Saturday 25 February 2017

यह पहला चुनाव है जिसमें सोनिया गांधी नहीं आईं

पांच दशक तक गांधी परिवार का मजबूत गढ़ रहे रायबरेली में सपा गठबंधन के बावजूद कांग्रेस को भाजपा और बसपा की चुनौती का सामना करना पड़ा है। दो सीटों पर कांग्रेस और सपा के बीच दोस्ताना मुकाबला भी है। लंबे अरसे के बाद यह पहला चुनाव है जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कोई चुनावी सभा नहीं की है। एक वक्त था, जब केंद्र और सूबे में कांग्रेस की सरकार होती थी तो रायबरेली के कांग्रेसियों का जलवा रहता था। समय के साथ लोगों की पार्टी के प्रति समर्पण की भावना खत्म हो गई। गांधी परिवार का यह किला अब अभेद्य नहीं रहा, यूं कहें कि दरकने लगा है। लोकसभा चुनाव में तो ठीक है पर विधानसभा चुनावों में गांधी परिवार और जनता के बीच रिश्तों का बंधन कमजोर हो गया है। सोनिया मजबूरी के चलते इस बार रायबरेली-अमेठी नहीं जा सकीं। उन्होंने रायबरेली और अमेठी संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं को चिट्ठी भेजकर वोट और समर्थन मांगा है। 1999 में अमेठी से सांसद चुने जाने के बाद यह पहला मौका है जब सोनिया गांधी रायबरेली में किसी चुनाव में नहीं आई हैं। 2004 में वह खुद रायबरेली से सांसद चुनी गई थीं। 2006 में उनके इस्तीफे के बाद उपचुनाव हुआ तो सोनिया फिर निर्वाचित हुईं। 2009 और 2014 में भी सोनिया गांधी रायबरेली से ही सांसद रहीं। इस बार उनके चुनाव प्रचार के लिए न आने के कई मायने निकाले जा रहे हैं। हालांकि कांग्रेस खेमे में माना जा रहा है कि रायबरेली में प्रियंका ही सोनिया की विरासत संभालेंगी। इस बार कांग्रेस सपा गठबंधन करके चुनाव लड़ रही है। इसके बावजूद अहम सवाल यह है कि क्या सपा से दोस्ती करके कांग्रेस अपने इस किले को महफूज रख पाएगी या भाजपा और बसपा उसमें सेंधमारी करेंगीं? पिछले दो विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने पाया भी है और खोया भी। 2007 के चुनाव में जहां ऊंचाहार, सरेनी, हरचन्दपुर, बछरावां, सलोन विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस ने परचम लहराया वहीं 2012 के चुनाव में ये सभी सीटें कांग्रेस ने गंवा दीं। इन सीटों पर सपा का कब्जा हो गया, यह हाल तब था जब प्रियंका वाड्रा ने गांव-गलियों की खाक छानते हुए दर्जनों नुक्कड़ सभाएं कीं और सांसद सोनिया गांधी ने बड़ी रैली की थी। इस बार के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनके परिणाम जहां उत्तर प्रदेश का भविष्य तय करेंगे वहीं राष्ट्रीय राजनीति को दिशा दे सकते हैं। कांग्रेस ने सपा से गठबंधन करके एक तरीके से चुनाव से पहले ही घुटने टेक दिए हैं। रही सही कसर सोनिया गांधी की अनुपस्थिति से पूरी हो गई है। कांग्रेस में एक ऐसा शून्य आ गया है जिसे भरना पार्टी के लिए अत्यंत जरूरी है।

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