Friday 3 February 2017

यूपी चुनाव : नरेंद्र मोदी बनाम अखिलेश बनाम मायावती

उत्तर प्रदेश में चुनाव जैसे-जैसे अपने मुकाम की ओर बढ़ रहा है, चुनाव रोमांचक स्थिति में पहुंच रहा है। एक ताजा सर्वेक्षण में सट्टा बाजार के अनुसार समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के चुनावी गठबंधन होने के बाद यह गठबंधन सबसे आगे है। उसे 164 से 167 सीटें मिल सकती हैं। जबकि इनके अनुसार भाजपा दूसरे नम्बर पर है उसे 127 से 130 सीटें मिल सकती हैं। जबकि बसपा को 85 से 89 तक सीटें मिल सकती हैं। उत्तर प्रदेश चुनाव के स्टार प्रचारक हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (भाजपा के लिए) अखिलेश यादव, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और डिम्पल यादव (सपा के लिए) और मायावती (बसपा)। मुलायम सिंह यादव फिलहाल रूठे हुए हैं और कह रहे हैं कि चूंकि वह सपा-कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ हैं इसलिए वह चुनाव प्रचार नहीं करेंगे। पहले बात करते हैं भारतीय जनता पार्टी की। पार्टी ने हाल ही में यूपी चुनाव के लिए 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की। इस लिस्ट में पार्टी ने पीएम नरेंद्र मोदी के अलावा कई केंद्रीय मंत्रियों को जगह दी है। लेकिन पार्टी के मार्गदर्शक मंडल के नेता लाल कृष्ण आडवाणी और प्रदेश के कानपुर से लोकसभा सांसद डॉ. मुरली मनोहर जोशी का नाम गायब है। वहीं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी, विनय कटियार और वरुण गांधी का नाम भी सूची में नदारद है। हालांकि पार्टी ने योगी आदित्यनाथ और संजीव बलियान को जगह दी है। महिला नेताओं में हेमा मालिनी और स्मृति ईरानी भी प्रचार करेंगी। चुनावी समीक्षकों ने उत्तर प्रदेश का चुनाव अखिलेश बनाम मोदी मान लिया है। सपा के भीतर महीनों तक चले घमासान के बाद जब अखिलेश जीत गए तो समीक्षकों को लगने लगा है कि घर की लड़ाई तो अखिलेश जीत गए, अब असली लड़ाई मोदी से होनी है। इसलिए इस चुनाव को उन्होंने मोदी बनाम अखिलेश बना दिया है। मोदी नाम का तर्क इसलिए दिया जा रहा है क्योंकि यूपी में भाजपा ने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है। भाजपा मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी। बसपा के प्रत्याशियों के लिए बहन जी ही सबसे बड़ी प्रचारक हैं। लगभग हर विधानसभा सीट पर प्रत्याशी उनकी रैली चाहते हैं। याद रहे कि मायावती अकेले अपने दम-खम पर पहले भी पार्टी को सफलता दिला चुकी हैं। बहुजन समाज पार्टी को अमूमन लोग बेहतर कानून व्यवस्था देने वाली पार्टी के रूप में जानते हैं। वर्ष 2007 में जब पार्टी बहुमत में आई तो सरकार बनाने के बाद बहन जी ने 2012 तक कानून व्यवस्था सही कर दी थी। व्यवस्था के आंकड़े देखें तो बलवे, बलात्कार, हत्या एवं अन्य आपराधिक घटनाओं की संख्या कम हुई थी। यह केवल इसलिए संभव हो पाया था कि बसपा ने कानून व्यवस्था के सवाल पर अपनी पार्टी के भीतर से होने वाली इधर-उधर की पैरवियों को सुनना बंद कर दिया था। इस चुनाव में बहन जी उत्तर प्रदेश में पिछले पांच सालों में बिगड़ती कानून व्यवस्था पर ज्यादा फोकस करेंगी। सपा-कांग्रेस में अब नई पीढ़ी कमान संभाल रही है। सपा-कांग्रेस गठबंधन के बाद सबकी निगाहें प्रियंका गांधी वाड्रा और डिम्पल यादव की जोड़ी पर है। डिम्पल इस बार परिवार और पति की परछाईं से बाहर निकलकर व्यापक स्तर पर पार्टी के लिए प्रचार करेंगी। वहीं प्रियंका पहली बार मां और भाई को जिताने के बजाय पूरे राज्य में स्टार प्रचारक की भूमिका निभाएंगी। ऐसे में दोनों की चुनौती पहले से ज्यादा बढ़ गई है। उत्तर प्रदेश की सियासत जातिगत पहियों पर चलती है, लेकिन लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के कारण जातिगत समीकरण ध्वस्त हो गए थे। मोदी का विकास का नारा अन्य मुद्दों पर भारी पड़ा था। अखिलेश यह बात समझ रहे हैं। उन्होंने भी विकास को मुख्य मुद्दा बनाया है। अखिलेश यादव जिस तरह का गुणा-गणित बनाकर चल रहे हैं, उससे बसपा-भाजपा के लिए वह कड़ी चुनौती खड़ी कर सकते हैं। कारण, यादव-मुस्लिम वोटों का समीकरण उनके पक्ष में है। गठबंधन के जरिये वोट विभाजन रोकने की कोशिश है। नए चेहरों को सामने लाकर उन्होंने विकास के एजेंडे में भी अपना चेहरा फिट करने की कोशिश की है। मतलब कई मायनों में उत्तर प्रदेश का चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम अखिलेश यादव हो सकता है।

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