Friday 10 February 2017

एच1बी वीजा पर नकेल की तैयारी

डोनाल्ड ट्रंप की राजनीति ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति सात मुस्लिम देशों के नागरिकों को अमेरिका में प्रवेश पर 90 दिन के प्रतिबंध लगाने के बाद अब एच1बी वीजा नीति को पहले से ज्यादा सख्त करने के अभियान में जुट गए हैं। इसे कानूनी रूप देने के लिए अमेरिकी संसद में जो विधेयक पेश किया गया है उसके प्रावधान के मुताबिक यह वीजा प्राप्त करने के लिए न्यूनतम वेतन सीमा साठ हजार डॉलर से बढ़ाकर एक लाख तीस हजार अमेरिकी डॉलर करने का प्रस्ताव है। आशंका व्यक्त की जा रही है कि यदि यह विधेयक पारित हो गया तो भारत के आईटी सेक्टर में सॉफ्टवेयर उद्योग पर इसका विपरीत असर पड़ सकता है। इस समय एक अनुमान के मुताबिक अमेरिका में इस समय करीब दो लाख भारतीय आईटी पेशेवर एच1बी वीजा पर कार्यरत हैं और भारतीय मूल के करीब 30 लाख अमेरिकी नागरिक हैं। इसका असर कितना हो सकता है, इसे सिर्फ इसी बात से समझा जा सकता है कि संशोधन विधेयक पेश होते ही भारतीय शेयर बाजारों में आईटी कंपनियों के शेयर मुंह के बल जा गिरे। अमेरिका भारतीय आईटी कंपनियों का सबसे बड़ा बाजार है। वहां काम करने वाले ज्यादातर भारतीय आईटी कंपनियां एच1बी वीजा के तहत ही भारतीय आईटी पेशेवरों को वहां कुछ साल के लिए ले जाती हैं। दरअसल यह इसलिए हो रहा है क्योंकि अमेरिकी आईटी पेशेवरों को नौकरी पर रखने के मुकाबले काफी सस्ता पड़ता है। पर कुछ हद तक यह भी सही है कि अमेरिकी आईटी जाइटस इसलिए भी भारतीयों को ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि भारतीय आईटी प्रोफेशनल अपने अमेरिकी काउंटर पार्ट से ज्यादा मेहनती हैं और काम के प्रति ज्यादा वफादार हैं। यदि हम ट्रंप के चुनाव अभियान के दौरान की गई घोषणाओं और वादों पर गौर करें तो उन्होंने भारतीयों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफों के पुल बांधे थे। इसलिए यह आशावाद जगाता है कि मोदी और ट्रंप के  बीच विशेष तौर पर एच1बी वीजा के सन्दर्भ में कोई संधि हो सकती है, जिसमें ऐसी विशेष रियायतों का प्रावधान हो कि भारतीय कंपनियों के सामने किसी तरह की अड़चन न आने पाए। दरअसल ट्रंप चाहते हैं कि उनके देश में कंपनियां ज्यादा से ज्यादा अमेरिकियों को नौकरी पर रखें। बिल पास होने पर एच1बी वीजा वालों को ज्यादा वेतन देना होगा। भारतीय वहां अमेरिकियों के मुकाबले कम वेतन पर काम करते हैं। ऐसे में  बड़े वेतन पर आईटी कंपनियां अमेरिकियों को तरजीह दे सकती हैं। एक लाख से ज्यादा एच1बी वीजा धारक भारतीय अमेरिका में काम करते हैं। विधेयक पास होने पर इन्हें वापस भारत लौटने पर मजबूर होना पड़ सकता है। साथ ही नए पेशेवरों के लिए मौके कम होने की संभावना है। अभी तक भारतीय प्रोफेशनल्स का सस्ता होना उनके पक्ष में जाता था। यह सुविधा अब उनके हाथ से निकलने का खतरा है। हम उम्मीद करते हैं कि इस समस्या का कोई न कोई हल अवश्य निकल आएगा। दरअसल अमेरिका की श्वेत आबादी मुस्लिम आतंकवाद से त्रस्त है। उनके मन से 9/11 के भीषण आतंकवादी हमले का असर कम नहीं हुआ है। डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति चुनावों में इन्हीं मानसिकता वाले लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। फिर एच1बी वीजा पर विदेशी वर्करों से काम कराने वाली कंपनियों को जो फायदा अमेरिका की बड़ी कंपनियों को अपने सामान और सेवाएं सस्ती रखने के रूप में मिलता रहा है। नई नीति आने के बाद वह नहीं मिलेगा। जिन्हें यह वीजा दिया जाता है उन्हें कई तरह के अधिकार मिलते हैं, लेकिन उन्हें अमेरिकी प्रवासी वाले अधिकार नहीं मिलते। यह वीजा सिर्फ आईटी क्षेत्र के लिए नहीं है, इसमें बॉयो-टेक्नोलॉजी और फैशन जैसे कई तरह के कारोबार शामिल हैं। अमेरिकी उद्योग जगत ने ट्रंप की इस पहल का स्वागत नहीं किया है। बहरहाल हमें तो यह देखना है कि हमारे आईटी सेक्टर को इससे ज्यादा नुकसान न उठाना पड़े।
-अनिल नरेन्द्र



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