Tuesday, 21 February 2017

सेना प्रमुख की चेतावनी पर घटिया सियासत

हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि हम घटिया सियासत करते समय यह भी नहीं देखते कि इसका प्रभाव देश की सुरक्षा एजेंसियों पर व देश की एकता व अखंडता पर क्या पड़ेगा? थल सेनाध्यक्ष जनरल विपिन रावत ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि कश्मीर में आईएस और पाकिस्तान का झंडा लहराने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा। सेना के ऑपरेशन के दौरान पत्थरबाजी या अन्य तरीकों से बाधा पहुंचाने वालों को आतंकियों का सहयोगी समझा जाएगा। आखिर इस बयान में क्या अनुचित या आपत्तिजनक है? दक्षिण कश्मीर में रविवार, सोमवार और मंगलवार की घटनाएं साफ संकेत दे रही हैं कि कश्मीर का आतंकवाद न तो सर्जिकल स्ट्राइक से समाप्त होने वाला है और न ही नोटबंदी से। रविवार को कुलगांव जिले में छह युवाओं के मारे जाने के बाद घाटी में फिर तनाव पैदा हो गया है। एक तरफ सुरक्षा बलों को आतंकियों से मुठभेड़ करनी पड़ रही है तो दूसरी तरफ जनता के पथराव का सामना करना पड़ रहा है। किन्तु-परन्तु का सहारा लेकर कांग्रेस समेत कई अन्य दलों के नेताओं ने सेनाध्यक्ष के खिलाफ दुर्भाग्यपूर्ण मोर्चा खोल दिया है। ऐसा करके उन्होंने न केवल घटिया एवं घातक राजनीति का परिचय दिया है, बल्कि कश्मीर के पत्थरबाजों और सड़कों पर उतरने वाले पाकिस्तान परस्त तत्वों को पुरस्कृत भी किया है। क्या सेनाध्यक्ष के बयान का विरोध करने वाले ये नेता यह चाह रहे हैं कि आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान सुरक्षा बल एक टाइम पर दोनों मोर्चों पर लड़ें? अगर सेना ऐसे मौके पर पत्थरबाजों पर सख्ती करती है तो इन लोगों को बौखलाहट हो जाती है। इस स्थिति के लिए हमारी सरकारें, केंद्र व राज्य सरकार कुछ हद तक खुद जिम्मेदार भी हैं। आपने सेना को खुले आदेश क्यों नहीं दिए कि वह ऐसे मौकों पर दोनों मोर्चों पर सख्ती करें और जरूरत पड़ने पर इन आतंकियों को मदद पहुंचाने वालों पर भी उसी तरह की कार्रवाई करें जैसे आतंकियों से की जाती है। आपने तो सेना के पैलेट गनों के इस्तेमाल पर भी विवाद खड़ा कर दिया है। क्या हमारे जवान हाथ पीछे बांधकर इन खुराफाती तत्वों से निपट सकते हैं? आखिर कब तक हम अपने बहादुर जवानों की शहीदी देखते रहेंगे? आखिर सेनाध्यक्ष के बयान का विरोध करने वाले यह कैसे भूल सकते हैं कि कश्मीर में केवल पिछले सप्ताह एक मेजर समेत छह  जवान शहीद हो चुके हैं। शायद ही किसी नेता ने ऐसा कुछ कहा हो कि आठ आतंकियों को मार गिराने में छह सैनिकों की शहादत स्वीकार नहीं। सेनाध्यक्ष के खिलाफ तरह-तरह के कुतर्क पेश कर रहे नेताओं को क्या यह पता नहीं कि हंदवाड़ा में आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान घायल मेजर यदि समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाए तो इसका कारण भी कि उग्र भीड़ ने न केवल सेना की गाड़ियों का रास्ता रोका, बल्कि उन पर पथराव भी किया। यह कितनी शर्मनाक बात है कि जब ऐसी घटनाओं के बाद पत्थरबाजों की एक स्वर में भर्त्सना होनी चाहिए तब उनका मनोबल बढ़ाने का ही उल्टा प्रयास हो रहा है? धिक्कार है ऐसे लोगों पर जो सैनिकों की शहादत पर तो मुंह सिल लेते हैं और सेना और सुरक्षा बलों की नाक में दम करने वाले तत्वों को चेताए जाने के खिलाफ मुखर हो उठते हैं। राजनीति चलती रहती है पर राजनीति की भी सीमा होनी चाहिए। देश की सुरक्षा, एकता व अखंडता को बरकरार रखने वाले इन बहादुर जवानों को हम सलाम करते हैं और इनकी शहादत पर सवाल उठाने वालों की परवाह न करके अपना काम जारी रखने की अपील करते हैं। हम सेनाध्यक्ष जनरल विपिन रावत की चेतावनी का पूरा समर्थन करते हैं।

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