब केंद्र और सूबे में कांग्रेस की सरकार होती थी तो रायबरेली के कांग्रेसियों का जलवा रहता था। समय के साथ लोगों की पार्टी के प्रति समर्पण की भावना खत्म हो गई। गांधी परिवार का यह किला अब अभेद्य नहीं रहा, यूं कहें कि दरकने लगा है। लोकसभा चुनाव में तो ठीक है पर विधानसभा चुनावों में गांधी परिवार और जनता के बीच रिश्तों का बंधन कमजोर हो गया है। सोनिया मजबूरी के चलते इस बार रायबरेली-अमेठी नहीं जा सकीं। उन्होंने रायबरेली और अमेठी संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं को चिट्ठी भेजकर वोट और समर्थन मांगा है। 1999 में अमेठी से सांसद चुने जाने के बाद यह पहला मौका है जब सोनिया गांधी रायबरेली में किसी चुनाव में नहीं आई हैं। 2004 में वह खुद रायबरेली से सांसद चुनी गई थीं। 2006 में उनके इस्तीफे के बाद उपचुनाव हुआ तो सोनिया फिर निर्वाचित हुईं। 2009 और 2014 में भी सोनिया गांधी रायबरेली से ही सांसद रहीं। इस बार उनके चुनाव प्रचार के लिए न आने के कई मायने निकाले जा रहे हैं। हालांकि कांग्रेस खेमे में माना जा रहा है कि रायबरेली में प्रियंका ही सोनिया की विरासत संभालेंगी। इस बार कांग्रेस सपा गठबंधन करके चुनाव लड़ रही है। इसके बावजूद अहम सवाल यह है कि क्या सपा से दोस्ती करके कांग्रेस अपने इस किले को महफूज रख पाएगी या भाजपा और बसपा उसमें सेंधमारी करेंगीं? पिछले दो विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने पाया भी है और खोया भी। 2007 के चुनाव में जहां ऊंचाहार, सरेनी, हरचन्दपुर, बछरावां, सलोन विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस ने परचम लहराया वहीं 2012 के चुनाव में ये सभी सीटें कांग्रेस ने गंवा दीं। इन सीटों पर सपा का कब्जा हो गया, यह हाल तब था जब प्रियंका वाड्रा ने गांव-गलियों की खाक छानते हुए दर्जनों नुक्कड़ सभाएं कीं और सांसद सोनिया गांधी ने बड़ी रैली की थी। इस बार के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनके परिणाम जहां उत्तर प्रदेश का भविष्य तय करेंगे वहीं राष्ट्रीय राजनीति को दिशा दे सकते हैं। कांग्रेस ने सपा से गठबंधन करके एक तरीके से चुनाव से पहले ही घुटने टेक दिए हैं। रही सही कसर सोनिया गांधी की अनुपस्थिति से पूरी हो गई है। कांग्रेस में एक ऐसा शून्य आ गया है जिसे भरना पार्टी के लिए अत्यंत जरूरी है।

Friday, 24 February 2017

भ्रष्ट नौकरशाहों पर कसता सीबीआई का फंदा

अगर आज भी किसी भारतीय जांच एजेंसी पर भरोसा किया जाता है तो उसका नाम केंद्रीय जांच ब्यूरो यानि सीबीआई है। जब भी किसी मामले की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच की जरूरत महसूस की जाती है तो पहली मांग होती है कि सीबीआई से जांच कराई जाए। लेकिन पिछले कुछ दिनों से कुछ ऐसी घटनाएं घटी हैं जिससे इस सर्वोच्च जांच एजेंसी की साख पर बट्टा लगा है। स्थिति की गंभीरता का अनुमान इससे ही लगाया जा सकता है कि सीबीआई को भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे अपने ही पूर्व निदेशकों की जांच करनी पड़ रही है। पहले संदिग्ध हवाला कारोबारी मोइन कुरैशी से जुड़े मामले में रंजीत सिन्हा की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर से और फिर सीबीआई के पूर्व प्रमुख एपी सिंह के खिलाफ मामले में छापा मारना। यह शीर्ष नौकरशाही के लिए शर्मिंदगी का सबब है। एपी सिंह पर बड़ी मात्रा में धनराशि लेने और गुपचुप तरीके से मांस व्यापारी व हवाला कारोबारी की मदद करने के आरोप हैं। एफआईआर भी किसी मामूली व्यक्ति के कहने पर नहीं, बल्कि प्रवर्तन निदेशालय की शिकायत पर दर्ज की गई है। लगता है कि अब ऊंचे पदों पर बैठे अफसरों के कथित भ्रष्टाचार पर अंतत सीबीआई ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। मंगलवार को भ्रष्टाचार के आरोप में दो सीनियर आईएएस/आईआरएस अफसर समेत कई लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनमें छत्तीसगढ़ सरकार के प्रिंसिपल सैक्रेटरी बीएल अग्रवाल और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर जेपी सिंह शामिल हैं। बीएल अग्रवाल पर आरोप है कि 2010 में जब वह हेल्थ सैक्रेटरी थे तो उन्होंने अपने खिलाफ सीबीआई जांच को निपटाने के लिए रिश्वत दी। पीएमओ में काम करने का दावा करने वाले सैयद बुरहानुद्दीन नाम के शख्स ने केस निपटाने के लिए बिचौलिया भगवान सिंह के जरिये डेढ़ करोड़ रुपए रिश्वत मांगी। आरोप है कि अग्रवाल ने हवाला से 60 लाख रुपए दिए। सीबीआई ने बिचौलिये से दो किलो गोल्ड और 39 लाख कैश बरामद किए हैं। उधर ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर रहे जेपी सिंह पर आईपीएल सट्टेबाजी घोटाले की जांच के दौरान हवाला ऑपरेटर से रिश्वत लेने का आरोप है। सिंह ने 2000 करोड़ की 182 सट्टेबाजी, 5000 करोड़ रुपए के मनी लांड्रिंग केस की जांच की थी। इस मामले में प्रवर्तन अधिकारी संजय और दो अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया गया है। एक दिन पहले ही सीबीआई ने अपने पूर्व चीफ एपी सिंह के खिलाफ केस दर्ज किया था। इतने उच्चपदस्थ अधिकारियों का भ्रष्टाचार में शामिल होना काफी चिन्ताजनक है। ऐसे पदों पर नियुक्ति काफी छानबीन के बाद की जाती है और इस बात का खास ख्याल रखा जाता है कि साफ-सुथरी छवि वाला अफसर ही वहां तक पहुंच सके। आखिर किस नुक्ते पर यह कमी रह जाती है कि वहां ऐसे संदिग्ध चरित्र के लोग पहुंच जाते हैं? यह सही है कि मोदी सरकार के शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार का कोई मामला सामने नहीं आया हो, लेकिन इनकी अनदेखी भी नहीं की जा सकती कि नौकरशाहों के भ्रष्टाचार में संलिप्तता के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। बीते महीने ही सीबीआई ने आयकर विभाग के नौ अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार के तहत मामला दर्ज किया था। जरूरी केवल यह नहीं है कि भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई हो, बल्कि ऐसी व्यवस्था का निर्माण भी हो जिसमें यह भ्रष्ट अधिकारी अपनी मनमानी न कर सकें और ऐसी व्यवस्था का निर्माण प्रशासनिक सुधारों को आगे बढ़ाने और शीर्ष अफसरों की सेवा शर्तों पर नए सिरे से समीक्षा करने से ही हो सकता है।

-अनिल नरेन्द्र

परिणामों का अगले राष्ट्रपति चुनाव पर सीधा असर

उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के चुनावों के परिणामों के दूरगामी प्रभाव होंगे। सिर्फ उन राज्यों के लिए ही नहीं जहां चुनाव हैं बल्कि पूरे देश के लिए। इनका सीधा प्रभाव अगले राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी निर्णायक साबित होगा। इसके अलावा राज्यसभा पर भी सीधा असर पड़ेगा। पांच राज्यों के नतीजों से चुनकर आने वाले विधायक राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान करेंगे। देश का अगला राष्ट्रपति अपने दम-खम पर चुनने के लिए भाजपा और उसके सहयोगियों को अभी करीब 65 हजार मूल्य के वोटों की जरूरत है। पांच राज्यों की 690 सीटों पर हो रहे विधानसभा चुनाव के परिणाम से राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक लाख तीन हजार 756 मूल्य के वोट तैयार होंगे। भाजपा अगर उत्तर प्रदेश में अपने दम पर बहुमत हासिल करने में कामयाब रहती है तो उसे लगभग 32 हजार मूल्य के वोटों का फायदा होगा। वर्तमान में लोकसभा में पूर्ण बहुमत और एक दर्जन राज्यों में सरकार की बदौलत भाजपा और उसके सहयोगियों के पास चार लाख 83 हजार 728 मूल्य के वोट हैं। वहीं कांग्रेस, वामदल और सपा के पास चार लाख 11 हजार 438 मूल्य के वोट हैं। तृणमूल कांग्रेस, बीजद के अलावा टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस के पास राष्ट्रपति चुनाव में 20 हजार 728 मूल्य के वोट हैं। जबकि राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए पांच लाख 49 हजार, 442 मूल्य के वोट जरूरी हैं। कांग्रेस के एक नेता ने कहा है कि मौजूदा स्थितियों में एनडीए के लिए अपने दम पर राष्ट्रपति पद का चुनाव मुश्किल है। भाजपा ने यूपी में अपनी स्थिति सुधार भी ली तो उसे पंजाब में नुकसान हो सकता है। उत्तराखंड में भी पार्टी को फायदा नहीं मिलेगा, यहां विधानसभा की 70 सीटों में से 31 सीटें भाजपा के पास हैं व राष्ट्रपति चुनाव में इसका मूल्य महज 1984 है। पांच राज्यों में से यूपी के विधायक के वोट का मूल्य ज्यादा है। यूपी के एक विधायक के वोट का राष्ट्रपति चुनाव के लिए मूल्य 208 है, जबकि पंजाब के विधायक के मत का मूल्य 116 है। उत्तराखंड के एक विधायक का वोट 64 मूल्य के बराबर है। गोवा के विधायक का मूल्य वोट 20 तो मणिपुर में एक विधायक का मूल्य वोट 18 है। देश के विधानसभा सदस्यों की कुल संख्या 4120 है। 2007 के राष्ट्रपति निर्वाचन के लिए यूपी विधानसभा के सदस्यों के मतों का मूल्य सबसे अधिक (208) व सिक्किम में मतों का मूल्य सबसे कम (7) था। कुल मिलाकर इन पांच राज्यों के परिणाम भाजपा व अन्य पार्टियों के लिए मंहत्वपूर्ण तो हैं ही पर भाजपा के लिए इसलिए और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं कि अगर वह अपनी पसंद का राष्ट्रपति बनाना चाहती है तो उसे इन राज्यों में अच्छा प्रदर्शन करना होगा।

Thursday, 23 February 2017

अंतत पाक ने भी माना हाफिज सईद आतंकी है

आखिरकार पाकिस्तान ने पहली बार मुंबई हमलों के साजिशकर्ता लश्कर--तैयबा के सरगना हाफिज सईद को आतंकवादी माना है। पाकिस्तानी अखबार डॉन न्यूज में शुक्रवार को छपी रिपोर्ट में एक पुलिस अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि जमात-उद-दावा प्रमुख को आतंकवाद निरोधक कानून (एटीए) की सूची में डाल दिया गया है। खुद पर गुजरी तो थोड़ा होश आया। आतंकी घटनाओं में 100 से ज्यादा लोगों के मारे जाने के बाद ही सही पाकिस्तान ने भारत के इस गुनाहगार को आतंकी मान लिया है। उसके चार अन्य साथियों को भी आतंकी सूची में शामिल किए जाने की खबर है। हालांकि पाकिस्तान की इस कार्रवाई को भी उसकी मंशा की बजाय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से कार्रवाई का डर और भारत की तरफ से अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर घेराबंदी के दबाव के रूप में देखा जा रहा है। बहरहाल अब भारत के लिए यह साबित करना आसान है कि किस तरह तमाम आतंकियों को पाकिस्तान पहले बचाता रहा है और फिर दबाव पड़ने पर उनके खिलाफ कार्रवाई करता है। एटीए में डालने का मतलब साफ है कि ये सभी शख्स किसी न किसी आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रहे हैं। लिहाजा पाकिस्तान अब कानूनी तौर पर स्वीकार कर रहा है कि हाफिज सईद आतंकी है। पाकिस्तान के इस कानून के मुताबिक इस सूची में शामिल लोगों की सम्पत्तियां जब्त कर ली जाती हैं, उनके पुराने सभी धंधों की जांच की जाती है, उनके पैसे के हिसाब-किताब की जांच की जाती है, उनके किसी भी बाहरी व्यक्ति से मिलने-जुलने पर रोक लग जाती है। साथ ही उनके खिलाफ आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के आरोपों की जांच की जाती है। सईद 30 जनवरी 2017 से नजरबंद है, लेकिन पाकिस्तान ने इससे पहले 2008 में भी उसे गिरफ्तार किया था। फर्क यह है कि इस बार जिस कानून के तहत उसका नाम शामिल किया गया है वह पहले से काफी सख्त है। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक हाफिज सईद और काजी कासिफ पिछले कुछ समय से कश्मीर मुद्दे पर लगातार न सिर्फ सार्वजनिक रैलियां आयोजित कर रहे थे, बल्कि भारत को खुलेआम सर्जिकल स्ट्राइक और कश्मीर मामले पर अंजाम भुगतने की धमकी भी दे रहे थे। पर पाक आगे सईद को लेकर सख्ती दिखाए या न दिखाए, भारत उसके खिलाफ जो बातें कर रहा था उसे पाकिस्तान सरकार ने भी एक तरह से स्वीकार कर लिया है। अभी तक तो पाकिस्तान हमेशा कहता रहा कि सईद की गतिविधियां पूरी तरह से राहत कार्य व राजनीतिक रैलियों तक सीमित हैं। इससे पाक में फल-फूल रहे इन जेहादी संगठनों पर थोड़ा अंकुश तो जरूर लगेगा।
-अनिल नरेन्द्र


क्रिकेटरों की मंडी में विदेशियों का बोलबाला

बेंगलुरु में सोमवार को इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के 10वें संस्करण में क्रिकेट खिलाड़ियों की मंडी लगी और जमकर बोलियां लगीं। इस बार की नीलामी में विदेशी खिलाड़ी छाये रहे। बोली के लिहाज से एक से आठ तक विदेशी खिलाड़ियों ने ही जगह बनाई। कर्ण शर्मा जो नौवें नम्बर पर थे को मुंबई इंडियंस ने 3.2 करोड़ रुपए में खरीदा। उनका बेस प्राइज था 30 लाख। पहले नम्बर पर इंग्लैंड के ऑलराउंडर बेन स्टोक्स को सबसे महंगे खिलाड़ी का खिताब मिला। टी-20 वर्ल्ड कप फाइनल के आखिरी ओवर में चार छक्के खाने वाले बेन स्टोक्स सबसे महंगे 14.5 करोड़ रुपए में बिके। उन्हें पुणे सुपर जाइंट्स ने खरीदा। स्टोक्स को उनके आधार मूल्य दो करोड़ से सात गुना कीमत मिली। वह अब तक के सबसे महंगे विदेशी खिलाड़ी हैं। यही नहीं वह आईपीएल में खेल रहे खिलाड़ियों रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के कप्तान विराट कोहली (15 करोड़) के बाद दूसरे सबसे बड़े खिलाड़ी बन गए हैं। हालांकि आईपीएल इतिहास के सबसे महंगे खिलाड़ी का रिकार्ड युवराज सिंह (16 करोड़ रुपए) के नाम है, जिन्हें 2015 में दिल्ली डेयरडेविल्स ने खरीदा था। वहीं भारतीयों में लेग स्पिनर कर्ण शर्मा सबसे महंगे रहे। उन्हें किंग्स इलेवन पंजाब ने 3.2 करोड़ रुपए में खरीदा। भारतीय तेज गेंदबाज इशांत शर्मा और इरफान पठान को खरीदार नहीं मिले। इशांत शर्मा का आधार मूल्य दो करोड़ और पठान का 50 लाख रुपए था। आईपीएल में पहली बार अफगानिस्तान के दो क्रिकेटरों को भी अपना जलवा दिखाने का मौका मिलेगा। सनराइजर्स हैदराबाद ने राशिद खान को चार करोड़ और ऑलराउंडर मोहम्मद नबी को आधार मूल 30 लाख खर्च कर अपने साथ जोड़ा। राशिद का आधार मूल्य 50 लाख रुपए था। किंग्स इलेवन ने नटराजन को तीन करोड़ में खरीदा। वे सबसे महंगे बिकने वाले भारतीय खिलाड़ियों में दूसरे नम्बर पर रहे। नटराजन की मां चेन्नई में सड़क किनारे ठेला लगाकर खाने-पीने की चीजें बेचती हैं। पिता कपड़े की दुकान में काम करते हैं। मानना पड़ेगा कि आईपीएल ऐसे खिलाड़ियों को अपना जौहर दिखाने का मौका देता है जिनमें टेलेंट तो है पर अवसर नहीं मिलते। नटराजन के परिवार की तो जिन्दगी संवर गई। आईपीएल पैसों की खान बनती जा रही है। 2008 में पहले आईपीएल से करीब 40 करोड़ रुपए की रेवेन्यू जेनरेट हुई थी। वहीं 2016 में करीब 2300 करोड़ का रेवेन्यू हासिल हुआ। यानि नौ साल में इस लीग की रेवेन्यू में 475 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। इस टाइम पीरियड में ऐसी तेजी दुनिया की किसी अन्य लीग में नहीं देखी गई। हालांकि रेवेन्यू के मामले में अभी भी आईपीएल दुनिया की अन्य लीगों से पीछे है। नेशनल फुटबॉल लीग (एनएफएल) रेवेन्यू के मामले में दुनिया में सबसे बड़ी लीग है। एनएफएल (अमेरिका) ने पिछले सीजन में 13 बिलियन डॉलर (87000 करोड़ रुपए) रेवेन्यू जेनरेट किया। इसके बाद दूसरे नम्बर पर भी अमेरिका की एमबीएल (बॉस्केट बॉल लीग) है। एमबीएल (अमेरिका) की पहली तीन लीगों में है। हमारी आईपीएल पांचवें नम्बर पर आती है। आईपीएल (इंग्लैंड) चौथे नम्बर पर है। आईपीएल में टीमों ने 27 विदेशी खिलाड़ियों पर 66.4 करोड़ रुपए खर्च किए। 39 भारतीय खिलाड़ियों पर 24.75 करोड़ रुपए खर्च किए। गुजरात लाइंस ने सबसे ज्यादा 11 खिलाड़ी खरीदे। जबकि रॉयल चैलेंजर बेंगलुरु ने सबसे कम पांच खिलाड़ी ही खरीदे। आईपीएल चेयरमैन राजीव शुक्ला ने कहा कि मैं इस बात को लेकर आश्वस्त हूं कि आईपीएल 10 पिछले सभी संस्करणों से बेहतर होगा। सभी टीमों को हमारी शुभकामनाएं। कल तक थे अनजान, नीलामी के बाद बन गए सितारे। अब इनकी परफार्मेंस पर नजरें टिक जाएंगी।

Wednesday, 22 February 2017

हम दूसरों से क्या लड़ें, हमारे अपने ही हराने में लगे हैं

उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा का चल रहा चुनाव मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं। 25 वर्ष की उम्र पार कर रही समाजवादी पार्टी ने अभी तक सभी चुनाव मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में लड़े हैं। यह पहला चुनाव है जिसमें अखिलेश यादव न केवल पार्टी का चेहरा ही हैं बल्कि पार्टी की कमान भी उन्हीं के हाथों में है। पार्टी की हार या जीत दोनों की जिम्मेदारी उन्हीं की होगी। पार्टी के जीतने का सेहरा उन्हीं के सिर पर बंधेगा लेकिन हार का ठीकरा भी उन्हीं के ऊपर फूटेगा। इसलिए यह चुनाव अखिलेश यादव के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। अखिलेश को एकसाथ कई मोर्चों पर लड़ना पड़ रहा है। कभी-कभी वह हालात से मायूस भी हो जाते हैं। बाराबंकी में सपा प्रत्याशी अरविन्द सिंह गोप के समर्थन में जनसभा करने पहुंचे अखिलेश ने परिवारवाद पर इमोशनल होते हुए कहा, अपने लोग भी मुझे हराना चाहते हैं, हम किस-किस से लड़ेंगे? वहीं बेनी वर्मा पर कमेंट करते हुए कहा-कमाल के नेता हैं, जो पिता से ही झगड़ा करा देते हैं। अगर उनका बेटा हमसे मिलता तो हम उनके परिवार में झगड़ा करा देते। अखिलेश ने कहा- अरविन्द सिंह गोप ने साइकिल बचाने में हमारी मदद की है। हम बसपा, भाजपा से कहां तक लड़ें हमारे तो अपने ही हमें हराने पर लगे हैं। गोप के लिए उन्होंने कहा, खराब समय में काम आने वाले साथियों को हम नहीं छोड़ सकते। हमने तो वो दिन तक देखे कि हमें ही पार्टी से निकाल दिया गया। जिन लोगों ने अपनों से दूर  किया वो अपनों के लिए टिकट मांग रहे थे। मेरे खिलाफ कई षड्यंत्र हुए, कमाल के नेता हैं हमारे पिता से ही हमारा झगड़ा करवा दिया। अब यूपी के चौथे चरण में 12 जिलों की 53 सीटों के लिए घमासान मचा हुआ है। चौथे चरण में 23 फरवरी को मतदान होना है। इस चरण की 53 सीटों को अपने पाले में करने के लिए सपा, भाजपा, बसपा और कांग्रेस पूरी ताकत से प्रचार में जुटी हुई हैं। वर्ष 2012 के चुनाव में इस क्षेत्र से सर्वाधिक सीटें सपा के खाते में गई थीं। सपा को बहुमत मिलने के कारण उसकी सरकार बनी थी, लेकिन इस बार सपा को चुनौती अपनों से ही मिल रही है। समाजवादी पार्टी में भीतरघात का चलन पुराना है। कई असफल टिकटार्थियों ने 2012 में विधानसभा चुनाव के दौरान अपने साथियों के खिलाफ प्रचार किया था और उन्हें हराने के लिए कार्यकर्ताओं को लामबंद करने की पुरजोर कोशिश की  थी। इस बात का खुलासा खुद प्रो. रामगोपाल यादव ने उस वक्त सपा के प्रदेश मुख्यालय पर मुलायम सिंह यादव के समक्ष किया था। उसी पुरानी पटकथा को रोकने के लिए अखिलेश एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं।

-अनिल नरेन्द्र

तीसरे दौर की बंपर वोटिंग के बाद फोकस चौथे दौर पर



विधानसभा चुनाव में इस बार अपनी सरकार चुनने का उत्साह कुछ ज्यादा ही है क्योंकि यूपी विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण में भी वोटर फर्स्ट डिवीजन में पास हुए हैं। तीसरे चरण में 12 जिलों की 69 सीटों पर गत रविवार को 61.16 प्रतिशत वोटिंग हुई। मतदान शांतिपूर्ण हुआ। जहां भी छिटपुट बवाल की सूचनाएं आई थीं, वह मतदान केंद्रों के 200 मीटर के दायरे के बाहर की थीं। रविवार को वोटिंग के बाद सब बोले, हमारी सरकार बनेगी। समाजवादी पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने कहा कि सपा-कांग्रेस गठबंधन 300 सीटों से अधिक जीतकर सरकार बनाएगा। अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बनेंगे और शिवपाल मंत्री। शिवपाल की सरकार में नंबर 2 की हैसियत होगी। जसवंत नगर विधानसभा क्षेत्र के सैफई गांव के अभिनव स्कूल से वोट देकर निकले मुलायम ने कहा कि पूरा परिवार एक है, कोई विरोधाभास की स्थिति नहीं है। अखिलेश को मुख्यमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने मतदान के बाद विश्वास जताया कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी के लेकर विरोधियों के बाहरी बनाम यूपी के मुद्दे पर किए गए सवाल पर राजनाथ सिंह ने सीधा जवाब नहीं दिया लेकिन कहा, 11 मार्च की प्रतीक्षा करें। तीसरे चरण के मतदान के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि दो चरण के जो वोट पड़े हैं, उसके आधार पर मैं यह कह सकती हूं कि तीसरे चरण में भी बसपा वोट के मामले में नंबर वन रहेगी और आगे के चरणों में भी सबसे आगे होगी। मायावती ने कहा कि यूपी की जनता बदलाव चाहती है। वह सपा के गुंडाराज और जंगलराज से तंग आ चुकी है। तीसरे चरण का मतदान समाप्त होने के बाद राजनीतिक दलों का ध्यान और जोर अब चौथे दौर पर है। बुंदेलखंड राजनीतिक दलों के एजेंडे का हिस्सा है और यह संयोग है कि चौथे चरण में वीरों की यह भूमि भी मुकाबले में है। बुंदेलखंड के सात जिलों समेत कुल 12 जिलों की 53 विधानसभा सीटों पर 23 फरवरी को मतदान होगा। नेहरू-गांधी परिवार के इस गढ़ में दांव पर यूपी के दो लड़कों की दोस्ती लगी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा यूपी को माई-बाप का दर्जा देकर खुद को गोद लिया बेटा बताए जाने के बाद इन अंचलों में रिश्तों की जंग तेज हो गई है। गंगा-यमुना, बेतवा, कैन और सई जैसी नदियों की परिधि में चौथे चरण का इलाका बसा है। बुंदेलखंड के अलावा, रायबरेली, प्रतापगढ़, फतेहपुर, कौशांबी और इलाहाबाद इसके हिस्से हैं। इस लिए आमजन के सिर पर भी सियासत चढ़कर बोलती है। इस बार के चुनाव में रायबरेली का पूरा समीकरण बदल गया है। यहां की कुल सात सीटों में पिछली बार पांच सीटों पर सपा जीती थी। एक कांग्रेस और एक पीस पार्टी के हिस्से में आई थी। इस बार तिलोई सीट अमेठी में चली गई है। कांग्रेस और सपा की दोस्ती के बाद चुनावी पैरोकारों के दिल और जुबान दोनों बदली हैं। पिछली बार पीस पार्टी के चुनाव जीतने वाले अखिलेश सिंह ने अपनी बेटी अदिति सिंह को कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतारा है। वह पिछली बार सपा-कांग्रेस दोनों पर हमलावर थे लेकिन अबकी बार इन दोनों दलों के प्रति कृतज्ञ हैं। इसी जिले के ऊंचाहार सीट सपा सरकार के मंत्री मनोज पांडे की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है। यहां सपा और कांग्रेस दोनों दल मुकाबिल हैं और इससे भी खास बात यह है कि मनोज पांडे के मुकाबले में भाजपा ने पूर्व प्रतिपक्ष के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के पुत्र उत्कृष्ट मौर्य को मैदान में उतारा है। बांदा जिला बसपा के लिए कई मायनों में अहम है। बसपा के कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी का यह गृह जिला है। चार सीट वाले इस जिले में पिछली बार दो कांग्रेस और एक सपा और एक बसपा को मिली थी। देखें कि बंपर वोटिंग का यह सिलसिला चौथे दौर में भी चलता है।

Inferior politics over Army Chief warning

It’s the misfortune of our nation that we never think about the impact of our inferior politics over the national security agencies and the nation’s integrity and sovereignty? Army Chief General Vipin Rawat had recently warned that the people hoisting the flags of ISI and Pakistan in Kashmir will be dealt firmly. Those obstructing the military operation by stone-pelting or otherwise will be treated as the associates of the terrorists. Is such statement unfair or objectionable? Incidents in South Kashmir on Sunday, Monday and Tuesday clearly indicate that the Kashmiri terrorism can neither be stopped by surgical strike nor demonetization. The valley has once again become tense after the killing of six youth in Kulgaon district on Sunday. Security forces have on one hand to encounter with the terrorists and simultaneously to face the public stone-pelting on the other. Resorting to ifs & buts, leaders of various parties including Congress have opened an unfortunate front against the Army Chief. As such they have not only shown the inferior and fatal politics, but rewarded the stone-pelting and pro-Pak elements of Kashmir also. Do these leaders opposing the Army Chief’s statement want the security forces should fight at one time on the both fronts during the encounter with the terrorists? If the army deals firmly with the stone pelting people at such time, these people object. Our governments, Central and State governments are also responsible for this situation to much extent. Why didn’t you openly allowed the army to deal firmly on both fronts and take action, if necessary, against the supporters of the terrorists like the action taken for the terrorists. You’ve even disputed the use of pallet guns by the army. Can our deal with such mischievous elements with crossed hands? How long will we be seeing the martyrdom of our brave soldiers? How can the people opposing the Army Chief’s statement forget that six soldiers including on Major have martyred in last one week in Kashmir? Seldom have a leader said such that the martyrdom of six soldiers is not acceptable in killing eight terrorists. Doesn’t the leaders placing kinds of sophistry against the army chief know that if the Major injured during the encounter with terrorists in Hundwara couldn’t reach the hospital in time only for the reason that mob not only blocked the road for army fleet but also pelted stones over them. How shameful is it that when after such incidents the stone pelting people be condemned, instead adverse efforts are on to boost their morale? Shame on these people stitching their mouth over the martyrdom of soldiers but become too vocal against the warning to elements who eyesore the army and security forces. Politics goes on but within its own limits. We salute these brave soldiers maintaining the security, integrity and sovereignty of the nation and appeal them to carry on their duty ignoring people questioning their martyrdom. We fully support the warning from Army Chief General Vipin Rawat.

-          Anil Narendra

Tuesday, 21 February 2017

दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता पाकिस्तान

पाकिस्तान के सूफी संत लाल बहादुर शाहबाज कलंदर की दरगाह में बृहस्पतिवार को हुए आत्मघाती हमले ने एक बार फिर दुनिया को दिखा दिया कि दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरनाक मुल्क पाकिस्तान है। इस हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली है। इस हमले में कम से कम 100 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हुए। Eिसध प्रांत के सहवान कस्बे में स्थित इस दरगाह में बृहस्पतिवार शाम को सूफी रस्म धमाल के चलते जायरिनों की भारी भीड़ थी, उस समय आत्मघाती हमलावर ने खुद को ब्लास्ट कर उड़ा लिया। मरने वालों में बच्चे, महिलाएं भी शामिल हैं। लाल शाहबाज कलंदर 12वीं सदी के प्रसिद्ध सूफी दार्शनिक और कवि रहे हैं। दमादम मस्त कलंदर की मशहूर कव्वाली भी उनके बारे में है। पाकिस्तान ही नहीं हिन्दुस्तान में भी सिंधी समाज शाहबाज कलंदर के मुरीद हैं। पाकिस्तान में सूफी संप्रदाय के लोगों को निशाना बनाकर अकसर हमले होते रहते हैं। 2005 के बाद से 25 से ज्यादा सूफी दरगाहों पर हमले हुए हैं। इनमें से ज्यादातर जिम्मेदारी तहरीक--तालिबान ने ली है। पर बृस्पतिवार को हुए हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली है। सीरिया और इराक में जिस आईएस के पैर उखड़ रहे हैं, उसकी इस क्षेत्र में मौजूदगी को हल्के से नहीं लिया जा सकता। केवल यही नहीं कि हत्यारों ने इस दरगाह पर हमला कर उदार इस्लाम के खिलाफ सख्त संदेश दिया है, बल्कि उन्होंने हमले के लिए वह दिन चुना (बृहस्पतिवार) जब धमाल के लिए वहां भारी भीड़ उमड़ती है। यह हमला पहले से ही अशांत पाकिस्तान में सिंधियों की पहचान और संस्कृति को ठेस पहुंचाने की एक और कोशिश है। मुंबई हमले के बाद अमेरिका की पूर्व विदेश सचिव मेडलिन अलब्राइट ने दिसम्बर 2008 में कहा था कि आतंकवाद, भ्रष्टाचार, गरीबी और परमाणु हथियारों की वजह से पाकिस्तान दुनिया के लिए सिरदर्द बन गया है। पर अब यह सिर्फ सिरदर्द ही नहीं रहा है। अलब्राइट से एक कदम आगे जाते हुए अमेरिका की केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) के एक पूर्व अधिकारी ने कहा है कि पाकिस्तान संभवत दुनिया के लिए सबसे खतरनाक देश है। पाकिस्तान की हालत आज क्या है इसी से पता चलता है कि बृहस्पतिवार को शाहबाज कलंदर की दरगाह पर हुआ बम विस्फोट इस हफ्ते का पांचवां बड़ा आतंकी हमला है। इससे पहले लाहौर, क्वेटा, पेशावर और मोम्मद कबायली इलाके में आत्मघाती हमले हो चुके हैं। आईएस और तालिबान पाकिस्तान में शियाओं, सूफी दरगाहों, मस्जिदों को निशाना बनाते रहे हैं। वर्ष 2005 से अब तक मुल्क में करीब 25 दरगाहों पर हमले हो चुके हैं। इस्लामाबाद में सीआईए के पूर्व स्टेशन प्रमुख केविन हल्बर्ट ने चेतावनी दी है कि पाकिस्तान का विफल होना दुनिया के लिए एक गंभीर चेतावनी है।
-अनिल नरेन्द्र



सेना प्रमुख की चेतावनी पर घटिया सियासत

हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि हम घटिया सियासत करते समय यह भी नहीं देखते कि इसका प्रभाव देश की सुरक्षा एजेंसियों पर व देश की एकता व अखंडता पर क्या पड़ेगा? थल सेनाध्यक्ष जनरल विपिन रावत ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि कश्मीर में आईएस और पाकिस्तान का झंडा लहराने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा। सेना के ऑपरेशन के दौरान पत्थरबाजी या अन्य तरीकों से बाधा पहुंचाने वालों को आतंकियों का सहयोगी समझा जाएगा। आखिर इस बयान में क्या अनुचित या आपत्तिजनक है? दक्षिण कश्मीर में रविवार, सोमवार और मंगलवार की घटनाएं साफ संकेत दे रही हैं कि कश्मीर का आतंकवाद न तो सर्जिकल स्ट्राइक से समाप्त होने वाला है और न ही नोटबंदी से। रविवार को कुलगांव जिले में छह युवाओं के मारे जाने के बाद घाटी में फिर तनाव पैदा हो गया है। एक तरफ सुरक्षा बलों को आतंकियों से मुठभेड़ करनी पड़ रही है तो दूसरी तरफ जनता के पथराव का सामना करना पड़ रहा है। किन्तु-परन्तु का सहारा लेकर कांग्रेस समेत कई अन्य दलों के नेताओं ने सेनाध्यक्ष के खिलाफ दुर्भाग्यपूर्ण मोर्चा खोल दिया है। ऐसा करके उन्होंने न केवल घटिया एवं घातक राजनीति का परिचय दिया है, बल्कि कश्मीर के पत्थरबाजों और सड़कों पर उतरने वाले पाकिस्तान परस्त तत्वों को पुरस्कृत भी किया है। क्या सेनाध्यक्ष के बयान का विरोध करने वाले ये नेता यह चाह रहे हैं कि आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान सुरक्षा बल एक टाइम पर दोनों मोर्चों पर लड़ें? अगर सेना ऐसे मौके पर पत्थरबाजों पर सख्ती करती है तो इन लोगों को बौखलाहट हो जाती है। इस स्थिति के लिए हमारी सरकारें, केंद्र व राज्य सरकार कुछ हद तक खुद जिम्मेदार भी हैं। आपने सेना को खुले आदेश क्यों नहीं दिए कि वह ऐसे मौकों पर दोनों मोर्चों पर सख्ती करें और जरूरत पड़ने पर इन आतंकियों को मदद पहुंचाने वालों पर भी उसी तरह की कार्रवाई करें जैसे आतंकियों से की जाती है। आपने तो सेना के पैलेट गनों के इस्तेमाल पर भी विवाद खड़ा कर दिया है। क्या हमारे जवान हाथ पीछे बांधकर इन खुराफाती तत्वों से निपट सकते हैं? आखिर कब तक हम अपने बहादुर जवानों की शहीदी देखते रहेंगे? आखिर सेनाध्यक्ष के बयान का विरोध करने वाले यह कैसे भूल सकते हैं कि कश्मीर में केवल पिछले सप्ताह एक मेजर समेत छह  जवान शहीद हो चुके हैं। शायद ही किसी नेता ने ऐसा कुछ कहा हो कि आठ आतंकियों को मार गिराने में छह सैनिकों की शहादत स्वीकार नहीं। सेनाध्यक्ष के खिलाफ तरह-तरह के कुतर्क पेश कर रहे नेताओं को क्या यह पता नहीं कि हंदवाड़ा में आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान घायल मेजर यदि समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाए तो इसका कारण भी कि उग्र भीड़ ने न केवल सेना की गाड़ियों का रास्ता रोका, बल्कि उन पर पथराव भी किया। यह कितनी शर्मनाक बात है कि जब ऐसी घटनाओं के बाद पत्थरबाजों की एक स्वर में भर्त्सना होनी चाहिए तब उनका मनोबल बढ़ाने का ही उल्टा प्रयास हो रहा है? धिक्कार है ऐसे लोगों पर जो सैनिकों की शहादत पर तो मुंह सिल लेते हैं और सेना और सुरक्षा बलों की नाक में दम करने वाले तत्वों को चेताए जाने के खिलाफ मुखर हो उठते हैं। राजनीति चलती रहती है पर राजनीति की भी सीमा होनी चाहिए। देश की सुरक्षा, एकता व अखंडता को बरकरार रखने वाले इन बहादुर जवानों को हम सलाम करते हैं और इनकी शहादत पर सवाल उठाने वालों की परवाह न करके अपना काम जारी रखने की अपील करते हैं। हम सेनाध्यक्ष जनरल विपिन रावत की चेतावनी का पूरा समर्थन करते हैं।

Sunday, 19 February 2017

इस जानलेवा प्रदूषण पर नियंत्रण कैसे लगे?

दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण पर अकसर चिन्ताएं प्रकट की जाती हैं, कुछ उपाय समय-समय पर उठाए भी जाते रहे हैं पर तब भी यह काबू में नहीं आ रहा। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में यह मामला आया और कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से रोजाना औसत आठ लोगों की मौत हो जाती है। इस बढ़ती समस्या को देखते हुए शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि एनसीआर में उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले सल्फर-युक्त रसायन और तेल पर चार सप्ताह के अंदर रोक लगाएं, क्योंकि यह प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में प्रदूषण रोकने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली सरकार, हरियाणा, यूपी और राजस्थान सरकार को निर्देश दिया है कि वो दो हफ्ते के अंदर बैठक कर कारगर योजना तैयार करें। जस्टिस एमबी लोकूर और जस्टिस पीसी घोष की पीठ ने केंद्र की उस दलील को भी खारिज कर दिया जिसमें उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले फर्नेस तेल और पेरकोक को हटाने के लिए आठ हफ्ते का वक्त मांगा था। वायु प्रदूषण की समस्या केवल दिल्ली-एनसीआर की नहीं है। अमेरिका की प्रतिष्ठित हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट ने वैलेंटाइन डे पर जारी अपनी रिपोर्ट में भारत के वायु प्रदूषण को लेकर बड़ी खतरनाक तस्वीर पेश की है। उसका कहना है कि हवा में पीएम 2.5 कणों की हद से ज्यादा मौजूदगी के चलते सन 2015 में भारत में 11 लाख लोगों की समय-पूर्व मौतें हुईं, जो इसी वजह से चीन में हुई मौतों के बराबर है। पूरी दुनिया में इस साल 42 लाख लोगों की अकाल मृत्यु इस कारण से हुई थी, जिसमें आधी से ज्यादा `22 लाख' मौतें सिर्फ भारत और चीन में हुई थीं। रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन के शहरी वातावरण में पीएम 2.5 कणों की मौजूदगी घटाने के लिए ठोस प्रयास शुरू हो चुके हैं, लेकिन भारत में कई मंत्री आधिकारिक तौर पर बयान जारी करते रहे हैं कि वायु प्रदूषण यहां कोई बड़ी समस्या नहीं है। ऐसे में भारत जल्द ही वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के मामले में चीन को काफी पीछे छोड़ देगा और इस मामले में दुनिया का कोई भी देश उसके आसपास भी नजर नहीं आएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए जल्द एक्शन लेने की इसलिए भी जरूरत है क्योंकि वर्ष 2010 की बोस्टन के एक संस्थान की रिपोर्ट के हवाले से कोर्ट ने कहा कि राजधानी दिल्ली में रोजाना आठ लोगों की प्रदूषण की वजह से मौत हो जाती है जो न केवल दुखद ही है बल्कि सभी के लिए चिन्ताजनक भी है।

-अनिल नरेन्द्र

कैदी नम्बर 9435, अर्श से जेल के फर्श तक

तमिलनाडु में मुख्यमंत्री बनने का इंतजार कर रही अन्नाद्रमुक महासचिव शशिकला की नई पहचान बेंगलुरु सेंट्रल जेल में कैदी नम्बर 9435 है। यहां पर 61 वर्षीय शशिकला तमिलनाडु की सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने का ख्वाब देखते-देखते 8द्ध10 की एक कालकोठरी में पहुंच गई हैं। शशिकला ने अपनी पहली रात फर्श पर सोकर बिताई। उन्होंने जज से खास सुविधाओं वाली कोठरी मांगी थी जो नामंजूर हो गई। दिलचस्प बात तो यह है कि वह साल 2014 में भी परपन्ना अगराहा जेल में 21 दिन बिता चुकी हैं। शशिकला के साथ जेल की उस कोठरी में दो और महिलाएं भी हैं जिनमें से एक खून के आरोप में सजा काट रही है। उसने छह खून किए थे। जेल यात्रा करने से पहले शशिकला जयललिता की समाधि पर गई थीं। यहां शशिकला ने कुछ ऐसा व्यवहार किया जिससे लोग हतप्रभ रह गए। बेंगलुरु की अदालत में आत्मसमर्पण करने के लिए जाते समय शशिकला मरीना बीच स्थित जयललिता की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए कुछ देर रुकीं। इस दौरान उन्होंने समाधि पर तीन बार हाथ मारा। उस समय उनकी आंखों में आंसू थे और वह लगातार कुछ बुदबुदा रही थीं जिसे सुना नहीं जा सका। शशिकला के समर्थकों का कहना है कि उन्होंने समाधि पर तीन बार हाथ मारकर तीन शपथ ली हैं। अन्नाद्रमुक की ओर से ट्वीट कर कहा गया है कि शशिकला ने बाधा, कपट और अपने खिलाफ साजिश से पार पाने का संकल्प लिया है। कुछ लोग इस पर अटकलें लगा रहे हैं कि जयललिता की पार्टी और सरकार पर तो शशिकला नटराजन का कब्जा हो गया है पर जयललिता की बेहिसाब दौलत का क्या होगा? क्या यह बेहिसाब दौलत जो इस समय कर्नाटक सरकार के पास जमा है, तमिलनाडु के खजाने में जाएगी? बता दें कि कर्नाटक के सरकारी खजाने में जमा छह करोड़ रुपए की गोल्ड और डायमंड ज्वैलरी, 20 लाख रुपए की चांदी की कलाकृतियां, 2140 साड़ियां, 750 जोड़ी जूतियां और चप्पलें और 15 लाख रुपए से ज्यादा कीमत की 91 रिस्टवॉच अब तमिलनाडु सरकार के हवाले की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में अपने ऑर्डर में कहा है कि तमिलनाडु की भूतपूर्व सीएम जे. जयललिता पर लगाए गए 100 करोड़ के जुर्माने की रकम उनकी प्रॉपर्टी से वसूल की जाएगी। जयललिता पर लगाए गए 100 करोड़ रुपए के जुर्माने से पांच करोड़ रुपए कर्नाटक सरकार को मिलेंगे जो जयललिता, उनकी करीबी सहयोगी शशिकला, सुधाकरन और इलावरासी के खिलाफ चले मुकदमे में खर्च हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में शशिकला, सुधाकरन और इलावरासी तीनों पर 10-10 करोड़ रुपए का जुर्माना भी लगाया है, जिनकी रिकवरी इनके कैश डिपॉजिट और इनकी जब्त सम्पत्ति से होगी। शशिकला फिलहाल जेल में मोमबत्ती बनाएंगी जिसकी एवज में उन्हें 50 रुपए मजदूरी मिलेगी।

Saturday, 18 February 2017

दूसरे चरण में बंपर वोटिंग से चौंकाने वाले नतीजे आ सकते हैं

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण में 12 जिलों में 69 सीटों पर 19 फरवरी को मतदान होगा। इस चरण में कई अत्यंत महत्वपूर्ण शहर भाग लेंगे। फर्रुखाबाद, हरदोई, कन्नौज, मैनपुरी, इटावा, ओरैया, कानपुर देहात, कानपुर नगर, उन्नाव, लखनऊ, बाराबंकी और सीतापुर जिलों में रविवार को वोट पड़ेंगे। कुल 826 उम्मीदवार मैदान में हैं। सपा और बसपा के गढ़ वाले इलाके हैं यह। वर्ष 2012 में इन इलाकों से सपा को 69 में से 55 सीटें मिली थीं। लिहाजा इस चरण में तरकश के हर बाण आजमाए जा रहे हैं। ऐड़ी-चोटी का जोर लग गया है। दूसरे चरण के भारी मतदान से सभी संबंधित दल थोड़ा चिंतित जरूर हैं। यूपी विधानसभा चुनाव के इस दूसरे चरण में बुधवार को 65.16 प्रतिशत मतदान हुआ। यहां 11 जिलों की 67 सीटों के लिए वोट डाले गए। वहीं उत्तराखंड में 69 सीटों के लिए लगभग 70 प्रतिशत लोगों ने वोट डाले। पिछली बार 19 प्रतिशत वोट बढ़े थे तो सपा की सीटें 17 से बढ़कर 34 हो गई थीं। इस बार सिर्फ 0.28 प्रतिशत वोट बढ़ा है। वैस्ट यूपी और रूहेलखंड की अधिकतर सीटों पर बुधवार को आमतौर पर त्रिकोणात्मक मुकाबला नजर आया। सपा, भाजपा और बसपा की नजरें बढ़े मतदान और मुस्लिमों की वोटिंग के ट्रेंड और पैटर्न पर लगी रहीं। बुधवार को जहां मतदान हुआ है उनमें 47 मुस्लिम बहुल सीटें हैं। इनमें सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, अमरोहा, संभल, रामपुर और बरेली की 37 सीटों पर 30 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। वहीं 17 सीटों पर 20 से 29 प्रतिशत के बीच मुस्लिम वोटर हैं। सपाइयों का कहना है कि मुसलमान ही नहीं, सभी वर्गों के मतदाताओं को राहुल-अखिलेश का साथ पसंद आया है। हालांकि कहीं साइकिल की रफ्तार तेज रही तो कहीं कमल खिला। कई जगह हाथी मस्त चाल से बढ़ता दिखा। सपा-कांग्रेस खेमा मतदान के रुझान से उत्साहित है। उनका दावा है कि मुसलमानों ने सांप्रदायिक ताकतों को हराने के लिए अखिलेश-राहुल की जोड़ी को पसंद किया है। इससे सहारनपुर समेत कई जिलों में समीकरण बदलेंगे। सहारनपुर एकमात्र जिला है जहां 2012 में सपा का खाता नहीं खुला था। इस बार यहां अधिकतर सीटों पर मुख्य मुकाबला सपा-कांग्रेस गठबंधन, भाजपा और बसपा के बीच माना जा रहा है। सहारनपुर, बिजनौर, अमरोहा, मुरादाबाद, संभल, रामपुर, बदायूं, बरेली, शाहजहांपुर, पीलीभीत और लखीमपुर खीरी तक दलितों का रुझान लगभग एक जैसा रहा। उनका बड़ा हिस्सा हाथी पर सवार नजर आया। बसपा ने दलित-मुस्लिम समीकरण को केंद्र में रखकर रणनीति बनाई है। नतीजे बताएंगे कि यह समीकरण कितना हिट होता है? बसपा दूसरे चरण में भी आगे रहने का दावा कर रही है। भाजपा को ध्रुवीकरण से कामयाबी की उम्मीद है। सहारनपुर से लेकर पीलीभीत तक कई सीटों पर वोटों का ध्रुवीकरण भी होता दिखा। इसी लाइन पर चलकर भाजपा ने लोकसभा चुनाव में बड़ी कामयाबी हासिल की। हालांकि अब 2014 जैसी लहर नहीं है, फिर भी मतों के ध्रुवीकरण से भाजपा खेमे में राहत महसूस की जा रही है। भाजपा को उम्मीद है कि उसे दूसरे चरण में अच्छी कामयाबी मिलेगी। कई राजनीतिक विश्लेषकों को अंदाजा था कि मुसलमान रणनीतिक मतदान (टेक्टिकल वोटिंग) करेंगे लेकिन सामान्य तौर पर ऐसा शायद नहीं हुआ है। जिन सीटों पर बसपा का अकेला मुसलमान प्रत्याशी था, वहां भी मुस्लिम वोटों का बंटवारा सपा-बसपा में हुआ। बसपा के पास बेस वोट होने के कारण कई सीटों पर मुसलमान उसके साथ गए लेकिन कई जगह न जाने की अटकलें भी लग रही हैं। वहीं उत्तराखंड में 68 प्रतिशत मतदान हुआ, जो अब तक का सबसे ज्यादा है। 2012 में 66.17 प्रतिशत मतदान हुआ था। पिछली बार सिर्फ 2.45 प्रतिशत वोट बढ़ने से सरकार बदल गई थी। कांग्रेस को 32 और भाजपा को 31 सीटों पर विजय मिली थी। सरकार कांग्रेस की है और मुकाबला भाजपा से। दूसरे चरण की कई सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के कई बागी भी मैदान में हैं। रुझानों के मुताबिक कई सीटों पर ये भाजपा और कांग्रेस के समीकरण को प्रभावित कर सकते हैं। पोलिंग पैटर्न को देखकर उत्तराखंड में  लग रहा है कि कुछ बड़े नेताओं का खेल भी बिगड़ सकता है और चुनाव के अप्रत्याशित नतीजे आ सकते हैं। कुछ नेताओं का मानना है कि कांग्रेस-भाजपा की सीटों में ज्यादा अंतर होने के चांस कम दिख रहे हैं और अगर ऐसा हुआ तो दूसरे उम्मीदवारों के पास सत्ता की चाबी जा सकती है। कांग्रेस से विधायक रहे नौ नेता भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, इन सीटों पर सबकी नजरें हैं। अंत में महान योगगुरु बाबा रामदेव के बयान के बाद सियासी भूकंप आ गया। बाबा रामदेव ने कहा कि चुनाव परिणामों से भूचाल आएगा। उन्होंने कहा कि अच्छे-अच्छे लोग इस चुनाव में निपट जाएंगे। सत्ता के गलियारों में और विपक्षी खेमे में उनके बयान को भाजपा से बेरुखी के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने यह बयान इस मौके पर क्यों दिया इसे लेकर भी कयास लगाए जा रहे हैं। यूपी के दूसरे चरण में 69 सीटों पर हुए मतदान में कांटे की टक्कर दिख रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 में से 32 सीटें और भाजपा ने 31 सीटें जीती थीं। बसपा के खाते में तीन, यूकेडी के खाते में एक और अदर्स के खाते में तीन सीटें गई थीं।

-अनिल नरेन्द्र

Friday, 17 February 2017

सुप्रीम कोर्ट का व्यापमं घोटाले पर दूरगामी फैसला

मध्यप्रदेश के व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) द्वारा आयोजित प्रवेश परीक्षा के जरिये मेडिकल कॉलेजों में गलत तरीके से दाखिला पाने वाले 634 छात्रों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इतना तो साबित हो ही जाता है कि व्यापमं की आड़ में किस तरह से रसूखदार लोग हित साधते रहे हैं। मेडिकल के 634 छात्रों को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने व्यापमं परीक्षा के जरिये एमबीबीएस पाठ्यक्रम में इनका प्रवेश रद्द करने को सोमवार को सही ठहराया। अदालत ने अनुचित साधनों को अपनाए जाने की उनकी गतिविधि को कपटपूर्ण कृत्य करार दिया। मेडिकल कॉलेजों में दाखिले में इस पैमाने पर घोटाले का यह पहला मामला है, जिसमें विद्यार्थियों से लाखों रुपए लेकर या तो नकल कराई गई थी या उनकी उत्तर-पुस्तिकाएं (ओएमआर शीट) बदल दी गई थीं। मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि हमारे विचार से व्यक्तिगत या सामाजिक लाभ के लिए राष्ट्रीय चरित्र की बलि नहीं दी जा सकती। यदि हम नैतिकता और चरित्र की कसौटी पर एक राष्ट्र निर्माण करना चाहते हैं और यदि हमारा संकल्प एक ऐसे राष्ट्र निर्माण का है जहां केवल कानून का राज हो तब हम सुझाए गए सामाजिक लाभ के लिए अपीलकर्ताओं के दावे को स्वीकार नहीं कर सकते, हम संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत किसी तरह का नाम अपीलकर्ताओं को प्रदान करने की स्थिति में नहीं हैं। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि मौजूदा मामला बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी उजागर करता है। अपनाई गई यह प्रक्रिया यदि स्वीकार ली जाती है तो यह न केवल लापरवाही होगी, बल्कि गैर जिम्मेदारी भी होगी। इससे अन्य लोग भी यही रास्ता अपनाने के लिए प्रोत्साहित होंगे। सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2008 से 2012 के दौरान मेडिकल कॉलेजों में गलत तरीके से दाखिला पाने वाले छात्रों का दाखिला रद्द कर दिया है, जिससे उन्हें डिग्रियां नहीं मिलेंगी। इस फैसले की जद में आए इन छात्रों का मायूस होना स्वाभाविक है, मगर क्या वे वाकई इतने मायूस थे, जैसा कि अदालत ने फैसले में टिप्पणी की है कि उन्हें यह पता नहीं था कि नकल करने का अंजाम क्या हो सकता है? और फिर इन छात्रों ने जिन प्रतिभाशाली छात्रों का हक मारा है, उनके साथ न्याय किस तरह होगा? यह सभी जानते हैं कि मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों की प्रवेश परीक्षा में किस तरह की प्रतिस्पर्धा होती है और उसके लिए छात्रों को कितनी कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। जिन लोगों ने यह मुद्दा उठाया था, उनका कहना है कि व्यापमं में गड़बड़ियां 1997 से चली आ रही हैं पर चूंकि उन सालों का रिकार्ड उपलब्ध नहीं है इसलिए 2008 के बाद से मामले की जांच हुई।

-अनिल नरेन्द्र

इसरो ने 104 सैटेलाइट एक साथ छोड़ रचा इतिहास

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बुधवार को एक ही रॉकेट से रिकार्ड 104 सैटेलाइट का सफल परीक्षण कर इतिहास रच दिया। पिछला रिकार्ड रूस के नाम था, जिसने 2014 में एक ही बार में 37 सैटेलाइट छोड़े थे। इन 104 उपग्रहों में 30 स्वदेशी और बाकी छह देशों के हैं। सबसे ज्यादा 96 अमेरिकी सैटेलाइट हैं। नई उपलब्धि से भारत अरबों डॉलर की स्पेस इंडस्ट्री में बड़े कांट्रैक्ट हासिल कर सकेगा। पीएसएलवी सी-37 के जरिये एक साथ 104 उपग्रहों को सफलतापूर्वक तय समय से पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करना अत्यंत दुष्कर काम था। इसलिए कि इसमें उपग्रहों के आपस में टकराने का खतरा था पर हमारे काबिल वैज्ञानिकों ने उनके भिन्न-भिन्न देशों में निश्चित समय के अंतराल में प्रक्षेपण तय कर उन खतरों की आशंका को निर्मूल कर दिया था। इसरो के वैज्ञानिकों की यह क्षमता पश्चिमी देशों के संसाधनपूर्ण संस्थानों व उनके मेधावी वैज्ञानिक की तुलना में सराहनीय है। तीन देसी उपग्रहों में दो नैनो और एक कार्टोसेंट-2 सीरीज का मेन सैटेलाइट है। यह मुख्यतया मौसम पर नजर रखने के लिए है। हालांकि इससे चीन, पाक के इलाको में जमीन पर एक मीटर तक की हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरें ली जा सकेंगी। भारत ने प्रक्षेपण के क्षेत्र में उस रूस को पछाड़ा है, जिसको अंतरिक्ष अनुसंधान का अगुवा कहा जाता है। उसने ही 2014 में एक रॉकेट से 39 उपग्रहों के छोड़ने का रिकार्ड बनाया था। जवाब में इसरो ने उसके अगले साल ही 23 उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में स्थापित कर रूसी रिकार्ड को न केवल पीछा करने बल्कि जल्द ही नया कीर्तिमान स्थापित करने का अपना मजबूत मंसूबा जता दिया था। इसके पहले पीएसएलवी से लांच का खर्च 100 करोड़ रुपए है। वैज्ञानिकों के अनुसार एंट्रिक्स ने इन सैटेलाइटों के लिए 200 करोड़ रुपए की डील की है। यानि उसे करीब 100 करोड़ रुपए की बचत है। डॉ. डीपी कार्णिक (प्रवक्ता इसरो) के अनुसार इसरो का मकसद रिकार्ड बनाना नहीं है। हम सिर्फ अपनी लांचिंग क्षमता जांचना चाहते हैं। इसकी सफलता से कामर्शियल लांचिंग में भारत की पहचान और मजबूत होगी। अमेरिका, चीन और यूरोप की तुलना में भारत 66 गुना सस्ता है। भारत में सैटेलाइट की कामर्शियल लांचिंग दुनिया में सबसे सस्ती पड़ती है। इतनी ही नहीं, भारत के जरिये सैटेलाइट लांच करना यहां तक कि रूस से भी चार गुना सस्ता पड़ता है। रूस की लांच 455 करोड़ की होती है। अमेरिका की 381 करोड़ और जापान और चीन में तो 6692 करोड़ और 6692 करोड़ क्रमश होती है। हम इसरो के तमाम वैज्ञानिकों को इस शानदार उपलब्धि  पर बधाई देते हैं। इन्होंने हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा उठा दिया है।

Thursday, 16 February 2017

यूपी चुनाव में किस-किस की प्रतिष्ठा दांव पर है


उत्तर प्रदेश में शुरू हो गए विधानसभा चुनाव यूं तो हमेशा से ही दिलचस्प रहे हैं लेकिन 2017 का चुनाव जिन समीकरणों, गठबंधनों के बीच हो रहा है उसकी चर्चा राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले हर शख्स की जुबान पर है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि यह चुनाव देश की राजनीति में बदलाव का है। उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में दल और हालात बिहार विधानसभा चुनाव से अलग जरूर हैं लेकिन लड़ाई में बिहार का अनुभव साफ दिखाई दे रहा है। बिहार की हार से सबक लेकर भाजपा ने अगर अपनी रणनीति में थोड़ा बदलाव किया है तो बिहार में महागठबंधन की जीत से अपनी प्रासंगिकता साबित कर चुके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भाजपा को घेरने के लिए बिहार की तर्ज पर ही चक्रब्यूह रचना रच रहे हैं। सपा-कांग्रेस के बीच गठबंधन से लेकर राहुल गांधा और अखिलेश यादव की संयुक्त रैलियां व रोड शो इस रणनीति का ही हिस्सा हैं। कुछ बदलाव बहरहाल जरूर है जहां बिहार में गठबंधन के नेताओं सोनिया गांधी, नीतिश कुमार व लालू प्रसाद यादव ने केवल एक संयुक्त रैली में हिस्सा लिया था वहीं यूपी में राहुल व अखिलेश लगातार संयुक्त रैली व रोड शो कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में पहले दौर का मतदान हो चुका है। सभी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। करे भी क्यों न? सभी की इज्जत प्रतिष्ठा दांव पर है। 2017 के चुनाव में जीत अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी के निर्विवाद नेता के तौर पर स्थापित कर देगी। राष्ट्रीय स्तर पर उनका कद काफी बढ़ जाएगा। अखिलेश ने इस चुनाव में कोई जोखिम न उठाते हुए , यादव कुनबे में चली वर्चस्व की लड़ाई के चलते हुए नुकसान की भरपाई के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है। यह चुनाव कांग्रेस के लिए भी प्रदेश में प्रासंगिक बने रहने का सवाल है। चुनाव में सफलता मिली तो राहुल गांधी तीन बड़े राज्यों गुजरात, एमपी और राजस्थान में बीजेपी को चुनौती देने की स्थिति में आ जाएंगे। अगर कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन करती है तो राहुल गांधी के नेतृत्व पर स्वीकृति की मोहर लग जाएगी। जहां तक बीजेपी की बात है तो यूपी के परिणाम का सीधा असर 2019 के लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता है। कम अंतर से मिली जीत भी मोदी की नीतियों पर मुहर लगाने का काम करेगी। खासतौर पर नोटबंदी पर। आमतौर पर कहा जा रहा है कि पार्टी अपने 2012 के प्रदर्शन को सुधारने वाली है, जब उसे महज 47 सीटें मिली थीं। अगर पार्टी को बहुमत नहीं मिलता तो है इसका सीधा असर पीएम मोदी की छवि पर पड़ेगा और यह पार्टी में अंदरूनी कलह को जन्म दे सकती है। इसका सीधा नतीजा पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को भुगतना पड़ सकता है। अब बात करते हैं बहनजी की। 2014 के चुनाव सहित लगातार दो चुनावी हार के बाद अगर मौजूदा विधानसभा चुनाव में भी मायावती की बीएसपी को हार का सामना करना पड़ता है तो पार्टी एक बार फिर से 1990 के उस दौर में पहुंच जाएगी जिसमें उसे सरकार बनाने के लिए दूसरे दलों पर निर्भर रहना पड़ा था। चुनावी हार से बीएसपी के संस्थापक कांशीराम के उस बहुजन आंदोलन के लिए एक बड़ा झटका होगी जिसके तहत उन्होंने दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों को साथ लेने की कोशिश की थी। चुनाव में हार के बाद मायावती के लिए अपने दलित वोट बैंक पर पकड़ बनाए रखना काफी मुश्किल होगा। मायावती इस बार दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण गठजोड़ के सहारे 2007 का प्रदर्शन दोहराने की कोशिश कर रही हैं, पर इस बार वह मुस्लिमों को अपनी तरफ लाने के लिए काफी आक्रमक हैं जो आमतौर पर मुलायम की समाजवादी पार्टी के साथ जाते हैं। इस बार सपा-कांग्रेस गठबंधन भी मुस्लिमों के लिए आकर्षक बनी हुई है। पहले दौर का मतदान हो चुका है, सभी दलों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।
öअनिल नरेन्द्र


अम्मा की विरासत के लिए घमासान



पिछले कई दिनों से तमिलनाडु की सीएम बनने की जुगत लगा रही अन्नाद्रमुक की महासचिव व जयललिता की करीबी शशिकला नटराजन का सपना मंगलवार को उस वक्त चकनाचूर हो गया, जब सुप्रीम कोर्ट ने 21 साल पुराने आय से अधिक संपत्ति मामले में उन्हें 4 साल की सजा सुना दी। इसी के साथ वह 10 साल तक चुनाव लड़ने के भी अयोग्य हो गईं। अन्नाद्रमुक और तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की मौत के दो महीने के भीतर ही उनकी विरासत को लेकर शुरू हुए घमासान में रोज-रोज नए मोड़ आ रहे हैं। जयललिता की मौत के बाद अन्नाद्रमुक विधायकों का बहुमत उनकी करीबी सहेली शशिकला के साथ था और अगर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न आता तो उनका मुख्यमंत्री बनना लगभग तय था। अब उन्हें जेल जाना होगा, हालांकि चार साल की सजा के खिलाफ वे न्यायिक समीक्षा की अर्जी लगा सकती हैं। इसके अलावा इस फैसले से दस साल अयोग्य होने से कहा जा सकता है कि वह सीएम बनने की दौड़ से बाहर हो चुकी हैं, तेजी से बदले घटनाक्रम में शशिकला समर्थक विधायकों ने रिजॉर्ट में ही जयललिता के करीबी इदापड्डी के पलानी स्वामी को विधायक दल का नेता चुन लिया है। शाम को पलानी स्वामी ने गवर्नर से मुलाकात करके सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। शशिकला ने पन्नीरसेल्वम समेत 20 नेताओं को पार्टी से बाहर कर सुनिश्चित करने की कोशिश की कि पलानी स्वामी के सीएम बनने के रास्ते में कोई रुकावट न आए। उधर पन्नीरसेल्वम ने कहा कि शशिकला को उन्हें पार्टी से निकालने का कोई हक नहीं है। अब प्रश्न यह है कि 234 सदस्यों वाली विधानसभा में दोनों गुटों के समर्थन में कितने विधायक हैं। बता दें कि तमिलनाडु विधानसभा में अन्नाद्रमुक के 134 विधायक हैं। मामला अब राज्यपाल के कोर्ट में आ गया है। मौजूदा राजनीतिक अस्थिरता के दौर में अब सबकी नजरें राजभवन पर हैं। गवर्नर के पास मोटे तौर पर विकल्प बचते है ः पहला-पलानी स्वामी को सरकार बनाने को बुलाएं। बहुमत उनके लिए भी चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि शशिकला खेमे के कुछ विधायक पन्नीर सेल्वम के साथ जा सकते हैं। दूसरा-पन्नीरसेल्वम को सीएम के रूप में सदन में बहुमत साबित करने को कहें। अगर वह बहुमत लायक विधायक नहीं जुटा सके तो डीएमके बाहर से समर्थन दे सकता है। तीसरा-दोनों को एकसाथ बहुमत साबित करने को कहें। अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी भी इसके पक्षधर रहे हैं और अंतिम विकल्प है विधानसभा को निलंबित कर दें और राष्ट्रपति शासन लगा दें। बेशक बीजेपी के लिए यह विकल्प मुफीद होगा पर यह अंतिम विकल्प होना चाहिए। फ्लोर टेस्ट जरूर होना चाहिए।

Wednesday, 15 February 2017

मसूद अजहर कब तक बचे रहेंगे?

पठानकोट हमले के षड्यंत्रकारी जैश--मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की भारत की लगातार कोशिशों को चीन के वीटो के कारण भले ही अभी तक सफलता न मिली हो पर अब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा संयुक्त राष्ट्र में जा धमकाने से भारत को जरूर थोड़ा संतोष होना चाहिए। चीन ने आदतन इस बार भी पाकिस्तान व मसूद अजहर को बचाने के लिए वीटो किया है पर उसे भी पता है कि विश्व मंच पर आतंकी को बचाने की अपनी करतूत को वह लंबे समय तक जायज नहीं ठहरा सकेगा। वास्तव में चीन जो कुछ कर रहा है उसे कुतर्क के सिवाय कुछ और नहीं माना जा सकता। चीन का कहना है कि इस संबंध में मानदंडों को पूरा नहीं किया गया था। इससे पहले दो बार भारत के प्रस्तावों को उसने रोक दिया था और तब भी उसका यही तर्क था। अब वह कह रहा है कि उसने यह कदम इसलिए उठाया है ताकि संबद्ध पक्ष आम सहमति पर पहुंच सके। सवाल है कि आम सहमति के मार्ग में अड़ंगा कौन है और यह किनके बीच बनाई जानी है? कोई दूसरा तो विरोध में नहीं आया। इस बीच चौतरफा दबाव देखते हुए भारत ने मसूद अजहर पर और दबाव बनाना शुरू कर दिया है। चीन की वजह से असफल हो गईं भारत की कोशिशों में भी एक अहम कूटनीतिक सफलता छिपी हुई है। भारत के रुख को न सिर्फ अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन का जोरदार समर्थन मिला, बल्कि संयुक्त राष्ट्र में मसूद पर प्रतिबंध के प्रस्ताव को लंबे समय तक ठंडे बस्ते में डालने का चीन का मंसूबा भी गलत साबित हुआ। अगर उक्त तीनों देशों द्वारा सही वक्त पर यह प्रस्ताव नहीं लाया गया होता तो चीन मसूद के मामले को लंबे समय के लिए खारिज करवा देता। पाकिस्तान ने जैश व अजहर को फिलहाल भारत विरोधी गतिविधियों का सबसे अहम केंद्र बना रखा है। एक वर्ष के भीतर भारत में जितने आतंकी हमले हुए, उन सभी में जैश की भूमिका के पुख्ता प्रमाण मिले हैं। कुछ प्रमाण पाकिस्तान को भी दिए गए हैं लेकिन पाकिस्तान की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई है। यह एक वजह है कि भारत ने जैश मुखिया मसूद अजहर के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र का प्रतिबंध लगाने को अपनी आतंक रोधी कूटनीति का हिस्सा बना रखा है। चीन उस पाकिस्तान को बचा रहा है जिसके एक और आतंकी सरगना हाफिज सईद को संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध के कारण बार-बार अपना नाम, ठिकाना बदलने की जरूरत महसूस हो रही है। चीन का यह रुख बताता है कि आतंकवाद के खिलाफ विश्व जनमत होने के बावजूद उसे निर्मूल करने की कोशिश रंग क्यों नहीं ला पा रही है।

-अनिल नरेन्द्र

राउंड वन पूरा, अब नजरें दूसरे राउंड पर

यूपी के विधानसभा चुनाव के दूसरे दौर में बुधवार को 66 विधानसभा सीटों पर वोट पड़ेंगे। चुनाव प्रचार थम चुका है। इस दौर में सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, सम्भल, रामपुर, बरेली, अमरोहा, पीलीभीत, शाहजहांपुर और बदायूं सीटों पर वोट पड़ेंगे। यहां मुस्लिम वोटों का विशेष महत्व है। पहले दौर के मतदान के बाद अब सभी दलों का ध्यान इस दौर पर लग गया है। वैसे तो इस राउंड में 67 सीटों पर चुनाव होना था पर एक सीट पर सपा उम्मीदवार का निधन होने की वजह से चुनाव स्थगित कर दिया गया है। पहले दौर में सभी इलाकों में 2012 की तुलना में ज्यादा मतदान हुआ है। इस ज्यादा मतदान का असर किस पर कितना पड़ सकता है, इसका आकलन किया जा रहा है। जाट समुदाय, दलित और मुस्लिम सभी की बेल्ट में 8 से लेकर 14 प्रतिशत ज्यादा मतदान की खबरें हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों में उमड़ रही भीड़ तथा मोदी के सटीक धुआंधार भाषणों से उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में भाजपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। यही वजह है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कह रहे हैं कि यूपी चुनाव के पहले दो चरणों में पार्टी 140 सीटों में से 90 से अधिक सीटें जीत रही है। जहां तक पहले चरण में मतदाताओं के रुझान की बात है तो भाजपा 50 से अधिक सीटें जीत रही है। अमित शाह के अनुसार पहले दो चरणों में भाजपा का मुख्य मुकाबला बहुजन समाज पार्टी से रहा जबकि आगे के चरणों में मुकाबला सपा-कांग्रेस गठबंधन से रहना है। वहीं राष्ट्रीय लोकदल प्रदेशाध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह ने दावा किया है कि पहले दौर के मतदान में भाजपा का सूपड़ा साफ होने के साथ ही लोकदल की लहर नजर आ रही है। भाजपा की नई व्याख्या करते हुए अजीत सिंह ने भारतीय जुमला पार्टी बताया। वहीं बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने मीडिया की सर्वे रिपोर्टों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि आप इन सबके झांसे में न आएं। यह एक सुनियोजित साजिश है। सुश्री मायावती ने दावा किया कि आप लोग निश्चिंत रहें, विधानसभा चुनावों के बाद प्रदेश में बसपा की ही सरकार बनेगी। उन्होंने यह भी कहा कि स्मारक बनाने के कार्यों को बसपा विगत कार्यकाल में बखूबी अंजाम दे चुकी है। इस बार सिर्फ जनता के विकास से जुड़े कार्यों पर ही ध्यान दिया जाएगा। मायावती ने कहा कि अमित शाह असल में बसपा को मिलने वाली सीटें बता रहे थे और उनके चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी। पहले दौर के मतदान के आधार पर सपा और कांग्रेस की तरफ से कोई बयान खुलकर नहीं कर रहा है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पहले चरण के मतदान में मुस्लिमों की पहली पसंद सपा-कांग्रेस गठबंधन रहा है। दूसरे दलों के मुस्लिम प्रत्याशियों के होने के बावजूद उनका झुकाव सपा या कांग्रेस की तरफ रहा। सपा के पक्ष में मुस्लिमों के रुझान से भाजपा को वोटों के ध्रुवीकरण में आसानी रही। सपा-बसपा के बीच कई सीटों पर मुसलमान वोटों का बंटवारा भी भाजपा के लिए मुफीद हो सकता है। यही वजह है कि जाटों की नाराजगी के बावजूद भाजपा पश्चिमी यूपी की अधिकतर सीटों पर मुख्य मुकाबले में खड़ी दिख रही है। कहीं सपा तो कहीं बसपा उससे मुकाबिल है। पहले चरण के मतदान में अब तक के सारे रिकार्ड टूटे तो इसका प्रमुख कारण युवा मतदाताओं का उत्साह माना जा रहा है। हालांकि बढ़े मत प्रतिशत को 2014 के लोकसभा चुनाव की तरह किसी दल के क्लीन स्वीप वाली स्थिति का संकेत नहीं माना जा रहा है। चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि पहले चरण की 73 सीटों पर त्रिकोणीय से लेकर चतुष्कोणीय मुकाबले हुए हैं। पश्चिमी यूपी की सियासत पर नजर रखने वाले बताते हैं कि पहले चरण में लोकसभा चुनाव जैसा ध्रुवीकरण नहीं हुआ। जिन सीटों पर ध्रुवीकरण हुआ भी वह किसी एक दल को नहीं बल्कि भाजपा को हराने की स्थिति में नजर आने वाले प्रत्याशी के पक्ष में हुआ है। इनमें बसपा के साथ-साथ सपा-कांग्रेस गठबंधन भी पसंद बनी। कई सीटों पर मुस्लिम वोट बंटे भी हैं। इसी तरह जाटों का वोट राष्ट्रीय लोकदल को तो गया ही है, भाजपा व अन्य दलों के पक्ष में भी गया है। जागरुकता के चलते ही वैसा ध्रुवीकरण नहीं हुआ जैसा लोग उम्मीद कर रहे थे। पहले चरण में बसपा ने बेहतर वापसी की है। भाजपा दूसरे नम्बर पर रही और सपा-कांग्रेस गठबंधन तीसरे नम्बर पर बताई जा रही है। बढ़े मतदान का प्रमुख कारण युवा रहे। युवा मतदाताओं ने पुराने जमाने की तरह रोटी-कपड़ा और मकान तक सीमित न रहकर सुनहरे भविष्य व नई दुनिया के सपने देखे हैं। पहले चरण का मतदान ध्रुवीकरण की जगह टैक्टिकल वोटिंग दर्शाती है। जाट का ख्याल न रख पाना भाजपा के लिए बेशक नुकसानदेह रहा हो, लेकिन युवा जाट भाजपा के पक्ष में जाता दिखा। शहरी सीटों पर भाजपा और ग्रामीण इलाकों पर सपा-कांग्रेस गठबंधन व बसपा को लाभ रहा है। मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर के शहरी क्षेत्रों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण भी हुआ है जिसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। वहीं सरधना में बसपा व गठबंधन के बीच वोट बंटा, लेकिन जहां बसपा का मुस्लिम प्रत्याशी कमजोर था, गठबंधन की ओर वोट चला गया। मुख्य निर्वाचन अधिकारी टी. वेंक्टेश का मानना है कि चुनाव आयोग की क्लोज मॉनिटरिंग सिस्टम, साफ-सुधरी मतदाता सूचियों व मतदाताओं में जागरुकता बढ़ने के कारण ही मतदान प्रतिशत बढ़ा है। मतदाता समझ गए हैं कि उनका वोट कितना कीमती है। अब आयोग कोशिश करेगा कि वोटिंग प्रतिशत और बढ़े।

Tuesday, 14 February 2017

King Kohli left behind the Wall and Don

At times such players emerge in the cricket those leave their mark. As such there is name of Virat Kohli. Team India skipper Virat Kohli is such a name. Virat Kohli is such an emerging player not only in the Indian scenario, but in the cricket world also for which set record breaking has become a normal game. Indian skipper Virat Kohli is continuing his magic and has become the batsman striking double century in consecutive four series leaving behind the legend cricketer Sir Donald Bradman and Rahul Dravid famous as the Wall. After hitting 200 (West Indies), 211 (New Zealand), 235 (England), now Virat scored 204 against Bangladesh. Bradman and Dravid had stroked double century in three consecutive series. Virat Kohli is the first batsman In the 140 years of cricket history having stroke double centuries in four consecutive test series. As a skipper he had such magic in 28 test matches. Before him 31 Indian skippers altogether could score four double centuries in 483 tests. However, as a skipper too Virat stands at number two in the batsmen striking double century. Brian Lara (West Indies) is ahead of him who scored five double centuries. But Virat has just started his career. He will also have this record soon. By the way Smith, Bradman and Clarv (as skippers) equal Virat in striking four doubles each. Sachin Tendulkar (six doubles), Virender Sahvag (six) and Rahul Dravid (five) are such Indians striking more doubles than Virat. Virat has scored 1168 runs in the home test season. He has also broken the record of Sahvag (1105 runs in 2004-05). Once it was said that Virat is fit for one-day and T-20 matches and not for test matches. But the test matches he played since last year to date, he not only broke the assumption designed for him but retorted those critics also. Presently he is the skipper of all the three formats of the Indian Cricket Team. He is also seen as an invisible skipper. In fact he has proved his ability in all the three formats. It's not without reason that the great cricketers of the world have praised his ability, fitness. Now if Virat comes to the ground for any match, the data entering people open their books.
Anil Narendra

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कहानी एक राजा और उसकी दो रानियों की

एक तरफ राजा और उसकी दूसरी रानी तो दूसरी तरफ राजा की पुरानी रानी। मैं बात कर रहा हूं अमेठी राजघराने की। अमेठी विधानसभा चुनाव में राजा डॉ. संजय सिंह के नाम पर दोनों रानियां आमने-सामने हो गई हैं। इससे महल का झगड़ा खुलकर सामने आ गया है। अमेठी में इस बार विधानसभा चुनाव में रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा। यह पहला मौका है जब एक राजा और दो रानियां राजमहल और राजनीतिक विरासत के लिए चुनाव में उतरी हैं और एक-दूसरे को चुनौती दे रही हैं। रानी के साथ भाजपा खड़ी है तो कांग्रेस के साथ पटरानी। दोनों रानियां कांग्रेस के राज्यसभा सांसद डॉ. संजय सिंह की हैं। पहली पत्नी गरिमा सिंह को भाजपा ने मैदान में उतारा है तो दूसरी पत्नी अमिता सिंह कांग्रेस की टिकट पर ताल ठोक रही हैं। गरिमा पहले ही पर्चा दाखिल कर चुकी हैं जबकि अमिता ने बृहस्पतिवार को नामांकन पत्र दाखिल किया। अमिता सिंह के नामांकन के बाद गरिमा सिंह की आपत्ति पर अमिता ने जो जवाब दिया है उसमें गरिमा सिंह और संजय सिंह का तलाकनामा शामिल है। संजय सिंह और गरिमा सिंह के तलाक को सीतापुर के न्यायालय सिविल जज ने 27 मार्च 1995 को मंजूरी दी थी। अमिता ने दोनों के तलाक का प्रमाण पत्र चुनाव आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है। अब अमिता सिंह और गरिमा सिंह को चुनाव आयोग के फैसले का इंतजार है अब देखना यह है कि आयोग क्या फैसला देता है। अमिता सिंह के नामांकन के बाद गरिमा सिंह ने निर्वाचन अधिकारी की मेज पर एक आपत्ति दाखिल की है। इसमें लिखा है कि संजय सिंह उनके पति हैं। लेकिन अमिता सिंह ने अपने नामांकन में संजय सिंह को पति लिखा है जो पूरी तरह अवैध है। अमिता सिंह ने जवाब में लिखा है कि वे 22 साल से संजय सिंह की शादीशुदा पत्नी हैं। इनकी पत्नी बनने से पहले संजय सिंह और गरिमा सिंह का तलाक हो चुका था। उसके बाद अमिता और संजय की शादी हुई। इस बीच अमिता सिंह संजय सिंह की पत्नी के रूप में तीन बार सदन जा चुकी हैं। गरिमा सिंह जहां अपना स्वाभिमान हासिल करने की मंशा से सियासी समर में आगे आई हैं वहीं अमिता सिंह संजय सिंह की सियासी विरासत पर अपना दावा बरकरार रखने के लिए मैदान में हैं। गरिमा सिंह राजपरिवार और राजमहल पर अपने हक की लड़ाई लड़ रही हैं। संजय Eिसह की दूसरी शादी के बाद जनता की सहानुभूति उनके साथ है। यह आकलन करके ही भाजपा ने गरिमा पर दांव लगाया है। गरिमा सिंह पहली बार चुनाव लड़ रही हैं। उन्हें संजय Eिसह ने 1995 में तलाक दे दिया था। उसके बाद 19 साल तक उन्हें राजमहल में घुसने नहीं दिया गया। काफी जद्दोजहद के बाद गरिमा 2014 में अपने बेटे के साथ महल में आने में कामयाब रहीं। दोनों रानियों के मैदान में उतरने से यह चुनाव अत्यंत रोचक बन गया है।

-अनिल नरेन्द्र

किंग कोहली ने द वॉल और डॉन को पीछे छोड़ा

क्रिकेट की दुनिया में समय-समय पर ऐसे खिलाड़ी उभरते हैं जो अपनी छाप छोड़ देते हैं। ऐसे में ही एक नाम है विराट कोहली का। टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली ऐसा ही नाम है। विराट न सिर्फ भारतीय परिदृश्य में, बल्कि दुनियाभर के क्रिकेट में एक ऐसे उभरते खिलाड़ी हैं जिनके लिए स्थापित रिकार्ड तोड़ना मामूली बात हो गई है। भारतीय कप्तान विराट कोहली का कमाल लगातार जारी है और इसी क्रम में उन्होंने अपने नाम एक और रिकार्ड कर लिया है। कोहली ने लीजेंड क्रिकेटर सर डोनाल्ड ब्रैडमैन और द वॉल के नाम से मशहूर राहुल द्रविड़ को पछाड़कर लगातार चार टेस्ट सीरीज में दोहरा शतक जड़ने वाले बल्लेबाज बन गए। विराट ने वेस्टइंडीज (200), न्यूजीलैंड (211), इंग्लैंड (235) और अब बांग्लादेश (204) के खिलाफ दोहरा शतक जड़ा। ब्रैडमैन और द्रविड़ ने लगातार तीन टेस्ट सीरीज में दोहरा शतक जड़ा था। 140 साल के टेस्ट क्रिकेट इतिहास में विराट कोहली पहले बल्लेबाज खिलाड़ी हैं जिन्होंने लगातार चार टेस्ट सीरीज में दोहरे शतक लगाए। उन्होंने बतौर कप्तान 23 टेस्ट मैचों में यह कारनामा किया। इनसे पहले के 31 भारतीय कप्तान मिलकर 483 टेस्ट में चार दोहरा शतक लगा पाए थे। बतौर कप्तान बहरहाल अभी भी सबसे ज्यादा शतक मारने वालों में दूसरे स्थान पर हैं विराट। इनसे आगे हैं ब्रायन लारा (वेस्टइंडीज) जिन्होंने पांच दोहरे शतक लगाए। पर अभी तो विराट का युग शुरू हुआ है। शीघ्र ही वह यह रिकार्ड भी अपने नाम कर लेंगे। वैसे स्मिथ, ब्रैडमैन और क्लार्क (बतौर कप्तान चार-चार दोहरा शतक विराट की बराबरी पर हैं। सचिन तेंदुलकर (छह दोहरा शतक) वीरेन्द्र सहवाग (छह) और राहुल द्रविड़ (पांच) ही ऐसे भारतीय हैं जिनके नाम फिलहाल विराट से ज्यादा दोहरे शतक हैं। विराट इस घरेलू टेस्ट सीजन में 1168 रन बना चुके हैं। उन्होंने सहवाग (1105 रन 2004-05) का भी रिकार्ड तोड़ा है। एक वक्त यह कहा जाता था कि विराट एक दिवसीय और टी-20 मैचों के लिए फिट हैं और वे टेस्ट मैचों के लिए उपयुक्त नहीं हैं। मगर पिछले साल से लेकर अब तक उन्होंने जितने टेस्ट मैच खेले हैं उनमें उन्होंने अपने बारे में बनाई गई उस धारणा को न केवल तोड़ा बल्कि उन समीक्षकों को भी करारा जवाब दिया है। फिलहाल वे भारतीय क्रिकेट टीम के तीनों प्रारूपों के कप्तान हैं। उन्हें अजेय कप्तान के तौर पर भी देखा जाता है। जाहिर है उन्होंने तीनों प्रारूपों में अपनी काबिलियत साबित की है। यह बेवजह नहीं कि दुनिया के  महान क्रिकेट खिलाड़ियों ने उनकी क्षमता, फिटनेस की तारीफ की है। आज हालत यह है कि जिस मैच में विराट मैदान में उतरते हैं, आंकड़े दर्ज करने वाले अपनी किताबें खोल लेते हैं।

Monday, 13 February 2017

Raees, not worth of release in Pakistan

Once upon a time Shahrukh Khan used to be the most popular actor abroad and his films were undisputed king in overseas market. But now Shahrukh has lagged far behind. His popularity and turnover was much more than Amir Khan and Salman Khan. Shahrukh was the only actor whose films had a business of upto Rs. 50 to 65 crores in the overseas market. But now the scene has changed due to viewers and increasing number of cinema halls. Amir’s 3 idiots and Salman’s Bodyguard proved to be a game changer in overseas market. If seen on the basis of box offfice collection, footfall; four crore have viewed Dangal, four crore have seen Sultan and two crore have viewed Raees. As per the trend estimate life lime gross turnover of Raees may confine upto 140 crore, while Dangal and Sultan are within the range of 400-450 crore. In fact since the starting of Raees, it had to face a lot of misfortunes. Earlier release date of the film postponed after one year of teaser release. When it was the final release, the Indo-Pak relations came to a halt, which directly affected Raees. The main reason was the lead role of Pak actress Mahira Khan opposite Shahrukh Khan in the film. The tension lead to the ban on Pak artists in India and various organizations including Maharashtra Navnirman Sena (Manse) threatened for not releasing the films with Pak actors in India. Just after the assurance from Raj Thackray Raees could be released on 25th January, but it was shocked at the box office with the ban on its release in Pakistan. Looking at the good response to Kaabil, released in Pakistan, Shahrukh was sure about the best at Pakistan box office. But the Pak Censor Board gave a sudden shock to Shahrukh on Monday afternoon. Board banned the viewing of the film in Pakistan, so it couldn’t be released there. As per reports in Pak media, Pak Censor Board decided not to release the film in Pakistan after viewing it. Board members were of the view that the film shows a negative image of Muslims and Islam has been presented in a poor manner. Particularly a group of Muslims has been presented as criminals, terrorists and most wanted persons and it may have adverse impact over Muslim community. It’s a big shock for Shahrukh Khan. He particularly made such a film, chose a Pak actress, wore such a dress in film that clearly hints the community for which the film was made and the community itself rejected the film. Once number one in all three Khans, Shahrukh Khan has come down to the third stair. Neither there is benefit in working with junior girls nor there is any film with a porn star. Shahrukh Khan has played a Muslim role in last three films. Will the ill-fated Shahrukh Khan be able to stable himself at this falling stairs?

* Anil Narendra