अगर
आज भी किसी भारतीय जांच एजेंसी पर भरोसा किया जाता है तो उसका नाम केंद्रीय जांच ब्यूरो
यानि सीबीआई है। जब भी किसी मामले की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच की जरूरत महसूस की
जाती है तो पहली मांग होती है कि सीबीआई से जांच कराई जाए। लेकिन पिछले कुछ दिनों से
कुछ ऐसी घटनाएं घटी हैं जिससे इस सर्वोच्च जांच एजेंसी की साख पर बट्टा लगा है। स्थिति
की गंभीरता का अनुमान इससे ही लगाया जा सकता है कि सीबीआई को भ्रष्टाचार के आरोप में
घिरे अपने ही पूर्व निदेशकों की जांच करनी पड़ रही है। पहले संदिग्ध हवाला कारोबारी
मोइन कुरैशी से जुड़े मामले में रंजीत सिन्हा की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के
ऑर्डर से और फिर सीबीआई के पूर्व प्रमुख एपी सिंह के खिलाफ मामले में छापा मारना। यह
शीर्ष नौकरशाही के लिए शर्मिंदगी का सबब है। एपी सिंह पर बड़ी मात्रा में धनराशि लेने
और गुपचुप तरीके से मांस व्यापारी व हवाला कारोबारी की मदद करने के आरोप हैं। एफआईआर
भी किसी मामूली व्यक्ति के कहने पर नहीं,
बल्कि प्रवर्तन निदेशालय की शिकायत पर दर्ज की गई है। लगता है कि अब
ऊंचे पदों पर बैठे अफसरों के कथित भ्रष्टाचार पर अंतत सीबीआई ने शिकंजा कसना शुरू कर
दिया है। मंगलवार को भ्रष्टाचार के आरोप में दो सीनियर आईएएस/आईआरएस अफसर समेत कई लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनमें छत्तीसगढ़ सरकार के
प्रिंसिपल सैक्रेटरी बीएल अग्रवाल और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)
के पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर जेपी सिंह शामिल हैं। बीएल अग्रवाल पर आरोप
है कि 2010 में जब वह हेल्थ सैक्रेटरी थे तो उन्होंने अपने खिलाफ
सीबीआई जांच को निपटाने के लिए रिश्वत दी। पीएमओ में काम करने का दावा करने वाले सैयद
बुरहानुद्दीन नाम के शख्स ने केस निपटाने के लिए बिचौलिया भगवान सिंह के जरिये डेढ़
करोड़ रुपए रिश्वत मांगी। आरोप है कि अग्रवाल ने हवाला से 60 लाख रुपए दिए। सीबीआई ने बिचौलिये से दो किलो गोल्ड और 39 लाख कैश बरामद किए हैं। उधर ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर रहे जेपी सिंह पर आईपीएल
सट्टेबाजी घोटाले की जांच के दौरान हवाला ऑपरेटर से रिश्वत लेने का आरोप है। सिंह ने
2000 करोड़ की 182 सट्टेबाजी, 5000 करोड़ रुपए के मनी लांड्रिंग केस की जांच की थी। इस मामले में प्रवर्तन अधिकारी
संजय और दो अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया गया है। एक दिन पहले ही सीबीआई ने अपने
पूर्व चीफ एपी सिंह के खिलाफ केस दर्ज किया था। इतने उच्चपदस्थ अधिकारियों का भ्रष्टाचार
में शामिल होना काफी चिन्ताजनक है। ऐसे पदों पर नियुक्ति काफी छानबीन के बाद की जाती
है और इस बात का खास ख्याल रखा जाता है कि साफ-सुथरी छवि वाला
अफसर ही वहां तक पहुंच सके। आखिर किस नुक्ते पर यह कमी रह जाती है कि वहां ऐसे संदिग्ध
चरित्र के लोग पहुंच जाते हैं? यह सही है कि मोदी सरकार के शीर्ष
स्तर पर भ्रष्टाचार का कोई मामला सामने नहीं आया हो, लेकिन इनकी
अनदेखी भी नहीं की जा सकती कि नौकरशाहों के भ्रष्टाचार में संलिप्तता के मामले लगातार
सामने आ रहे हैं। बीते महीने ही सीबीआई ने आयकर विभाग के नौ अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार
के तहत मामला दर्ज किया था। जरूरी केवल यह नहीं है कि भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई
हो, बल्कि ऐसी व्यवस्था का निर्माण भी हो जिसमें यह भ्रष्ट अधिकारी
अपनी मनमानी न कर सकें और ऐसी व्यवस्था का निर्माण प्रशासनिक सुधारों को आगे बढ़ाने
और शीर्ष अफसरों की सेवा शर्तों पर नए सिरे से समीक्षा करने से ही हो सकता है।
-अनिल नरेन्द्र
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