Tuesday, 7 February 2017

सियासी चन्दे पर अंकुश ः सही कदम पर अधूरा

काले धन का एक बहुत बड़ा कारण है इन सियासी दलों को मिलने वाला नकद चन्दा। इस पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार ने इस साल के आम बजट में पहल की है। बजट में वित्तमंत्री के राजनीतिक दलों के लिए नकदी चन्दे की सीमा 2000 रुपए तय करने का फैसला सही दिशा में सही कदम है। आम बजट में नकद चन्दे की सीमा 20 हजार से घटाकर 2000 रुपए करने का स्वागत  है। साथ ही सरकार राजनीतिक दलों के लिए आय-व्यय का लेखा-जोखा रखने को अनिवार्य करने वाली है। इस सिलसिले में प्रस्तावित कानून के अनुसार दलों को दिसम्बर तक अपने बहीखातों का पूरा ब्यौरा आयकर विभाग में जमा करना होगा। अन्यथा उन्हें आयकर में मिलने वाली छूट समाप्त की जा सकती है। वैसे इस पहल से भी पता नहीं चल पाएगा कि किसी दानदाता ने चेक या ऑनलाइन माध्यम से कितना पैसा राजनीतिक पार्टियों को दिया, क्योंकि पार्टियां उन दानदाता का चन्दा बताने के लिए बाध्य नहीं हैं जो उन्हें 20 हजार रुपए से कम चन्दा देते हैं। बेशक इससे राजनीतिक दलों में पारदर्शिता लाने में मदद मिलेगी पर यह अधूरा है। अगर दानदाता 20 हजार रुपए से कम चन्दा देता है तो अब भी पता नहीं चल पाएगा कि किस राजनीतिक पार्टी को किसने कितना चन्दा दिया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि चुनाव आयोग से राजनीतिक पार्टियों को छूट मिली हुई है कि वे दानदाता के 20 हजार रुपए से कम चन्दा देने वाले का नाम बताने के लिए बाध्य नहीं हैं। यह नियम अब भी लागू है। हाल ही में चुनाव आयोग ने भारत में 1900 पंजीकृत राजनीतिक दल होने की बात कही थी। इनमें से 400 से भी ज्यादा ऐसे दल हैं, जिन्होंने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा है। इस नाते आयोग की यह आशंका सही है कि ये दल संभव है कि काले धन को सफेद में बदलने का माध्यम बनते हों? आयोग ने अब ऐसे दलों की पहचान कर उनको अपनी सूची से हटाने व उनका चुनाव चिन्ह जब्त करने की कवायद शुरू कर दी है। आयोग ने आयकर विभाग से भी कहा है कि ऐसे कथित दलों की आयकर छूट समाप्त कर दी जाए। बजट में राजनीतिक दलों को मिलने वाले गुप्त चन्दे संबंधी प्रावधान को एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म) ने अधूरा बताया। एडीआर के मुताबिक चन्दे के ऑडिट का सिस्टम बनाने के साथ ही इसमें पूरी पारदर्शिता नहीं लाई जाएगी, जब तक यह जवाबदेही तय नहीं हो सकती। एडीआर विशेषज्ञों का एक समूह है जो चुनाव, राजनीति और इनसे जुड़े मुद्दों पर पैनी नजर रखता है। केंद्र सरकार के बजट के एक दिन बाद ही एडीआर ने कहा कि राजनीतिक दलों को मिलने वाले चन्दे के मामले में अभी पूर्ण पारदर्शिता नहीं आ सकी है। एक दानदाता से 2000 रुपए तक के चन्दे की सीमा लागू करने के बावजूद वित्तमंत्री यह नहीं बता सके कि इसका क्रियान्वयन कैसे होगा? छिपी बात नहीं है कि पार्टियों का खर्चा हजार-दो हजार रुपए के नकद चन्दे से नहीं चलता। तमाम व्यवसायियों और उद्योगपतियों की मदद से और भ्रष्टाचार से किक बैंक से चुनाव लड़े जाते हैं। उद्योगपतियों से मिलने वाले धन पर अंकुश लगाने के मकसद से ही निर्वाचन आयोग ने भी प्रत्याशी के चुनाव खर्च पर सीमा तय की थी। मगर चूंकि उसमें पार्टियों का खर्च शामिल नहीं होता, इसलिए बहुत सारे प्रत्याशी चुनाव में खुलकर धन-बल का प्रयोग करते हैं। पार्टियों की तरफ से प्रत्याशियों को मिलने वाले या फिर प्रत्याशियों के पार्टी के नाम से करने वाले खर्च पर कैंची चलाने के उद्देश्य से सरकार ने पार्टियों के आय-व्यय का ब्यौरा पेश करना अनिवार्य बनाने का मन बनाया है। यह कहां तक संभव होगा। यह देखने की बात है। हर राजनीतिक दल के मुखिया सार्वजनिक मंचों से अपने कार्यकर्ताओं को सादगीपूर्ण जीवन और चुनाव सुधार की बात तो करते हैं पर हकीकत में इसे अमल में लाना नहीं चाहते। उद्योगपति चोरी-छिपे चन्दे के रूप में बड़ी रकम देने से बाज आएंगे, दावा नहीं किया जा सकता। इसलिए सरकार को काले धन के स्रोतों की पहचान और मुकम्मल करने की जरूरत है।

-अनिल नरेन्द्र

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