Wednesday 15 February 2017

मसूद अजहर कब तक बचे रहेंगे?

पठानकोट हमले के षड्यंत्रकारी जैश--मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की भारत की लगातार कोशिशों को चीन के वीटो के कारण भले ही अभी तक सफलता न मिली हो पर अब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा संयुक्त राष्ट्र में जा धमकाने से भारत को जरूर थोड़ा संतोष होना चाहिए। चीन ने आदतन इस बार भी पाकिस्तान व मसूद अजहर को बचाने के लिए वीटो किया है पर उसे भी पता है कि विश्व मंच पर आतंकी को बचाने की अपनी करतूत को वह लंबे समय तक जायज नहीं ठहरा सकेगा। वास्तव में चीन जो कुछ कर रहा है उसे कुतर्क के सिवाय कुछ और नहीं माना जा सकता। चीन का कहना है कि इस संबंध में मानदंडों को पूरा नहीं किया गया था। इससे पहले दो बार भारत के प्रस्तावों को उसने रोक दिया था और तब भी उसका यही तर्क था। अब वह कह रहा है कि उसने यह कदम इसलिए उठाया है ताकि संबद्ध पक्ष आम सहमति पर पहुंच सके। सवाल है कि आम सहमति के मार्ग में अड़ंगा कौन है और यह किनके बीच बनाई जानी है? कोई दूसरा तो विरोध में नहीं आया। इस बीच चौतरफा दबाव देखते हुए भारत ने मसूद अजहर पर और दबाव बनाना शुरू कर दिया है। चीन की वजह से असफल हो गईं भारत की कोशिशों में भी एक अहम कूटनीतिक सफलता छिपी हुई है। भारत के रुख को न सिर्फ अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन का जोरदार समर्थन मिला, बल्कि संयुक्त राष्ट्र में मसूद पर प्रतिबंध के प्रस्ताव को लंबे समय तक ठंडे बस्ते में डालने का चीन का मंसूबा भी गलत साबित हुआ। अगर उक्त तीनों देशों द्वारा सही वक्त पर यह प्रस्ताव नहीं लाया गया होता तो चीन मसूद के मामले को लंबे समय के लिए खारिज करवा देता। पाकिस्तान ने जैश व अजहर को फिलहाल भारत विरोधी गतिविधियों का सबसे अहम केंद्र बना रखा है। एक वर्ष के भीतर भारत में जितने आतंकी हमले हुए, उन सभी में जैश की भूमिका के पुख्ता प्रमाण मिले हैं। कुछ प्रमाण पाकिस्तान को भी दिए गए हैं लेकिन पाकिस्तान की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई है। यह एक वजह है कि भारत ने जैश मुखिया मसूद अजहर के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र का प्रतिबंध लगाने को अपनी आतंक रोधी कूटनीति का हिस्सा बना रखा है। चीन उस पाकिस्तान को बचा रहा है जिसके एक और आतंकी सरगना हाफिज सईद को संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध के कारण बार-बार अपना नाम, ठिकाना बदलने की जरूरत महसूस हो रही है। चीन का यह रुख बताता है कि आतंकवाद के खिलाफ विश्व जनमत होने के बावजूद उसे निर्मूल करने की कोशिश रंग क्यों नहीं ला पा रही है।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment