Sunday 26 February 2017

महाराष्ट्र निकाय चुनावों के नतीजों का संदेश

महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों में जब शिवसेना और भाजपा दोनों ने अलग-अलग लड़ने का फैसला किया तो लगा कि शायद इस झगड़े में दोनों को नुकसान होगा पर जब परिणाम आए तो उल्टा ही हुआ। शिवसेना की अस्मिता बच गई और भाजपा की प्रतिष्ठा बढ़ गई। दोनों ने मिलकर कांग्रेस और एनसीपी का लगभग सूपड़ा साफ कर दिया है। ऐसा लगता है कि शिवसेना और भाजपा ने यह ड्रामा किया था, बड़ी सोच-समझ कर क्रिप्ट तैयार की ताकि कांग्रेस और एनसीपी की वोटें खा जाएं। नतीजों से भाजपा और शिवसेना भले ही आज जश्न मनाएं लेकिन कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस (एनसीपी) और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के लिए तो बड़ा झटका ही है। इस बात के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं जब स्थानीय निकायों के चुनावों के नतीजे लोकसभा और विधानसभा से भिन्न रहे हों। लेकिन यह भी सही है कि महाराष्ट्र में शहरी निकायों के चुनावों का महत्व दूसरे राज्यों के मुकाबले अधिक रहा और इन पर काबिज होने का मतलब राज्यस्तरीय राजनीति में भी ताकत बढ़ना है। महाराष्ट्र के निकाय चुनाव आमतौर पर नितांत स्थानीय माने जाते रहे हैं, लेकिन इस बार प्रदेश भाजपा नेतृत्व और खासकर मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गए थे। न केवल इन चुनावों से ठीक पहले भाजपा से शिवसेना ने गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया, बल्कि उसके बाद भाजपा के प्रदेश और राष्ट्रीय नेतृत्व पर खुलकर हमला भी करती रही। हालांकि मुंबई का किंग एक बार फिर शिवसेना ही साबित हुई। कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की पेशकश भले ही कर दी हो, लेकिन कांग्रेस और एनसीपी, दोनों के लिए यह सोचने का वक्त है कि अलग-अलग राह अलग-थलग ही करती है, जैसा कि उनके मामले में नतीजों ने दिखाया है। दोनों को सोचना होगा कि अब भी नजरिया और आचरण न बदला और मिलकर साथ चलने की रणनीति नहीं अपनाई, तो दोनों की राजनीति के लिए भविष्य के रास्ते बंद होने को हैं। इतना तो स्पष्ट ही है कि अगर ये दोनों साथ खड़े होते तो इन्हें यह दिन न देखना पड़ता। यह चुनाव शिवसेना और भाजपा के बीच तल्खी के लिए भी जाना जाएगा। कुछ समय से उद्धव ठाकरे भाजपा और मोदी को लगातार निशाना बनाते रहे हैं। क्या वे अब भी वैसा ही करेंगे और अगर करेंगे तो क्या भाजपा खामोश रहेगी? या यह माना जाए कि उद्धव के हमले नगरपालिकाओं के चुनावों के मद्देनजर थे और अब दोनों के बीच सब कुछ सामान्य हो जाएगा? चुनाव हो गए हैं और क्या पता दोनों की बोली बदल जाए और दोनों फिर से गलबहियां डाले नजर आएं। भारतीय जनता पार्टी के लिए यह 2017 की शानदार शुरुआत है। पहले ओडिशा में अप्रत्याशित समर्थन अब महाराष्ट्र में शानदार प्रदर्शन। 2014 के चुनाव में कांग्रेस के राजनीतिक पतन का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह जारी है। बेशक कांग्रेस के मुंबई चीफ संजय निरूपम ने पद छोड़ने की पेशकश की है पर साथ-साथ पार्टी नेताओं पर ही हरवाने का आरोप जड़ दिया। यह चुनाव एनसीपी के घटते प्रभुत्व का भी संकेत है। पार्टी को और तो और शरद पवार के गढ़ में भी हार मिली। अब तक मुंबई में भाजपा की पहचान शिवसेना के छोटे भाई की थी, पर अब वह अपने दम पर शिवसेना के समानांतर बड़ी ताकत बनकर उभरी है। महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों ने क्या एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि नोटबंदी का कोई नेगेटिव प्रभाव भाजपा के लिए नहीं है? अब देखना यह है कि इस जीत का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों पर क्या असर पड़ता है? यूपी विधानसभा चुनाव के तीन चरण अभी बाकी हैं। मुंबई में पूर्वांचल के बहुत वोटर हैं। वह इस जीत का संदेश यूपी में देने की पूरी कोशिश करेंगे। जहां तक शिवसेना का सवाल है उसके लिए यही बेहतर होगा कि वह भाजपा के साथ मिलकर ही आगे बढ़े।

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