Wednesday 1 February 2017

पंजाब में दोनों सेनापतियों को आखिरी मौका

पंजाब विधानसभा चुनाव इस बार कांग्रेस अकाली दल के प्रमुखों के लिए न केवल अस्तित्व का ही सवाल है बल्कि साथ-साथ दोनों की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। दोनों दलों के सेनापतियों के लिए यह चुनाव आखिरी चुनाव भी हो सकता है। कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के दावेदार कैप्टन अमरिन्दर सिंह और पंजाब के मौजूदा मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल दोनों के लिए यह चुनाव नाक का सवाल बना हुआ है। दोनों ने इस चुनाव को अपने जीवन का आखिरी चुनाव मानकर पूरा जोर लगा दिया है। लांबी विधानसभा सीट पर पिछले 20 साल से शिरोमणि अकाली दल का कब्जा है। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल चार बार विधानसभा चुनाव यहां से जीतते रहे हैं। इस बार कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने भी लांबी से चुनाव लड़ने की घोषणा की है। इसके साथ ही आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा से इस्तीफा दिलाकर जरनैल सिंह को इन दोनों दिग्गजों के सामने उतारा है। जहां तक पंजाब विधानसभा चुनावों में मुद्दे की बात है तो नशाखोरी बड़ी समस्या के रूप में सामने आई है। 76 फीसदी लोग प्रदेश में अफीम लेने के आदी बताए जाते हैं, जिनमें 18-35 साल के युवा ज्यादा हैं। पंजाब चुनाव में मुख्तियार सिंह काफी चर्चा में हैं। मार्च 2016 में उनके बेटे मनजीत की ड्रग ओवरडोज के कारण मौत हो गई थी। इसके बाद मुख्तियार ने ड्रग्स से लड़ाई को अपना मकसद बना लिया है। वह तरनतारन (पट्टी डिस्ट्रिक्ट) में कफन बोल पैया कैंपेन के हीरो हैं। मुझे नेता नहीं बनना है। मैं अपने जवान पुत की लाश नू शमशान लैके गया। मैं न चांदा कि किसी होर दे पियू नू आ दिन देखने पवें। 1966 में हरियाणा के गठन के बाद से ही पंजाब और हरियाणा के बीच जल बंटवारे पर विवाद बना हुआ है। पंजाब कहता है कि हमारे पास खुद के लिए पर्याप्त पानी नहीं है, हम हरियाणा के साथ कैसे बांटें? नेताओं की राजनीति छोड़कर इस समस्या का हल निकलना चाहिए। पंजाब में किसानों की बदहाली एक बड़ी समस्या है। हर किसान परिवार पर आठ लाख औसतन कृषि कर्ज है। छह साल में 6926 किसानों ने आत्महत्या की है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष सुखपाल सिंह ने कहा कि 2000 से 2010 के बीच सात हजार से ज्यादा किसान खुदकुशी कर चुके हैं। सरकार चुनाव की वजह से आंकड़े कम करके बता रही है। राज्य में 8.8 करोड़ दलित समुदाय के लोग हैं। 61 फीसदी परिवार गरीबी रेखा से नीचे हैं। जालंधर की पहचान बन चुके हवेली ढाबे पर चर्चा में अपने विचार रखते हुए दलित लेखक एसएल विर्दी ने कहाöहमारे पास संस्कृति, साहित्य और राजनीतिक समझ सब है। इसके बावजूद राज्य में आज तक कोई दलित मुख्यमंत्री नहीं बना। किसी भी दल ने दलितों को उचित जगह नहीं दी है।

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