Friday 17 February 2017

इसरो ने 104 सैटेलाइट एक साथ छोड़ रचा इतिहास

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बुधवार को एक ही रॉकेट से रिकार्ड 104 सैटेलाइट का सफल परीक्षण कर इतिहास रच दिया। पिछला रिकार्ड रूस के नाम था, जिसने 2014 में एक ही बार में 37 सैटेलाइट छोड़े थे। इन 104 उपग्रहों में 30 स्वदेशी और बाकी छह देशों के हैं। सबसे ज्यादा 96 अमेरिकी सैटेलाइट हैं। नई उपलब्धि से भारत अरबों डॉलर की स्पेस इंडस्ट्री में बड़े कांट्रैक्ट हासिल कर सकेगा। पीएसएलवी सी-37 के जरिये एक साथ 104 उपग्रहों को सफलतापूर्वक तय समय से पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करना अत्यंत दुष्कर काम था। इसलिए कि इसमें उपग्रहों के आपस में टकराने का खतरा था पर हमारे काबिल वैज्ञानिकों ने उनके भिन्न-भिन्न देशों में निश्चित समय के अंतराल में प्रक्षेपण तय कर उन खतरों की आशंका को निर्मूल कर दिया था। इसरो के वैज्ञानिकों की यह क्षमता पश्चिमी देशों के संसाधनपूर्ण संस्थानों व उनके मेधावी वैज्ञानिक की तुलना में सराहनीय है। तीन देसी उपग्रहों में दो नैनो और एक कार्टोसेंट-2 सीरीज का मेन सैटेलाइट है। यह मुख्यतया मौसम पर नजर रखने के लिए है। हालांकि इससे चीन, पाक के इलाको में जमीन पर एक मीटर तक की हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरें ली जा सकेंगी। भारत ने प्रक्षेपण के क्षेत्र में उस रूस को पछाड़ा है, जिसको अंतरिक्ष अनुसंधान का अगुवा कहा जाता है। उसने ही 2014 में एक रॉकेट से 39 उपग्रहों के छोड़ने का रिकार्ड बनाया था। जवाब में इसरो ने उसके अगले साल ही 23 उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में स्थापित कर रूसी रिकार्ड को न केवल पीछा करने बल्कि जल्द ही नया कीर्तिमान स्थापित करने का अपना मजबूत मंसूबा जता दिया था। इसके पहले पीएसएलवी से लांच का खर्च 100 करोड़ रुपए है। वैज्ञानिकों के अनुसार एंट्रिक्स ने इन सैटेलाइटों के लिए 200 करोड़ रुपए की डील की है। यानि उसे करीब 100 करोड़ रुपए की बचत है। डॉ. डीपी कार्णिक (प्रवक्ता इसरो) के अनुसार इसरो का मकसद रिकार्ड बनाना नहीं है। हम सिर्फ अपनी लांचिंग क्षमता जांचना चाहते हैं। इसकी सफलता से कामर्शियल लांचिंग में भारत की पहचान और मजबूत होगी। अमेरिका, चीन और यूरोप की तुलना में भारत 66 गुना सस्ता है। भारत में सैटेलाइट की कामर्शियल लांचिंग दुनिया में सबसे सस्ती पड़ती है। इतनी ही नहीं, भारत के जरिये सैटेलाइट लांच करना यहां तक कि रूस से भी चार गुना सस्ता पड़ता है। रूस की लांच 455 करोड़ की होती है। अमेरिका की 381 करोड़ और जापान और चीन में तो 6692 करोड़ और 6692 करोड़ क्रमश होती है। हम इसरो के तमाम वैज्ञानिकों को इस शानदार उपलब्धि  पर बधाई देते हैं। इन्होंने हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा उठा दिया है।

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