Wednesday, 31 May 2017

टीवी बहस पर पाक गैस्ट को बेइज्जत होने के एवज में डॉलर

टीवी पर अपनी रेटिंग बढ़ाने के लिए कुछ चैनल क्या-क्या नहीं कर रहे? लंबी-लंबी बहस कराई जाती हैं, विदेशों से मेहमान बुलाकर तू-तू, मैं-मैं कराई जाती है। दर्शकों ने कुछ अंग्रेजी चैनलों पर कश्मीर जैसे ज्वलंत मुद्दों पर पैनल डिस्कशन सुनी होगी। इसमें एक्सपर्ट बुलाए जाते हैं। टीवी पर अकसर पाकिस्तान बनाम भारत होती है। इसके पीछे असल कहानी क्या है यह जानकर मैं चौंक गया। भारत बनाम पाकिस्तान की तीखी बहस के पीछे आखिर सच क्या है? जी हांöसवालिया निशान को मत देखिए, बल्कि टीवी में बहस के पीछे के धंधे के सच को समझिए जो योजनाबद्ध तरीके से लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ भी कर रहा है और दो देशों के लोगों के बीच देशभक्ति को उत्तेजित भी। टीवी चैनल पर बैठा एंकर और पाकिस्तानी प्रतिनिधि के बीच गर्मजोशी से भरी करारी बहस के पीछे पूरा खेल टीआरपी रेटिंग और रुपए का है। चौंकिए मत, बल्कि इससे आगे की स्थिति को समझिए जहां पाकिस्तान गैस्ट को जो कड़वी-कड़वी बातें सुनाई जाती हैं, उसके एवज में उसे बाकायदा डॉलरों में रकम अदा की जाती है। उसके एवज में उसे बहस में तमाम तरह के आरोपों को सहना पड़ता है। ऐसे ही एक गैस्ट हैं पाकिस्तान की ओर से भारतीय न्यूज चैनल पर दिखने वाले सैयद तारिक पीरजादा। मशहूर टीवी पत्रकार और संपादक राजदीप सरदेसाई ने अपने अंग्रेजी ब्लॉग में टीवी की बहस के एक ऐसे सच को बेपर्दा किया जिसके बाद टेलीविजन की गंभीर राष्ट्रवादी बहस के पीछे दुबई के इनके एकाउंट में जा रही पेमेंट और टीवी की रेंकिंग चमकाना है। राजदीप कहते हैंöहां मैंने स्पष्ट रूप से पीरजादा को कार्यक्रम खत्म होने के वक्त हंसते हुए देखा था। मुझे इस पर बिल्कुल आश्चर्य नहीं हुआ। वह कल से आधा दर्जन भारतीय समाचार चैनलों पर स्काइप के माध्यम से दिखाई दे रहा है। उनमें से ज्यादातर अमेरिकी डॉलर में उन्हें अच्छे पैसे देते हैं। मुझे दुबई में खोले गए बैंक खाते के बारे में बताया गया है कि यह किस तरह से बेहद उपयोगी व्यवसायिक मॉडल के तौर पर है। मैं उसकी प्रतिक्रिया जिसमें आक्रमकता और बेइज्जती सुनने के लिए और फिर उस पर जमकर चिल्लाने के लिए बाकायदा भुगतान किया जाता है। जो लोग उसे ज्यादा पैसे देते हैं वह खुद--खुद ज्यादा बड़े राष्ट्रवादी के तौर पर पहचाने जाते हैं। भगवान इस गणराज्य को उन लोगों से बचाए जिनके छद्म राष्ट्रवाद को टीआरपी के लिए साधा जा रहा है। पिछली रात मैंने पाकिस्तान के बारे में एक परिचित चेहरे को भारतीय समाचार चैनल पर देखा। स्वयंभू राजनीतिक-सैन्य विश्लेषक सैयद तारिक पीरजादा ने हमारे समाचार चैनलों पर भारत और भारतीय सेना का दुरुपयोग करने के लिए अपने पेशेवर को बुलाया है। प्रतिस्पर्धात्मक कट्टरवाद की उपमहाद्वीप में लहर के चलते पीरजादा को आदर्श अतिथि के रूप में देखा जाता है जो चरम पाकिस्तानी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है। पीरजादा बिल्कुल वैसे ही नाच रहा था जैसे तथाकथित न्यूज चैनल का एंकर उसे नचाना चाहते थे। इतना ही नहीं, पीरजादा ने भारतीय सेना को अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हुए निशाना साधा और लगे हाथ चेतावनी भी दे डाली। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान एक परमाणु राज्य है और अब भारत को उसे सबक सिखाना ही होगा। उसकी आक्रामकता मुझे भारतीय सिनेमा के उस गीत की तरह लगाö`आ देखें जरा किसमें कितना है दम।' भारत का पक्ष रखने के लिए एक बुजुर्ग मेजर जनरल भी मौजूद थे जो पीरजादा को उसी के अंदाज में जवाब भी दे रहे थे। यह तू-तू, मैं-मैं का दौर पूरे 30 मिनट तक जारी रहा और फिर विज्ञापन के दबाव में आखिरकार उस एंकर को ब्रेक लेना पड़ा। संवेदनशील मुद्दे पर गंभीर चर्चा मानों किसी नौटंकी का अहसास करा रही थी। मूर्खतापूर्ण तर्क और बेजा वजाहत के सिवाय बहस में कुछ भी तो नहीं होता। नियंत्रण रेखा को भूल जाएं क्योंकि हमारे यहां क्रीन पर टीवी युद्ध खेला गया जहां क्रीन में केवल आग की कमी थी। दरअसल किसी बात को सनसनी की तरह बताना टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट में मान्यता दिलाता है और इसी के चलते समाचारों की दुनिया में अति राष्ट्रवाद के नाम पर तमाशा बेचा जा रहा है। गंभीर चर्चा के नाम पर खेले जा रहे इस गंदे खेल में धैर्य या संयम को यहां कमतर बताया जाता है और राजनीतिक तौर पर वही सही है जो बेखौफ धड़ल्ले से मर्दांनगी का परिचय दे। अब वक्त है टीवी के इस नापायदार सच को समझने का जहां टेलीविजन के धंधे को चमकाने के लिए देश के नाम पर लोगों को न केवल बेवकूफ बनाया जा रहा है बल्कि बरगलाया भी जाता है। क्या टीवी पर बैठे पीरजादा जैसे लोग वाकई ही किसी का प्रतिनिधित्व करते हैं? राजदीप सरदेसाई का हम धन्यवाद करते हैं इस सच को उजागर करने के लिए।

-अनिल नरेन्द्र

क्या जेवर घटना को दूसरा रंग देने का प्रयास हो रहा है?

जेवर में चार महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार, लूटपाट व परिवार के मुखिया की हत्या के मामले में विरोधाभास रिपोर्टें आ रही हैं। मालूम हो कि जेवर कोतवाली क्षेत्र अंतर्गत जेवर-बुलंदशहर हाइवे पर साबोता गांव के पास बुधवार रात कार सवार परिवार को बदमाशों ने बंधक बना लिया था। उन्होंने लूटपाट के बाद कार सवार चार महिलाओं के साथ परिवार के सामने ही गैंगरेप किया। एक महिला के पति ने बदमाशों का विरोध किया तो उसकी गोली मारकर हत्या कर दी। बदमाशों ने पीड़ित परिवार से 40 हजार रुपए व जेवर समेत करीब एक लाख से अधिक लूटपाट की। स्थानीय पुलिस-प्रशासन ने वारदात के बाद संकेत दिए कि महिलाओं के बयानों में विरोधाभास है और गैंगरेप जैसी कोई बात नहीं हुई। स्क्रैप व्यापारी के परिवार से मिलने शनिवार को जब केंद्रीय मंत्री डॉ. महेश शर्मा जेवर पहुंचे तो पीड़ित परिवार ने केंद्रीय मंत्री से कहा कि प्राथमिक मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देकर पुलिस बेतुके बयान दे रही है। इससे दुष्कर्म पीड़िता और उनके परिजन बेहद आहत हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि प्राथमिक रिपोर्ट का हवाला देकर पुलिस चार महिलाओं से गैंगरेप जैसी संगीन वारदात को नकारने की कोशिश कर रही है। डॉ. महेश शर्मा ने पीड़ित परिवार को समझाते हुए कहा कि फोरेंसिक रिपोर्ट जब तक लैब से नहीं आती इस संबंध में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। दुख की इस घड़ी में सरकार हर संभव मदद करेगी। शनिवार दोपहर बाद भारतीय किसान यूनियन का एक प्रतिनिधिमंडल पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचा। परिजनों ने पुलिस पर घटना का खुलासा न करने का आरोप लगाया, जिसके बाद प्रतिनिधिमंडल ने पुलिस अधिकारियों से वार्ता कर वारदात के जल्द खुलासे की मांग की। पीड़ित महिलाओं ने शनिवार को कोर्ट में बयान दर्ज कराए। इस दौरान पीड़िताएं फफक  पड़ीं। पीड़ित पक्ष की मानें तो उन्होंने एफआईआर के मुताबिक ही बयान दर्ज कराए हैं। परिजनों के अनुसार महिलाओं ने कोर्ट से यह भी कहा कि दुष्कर्म होने के बावजूद पुलिस इसे मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देकर नकार रही है। पीड़ित महिलाओं ने लूटपाट, दुष्कर्म और विरोध करने के स्क्रैप कारोबारी की हत्या का बयान कोर्ट में दर्ज कराया है। सवाल यह है कि क्या स्थानीय पुलिस व प्रशासन सच्चाई को दबाने की कोशिश कर रही है? हत्या हुई है, दुष्कर्म का आरोप है, इसे हल्के से नहीं लिया जा सकता। पीड़ितों से इंसाफ होना चाहिए। अगर इस पर लीपापोती की जा रही है तो यह सरासर गलत है। वैसे भी मामला अब अदालत में चला गया है जहां दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा।

Tuesday, 30 May 2017

राष्ट्रपति चुनाव के बहाने विपक्षी एकता का प्रयास?

एनडीए के तीन साल के जश्न के दिन ही आखिरकार राष्ट्रपति चुनाव के बहाने विपक्षी एकजुटता की नींव रखने का सोनिया गांधी का प्रयास कुछ हद तक सफल रहा और कुछ मायनों में उतना सफल नहीं रहा। कांग्रेस अध्यक्ष की पहल पर 17 विपक्षी दलों को एक साथ बैठक में बुलाना सोनिया की सफलता रही। क्षेत्रीय राजनीति में दुश्मन माने जाने वाली पार्टियों को एक मंच पर लाने की सोनिया की कोशिश कामयाब रही। यूपी से बसपा प्रमुख मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के अलावा पश्चिम बंगाल से तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी और वाम नेता सीताराम येचुरी और अन्य लेफ्ट नेताओं की एक साथ मौजूदगी राजनीतिक नजरिये से बेहद अहम मानी जा रही है। सोनिया की इस मीटिंग में कांग्रेस के अलावा आरजेडी, जेडीयू, सपा, बसपा, टीएमसी, जेएमएम, केरल कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस, एनसीपी, डीएमके, एआईयूडीएफ, आरएसपी, ऑल इंडिया मुस्लिम लीग, सीपीएम, सीपीआई और जेडीएस के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। खास बात यह थी कि इस मीटिंग में आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल को न्यौता नहीं दिया गया। वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जगह जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव पहुंचे। भ्रष्टाचार के नए आरोपों में घिरे आरजेडी प्रमुख लालू यादव की मौजूदगी में नीतीश के गायब रहने पर राजनीतिक अटकलें लगना तो तय था। बता दें कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने यह साफ कर दिया है कि दूसरे कार्यकाल में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है। इस वजह से इस मीटिंग की बहुत अहमियत मानी जा रही है। सोनिया गांधी की मीटिंग से गायब रहे नीतीश कुमार पीएम मोदी के लंच में शामिल हुए। नीतीश के इस कदम से एक बार फिर उनकी भाजपा से नजदीकी की अटकलें लगने लगी हैं। वहीं विपक्ष की एकता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। हालांकि सोनिया गांधी द्वारा दिए गए भोज में हिस्सा न लेने पर नीतीश ने सफाई दी। उन्होंने कहा कि लंच पर मेरी गैर-मौजूदगी का गलत मतलब निकाला गया है। मैं सोनिया जी से अप्रैल में ही मिल चुका था और जिन मुद्दों पर इस बार चर्चा होनी थी उन पर पहले ही चर्चा कर चुका था। इस बार उन्होंने सभी पार्टियों को लंच पर बुलाया था। संकट आने से पहले उसे भांप लेना और फिर उसी हिसाब से कदम उठाना बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बाखूबी जानते हैं। एक-दो मामलों को अगर छोड़ दिया जाए तो इनका कैलकुलेशन स्थान, काल, पात्र के हिसाब से आमतौर पर फिट बैठता है। बिहार की राजनीति में अपने धुर विरोधी लालू यादव तक से हाथ मिलाने से पीछे नहीं रहे लेकिन अब साथ छोड़ने की बात सामने आ रही है। राजनीति के मंझे हुए इस ]िखलाड़ी के अगले कदम पर सबकी नजर है और देखने वाली बात यह है कि इस पर से परदा कब उठता है? दरअसल प्रधानमंत्री के सियासी ब्रांड पर सवार भाजपा-एनडीए को 2019 के आम चुनाव में चुनौती देने के लिए कांग्रेस राष्ट्रपति चुनाव के बहाने विपक्षी दलों को गोलबंद करने की कोशिश में जुटी है। बैठक इस मायने में कामयाब रही कि राज्यों में विपरीत ध्रुव पर रहने वाली पार्टियां राष्ट्रीय सियासत में एक मंच पर आने को तैयार हैं। मेरा हमेशा से मानना रहा है कि कांग्रेस का गिरता ग्राफ राष्ट्रीय त्रासदी है। अगर लोकतंत्र के लिए मजबूत सत्तापक्ष जरूरी है तो उतना ही जरूरी है मजबूत विपक्ष। और यह भूमिका कांग्रेस ही निभा सकती है। क्षेत्रीय दलों का नजरिया तंग होता है जोकि राष्ट्रीय दृष्टि से नहीं सोच सकते। यह हमेशा अपने-अपने राज्यों के बारे में ही सोचते हैं और कांग्रेस का दुर्भाग्य यह है कि पार्टी का गिरता ग्राफ थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। सोनिया गांधी अस्वस्थ होने के कारण अब उतनी सक्रिय नहीं हैं और राहुल तमाम कोशिशों के बावजूद अपने में विश्वास पैदा नहीं कर पा रहे। राष्ट्रपति चुनाव में पता चल जाएगा कि इन विपक्षी दलों में कितना एका है। 2019 तो अभी दूर है।

-अनिल नरेन्द्र

ब्रह्मपुत्र नदी पर बने पुल का महत्व उसकी लंबाई से कहीं ज्यादा है

सरकार के तीन साल का जश्न मनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर को चुना। इस मौके को यादगार बनाने के लिए मोदी ने असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच ब्रह्मपुत्र नदी पर देश के सबसे बड़े पुल का उद्घाटन किया। इस अति पिछड़े पूर्वोत्तर को उन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का भी तोहफा दिया। शुक्रवार को असम के सुदूर धेमाजी के गोगा मुख कस्बे में अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर आयोजित जनसभा में लोगों के हुजूम की मौजूदगी दर्शाता है कि यह पुल उनके लिए कितना महत्वपूर्ण है। बेशक यह देश का सबसे लंबा पुल है। पटना के महात्मा गांधी सेतु और समुद्र की उफनती लहरों पर बने मुंबई-वर्ली सी लिंक से भी लंबा है, लेकिन प्रधानमंत्री ने असम में ढोला को सदिया से जोड़ने वाले जिस 9.15 किलोमीटर लंबे पुल का उद्घाटन किया उसका असली महत्व उसकी लंबाई से कहीं ज्यादा है। सिर्फ स्थानीय स्तर पर देखें तो यह ब्रह्मपुत्र नदी के उस पार बसे सदिया कस्बे के लिए काफी महत्वपूर्ण है, जो सीधा सम्पर्क न होने के कारण बाकी असम से अलग-थलग हो जाता था। अब सदिया के लोगों के लिए असम ही नहीं, पूरे देश तक पहुंचना बहुत आसान हो जाएगा। सदिया को सिर्फ भौगोलिक फायदा ही नहीं होगा, इससे उसका पूरा अर्थ-तंत्र भी बदल जाएगा। महासेतु के जरिये सीमा पर देश की रक्षा जरूरतों को भी पूरा किया जा सकता है। इस महासेतु का डिजाइन इस तरह से बनाया गया है कि यह सैन्य टैंकों का भी भार सहन कर सके। यह पुल 60 टन वजनी युद्धक टैंक का वजन उठाने में सक्षम है। चीनी सीमा से हवाई दूरी 100 किलोमीटर से कम है। मोदी ने पूर्वोत्तर के राज्यों को अष्टलक्ष्मी के नाम से नवाजा। उन्होंने कहा कि अष्टलक्ष्मी प्रदेश पंच से जुड़ेगी। ये पंच रथ 21वीं सदी के इंफ्रास्ट्रक्चर होंगे, जिनमें हाइवेज, रेलवेज, वॉटरवेज, एयरवेज और इंफार्मेशनवेज प्रमुख हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों की महत्ता का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके विकास से देश का भाग्य बदलेगा। दिल्ली की सरकार इनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलेगी। एक और अच्छी बात यह हुई है कि प्रधानमंत्री ने इस पुल का नामकरण प्रसिद्ध असमी गायक भूपेन हजारिका के नाम पर करके इसे क्षेत्रीय पहचान से जोड़ दिया। भूपेन हजारिका का जन्म 91 साल पहले सदिया में ही हुआ था, यहां से निकलकर वह पूरे देश के संगीत जगत में एक सशक्त आवाज बने। उनकी आवाज में ब्रह्मपुत्र की प्रबल लहरों की खनक सदा मौजूद रही। इस सेतु की मजबूती ही महत्वपूर्ण नहीं है। इसके 118 विशालकाय खंभे भूकंप के बड़े झटकों को भी आसानी से झेल सकते हैं। साथ ही ब्रह्मपुत्र में अकसर आने वाली बाढ़ को भी बर्दाश्त करने की क्षमता रखता है।

Sunday, 28 May 2017

Jadhav was bought in crores by Pakistan from the Taliban

 
A big lie of Pakistan has been caught in case of Kulbhushan Jadhav and nobody has exposed to Pakistan, but a former officer of his own defamed intelligence agency, ISI. Retired Lieutenant General Amjad Shoaib has admitted that Jadhav was caught from Iran, not from Pakistan, and false arrest was shown in Balochistan by bringing him from there. Pakistan had claimed that its security forces had arrested Jadhav on 3rd March last year from Balochistan, who allegedly came there from Iran. A multi-billion dollar deal was negotiated between the Taliban and Pakistan's intelligence agency ISI for Kulbhushan Jadhav for whom tension arisen between India and Pakistan. In February last year, the Taliban first kidnapped Jadhav from Iran with the help of a Sunni fundamentalist organization and sold him to the ISI. After the confirmation of Pakistan's head game, India is engaged in an exercise to uncover this truth with Iran at the diplomatic level. According to sources, a group of Taliban had kidnapped Jadhav in collaboration with the Sunni extremist group. It is yet to be confirmed that the kidnapping was done at the behest of the Pak army or the ISI or the Taliban offered the deal by executing it. Sources said that this bargain has happened in the dollar. These facts, which were exposed in  an investigation of Iranian intelligence agency the Ministry of Intelligence and Security, have been shared with India. On this basis, Iran's diplomat Mohammed Rafi in Pakistan informed 10th May in Quetta that his government has sought permission from Pakistan to interrogate Jadhav. But Pak did not pay any attention to it. There is a possibility of further action in this case after elections in Iran. Former cabinet secretary and Indian Ambassador to the US, Naresh Chandra has justified Jadhav's abduction. According to Chandra, this is a major reason that the ICJ also raised serious questions on the Pakistan’s claim of Jadhav's arrest. Chandra said that Sartaj Aziz, Advisor to Foreign Affairs of Pakistan Prime Minister Nawaz Sharif, has clearly said that there was no sufficient evidence of espionage against Jadhav.
At the same time, Sartaj Aziz had told the Pakistan Parliament in December last year that there is no strong evidence against Jadhav. The Pakistan army wants to hang Jadhav without any concrete evidence after abducting him.

-         Anil Narendra

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के हल्फनामे पर सहमति?

सर्वोच्च न्यायालय में तीन तलाक के मसले पर चल रही सुनवाई की सार्थकता दिखने लगी है। न्यायालय में सुनवाई पूरी हो चुकी है, फैसला क्या होगा, यह तो बाद में ही पता चलेगा पर सुनवाई के दौरान तीन तलाक को खत्म करने का विरोध करने वाले मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने जिस तरह तलाक के इस तरीके के खिलाफ निकाहनामे में एक शर्त दर्ज कराने पर सहमति दिखाई है उससे लगता है कि उसे यह हकीकत समझ आ गई है कि जागरूक मुस्लिम समाज और खासकर मुस्लिम महिलाओं ने अब फैसला कर लिया है कि वह पुराने तरीके को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं। याद रहे कि अभी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तीन तलाक के मुद्दे को अदालत के न्यायाधिकार क्षेत्र से बाहर बताया था। यह भी कहा था कि इस मामले में दखल देना, संविधान-प्रदत्त धार्मिक स्वायत्तता का हनन होगा। बोर्ड की एक और प्रमुख दलील यह भी थी कि तीन तलाक कुरान और शरीयत से ताल्लुक रखने के कारण आस्था से जुड़ा मामला है। लेकिन अब बोर्ड के सुर बदल गए हैं। सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल अपने नए हल्फनामे में बोर्ड ने कहा है कि महिलाओं को तीन तलाक न मानने का अधिकार भी मिलेगा। दुल्हन निकाहनामे में संबंधित शर्त जुड़वा सकेंगी। यही नहीं, काजी दुल्हा-दुल्हन को समझाएगा कि तीन तलाक न कहने की शर्त निकाहनामे में शामिल करें। बोर्ड तीन तलाक का बेजा इस्तेमाल रोकने के लिए अपनी वेबसाइट, सोशल मीडिया समेत सभी माध्यमों का इस्तेमाल करेगा। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के ताजे हल्फनामे की भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने कड़ी आलोचना की है। संगठन का कहना है कि बोर्ड मुस्लिमों के बीच केवल भ्रम पैदा कर रहा है। भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने बोर्ड की सख्त आलोचना की कि तीन तलाक का सहारा लेने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा। संगठन ने कहा कि यह सलाह पर्याप्त नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक का विरोध करने वाली अधिवक्ता फराज फैज ने कहा कि बोर्ड काजियों को परामर्श या दूल्हों को ऐसी सलाह देने वाला कोई पक्ष नहीं है। यह एक पंजीकृत एनजीओ है जो काजियों को न तो संचालित करता है और न ही उन्हें नौकरी पर रखता है। यह केवल मुस्लिमों के बीच भ्रम पैदा कर रहा है। फैज ने कहा कि बोर्ड को ऐसा परामर्श देने का कोई कानूनी या धार्मिक अधिकार नहीं है क्योंकि उसका काम केवल सामाजिक सुधार के लिए काम करना है, देश के मुस्लिमों पर शासन करना नहीं है। दरअसल बोर्ड की सहसा जगी सदाश्यता के पीछे अपने हाथ से कमान छूटने का अहसास सता रहा है। अगर अदालत ने फैसला कर दिया तो फिर उसके पास कौन जाएगा? वैसे भी पर्सनल लॉ बोर्ड समूचे मुस्लिम समाज की नुमाइंदगी नहीं करता। अब अदालत को तय करना है कि फैसले से पहले वह नए हल्फनामे को गौरतलब मानती है या नहीं।

-अनिल नरेन्द्र

कानून-व्यवस्था योगी आदित्यनाथ की सबसे बड़ी चुनौती

कानून-व्यवस्था के नाम पर पूर्ववर्ती अखिलेश यादव की सरकार को घेरकर करीब दो महीने पहले नए तेवर के साथ सत्ता में आई योगी आदित्यनाथ सरकार के सामने यही सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है, यही सबसे बड़ी चुनौती है योगी आदित्यनाथ के सामने। मैंने इसी कॉलम में बिगड़ती कानून-व्यवस्था पर चेताया था। योगी सरकार अपने शुरुआती 100 दिनों के कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड अगले महीने के अंत तक जारी करेगी मगर बिगड़ी कानून-व्यवस्था को पटरी पर लाना सबसे बड़ी चुनौती है। प्रदेश भाजपा का कहना है कि योगी सरकार बनने के बाद से प्रदेश की तस्वीर में बदलाव शुरू हो चुका है, बेशक यह कई क्षेत्रों में सही भी है। कहा जा रहा है कि गुंडागर्दी खत्म हो रही है और अपराध का ग्राफ गिर रहा है। सरकार में जनता का विश्वास बहाल हो रहा है। मगर सहारनपुर में जातीय संघर्ष, बुलंदशहर, सम्भल और गोंडा में हाल में हुई सांप्रदायिक घटनाओं ने सरकार के लिए चिन्ता खड़ी कर दी है। ज्यादा चिन्ता की बात यह है कि इन वारदातों में भाजपा और कथाकथित हिन्दुवादी संगठनों के लोगों की संलिप्तता के आरोप लगे हैं। पिछले महीने सहारनपुर के शब्बीरपुर में भड़के जातीय संघर्ष के बाद राजपूतों और दलितों के बीच सद्भावना कायम करने में अब तक के प्रयास नाकाफी साबित हुए हैं। इसके उलट उनमें टकराव खत्म होता नहीं दिख रहा है। सहारनपुर जिला पिछले 10 दिनों से जातीय हिंसा में जल रहा है। दो लोग मारे जा चुके हैं और छह से ज्यादा लोग घायल हैं। हिंसा प्रभावित गांवों में दहशत इस कदर हावी है कि पुलिस के जवानों की गश्त के बावजूद रात में कोई भी ठीक से सो तक नहीं पा रहा है, ज्यादातर लोग तो काम पर भी नहीं निकल पा रहे हैं। यमुना एक्सप्रेस-वे के पास चलती कार को रोककर हत्या और सामूहिक दुष्कर्म की खौफनाक वारदात ने उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था के सवाल को इसलिए कहीं अधिक गंभीर बना दिया है, क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश तो पहले से ही अप्रिय कारणों से चर्चा में है। योगी सरकार इसकी अनदेखी नहीं कर सकती कि एक ओर सहारनपुर में न थमती जातीय हिंसा उसके लिए सिरदर्द बनी हुई है तो दूसरी ओर कानून-व्यवस्था को चुनौती देने वाली घटनाएं थमने का नाम ही नहीं ले रही हैं। सुशासन के दावे को मुंह चिढ़ाने वाली घटनाएं तब हो रही हैं जब राज्य सरकार लगातार इस पर जोर दे रही है कि कानून के खिलाफ काम करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। आज जनता पूछ रही है कि क्या अब हम रात को घरों से निकलना बंद कर दें? तब भी न निकलें जब हमारा कोई अस्पताल में भर्ती हो और उसे हमारी सख्त जरूरत हो? तब भी न निकलें, जब हमारा कोई प्रिय अचानक किसी मुश्किल में पड़ जाए? अगर ये सारी चिन्ताएं सही हैं, तो यह सवाल भी सही है कि आखिर किस समाज में हम जी रहे हैं? ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे से उतरते ही जेवर से बुलंदशहर के रास्ते में जो कुछ हुआ, वह ऐसे कई सवाल छोड़ता है। एक परिवार मुश्किल में पड़े अपने परिजनों का कष्ट बांटने अस्पताल जा रहा था। साथ में चार महिलाएं इसलिए थीं कि अस्पताल में भर्ती मरीज भी एक महिला थी और इसको इनकी तत्काल मदद की दरकार थी। जेवर से थोड़ा आगे बढ़ने पर लुटेरों ने सड़क पर कोई नुकीली चीज फेंककर पहले उनकी गाड़ी पंचर की और जब तक ये कुछ समझ पाते, इन महिलाओं को लेकर चले गए। इनके साथ गैंगरेप हुआ और विरोध करने वाले युवक को गोली मार दी गई। हाल की कुछ घटनाएं बता रही हैं कि सख्त और संदेश देने वाली कार्रवाई की कमी से हालात कैसे बिगड़ते हैं। इस घटना के बाद पुलिस-प्रशासन के साथ राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा किया जाना स्वाभाविक है। इस नतीजे पर पहुंचने के पर्याप्त कारण हैं कि पुलिस ने बुलंदशहर की घटना से जरूरी सबक सीखने से इंकार किया। आखिर वह कथित घुमंतू गिरोहों की कमर तोड़ने के साथ अपराध बहुल इलाकों की निगरानी के बुनियादी काम क्यों नहीं कर सकी? कहीं ऐसा तो नहीं कि बुलंदशहर की घटना के बाद जो दावे किए गए थे, वे आधे-अधूरे थे? इन सवालों का जवाब जो भी हो, यह ठीक नहीं कि उत्तर प्रदेश में कानून एवं व्यवस्था की साख एक ऐसे समय संकट में है जब मोदी सरकार अपने कार्यकाल के तीन साल पूरे होने को लेकर जश्न मना रही है।

Saturday, 27 May 2017

जाधव को पाक ने तालिबान से करोड़ों में खरीदा था

कुलभूषण जाधव के मामले में पाकिस्तान का बड़ा झूठ पकड़ा गया है और पाकिस्तान को बेनकाब करने वाला और कोई नहीं बल्कि उन्हीं की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई का ही एक पूर्व अधिकारी है। रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल अमजद शोएब ने स्वीकार किया है कि जाधव को पाकिस्तान से नहीं बल्कि ईरान से  पकड़ा गया था और उन्हें वहां से लाकर बलूचिस्तान में फर्जी गिरफ्तारी दिखाई गई थी। पाकिस्तान ने दावा किया था कि उसके सुरक्षा बलों ने पिछले साल तीन मार्च को बलूचिस्तान से जाधव को गिरफ्तार किया था, जो कथित तौर पर ईरान से वहां आए थे। भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का कारण बने कुलभूषण जाधव के लिए तालिबान और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के बीच करोड़ों डॉलर की सौदेबाजी हुई थी। पिछले साल फरवरी में पहले तालिबान ने एक सुन्नी कट्टरपंथी संगठन की मदद से जाधव को ईरान से अगवा किया और आईएसआई के हाथों बेच दिया। पाक के इस प्रपंच की जानकारी पक्की हो जाने के बाद भारत कूटनीतिक स्तर पर ईरान के साथ इस सच्चाई को उजागर करने की कवायद में जुटा हुआ है। सूत्रों के अनुसार तालिबान के एक गुट ने सुन्नी कट्टरपंथी गुट के साथ मिलकर जाधव का अपहरण किया था। अभी यह पुष्टि नहीं हो पाई है कि यह अपहरण पाक सेना या आईएसआई के इशारे पर किया गया या तालिबान ने इसे अंजाम देकर सौदे की पेशकश की। सूत्रों ने बताया कि यह सौदेबाजी डॉलर में हुई है। ईरान की खुफिया एजेंसी मिनिस्ट्री ऑफ इंटेलीजेंस एंड सिक्यूरिटी की जांच में उजागर हुए इन तथ्यों को भारत के साथ साझा किया गया है। इसी आधार पर पाकिस्तान में ईरान के राजनयिक मोहम्मद रफी ने 10 मई को क्वेटा में यह जानकारी दी कि उनकी सरकार ने पाकिस्तान से जाधव से पूछताछ की इजाजत मांगी। लेकिन पाक ने इसे तवज्जो नहीं दी। ईरान में चुनाव के बाद इस मामले में आगे की कार्रवाई होने की संभावना है। पूर्व कैबिनेट सचिव और अमेरिका में भारत के राजदूत रहे नरेश चन्द्रा ने जाधव के अपहरण की बात को सही ठहराया है। चन्द्रा के मुताबिक यह बड़ी वजह है कि आईसीजे ने भी जाधव की गिरफ्तारी के पाक के दावे पर गंभीर सवाल खड़े किए। चन्द्रा ने कहा कि जाधव के खिलाफ जासूसी के पुख्ता सबूत नहीं होने की बात पाक पीएम नवाज शरीफ के विदेशी मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने साफ तौर पर कही है। वहीं सरताज अजीज ने पिछले साल दिसम्बर में पाक संसद को बताया था कि जाधव के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं हैं। पाक सेना बिना किसी ठोस सबूत के अपहरण करके जाधव को फांसी पर लटकाना चाहती है।
-अनिल नरेन्द्र

पाकिस्तान को भारतीय फौज का करारा जवाब

पाकिस्तान को उसके पाप की सजा मिल गई है। हिन्दुस्तान के जवानों का शीश काटने वाले बर्बर पाकिस्तान की नाक कट गई है। सरहद पार से तबाही के गोले बरसाने वाले कातिल पाकिस्तान पर मौत के गोले बरसा  दिए हिन्दुस्तानी फौज ने। हिन्दुस्तान की फौज ने नौशेरा में पाकिस्तान की मिट्टी पलीत कर दी है। पीओके में भारतीय तोपों ने ताबड़तोड़ गोले दागकर पाकिस्तान की कई चौकियों को नेस्तनाबूद कर दिया है। खबर है कि इस हमले में पाकिस्तान के कई सैनिक मारे गए। सिर्फ 30 सैकेंड में पाकिस्तान की तेरहवीं कर दी गई। सैकेंड दर सैकेंड पाकिस्तान की पोस्ट पर हिन्दुस्तान के गोले बरसे। महज 24 सैकेंड में एक के बाद एक करीब दर्जनभर गोले दागे गए और सब निशाने पर गिरे। सरहद पर खूनी साजिश रचने वाले पाकिस्तान को इस बार भारत से ऐसा जवाब मिला है कि उसको यह मार कई दिनों तक याद रहेगी। मेजर जनरल अशोक नरूला ने बताया कि इन चौकियों से आतंकवादी घुसपैठ करते थे। छह मई को पाक सेना ने आतंकियों के साथ मिलकर एलओसी पार करके गश्त कर रहे भारतीय जवानों पर हमला किया था और इस हमले में दो जवान शहीद हुए थे। इसके बाद शहीद जवानों के शव के साथ बर्बरता की थी। इसका बदला लेते हुए भारतीय सेना ने नौ मई को पाकिस्तान के नौशेरा में पाक की चौकी को तबाह कर दिया था। इसे दूसरा सर्जिकल स्ट्राइक बताया जा रहा है। सेना का कहना है कि पाकिस्तान इन्हीं चौकियों के जरिये आतंकियों को भारतीय सीमा में प्रवेश कराता है। कश्मीर के पहाड़ों पर बर्फ पिघलने लगी है और इस मौसम में आतंकियों की घुसपैठ तेज हो जाती है, इसलिए कहा जा रहा है कि इस हमले के बाद घुसपैठ पर कुछ लगाम लगेगी। सरकार और सेना दोनों पर जवाबी कार्रवाई का दबाव था। पूरे देश में दो जवानों के सिर काटने से रोष था। कश्मीर में शांति बनाए रखने के लिए सरकार ने ऐसी सैनिक कार्रवाई को जरूरी बताया है। मगर वास्तव में इस हमले से पाकिस्तान की शह पर होने वाली आतंकी गतिविधियों पर कितनी लगाम लगेगी, देखने की बात है। भारतीय सेना की तरफ से 10 चौकियां ध्वस्त करने संबंधी वीडियो दिखाए जाने के तुरन्त बाद पाकिस्तान ने भारतीय दावे को खारिज कर दिया। हालांकि उससे ऐसी किसी घटना पर सहमति की भी उम्मीद नहीं की जा सकती। सितम्बर में हुए सर्जिकल स्ट्राइक को भी उसने इसी तरह नकार दिया था। यह छिपी बात नहीं है कि पाक सेना ने नियंत्रण रेखा पर ढेर सारे आतंकी शिविर बना रखे हैं। 50 से ऊपर प्रशिक्षण शिविर चल रहे हैं। पाकिस्तानी सेना भारतीय सैनिकों का ध्यान बंटाकर और गांव वालों पर दबाव बनाकर आतंकियों को भारतीय सीमा में प्रवेश कराने का प्रयास करती रहती है। अगर भारतीय सेना इन शिविरों को ध्वस्त करने में कामयाबी हासिल करती है तो काफी हद तक सीमा पार से होने वाली आतंकी घुसपैठ पर लगाम कसी जा सकती है। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भारत की इस कार्रवाई के बाद नियंत्रण रेखा पर तनाव बढ़ेगा। पाकिस्तान भारत की इस गोलीबारी की कार्रवाई को भले ही खारिज करे मगर वह इसका बदला लेने की भी सोच रहा होगा। चुनांचे भारत को चौकन्ना रहने की आवश्यकता है। खबर है कि पाकिस्तान ने लाइन ऑफ कंट्रोल के नजदीक अपनी बार्डर एक्शन टीम (बैट) के कमांडो तैनात किए हैं। जिनका मकसद गश्त कर रहे भारतीय जवानों पर घात लगाकर हमला करना है। बता दें कि पूर्व में भी बैट भारतीय जवानों के शव क्षत-विक्षत करने और उनके सिर काटने में लिप्त रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान बेनकाब हो चुका है पर वह अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहा। ऐसे में भारत के महज सबक सिखाने की चेतावनी देने या नियंत्रण रेखा पर मुट्ठीभर चौकियों को नष्ट करने से काम नहीं चलेगा। आज की स्थितियों में युद्ध किसी के हित में नहीं हो सकता पर आतंकी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए भारत को व्यावहारिक रणनीति अपनानी होगी। भारत को पाक अधिकृत कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर चल रहे 300 से ऊपर आतंकी शिविरों को ध्वस्त करने और पाकिस्तान के मंसूबों पर चोट करने हेतु व्यावहारिक कदम उठाने ही चाहिए। सरकार का कदम इस मायने में बेहद प्रशंसनीय है कि उसने सेना को एक्शन लेने की खुली छूट दे रखी है यानि कि पाकिस्तान के लिए संदेश बिल्कुल साफ हैöसुधर जाओ।

Friday, 26 May 2017

ट्रंप ने शरीफ को दो दिन में डबल झटका दिया

सऊदी अरब में इस्लामिक सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान को अलग-थलग कर दिया गया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मौजूदगी में पाक पीएम नवाज शरीफ की बेइज्जती हुई। उन्हें सम्मेलन के दौरान आतंकवाद पर बोलने का मौका ही नहीं मिला जबकि वे काफी तैयारी के साथ आए थे। बताया जा रहा है कि शरीफ ने सऊदी सम्मेलन के लिए अपनी फ्लाइट के दौरान दो घंटे लगाकर लंबा भाषण तैयार किया था। गौर करने वाली बात यह है कि इस सम्मेलन में उन देशों के नेताओं को भी बोलने का मौका दिया गया जो आतंकवाद से फिलहाल ज्यादा प्रभावित नहीं हैं, जबकि नवाज शरीफ की पूरी तरह अनदेखी की गई। इतना ही नहीं, ट्रंप ने एक बार भी अपने भाषण में नवाज शरीफ या पाकिस्तान का जिक्र तक नहीं किया। शरीफ के सामने ही ट्रंप ने भारत को आतंकवाद से पीड़ित मुल्क बताया। ट्रंप ने सीधे तौर पर यह तो नहीं कहा कि भारत किस तरह के आतंक से प्रभावित है, लेकिन वैश्विक स्तर पर उनकी तरफ से भारत का नाम लेने के कई कूटनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। भारत लगातार यह कहता रहा है कि वह पाक समर्थित आतंकवाद से पीड़ित देश है और ट्रंप ने एक तरह से उसकी इस बात का समर्थन किया है। पाकिस्तान को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि देर शाम इस्लामाबाद में पाकिस्तान के सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा ने अमेरिकी राजदूत डेविड हेल से मुलाकात कर सफाई दी कि आतंकियों के समर्थन के लिए पाकिस्तान की धरती का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। घरेलू स्तर पर कई मोर्चों पर तनाव झेल रहे नवाज शरीफ के लिए यह सिर्फ परेशानी की बात नहीं है कि ट्रंप ने उनसे अलग द्विपक्षीय मुलाकात नहीं की, बल्कि उनकी परेशानी का कारण यह भी है कि ट्रंप ने दक्षिण एशियाई देशों में सिर्फ अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी से मुलाकात की। कूटनीतिक स्तर पर माना जा रहा है कि ट्रंप ने इस बैठक के जरिये पाकिस्तान और रूस को यह संकेत दिया है कि वह अफगानिस्तान में अपनी उपस्थिति और मजबूत करेगा। दरअसल हाल के महीनों में पाकिस्तान चीन और रूस की मदद से अफगान शांतिवार्ता में तालिबान को घुसाने की चेष्ठा कर रहा है। पाकिस्तान यह चाल अफगानिस्तान में भारत की भूमिका को खत्म करने के लिए चल रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को दो दिनों में दूसरा झटका दिया है। ट्रंप प्रशासन ने कांग्रेस के समक्ष पेश अपने वार्षिक बजट प्रस्ताव में कहा है कि पाक को दिए जाने वाला सैन्य अनुदान कर्ज में बदला जाना चाहिए। हालांकि ट्रंप प्रशासन ने इस मुद्दे पर अंतिम फैसला विदेश मंत्रालय पर छोड़ दिया है। अमेरिका का मानना है कि अमेरिकी आर्थिक मदद अनुदान के रूप में दी जाए न कि सब्सिडी के तौर पर। ट्रंप ने परोक्ष रूप से पाक पर निशाना साधते हुए कहा कि कुछ देश आतंकवाद को पाल रहे हैं। वे दुनियाभर में चरमपंथ को बढ़ावा देने में अपनी सरजमीं का इस्तेमाल कर रहे हैं।

-अनिल नरेन्द्र

...और अब मैनचेस्टर म्यूजिक कंसर्ट पर आतंकी हमला

मंगलवार को तड़के तीन बजे ब्रिटेन के मैनचेस्टर में जो घटित हुआ उसने ब्रिटेन को ही नहीं, पूरे यूरोप को दहला दिया है। असंख्य नजरें उत्सुकता के साथ कहीं लगी हों और अचानक आतंकी हमला हो जाए तो यह दूर तक और देर तक असर करने वाला हो सकता है। मैनचेस्टर एरेना में मशहूर पॉप गायिका एरियाना ग्रांडे के कंसर्ट के दौरान हुए इस आत्मघाती हमले में 22 लोगों के मारे जाने और दर्जनों लोगों के गंभीर रूप से घायल होने की खबर है। मारे गए और घायल लोगों की तादाद से जाहिर है कि हमले के पीछे इरादा अधिक से अधिक कहर बरपाना और बड़े पैमाने पर आतंक पैदा करना था। इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन आईएस ने ली है। माना जा रहा है कि लंदन में 2005 के आतंकी हमले के बाद यह ब्रिटेन में अब तक की सबसे भयावह आतंकी घटना है, क्योंकि इसका निशाना देश के युवा थे। इसने अहसास दिलाया है कि आतंकवाद पर चाहे जितनी बौद्धिक जुगाली कर ली जाए, इसका नए-नए रूप-रंग में दिखना थमा नहीं। पहले जब भारत आतंकी वारदात की बात करता था तो विकसित माने जाने वाले देश इसे ज्यादा तवज्जो नहीं देते थे। लेकिन अब जब आतंकियों ने पांव पसारे तो अमेरिका के साथ यूरोप को भी निशाना बनाने से चूक नहीं रहे हैं। मैनचेस्टर में हुए धमाके के बाद एक बार फिर सवाल उठ रहा है कि क्या आतंकियों से निपटने में विकसित देश भी सक्षम नहीं हैं? पिछले 10 साल में यूरोप के अलग-अलग देशों में सात बड़ी आतंकी वारदातें हो चुकी हैं। मैनचेस्टर विस्फोट में मारे जाने वालों में बच्चों और किशोरों की संख्या ज्यादा है क्योंकि 24 साल की एरियाना ग्रांडे उनके बीच बहुत लोकप्रिय है। बताया जा रहा है कि वहां 60 बच्चे बिना अपने मां-बाप के आए थे। अभी उनमें से कुछ ने पास के एक होटल में शरण ली, जबकि कई लापता हैं। जाहिर है कि कई परिवारों की जिन्दगी तहस-नहस हो गई है। इस हमले की सीधी जिम्मेदारी भले ही किसी ने न ली हो पर हमले के बाद इस्लामिक स्टेट के समर्थकों का ऑनलाइन जश्न तो किसी से छिपा नहीं है। सोशल मीडिया पर इसे सीरिया और इराक में हुए हवाई हमलों का बदला भी बताया जा रहा है। मैनचेस्टर जैसी घटनाएं हर उस समाज पर हमला है जो उन्मुक्त होकर सोचता है, खुली आंखों से देखता है, अपने विवेक का इस्तेमाल करता है। यह उस आजाद ख्याली पर हमला है, जो कट्टरवाद और आतंकवाद का निषेध करती हैं। यह भयावह और सतर्क करने वाला है, क्योंकि यह उसी भावना और सोच का विस्तार है, जो कभी इस तरह के आतंकवाद, तो कभी धर्म-संस्कृति के स्वयंभू ठेकेदार के रूप में अलग तरह के कट्टरवाद के रूप में दिखाई देता है। इस संकट की बेला में हम मैनचेस्टर के साथ हैं।

Thursday, 25 May 2017

कोयले की आंच में पहली बार लिपटे सरकारी अफसर

कोयला आवंटन घोटाले में कुल दर्ज 28 मामलों में यह तीसरा मामला है जिसमें अदालत ने फैसला सुनाया है। हालांकि इससे पहले दो मामलों में कंपनियों के अधिकारियों को सजा सुनाई गई थी। मगर यह पहला मौका है जब किसी सरकारी बाबू पर गाज गिरी है। शुक्रवार को विशेष सीबीआई जज भारत पराशर ने पूर्व कोयला सचिव एचसी गुप्ता, तत्कालीन निदेशक केसी समारिया और एमएसपीएल के प्रबंध निदेशक पवन कुमार आहलूवालिया को दोषी ठहराया। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कुल 28 कोल आवंटन मामलों की जांच शुरू हुई है। इसमें सीबीआई सबसे पहले 2004 से 2010 के बीच के मामलों की जांच कर रही है। इसके बाद 1993 से 2004 तक के मामलों की जांच की जाएगी। सीबीआई की विशेष अदालत ने एचसी गुप्ता को दो साल की कैद की सजा सुना दी है। गुप्ता के अलावा अन्य आरोपियों को भी दो साल की सजा सुनाई गई है। सजा के अलावा दोषियों पर एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है। हालांकि कोर्ट की ओर से सभी दोषियों को बेल भी दे दी गई है। तीनों सरकारी अधिकारियों के अलावा एक निजी फर्म कमल स्पंज एंड पावर लिमिटेड पर एक करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया है और फर्म के प्रबंध निदेशक पवन कुमार आहलूवालिया को तीन साल की सजा तथा 30 लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई गई है। यह सजा विशेष सीबीआई अदालत से मिली है और बचाव पक्ष के पास ऊपरी अदालतों में अपील करने का विकल्प उपलब्ध है, मगर एक समय देश की राजनीति को हिलाकर रख देने वाले इस घोटाले में यह फैसला खासा अहमियत रखता है। इस मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम भी उछला था। आरोपियों का कहना था कि खदान आवंटन के वक्त कोयला मंत्री की जिम्मेदारी भी प्रधानमंत्री ही निभा रहे थे, इसलिए उन्हें भी आरोपियों की सूची में शामिल किया जाए। मगर सीबीआई अपनी खोजबीन से इसी नतीजे पर पहुंची कि संबंधित मामलों में कोयला सचिव ने प्रधानमंत्री को अंधेरे में रखा था। ऐसे घोटालों में आमतौर पर राजनीति इस कदर छा जाती है कि बाकी पहलू उपेक्षित रह जाते हैं। खासकर नौकरशाही और निजी व्यवसायी घोटालों का फायदा तो सबसे अधिक उठाते हैं, लेकिन सिस्टम के हाथ इन तक पहुंचें, इसके पहले ही ये काफी दूर जा चुके होते हैं। यह मामला इस लिहाज से अहम है कि न केवल नौकरशाही के सबसे ऊंचे पायदान पर बैठे अधिकारी बल्कि निजी व्यवसायी भी सजा के दायरे में लाए गए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस फैसले के बाद सरकारी संसाधनों से जुड़े सभी घोटालेबाजों में खौफ पैदा होगा।

-अनिल नरेन्द्र

रूहानी की जीत ः ईरान ने कट्टरपंथ को खारिज किया

ईरान में हसन रूहानी की राष्ट्रपति चुनाव में दोबारा जीत वाकई ही एक बड़ी उपलब्धि है। साफ है कि राष्ट्रपति के तौर पर अपने पहले कार्यकाल में रूहानी ने ईरान को उदारवाद की ओर ले जाने और पश्चिमी देशों से मेलजोल बढ़ाने के जो कदम उठाए थे, मतदाताओं ने उनका समर्थन किया है। हसन रूहानी की जीत लगभग तय सी थी। सारे सर्वेक्षण उन्हें आगे दिखा रहे थे। हालांकि यह इस मायने में ईरान की बड़ी घटना है कि रूहानी एक ही बार में करीब 57 फीसदी मत पाकर निर्वाचित हो गए। ईरान के संविधान के अनुसार यदि चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को 50 फीसदी से अधिक वोट नहीं मिलते तो अगले सप्ताह दूसरे दौर का मुकाबला होता। ईरान में 1985 से ही प्रत्येक राष्ट्रपति का दोबारा चुनाव होता है। खुमेनी खुद दोबारा चुनाव में ही दूसरे कार्यकाल के लिए निर्वाचित हुए थे। यह रूहानी का नीतियों की जनता के बीच व्याप्त व्यापक समर्थन का द्योतक तो है ही लोकतंत्र के मजबूत होने का भी संकेत देता है। चुनाव जीतने के बाद राष्ट्रपति हसन रूहानी ने कहा है कि उनका दोबारा चुना जाना बताता है कि मतदाताओं ने कट्टरपंथ को खारिज कर दिया है और वे बाहरी दुनिया से और अधिक सम्पर्क चाहते हैं। सरकारी टीवी पर प्रसारित अपने भाषण में कहाöईरान ने दुनिया के साथ बातचीत का रास्ता चुन लिया है। ये रास्ता हिंसा और कट्टरपंथ से बिल्कुल अलग है। अब चुनाव खत्म हो गए हैं, मुझे प्रत्येक ईरानी के सहयोग की जरूरत है, उनकी भी जो मेरा और मेरी नीतियों का विरोध करते हैं। अलबत्ता दूसरे कार्यकाल में रूहानी के सामने चुनौतियां भी ज्यादा बड़ी होंगी। एक तो यही कि प्रतिबंध हटा लिए जाने पर भी ईरान के आम लोगों पर उसका अनुकूल प्रभाव अभी तक देखा नहीं गया है। अर्थव्यवस्था बदहाल है और बेरोजगारी की समस्या भी विकट है। ऐसे ही मतदाताओं के बड़े हिस्से ने भले ही उदारवादी धर्मगुरु को राष्ट्रपति चुना हो पर सर्वोच्च धार्मिक नेता आयतुल्लाह अली खुमेनी इस बार रूहानी को शायद ही उतनी स्वतंत्रता दें, क्योंकि रूहानी से पराजित हुए इब्राहिम रईसी खुमेनी के नजदीकी माने जाते हैं। रूहानी को बड़ी चुनौती अमेरिका से भी मिलने वाली है, जहां अब राष्ट्रपति बराक ओबामा नहीं, बल्कि डोनाल्ड ट्रंप हैं। पिछले दिनों ट्रंप ने ईरान के साथ हुआ समझौता रद्द करने तक की बात कही थी। 68 वर्षीय रूहानी उदारवादी विचारों के वाहक हैं। कट्टरपंथी इस्लामिक कानूनों वाले ईरान में व्यक्तिगत आजादी को बढ़ाने के लिए काम करने के कारण जनता का रुझान उनकी ओर बढ़ा है। रूहानी दुनिया के दूसरे देशों के साथ ईरान के संबंध बेहतर करने के भी पक्षधर हैं। उन्होंने जब सत्ता संभाली ईरान आर्थिक प्रतिबंधों को झेल रहा था। रूहानी के पहले कार्यकाल में अमेरिका और ईरान के बीच जो परमाणु समझौता हुआ वह दुनिया में उसके अलग-थलग पड़ने के दौर पर राहत प्रदान करने वाला साबित हुआ। इसी समझौते के कारण अमेरिका और ईरान के बीच आपसी संबंध सामान्य हुए और इससे देश को हर स्तर पर लाभ हुआ। रूहानी ने बहुत हद तक ईरान की अर्थव्यवस्था को सुधारा है और यह दुनिया के देशों के साथ संबंध बेहतर करने के ईमानदार प्रयासों से ही संभव हुआ है। रूहानी भारत के दोस्त माने जाते हैं और चौबारा समझौता दोनों देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों का उदाहरण है। आतंकवाद के खिलाफ ईरान ने भी मोर्चा खोल दिया है। ईरान ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान इलाके में पांच मोर्टार भी दागे। पाकिस्तानी मीडिया ने इसकी पुष्टि की है। बता दें कि इसी महीने के पहले हफ्ते में ईरान ने पाकिस्तान को धमकी भरे शब्दों में अपने यहां के सभी आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करने की नसीहत दी थी। ईरान ने कहा था कि अगर पाकिस्तान ऐसा नहीं करता तो फिर ईरान की सेना पाकिस्तान में घुसकर आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर देगी। गौरतलब है कि अपने 10 सीमा गार्ड्स की आतंकियों द्वारा की गई हत्या के बाद से ईरान ने आतंक के खिलाफ हमलावर रुख अख्तियार कर लिया है और पाकिस्तान के आतंकी ठिकाने ईराने के निशाने पर हैं। चूंकि ईरान से प्रतिबंध हटने के बाद नई दिल्ली और तेहरान ने कई समझौते किए हैं, इसलिए उम्मीद यही है कि रूहानी के दूसरे कार्यकाल में दोनों देश उन समझौतों को आगे बढ़ाएंगे। हम राष्ट्रपति हसन रूहानी को उनकी शानदार सफलता पर बधाई देते हैं।

Wednesday, 24 May 2017

How and where is Jadhav? Could Sarabjeet have been saved?

Even though India may have got instant relief in the International Court in KulbhushanJadhav case but apprehensions are still alive about the actual status of Jadhav. Pakistan has not informed about his health and whereabouts so far. Instead of clearing the case Pakistan now says the International Court has not ordered for diplomatic access to Jadhav, nor it can decide it. It has asked to merely hold the hanging of Jadhav till the final court decision comes, says Sartaj Aziz, the advisor of external affairs to  Pak PM Nawaz Sharif. We want that Pak should submit solid proofs of whereabouts and actual status of Jadhav. If Pak is sincere with clean intentions, it should produce proof of life. Does the Government of India have any information about the whereabouts of Jadhav in Pakistan, spokesperson on External Affairs Gopal Bagle said that Pakistan government has till date given no information about KulbhushanJadhav nor told about his whereabouts. I was just thinking whether we could have saved Sarabjeettoo? Experts and lawyers say there were also various such flaws in Sarbjeet case, on which grounds Pak could have been exposed before the world. India had solid base to go to the International Court. Sarabjeet was given death sentence by the Supreme Court in the absence of his advocate. If the advocate was missing, another advocate could have been hired. The alone witness of Sarabjeet case turned away in the Pak Supreme Court. The witness had said that forcible statement was taken, fake evidences were submitted. Pak court should have started the hearing again on this ground. Alike Jadhav, Sarabjeet was also given death sentence on false accusations. Both were accused of espionage and involvement in the terrorist incidents. Alike Jadhav, demand for release of Sarabjeet was in the headlines. After the death sentence of Jadhav, Sarbjeet’s sister Dalbeer Kaur broke out. She said had the then UPA Government taken the case of Sarabjeet to the ICJ he would have been among us in India. Sarabjeet’s advocate Owais Sheikh, afraid of orthodox living in Sweden has said that the decision of the ICJ will open the way for release of Jadhav. Sheikh said that alike Jadhav, Sarabjeet also fell prey to the hostility and politics between the two nations. He was threatened to death on defending Sarabjeet and had to leave his country.

-          Anil Narendra

मुस्लिमों को कोसने वाले ट्रंप पहले ही दौरे पर सऊदी पहुंचे?

अपने चुनाव प्रचार और राष्ट्रपति बनने के बाद मुस्लिमों को कोसने वाले और पूरी दुनिया में निन्दा के पात्र बने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी पहली विदेश यात्रा में सऊदी अरब पहुंचे। ट्रंप का सऊदी दौरा दो मायनों में आलोचकों के निशाने पर आया। ट्रंप मुसलमानों को न सिर्फ सबसे ज्यादा कोसने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान 9/11 के आतंकी हमलों में सऊदी के कुछ नागरिकों का भी हाथ बता चुके हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद यह उनकी पहली विदेश यात्रा थी। डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा के लिए सऊदी अरब को चुनकर सबको चौंका दिया। ट्रंप अमेरिका के पहले राष्ट्रपति हैं जिन्होंने सऊदी अरब को अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए चुना। अब तक ज्यादातर राष्ट्रपति अपनी पहली विदेश यात्रा में कनाडा और मैक्सिको जाते रहे हैं। ट्रंप अपने चुनावी अभियान के दौरान इस्लाम पर हमलावर रहे थे। सऊदी अरब एक इस्लामिक देश है। ऐसे में आखिर ट्रंप ने सऊदी अरब को तरजीह क्यों दी? फरवरी 2016 में ट्रंप ने कहा था कि 9/11 के हमले में सऊदी के लोग भी शामिल थे। राष्ट्रपति बनने से पहले ट्रंप ने कहा थाöवर्ल्ड ट्रेड सेंटर को किसने ध्वस्त किया था? वे इराकी नहीं थे। इसके पीछे सऊदी था। हमें दस्तावेजों को खोलना होगा। अभियान के दौरान ट्रंप ने कहा था कि अमेरिका एक राजा के बचाव में अपना भारी आर्थिक नुकसान कर रहा है। अब वही ट्रंप राष्ट्रपति बनने के बाद सऊदी में राजसी स्वागत कबूल कर रहे हैं। आखिर ऐसा क्या हो गया कि जो दुनियाभर के मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र देश है, वह उन्हें रास आ रहा है। यही नहीं, ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद सात मुस्लिम बहुल देशों के नागरिकों के अमेरिका आने पर पाबंदी लगा दी थी। अचानक से ट्रंप का समीकरण क्यों बदल गया? सऊदी के विदेश मंत्री अब्देल अल जुबैर ने द वॉल स्ट्रीट जर्नल से कहा थाöचुनावी कैंपेन के दौरान कई बातें कहीं जाती हैं और मैं इस बारे में राष्ट्रपति ट्रंप को लेकर कुछ भी नहीं सोचता हूं। जुबैर ने ट्रंप की पहली विदेश यात्रा सऊदी चुनने पर कहा कि वह इस्लामिक दुनिया से संबंध मजबूत करने की इच्छा रखते हैं और वह एक अच्छी साझेदारी चाहते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने रियाद में 40 से ज्यादा मुस्लिम देशों के नेताओं को संबोधित करते हुए सऊदी अरब की मेजबानी की दिल खोलकर तारीफ की। लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने भाषण का इस्तेमाल अरब और मुस्लिम देशों को सख्त संदेश देने के लिए भी किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि या तो चरमपंथ को बढ़ावा देने वाली विचारधारा से अब निपट लो या फिर आने वाली कई पीढ़ियों तक इसके साथ संघर्ष करते रहो। ट्रंप आमतौर पर तीखी भाषा के लिए जाने जाते हैं लेकिन इस बार वो अपने तरीके के विपरीत बेहद संयमित रहे। ट्रंप ने सऊदी अरब के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी ईरान की बार-बार आलोचना की और इससे खाड़ी के अरब देशों के नेता जरूर खुश हुए होंगे। अपने पूर्ववर्ती बराक ओबामा की तरह मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने भाषण में मानवाधिकारों या प्रजातंत्र का कोई उल्लेख नहीं किया। हालांकि उन्होंने महिलाओं के दमन की आलोचना जरूर की। खाड़ी क्षेत्र में सोशल मीडिया पर ट्रंप के भाषण को लेकर कई तरह की तीखी प्रतिक्रियाएं भी आई हैं। कुछ लोगों ने ध्यान दिलाया कि सऊदी अरब विश्व में आतंक फैलाने का सबसे बड़ा दोषी है और आप एक तरफ इस्लामिक कट्टरपंथ की बात करते हैं और दूसरी ओर कट्टरपंथ फैलाने वाले सऊदी अरब की गोद में जाकर बैठ जाते हैं? ट्रंप ने यह भी साबित कर दिया कि वह अमेरिकी हथियार लॉबी को प्राथमिकता देते हैं। रियाद पहुंचने के पहले दिन ही अमेरिका और सऊदी अरब के बीच कुल 380 अरब डॉलर के समझौते हुए। इस दौरान सऊदी अरब किंग सलमान ने ट्रंप को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी सम्मानित किया।

चुनाव आयोग ः ईवीएम पर आर-पार की लड़ाई

इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर पिछले कुछ समय से भयंकर विवाद छिड़ा हुआ है। कई विपक्षी दलों ने इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाया है। कुछ ने तो चुनाव में अपनी हार का ठीकरा इन ईवीएम पर फोड़ दिया है। शनिवार को चुनाव आयोग ने आक्रामक तेवर अपनाते हुए इस मुद्दे पर ओपन चैलेंज का दांव खेलते हुए आर-पार की जंग छेड़ दी। चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को चुनौती दी है कि वे तीन जून से साबित कर दिखाएं कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है या इसके जरिये किसी खास प्रत्याशी या पार्टी के पक्ष में चुनाव नतीजे मोड़े जा सकते हैं। यह खुली चुनौती पांच दिन तक रहेगी। ईसी ने सख्त अंदाज में कहा कि ईवीएम को लेकर जिस तरह तथ्यहीन खबरें सामने आ रही हैं उससे आयोग दुखी है। हालांकि आरोप लगाने वालों के खिलाफ क्या आयोग केस करेगा या कोई रिपोर्ट देगा, इस पर अधिकारियों ने चुप्पी साधे रखी। ईसी ने फिर कहा कि अब आने वाले चुनावों में वीवीपीटी का इस्तेमाल होगा और सभी वोटर्स को वोट डालने के बाद पुष्टि के लिए स्लिप मिलेगी। ईसी ने यह भी कहा कि ईवीएम के अलावा स्लिप के एक हिस्से की गिनती होगी। लेकिन यह कुल वोट का कितना हिस्सा होगी, अभी तय होना बाकी है। इससे पहले चुनाव आयोग ने ईवीएम को लेकर सभी दलों की दलील सुनने के लिए 12 मई को सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। इसमें आयोग ने ईवीएम से जुड़े तमाम सवालों और आशंकाओं को सुना था। सभी राजनीतिक दल तीन जून से ईवीएम हैकिंग की चुनौती में शामिल हो सकेंगे। सभी दल अपने अधिकतम तीन प्रतिनिधियों को (इनमें कोई भी एक्सपर्ट हो सकता है) इसमें भाग लेने के लिए भेज सकता है। बेशक कोई भी एक्सपर्ट हो सकता है पर उसका भारतीय होना जरूरी है। ईवीएम चैलेंज के लिए चार घंटे का समय मिलेगा। लेकिन इस दौरान मदर बोर्ड से छेड़छाड़ की इजाजत नहीं होगी। चैलेंज दो चरणों में होगा। पहले चरण में राजनीतिक दलों को छूट होगी कि वे पांच राज्यों में हुए चुनावों में किन्हीं चार पोलिंग स्टेशनों से ईवीएम मशीन मंगवा कर साबित करें कि इसमें गड़बड़ी हुई है। दूसरे चरण में आयोग की सुरक्षा में रखे ईवीएम को हैक या टैम्पर करने की भी चुनौती होगी। चैलेंज से पहले मशीनें खोलकर सभी दलों के प्रतिनिधियों को दी जाएंगी। लेकिन चैलेंज के बाद ऐसा करने की मनाही होगी। चैलेंज के दौरान सभी दलों के एक्सपर्ट ईवीएम पर लगे कई बटनों को एक साथ दबाकर, किसी वायरलेस या ब्लूटूथ डिवाइस का एक्सटर्नल डिवाइस का इस्तेमाल कर सकते हैं। हम चुनाव आयोग के चैलेंज का स्वागत करते हैं। अब उन रानीतिक दलों को साबित करना चाहिए कि ईवीएम टैम्पर, हैक नहीं है। आए दिन आरोप लगाने की बजाय आर-पार की लड़ाई लड़ें।

-अनिल नरेन्द्र

चुनाव आयोग ः ईवीएम पर आर-पार की लड़ाई

इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर पिछले कुछ समय से भयंकर विवाद छिड़ा हुआ है। कई विपक्षी दलों ने इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाया है। कुछ ने तो चुनाव में अपनी हार का ठीकरा इन ईवीएम पर फोड़ दिया है। शनिवार को चुनाव आयोग ने आक्रामक तेवर अपनाते हुए इस मुद्दे पर ओपन चैलेंज का दांव खेलते हुए आर-पार की जंग छेड़ दी। चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को चुनौती दी है कि वे तीन जून से साबित कर दिखाएं कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है या इसके जरिये किसी खास प्रत्याशी या पार्टी के पक्ष में चुनाव नतीजे मोड़े जा सकते हैं। यह खुली चुनौती पांच दिन तक रहेगी। ईसी ने सख्त अंदाज में कहा कि ईवीएम को लेकर जिस तरह तथ्यहीन खबरें सामने आ रही हैं उससे आयोग दुखी है। हालांकि आरोप लगाने वालों के खिलाफ क्या आयोग केस करेगा या कोई रिपोर्ट देगा, इस पर अधिकारियों ने चुप्पी साधे रखी। ईसी ने फिर कहा कि अब आने वाले चुनावों में वीवीपीटी का इस्तेमाल होगा और सभी वोटर्स को वोट डालने के बाद पुष्टि के लिए स्लिप मिलेगी। ईसी ने यह भी कहा कि ईवीएम के अलावा स्लिप के एक हिस्से की गिनती होगी। लेकिन यह कुल वोट का कितना हिस्सा होगी, अभी तय होना बाकी है। इससे पहले चुनाव आयोग ने ईवीएम को लेकर सभी दलों की दलील सुनने के लिए 12 मई को सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। इसमें आयोग ने ईवीएम से जुड़े तमाम सवालों और आशंकाओं को सुना था। सभी राजनीतिक दल तीन जून से ईवीएम हैकिंग की चुनौती में शामिल हो सकेंगे। सभी दल अपने अधिकतम तीन प्रतिनिधियों को (इनमें कोई भी एक्सपर्ट हो सकता है) इसमें भाग लेने के लिए भेज सकता है। बेशक कोई भी एक्सपर्ट हो सकता है पर उसका भारतीय होना जरूरी है। ईवीएम चैलेंज के लिए चार घंटे का समय मिलेगा। लेकिन इस दौरान मदर बोर्ड से छेड़छाड़ की इजाजत नहीं होगी। चैलेंज दो चरणों में होगा। पहले चरण में राजनीतिक दलों को छूट होगी कि वे पांच राज्यों में हुए चुनावों में किन्हीं चार पोलिंग स्टेशनों से ईवीएम मशीन मंगवा कर साबित करें कि इसमें गड़बड़ी हुई है। दूसरे चरण में आयोग की सुरक्षा में रखे ईवीएम को हैक या टैम्पर करने की भी चुनौती होगी। चैलेंज से पहले मशीनें खोलकर सभी दलों के प्रतिनिधियों को दी जाएंगी। लेकिन चैलेंज के बाद ऐसा करने की मनाही होगी। चैलेंज के दौरान सभी दलों के एक्सपर्ट ईवीएम पर लगे कई बटनों को एक साथ दबाकर, किसी वायरलेस या ब्लूटूथ डिवाइस का एक्सटर्नल डिवाइस का इस्तेमाल कर सकते हैं। हम चुनाव आयोग के चैलेंज का स्वागत करते हैं। अब उन रानीतिक दलों को साबित करना चाहिए कि ईवीएम टैम्पर, हैक नहीं है। आए दिन आरोप लगाने की बजाय आर-पार की लड़ाई लड़ें।

-अनिल नरेन्द्र

चुनाव आयोग ः ईवीएम पर आर-पार की लड़ाई

इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर पिछले कुछ समय से भयंकर विवाद छिड़ा हुआ है। कई विपक्षी दलों ने इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाया है। कुछ ने तो चुनाव में अपनी हार का ठीकरा इन ईवीएम पर फोड़ दिया है। शनिवार को चुनाव आयोग ने आक्रामक तेवर अपनाते हुए इस मुद्दे पर ओपन चैलेंज का दांव खेलते हुए आर-पार की जंग छेड़ दी। चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को चुनौती दी है कि वे तीन जून से साबित कर दिखाएं कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है या इसके जरिये किसी खास प्रत्याशी या पार्टी के पक्ष में चुनाव नतीजे मोड़े जा सकते हैं। यह खुली चुनौती पांच दिन तक रहेगी। ईसी ने सख्त अंदाज में कहा कि ईवीएम को लेकर जिस तरह तथ्यहीन खबरें सामने आ रही हैं उससे आयोग दुखी है। हालांकि आरोप लगाने वालों के खिलाफ क्या आयोग केस करेगा या कोई रिपोर्ट देगा, इस पर अधिकारियों ने चुप्पी साधे रखी। ईसी ने फिर कहा कि अब आने वाले चुनावों में वीवीपीटी का इस्तेमाल होगा और सभी वोटर्स को वोट डालने के बाद पुष्टि के लिए स्लिप मिलेगी। ईसी ने यह भी कहा कि ईवीएम के अलावा स्लिप के एक हिस्से की गिनती होगी। लेकिन यह कुल वोट का कितना हिस्सा होगी, अभी तय होना बाकी है। इससे पहले चुनाव आयोग ने ईवीएम को लेकर सभी दलों की दलील सुनने के लिए 12 मई को सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। इसमें आयोग ने ईवीएम से जुड़े तमाम सवालों और आशंकाओं को सुना था। सभी राजनीतिक दल तीन जून से ईवीएम हैकिंग की चुनौती में शामिल हो सकेंगे। सभी दल अपने अधिकतम तीन प्रतिनिधियों को (इनमें कोई भी एक्सपर्ट हो सकता है) इसमें भाग लेने के लिए भेज सकता है। बेशक कोई भी एक्सपर्ट हो सकता है पर उसका भारतीय होना जरूरी है। ईवीएम चैलेंज के लिए चार घंटे का समय मिलेगा। लेकिन इस दौरान मदर बोर्ड से छेड़छाड़ की इजाजत नहीं होगी। चैलेंज दो चरणों में होगा। पहले चरण में राजनीतिक दलों को छूट होगी कि वे पांच राज्यों में हुए चुनावों में किन्हीं चार पोलिंग स्टेशनों से ईवीएम मशीन मंगवा कर साबित करें कि इसमें गड़बड़ी हुई है। दूसरे चरण में आयोग की सुरक्षा में रखे ईवीएम को हैक या टैम्पर करने की भी चुनौती होगी। चैलेंज से पहले मशीनें खोलकर सभी दलों के प्रतिनिधियों को दी जाएंगी। लेकिन चैलेंज के बाद ऐसा करने की मनाही होगी। चैलेंज के दौरान सभी दलों के एक्सपर्ट ईवीएम पर लगे कई बटनों को एक साथ दबाकर, किसी वायरलेस या ब्लूटूथ डिवाइस का एक्सटर्नल डिवाइस का इस्तेमाल कर सकते हैं। हम चुनाव आयोग के चैलेंज का स्वागत करते हैं। अब उन रानीतिक दलों को साबित करना चाहिए कि ईवीएम टैम्पर, हैक नहीं है। आए दिन आरोप लगाने की बजाय आर-पार की लड़ाई लड़ें।

-अनिल नरेन्द्र

चुनाव आयोग ः ईवीएम पर आर-पार की लड़ाई

इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर पिछले कुछ समय से भयंकर विवाद छिड़ा हुआ है। कई विपक्षी दलों ने इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाया है। कुछ ने तो चुनाव में अपनी हार का ठीकरा इन ईवीएम पर फोड़ दिया है। शनिवार को चुनाव आयोग ने आक्रामक तेवर अपनाते हुए इस मुद्दे पर ओपन चैलेंज का दांव खेलते हुए आर-पार की जंग छेड़ दी। चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को चुनौती दी है कि वे तीन जून से साबित कर दिखाएं कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है या इसके जरिये किसी खास प्रत्याशी या पार्टी के पक्ष में चुनाव नतीजे मोड़े जा सकते हैं। यह खुली चुनौती पांच दिन तक रहेगी। ईसी ने सख्त अंदाज में कहा कि ईवीएम को लेकर जिस तरह तथ्यहीन खबरें सामने आ रही हैं उससे आयोग दुखी है। हालांकि आरोप लगाने वालों के खिलाफ क्या आयोग केस करेगा या कोई रिपोर्ट देगा, इस पर अधिकारियों ने चुप्पी साधे रखी। ईसी ने फिर कहा कि अब आने वाले चुनावों में वीवीपीटी का इस्तेमाल होगा और सभी वोटर्स को वोट डालने के बाद पुष्टि के लिए स्लिप मिलेगी। ईसी ने यह भी कहा कि ईवीएम के अलावा स्लिप के एक हिस्से की गिनती होगी। लेकिन यह कुल वोट का कितना हिस्सा होगी, अभी तय होना बाकी है। इससे पहले चुनाव आयोग ने ईवीएम को लेकर सभी दलों की दलील सुनने के लिए 12 मई को सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। इसमें आयोग ने ईवीएम से जुड़े तमाम सवालों और आशंकाओं को सुना था। सभी राजनीतिक दल तीन जून से ईवीएम हैकिंग की चुनौती में शामिल हो सकेंगे। सभी दल अपने अधिकतम तीन प्रतिनिधियों को (इनमें कोई भी एक्सपर्ट हो सकता है) इसमें भाग लेने के लिए भेज सकता है। बेशक कोई भी एक्सपर्ट हो सकता है पर उसका भारतीय होना जरूरी है। ईवीएम चैलेंज के लिए चार घंटे का समय मिलेगा। लेकिन इस दौरान मदर बोर्ड से छेड़छाड़ की इजाजत नहीं होगी। चैलेंज दो चरणों में होगा। पहले चरण में राजनीतिक दलों को छूट होगी कि वे पांच राज्यों में हुए चुनावों में किन्हीं चार पोलिंग स्टेशनों से ईवीएम मशीन मंगवा कर साबित करें कि इसमें गड़बड़ी हुई है। दूसरे चरण में आयोग की सुरक्षा में रखे ईवीएम को हैक या टैम्पर करने की भी चुनौती होगी। चैलेंज से पहले मशीनें खोलकर सभी दलों के प्रतिनिधियों को दी जाएंगी। लेकिन चैलेंज के बाद ऐसा करने की मनाही होगी। चैलेंज के दौरान सभी दलों के एक्सपर्ट ईवीएम पर लगे कई बटनों को एक साथ दबाकर, किसी वायरलेस या ब्लूटूथ डिवाइस का एक्सटर्नल डिवाइस का इस्तेमाल कर सकते हैं। हम चुनाव आयोग के चैलेंज का स्वागत करते हैं। अब उन रानीतिक दलों को साबित करना चाहिए कि ईवीएम टैम्पर, हैक नहीं है। आए दिन आरोप लगाने की बजाय आर-पार की लड़ाई लड़ें।

-अनिल नरेन्द्र

मुस्लिमों को कोसने वाले ट्रंप पहले ही दौरे पर सऊदी पहुंचे?

अपने चुनाव प्रचार और राष्ट्रपति बनने के बाद मुस्लिमों को कोसने वाले और पूरी दुनिया में निन्दा के पात्र बने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी पहली विदेश यात्रा में सऊदी अरब पहुंचे। ट्रंप का सऊदी दौरा दो मायनों में आलोचकों के निशाने पर आया। ट्रंप मुसलमानों को न सिर्फ सबसे ज्यादा कोसने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान 9/11 के आतंकी हमलों में सऊदी के कुछ नागरिकों का भी हाथ बता चुके हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद यह उनकी पहली विदेश यात्रा थी। डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा के लिए सऊदी अरब को चुनकर सबको चौंका दिया। ट्रंप अमेरिका के पहले राष्ट्रपति हैं जिन्होंने सऊदी अरब को अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए चुना। अब तक ज्यादातर राष्ट्रपति अपनी पहली विदेश यात्रा में कनाडा और मैक्सिको जाते रहे हैं। ट्रंप अपने चुनावी अभियान के दौरान इस्लाम पर हमलावर रहे थे। सऊदी अरब एक इस्लामिक देश है। ऐसे में आखिर ट्रंप ने सऊदी अरब को तरजीह क्यों दी? फरवरी 2016 में ट्रंप ने कहा था कि 9/11 के हमले में सऊदी के लोग भी शामिल थे। राष्ट्रपति बनने से पहले ट्रंप ने कहा थाöवर्ल्ड ट्रेड सेंटर को किसने ध्वस्त किया था? वे इराकी नहीं थे। इसके पीछे सऊदी था। हमें दस्तावेजों को खोलना होगा। अभियान के दौरान ट्रंप ने कहा था कि अमेरिका एक राजा के बचाव में अपना भारी आर्थिक नुकसान कर रहा है। अब वही ट्रंप राष्ट्रपति बनने के बाद सऊदी में राजसी स्वागत कबूल कर रहे हैं। आखिर ऐसा क्या हो गया कि जो दुनियाभर के मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र देश है, वह उन्हें रास आ रहा है। यही नहीं, ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद सात मुस्लिम बहुल देशों के नागरिकों के अमेरिका आने पर पाबंदी लगा दी थी। अचानक से ट्रंप का समीकरण क्यों बदल गया? सऊदी के विदेश मंत्री अब्देल अल जुबैर ने द वॉल स्ट्रीट जर्नल से कहा थाöचुनावी कैंपेन के दौरान कई बातें कहीं जाती हैं और मैं इस बारे में राष्ट्रपति ट्रंप को लेकर कुछ भी नहीं सोचता हूं। जुबैर ने ट्रंप की पहली विदेश यात्रा सऊदी चुनने पर कहा कि वह इस्लामिक दुनिया से संबंध मजबूत करने की इच्छा रखते हैं और वह एक अच्छी साझेदारी चाहते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने रियाद में 40 से ज्यादा मुस्लिम देशों के नेताओं को संबोधित करते हुए सऊदी अरब की मेजबानी की दिल खोलकर तारीफ की। लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने भाषण का इस्तेमाल अरब और मुस्लिम देशों को सख्त संदेश देने के लिए भी किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि या तो चरमपंथ को बढ़ावा देने वाली विचारधारा से अब निपट लो या फिर आने वाली कई पीढ़ियों तक इसके साथ संघर्ष करते रहो। ट्रंप आमतौर पर तीखी भाषा के लिए जाने जाते हैं लेकिन इस बार वो अपने तरीके के विपरीत बेहद संयमित रहे। ट्रंप ने सऊदी अरब के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी ईरान की बार-बार आलोचना की और इससे खाड़ी के अरब देशों के नेता जरूर खुश हुए होंगे। अपने पूर्ववर्ती बराक ओबामा की तरह मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने भाषण में मानवाधिकारों या प्रजातंत्र का कोई उल्लेख नहीं किया। हालांकि उन्होंने महिलाओं के दमन की आलोचना जरूर की। खाड़ी क्षेत्र में सोशल मीडिया पर ट्रंप के भाषण को लेकर कई तरह की तीखी प्रतिक्रियाएं भी आई हैं। कुछ लोगों ने ध्यान दिलाया कि सऊदी अरब विश्व में आतंक फैलाने का सबसे बड़ा दोषी है और आप एक तरफ इस्लामिक कट्टरपंथ की बात करते हैं और दूसरी ओर कट्टरपंथ फैलाने वाले सऊदी अरब की गोद में जाकर बैठ जाते हैं? ट्रंप ने यह भी साबित कर दिया कि वह अमेरिकी हथियार लॉबी को प्राथमिकता देते हैं। रियाद पहुंचने के पहले दिन ही अमेरिका और सऊदी अरब के बीच कुल 380 अरब डॉलर के समझौते हुए। इस दौरान सऊदी अरब किंग सलमान ने ट्रंप को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी सम्मानित किया।

मुस्लिमों को कोसने वाले ट्रंप पहले ही दौरे पर सऊदी पहुंचे?

अपने चुनाव प्रचार और राष्ट्रपति बनने के बाद मुस्लिमों को कोसने वाले और पूरी दुनिया में निन्दा के पात्र बने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी पहली विदेश यात्रा में सऊदी अरब पहुंचे। ट्रंप का सऊदी दौरा दो मायनों में आलोचकों के निशाने पर आया। ट्रंप मुसलमानों को न सिर्फ सबसे ज्यादा कोसने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान 9/11 के आतंकी हमलों में सऊदी के कुछ नागरिकों का भी हाथ बता चुके हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद यह उनकी पहली विदेश यात्रा थी। डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा के लिए सऊदी अरब को चुनकर सबको चौंका दिया। ट्रंप अमेरिका के पहले राष्ट्रपति हैं जिन्होंने सऊदी अरब को अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए चुना। अब तक ज्यादातर राष्ट्रपति अपनी पहली विदेश यात्रा में कनाडा और मैक्सिको जाते रहे हैं। ट्रंप अपने चुनावी अभियान के दौरान इस्लाम पर हमलावर रहे थे। सऊदी अरब एक इस्लामिक देश है। ऐसे में आखिर ट्रंप ने सऊदी अरब को तरजीह क्यों दी? फरवरी 2016 में ट्रंप ने कहा था कि 9/11 के हमले में सऊदी के लोग भी शामिल थे। राष्ट्रपति बनने से पहले ट्रंप ने कहा थाöवर्ल्ड ट्रेड सेंटर को किसने ध्वस्त किया था? वे इराकी नहीं थे। इसके पीछे सऊदी था। हमें दस्तावेजों को खोलना होगा। अभियान के दौरान ट्रंप ने कहा था कि अमेरिका एक राजा के बचाव में अपना भारी आर्थिक नुकसान कर रहा है। अब वही ट्रंप राष्ट्रपति बनने के बाद सऊदी में राजसी स्वागत कबूल कर रहे हैं। आखिर ऐसा क्या हो गया कि जो दुनियाभर के मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र देश है, वह उन्हें रास आ रहा है। यही नहीं, ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद सात मुस्लिम बहुल देशों के नागरिकों के अमेरिका आने पर पाबंदी लगा दी थी। अचानक से ट्रंप का समीकरण क्यों बदल गया? सऊदी के विदेश मंत्री अब्देल अल जुबैर ने द वॉल स्ट्रीट जर्नल से कहा थाöचुनावी कैंपेन के दौरान कई बातें कहीं जाती हैं और मैं इस बारे में राष्ट्रपति ट्रंप को लेकर कुछ भी नहीं सोचता हूं। जुबैर ने ट्रंप की पहली विदेश यात्रा सऊदी चुनने पर कहा कि वह इस्लामिक दुनिया से संबंध मजबूत करने की इच्छा रखते हैं और वह एक अच्छी साझेदारी चाहते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने रियाद में 40 से ज्यादा मुस्लिम देशों के नेताओं को संबोधित करते हुए सऊदी अरब की मेजबानी की दिल खोलकर तारीफ की। लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने भाषण का इस्तेमाल अरब और मुस्लिम देशों को सख्त संदेश देने के लिए भी किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि या तो चरमपंथ को बढ़ावा देने वाली विचारधारा से अब निपट लो या फिर आने वाली कई पीढ़ियों तक इसके साथ संघर्ष करते रहो। ट्रंप आमतौर पर तीखी भाषा के लिए जाने जाते हैं लेकिन इस बार वो अपने तरीके के विपरीत बेहद संयमित रहे। ट्रंप ने सऊदी अरब के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी ईरान की बार-बार आलोचना की और इससे खाड़ी के अरब देशों के नेता जरूर खुश हुए होंगे। अपने पूर्ववर्ती बराक ओबामा की तरह मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने भाषण में मानवाधिकारों या प्रजातंत्र का कोई उल्लेख नहीं किया। हालांकि उन्होंने महिलाओं के दमन की आलोचना जरूर की। खाड़ी क्षेत्र में सोशल मीडिया पर ट्रंप के भाषण को लेकर कई तरह की तीखी प्रतिक्रियाएं भी आई हैं। कुछ लोगों ने ध्यान दिलाया कि सऊदी अरब विश्व में आतंक फैलाने का सबसे बड़ा दोषी है और आप एक तरफ इस्लामिक कट्टरपंथ की बात करते हैं और दूसरी ओर कट्टरपंथ फैलाने वाले सऊदी अरब की गोद में जाकर बैठ जाते हैं? ट्रंप ने यह भी साबित कर दिया कि वह अमेरिकी हथियार लॉबी को प्राथमिकता देते हैं। रियाद पहुंचने के पहले दिन ही अमेरिका और सऊदी अरब के बीच कुल 380 अरब डॉलर के समझौते हुए। इस दौरान सऊदी अरब किंग सलमान ने ट्रंप को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी सम्मानित किया।

मुस्लिमों को कोसने वाले ट्रंप पहले ही दौरे पर सऊदी पहुंचे?

अपने चुनाव प्रचार और राष्ट्रपति बनने के बाद मुस्लिमों को कोसने वाले और पूरी दुनिया में निन्दा के पात्र बने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी पहली विदेश यात्रा में सऊदी अरब पहुंचे। ट्रंप का सऊदी दौरा दो मायनों में आलोचकों के निशाने पर आया। ट्रंप मुसलमानों को न सिर्फ सबसे ज्यादा कोसने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान 9/11 के आतंकी हमलों में सऊदी के कुछ नागरिकों का भी हाथ बता चुके हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद यह उनकी पहली विदेश यात्रा थी। डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा के लिए सऊदी अरब को चुनकर सबको चौंका दिया। ट्रंप अमेरिका के पहले राष्ट्रपति हैं जिन्होंने सऊदी अरब को अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए चुना। अब तक ज्यादातर राष्ट्रपति अपनी पहली विदेश यात्रा में कनाडा और मैक्सिको जाते रहे हैं। ट्रंप अपने चुनावी अभियान के दौरान इस्लाम पर हमलावर रहे थे। सऊदी अरब एक इस्लामिक देश है। ऐसे में आखिर ट्रंप ने सऊदी अरब को तरजीह क्यों दी? फरवरी 2016 में ट्रंप ने कहा था कि 9/11 के हमले में सऊदी के लोग भी शामिल थे। राष्ट्रपति बनने से पहले ट्रंप ने कहा थाöवर्ल्ड ट्रेड सेंटर को किसने ध्वस्त किया था? वे इराकी नहीं थे। इसके पीछे सऊदी था। हमें दस्तावेजों को खोलना होगा। अभियान के दौरान ट्रंप ने कहा था कि अमेरिका एक राजा के बचाव में अपना भारी आर्थिक नुकसान कर रहा है। अब वही ट्रंप राष्ट्रपति बनने के बाद सऊदी में राजसी स्वागत कबूल कर रहे हैं। आखिर ऐसा क्या हो गया कि जो दुनियाभर के मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र देश है, वह उन्हें रास आ रहा है। यही नहीं, ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद सात मुस्लिम बहुल देशों के नागरिकों के अमेरिका आने पर पाबंदी लगा दी थी। अचानक से ट्रंप का समीकरण क्यों बदल गया? सऊदी के विदेश मंत्री अब्देल अल जुबैर ने द वॉल स्ट्रीट जर्नल से कहा थाöचुनावी कैंपेन के दौरान कई बातें कहीं जाती हैं और मैं इस बारे में राष्ट्रपति ट्रंप को लेकर कुछ भी नहीं सोचता हूं। जुबैर ने ट्रंप की पहली विदेश यात्रा सऊदी चुनने पर कहा कि वह इस्लामिक दुनिया से संबंध मजबूत करने की इच्छा रखते हैं और वह एक अच्छी साझेदारी चाहते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने रियाद में 40 से ज्यादा मुस्लिम देशों के नेताओं को संबोधित करते हुए सऊदी अरब की मेजबानी की दिल खोलकर तारीफ की। लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने भाषण का इस्तेमाल अरब और मुस्लिम देशों को सख्त संदेश देने के लिए भी किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि या तो चरमपंथ को बढ़ावा देने वाली विचारधारा से अब निपट लो या फिर आने वाली कई पीढ़ियों तक इसके साथ संघर्ष करते रहो। ट्रंप आमतौर पर तीखी भाषा के लिए जाने जाते हैं लेकिन इस बार वो अपने तरीके के विपरीत बेहद संयमित रहे। ट्रंप ने सऊदी अरब के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी ईरान की बार-बार आलोचना की और इससे खाड़ी के अरब देशों के नेता जरूर खुश हुए होंगे। अपने पूर्ववर्ती बराक ओबामा की तरह मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने भाषण में मानवाधिकारों या प्रजातंत्र का कोई उल्लेख नहीं किया। हालांकि उन्होंने महिलाओं के दमन की आलोचना जरूर की। खाड़ी क्षेत्र में सोशल मीडिया पर ट्रंप के भाषण को लेकर कई तरह की तीखी प्रतिक्रियाएं भी आई हैं। कुछ लोगों ने ध्यान दिलाया कि सऊदी अरब विश्व में आतंक फैलाने का सबसे बड़ा दोषी है और आप एक तरफ इस्लामिक कट्टरपंथ की बात करते हैं और दूसरी ओर कट्टरपंथ फैलाने वाले सऊदी अरब की गोद में जाकर बैठ जाते हैं? ट्रंप ने यह भी साबित कर दिया कि वह अमेरिकी हथियार लॉबी को प्राथमिकता देते हैं। रियाद पहुंचने के पहले दिन ही अमेरिका और सऊदी अरब के बीच कुल 380 अरब डॉलर के समझौते हुए। इस दौरान सऊदी अरब किंग सलमान ने ट्रंप को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी सम्मानित किया।

मुस्लिमों को कोसने वाले ट्रंप पहले ही दौरे पर सऊदी पहुंचे?

अपने चुनाव प्रचार और राष्ट्रपति बनने के बाद मुस्लिमों को कोसने वाले और पूरी दुनिया में निन्दा के पात्र बने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी पहली विदेश यात्रा में सऊदी अरब पहुंचे। ट्रंप का सऊदी दौरा दो मायनों में आलोचकों के निशाने पर आया। ट्रंप मुसलमानों को न सिर्फ सबसे ज्यादा कोसने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान 9/11 के आतंकी हमलों में सऊदी के कुछ नागरिकों का भी हाथ बता चुके हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद यह उनकी पहली विदेश यात्रा थी। डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा के लिए सऊदी अरब को चुनकर सबको चौंका दिया। ट्रंप अमेरिका के पहले राष्ट्रपति हैं जिन्होंने सऊदी अरब को अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए चुना। अब तक ज्यादातर राष्ट्रपति अपनी पहली विदेश यात्रा में कनाडा और मैक्सिको जाते रहे हैं। ट्रंप अपने चुनावी अभियान के दौरान इस्लाम पर हमलावर रहे थे। सऊदी अरब एक इस्लामिक देश है। ऐसे में आखिर ट्रंप ने सऊदी अरब को तरजीह क्यों दी? फरवरी 2016 में ट्रंप ने कहा था कि 9/11 के हमले में सऊदी के लोग भी शामिल थे। राष्ट्रपति बनने से पहले ट्रंप ने कहा थाöवर्ल्ड ट्रेड सेंटर को किसने ध्वस्त किया था? वे इराकी नहीं थे। इसके पीछे सऊदी था। हमें दस्तावेजों को खोलना होगा। अभियान के दौरान ट्रंप ने कहा था कि अमेरिका एक राजा के बचाव में अपना भारी आर्थिक नुकसान कर रहा है। अब वही ट्रंप राष्ट्रपति बनने के बाद सऊदी में राजसी स्वागत कबूल कर रहे हैं। आखिर ऐसा क्या हो गया कि जो दुनियाभर के मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र देश है, वह उन्हें रास आ रहा है। यही नहीं, ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद सात मुस्लिम बहुल देशों के नागरिकों के अमेरिका आने पर पाबंदी लगा दी थी। अचानक से ट्रंप का समीकरण क्यों बदल गया? सऊदी के विदेश मंत्री अब्देल अल जुबैर ने द वॉल स्ट्रीट जर्नल से कहा थाöचुनावी कैंपेन के दौरान कई बातें कहीं जाती हैं और मैं इस बारे में राष्ट्रपति ट्रंप को लेकर कुछ भी नहीं सोचता हूं। जुबैर ने ट्रंप की पहली विदेश यात्रा सऊदी चुनने पर कहा कि वह इस्लामिक दुनिया से संबंध मजबूत करने की इच्छा रखते हैं और वह एक अच्छी साझेदारी चाहते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने रियाद में 40 से ज्यादा मुस्लिम देशों के नेताओं को संबोधित करते हुए सऊदी अरब की मेजबानी की दिल खोलकर तारीफ की। लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने भाषण का इस्तेमाल अरब और मुस्लिम देशों को सख्त संदेश देने के लिए भी किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि या तो चरमपंथ को बढ़ावा देने वाली विचारधारा से अब निपट लो या फिर आने वाली कई पीढ़ियों तक इसके साथ संघर्ष करते रहो। ट्रंप आमतौर पर तीखी भाषा के लिए जाने जाते हैं लेकिन इस बार वो अपने तरीके के विपरीत बेहद संयमित रहे। ट्रंप ने सऊदी अरब के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी ईरान की बार-बार आलोचना की और इससे खाड़ी के अरब देशों के नेता जरूर खुश हुए होंगे। अपने पूर्ववर्ती बराक ओबामा की तरह मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने भाषण में मानवाधिकारों या प्रजातंत्र का कोई उल्लेख नहीं किया। हालांकि उन्होंने महिलाओं के दमन की आलोचना जरूर की। खाड़ी क्षेत्र में सोशल मीडिया पर ट्रंप के भाषण को लेकर कई तरह की तीखी प्रतिक्रियाएं भी आई हैं। कुछ लोगों ने ध्यान दिलाया कि सऊदी अरब विश्व में आतंक फैलाने का सबसे बड़ा दोषी है और आप एक तरफ इस्लामिक कट्टरपंथ की बात करते हैं और दूसरी ओर कट्टरपंथ फैलाने वाले सऊदी अरब की गोद में जाकर बैठ जाते हैं? ट्रंप ने यह भी साबित कर दिया कि वह अमेरिकी हथियार लॉबी को प्राथमिकता देते हैं। रियाद पहुंचने के पहले दिन ही अमेरिका और सऊदी अरब के बीच कुल 380 अरब डॉलर के समझौते हुए। इस दौरान सऊदी अरब किंग सलमान ने ट्रंप को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी सम्मानित किया।

Tuesday, 23 May 2017

जाधव कैसा है कहां है? क्या सरबजीत को भी बचाया जा सकता था?

भारत को कुलभूषण जाधव केस में अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में भले ही फौरी राहत मिल गई हो पर जाधव की वास्तविक स्थिति क्या है इस पर आशंकाएं अभी भी बनी हुई हैं। पाकिस्तान ने अभी तक जाधव के स्वास्थ्य या उनके स्थान के बारे में कोई सूचना नहीं दी है। मामले को साफ करने की बजाय पाकिस्तान अब यह कह रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट ने जाधव को राजनयिक पहुंच का आदेश नहीं दिया है। न ही वह यह फैसला कर सकता है। उसने निर्णय आने तक सिर्फ जाधव की फांसी पर रोक लगाने को कहा है यह कहना है पाक पीएम नवाज शरीफ के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज का। हम चाहते हैं कि पाकिस्तान जाधव के ठिकाने और उनकी वास्तविक स्थिति के बारे में ठोस सबूत पेश करे। पाकिस्तान अगर ईमानदार है और उसकी नीयत साफ है तो उसे प्रूफ ऑफ लाइफ देना चाहिए। पाकिस्तान में जाधव के पते के बारे में क्या भारत सरकार के पास कोई सूचना है, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गोपाल बागले ने कहा कि पाकिस्तान सरकार ने आज तक कुलभूषण जाधव के बारे में कोई सूचना नहीं दी और न ही यह बताया कि उन्हें कहां रखा गया है। मैं वैसे ही सोच रहा था कि क्या हम सरबजीत को भी बचा सकते थे? विशेषज्ञों और वकीलों का कहना है कि सरबजीत के केस में भी कई ऐसी खामियां थीं, जिनके आधार पर पाक को दुनिया के सामने बेनकाब किया जा सकता था। अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में जाने के भारत के पास पुख्ता आधार थे। सरबजीत के वकील की गैर-मौजूदगी में सुप्रीम कोर्ट ने उसे फांसी की सजा दी। वकील के लापता होने पर दूसरा वकील करना चाहिए था। पाक सुप्रीम कोर्ट में सरबजीत केस का एकमात्र गवाह बयान से मुकर गया था। गवाह ने कहा था कि जबरन बयान लिया गया, फर्जी सबूत पेश किए गए। पाक कोर्ट को इस आधार पर सुनवाई दोबारा शुरू करनी चाहिए थी। जाधव की तरह सरबजीत को भी झूठे आरोपों में फांसी की सजा दी गई। दोनों पर जासूसी और आतंकी घटनाओं में शामिल होने का आरोप। जाधव की तरह सरबजीत की रिहाई की मांग सुर्खियों में रही थी। जाधव की फांसी के बाद सरबजीत की बहन दलबीर कौर का दर्द छलक उठा। उन्होंने कहा कि अगर तत्कालीन यूपीए सरकार सरबजीत के केस को भी आईसीजे में ले जाती तो आज वह भारत में हमारे बीच होते। कट्टरपंथियों के डर से स्वीडन में रह रहे सरबजीत के वकील औवेस शेख ने कहा है कि आईसीजे के फैसले से जाधव की रिहाई का रास्ता खुलेगा। शेख ने कहा कि जाधव की तरह सरबजीत भी दोनों देशों के बीच दुश्मनी और राजनीति का शिकार हुआ। सरबजीत का बचाव करने पर उन्हें जान से मारने की धमकियां मिली थीं और उन्हें देश छोड़ना पड़ा था।

-अनिल नरेन्द्र

राष्ट्रपति चुनाव ः विपक्ष पर भारी एनडीए

राष्ट्रपति चुनाव का समय (25 जुलाई से पहले) जैसे-जैसे करीब आ रहा है, विपक्ष इस पद का साझा उम्मीदवार तय करने के लिए अधिक सक्रिय हो उठा है। इस दिशा में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव, तृणमूल की मुखिया ममता बनर्जी सरीखे नेता जुट गए हैं। सोनिया गांधी ने फोन पर ममता, मुलायम सिंह यादव, मायावती व लालू प्रसाद यादव से बात की है। इस सिलसिले में नेशनल कांफ्रेंस के नेता और उमर अब्दुल्ला ने दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात की। दूसरी ओर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव व जनता दल (एकीकृत) शरद यादव से फोन पर बात की। विपक्षी एकता में कई अड़चनें हमें दिख रही हैं, जिनमें सबसे बड़ी अड़चन यह सामने आएगी कि जहां दो विपक्षी दल अरसे से आमने-सामने रहे हों, वो एक पाले में आकर चुनाव लड़ने को कैसे तैयार होंगे? फिर चाहे बंगाल में ममता-लेफ्ट हो, तमिलनाडु में द्रमुक-अन्नाद्रमुक हो, यूपी में सपा-बसपा हो या फिर ओडिशा में बीजेडी-कांग्रेस हो। दरअसल विपक्षी नेता मानते हैं कि ऐसे में चुनाव लड़ना भले ही टेढ़ी खीर हो, लेकिन जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के सामने इकट्ठा होकर किसी उम्मीदवार पर सहमति बनाना तुलनात्मक रूप से आसान है। इसे भविष्य (2019 लोकसभा) में गठबंधन बनाने की संभावना से भी जोड़कर देखा जा रहा है। चलिए एक नजर राष्ट्रपति चुनाव के आंकड़ों पर डालते हैं। भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए (23 पार्टियों के सांसद और राज्यों के सदनों में जनप्रतिनिधि सहित) के पास इलेक्ट्रोरेल कॉलेज में तकरीबन 48.64 फीसदी वोट हैं और इसके विपरीत राज्य या केंद्र में राजनीतिक समीकरणों के आधार पर कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्ष के साथ जाने वाली 23 राजनीतिक पार्टियों का वोट शेयर 35.47 फीसदी बैठता है। हाल में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मणिपुर में भाजपा को मिली जीत से राष्ट्रपति चुनाव से जुड़े इलेक्ट्रोरेल कॉलेज में 5.2 फीसदी वोटों का कुल फायदा हुआ है। पंजाब और गोवा में भाजपा गठबंधन के विधायकों की संख्या में कमी जरूर आई लेकिन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मणिपुर में पार्टी के विधायकों की संख्या बढ़ी है। राष्ट्रपति के चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसद वोट देते हैं और इनके अलावा विधानसभाओं के विधायक भी वोट देते हैं। इन सांसदों और विधायकों को मिलाकर ही राष्ट्रपति पद के चुनाव का इलेक्ट्रोरेल कॉलेज बनता है। इसमें कुल 784 सांसद और 4114 विधायक हैं। इस कॉलेज में वोटरों के वोट की वैल्यू एक नियम अनुसार अलग-अलग होती है। इसके अनुसार हर सांसद के वोट की वैल्यू 708 है जबकि विधायक के वोट की वैल्यू संबंधित राज्य की विधानसभा की सदस्य संख्या और उस राज्य की आबादी पर आधारित होती है। इस तरह यूपी के हर विधायक के वोट की वैल्यू सबसे ज्यादा 208 है, वहीं सिक्किम के हर विधायक के वोट की वैल्यू सबसे कम सात है। राष्ट्रपति पद के लिए 10,98,882 वोटों की वैल्यू होती है। इसमें चुनाव जीतने के लिए 5.49 लाख वोट चाहिए। फिलहाल भाजपा के पास 4.57 लाख वोट हैं। इस लिहाज से एनडीए को चुनाव में अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए सिर्फ 92,000 वोटों की जरूरत होगी। सैद्धांतिक तौर पर बात करें तो कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्ष की छह पार्टियों को अपने पाले में करने में सफल रहने पर सत्ताधारी ग्रुप और विपक्ष के बीच मुकाबला कांटे का हो सकता है। बहुमत के आंकड़े को पार करने के लिए एनडीए को सिर्फ एक पार्टी (या ज्यादा से ज्यादा दो छोटी पार्टियों के समर्थन की जरूरत होगी)। चूंकि भाजपा केंद्र की सत्ता में है, लिहाजा उसके पास चुनावी नतीजे अपने पक्ष में करने के लिए काफी गुंजाइश है। विपक्ष की राह कठिन लगती है।

Sunday, 21 May 2017

अभी तो एक लड़ाई जीती है जंग जीतना बाकी है दोस्त

कुलभूषण जाधव मामले में भारत ने पहली लड़ाई जीत ली है। जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किए गए कुलभूषण जाधव की फांसी पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने पाकिस्तान को अपने अंतिम फैसले के आने तक रोक लगाने का जो निर्देश दिया है, उसे पूर्व नौसैनिक को न्याय दिलाने की दिशा में भारत के प्रयासों की एक बड़ी जीत के रूप में देखा जाना चाहिए। आईसीजे ने अपने फैसले में इस बात का खासतौर पर संज्ञान लेते हुए पाकिस्तान को साफ निर्देश दिए हैं कि उसे उसके फैसले पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट भी देनी होगी। बेशक अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में भारत ने जो अपील की है, उसका यह अंतरिम फैसला है। लेकिन इस फैसले ने पाकिस्तान के हाथ एक हद तक तो बांध ही दिए हैं। कम से कम अब जब तक आईसीजे का इस मामले में अंतिम फैसला नहीं आता तब तक पाकिस्तान कुलभूषण जाधव को मृत्युदंड नहीं दे सकता। आईसीजे में भारत ने पाकिस्तान द्वारा पेश की गई हर दलील की काट पेश की। अदालत ने पाकिस्तान की जमकर खिंचाई की है और उसकी तमाम दलीलों को खारिज कर दिया। भारत शुरू से ही इस बात पर बल देता रहा कि यह मामला वियना संधि के अंतर्गत आता है, जिसकी तस्दीक आईसीजे ने कर दी और साफ कर दिया है कि जाधव को राजनयिक मदद हासिल करने का पूरा हक है। भारत वियना कन्वेंशन का तर्क दे रहा था तो वहीं पाकिस्तान का कहना था कि जासूसी और आतंकवाद के मामले में यह अधिकार नहीं दिया जा सकता। पाकिस्तान दिखावे के लिए भले ही यह कह रहा हो कि जाधव को अपनी फांसी के खिलाफ अगस्त तक अपील करने का समय है मगर हकीकत यह है कि वह किसी तरह के कायदे-कानून को नहीं मानता। इसका सबसे बड़ा सबूत तो यही है कि उसने जाधव की कथित गिरफ्तारी के बाद भी (सालभर) भी औपचारिक रूप से भारत को इस संबंध में किसी तरह की जानकारी नहीं दी है। ऐसे में उसकी न्याय प्रणाली पर कैसे भरोसा किया जाए? और फिर जाधव के मामले में तो फैसला भी वहां की सैन्य अदालत ने एक शेम ट्रायल में सुनाया। इस अदालती कार्रवाई की किसी को भी कोई जानकारी नहीं दी गई। एक तरह से देखें तो अदालत ने भारत के सारे शुरुआती तर्क स्वीकार कर लिए और पाकिस्तान के सारे तर्क नकार दिए। लेकिन इसके साथ ही यह भी सच है कि अदालत ने स्पष्ट किया है कि अभी वह मामले में क्या सही है और क्या गलत, इस पर कोई राय नहीं दे रही है। बस एक अंतरिम फैसला भर दे रही है। कुलभूषण जाधव मामले में पाकिस्तान पूरी तरह फंस गया है। पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ तो अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू राजनीति के निशाने के बीच दबाव में रहेंगे, लेकिन महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तानी सेना का क्या रुख रहता है? भारत अब इस्लामाबाद में अपने हाई कमिश्नर के जरिये जाधव से मुलाकात के लिए जल्द से जल्द कोशिश शुरू करने वाला है। पाकिस्तान अब असल में दुधारू तलवार पर खड़ा है। आईसीजे के फैसले के बाद वह ज्यादा दिन तक गुमराह नहीं कर सकता। फैसला न मानने पर अमेरिका और दूसरे देशों का बड़ा दबाव पड़ेगा। फैसले के बाद वहां की आर्मी ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। वहां के विरोधी और मीडिया शरीफ सरकार पर कड़ा हमला कर रहे हैं। पाक अखबार डॉन से बात करते हुए जस्टिस आराशाइथ उस्मानी ने कहा कि यह फैसला खौफनाक है, क्योंकि यह आईसीजे का अधिकार क्षेत्र नहीं था। पाकिस्तान ने बड़ी गलती की कि वह कोर्ट में गया, उसे वहां जाना नहीं चाहिए था। ऐसा करके उसने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारी है। लंदन में रह रहे बैरिस्टर राशिद असलम ने कहा कि पाकिस्तान की तैयारी बेहद खराब थी और उसने 90 मिनट का सही ढंग से इस्तेमाल ही नहीं किया। असलम ने कहा कि पाकिस्तान के पास दलील देने के लिए 90 मिनट का समय था लेकिन उसने 40 मिनट बर्बाद कर दिए। वकीलों की बात करें तो 61 वर्षीय भारतीय वकील हरीश साल्वे की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। 15 लाख रुपए फीस लेने वाले साल्वे ने देश की प्रतिष्ठा के खातिर सिर्फ एक रुपए में यह केस लिया। कुलभूषण जाधव के मामले में वियना संधि की धज्जियां उड़ाने वाले पाकिस्तान को उस समय इसका ख्याल आया जब उसके दूतावास के दो स्टाफ को अफगानिस्तान की खुफिया एजेंसी नेशनल डायरेक्ट्रेट ऑफ सिक्यूरिटी ने हिरासत में ले लिया। पाक ने अफगानिस्तान पर 1961 की वियना संधि के उल्लंघन का आरोप लगाया है। पाक अखबार डॉन के मुताबिक पाक दूतावास के दो स्टाफ को कई घंटे तक हिरासत में रखा और टार्चर किया। इस घटना से बौखलाए पाकिस्तान ने अफगानिस्तान सरकार पर वियना संधि के उल्लंघन का आरोप लगाया है। भारत ने बेशक इस महत्वपूर्ण जंग में एक लड़ाई जीती है पर जंग जीतना जरूरी है। यदि जाधव केस में पाक आईसीजे के फैसले का क्रियान्वयन नहीं करता तो सवाल उठता है कि भारत के पास उस सूरत में क्या विकल्प है? ऐसी सूरत हाल में भारत के पास सुरक्षा परिषद में जाने का विकल्प होगा। हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्याय अदालत संयुक्त राष्ट्र के नियमों के तहत स्थापित किया गया है और संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का अनुच्छेद 94 में साफ कहा गया है कि सभी सदस्यों को उन सभी मामलों में आईसीजे के आदेशों का पालन करना पड़ेगा,ज़िसमें वह पक्षकार है। यदि कोई पार्टी या पक्ष फैसले के क्रियान्वयन को करने में विफल रहता है तो अन्य पक्ष या पार्टी सुरक्षा परिषद का रुख कर सकता है। पर ऐसे फैसले वास्तव में तब ही बाध्यकारी होते हैं जब संबंधित पक्ष इसको मानने की सहमति दे। आईसीजे के फैसले पर पाक बुरी तरह बौखला गया है। पाकिस्तानी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट का फैसला सतही है। उसने गंभीरता से मामले पर विचार नहीं किया। पाकिस्तान इस फैसले को नहीं मानेगा क्योंकि यह देशहितों के प्रतिकूल नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत असली चेहरा छिपा रहा है। इसी बीच पाकिस्तानी वकीलों और पाक पीपुल्स पार्टी ने यह कहकर सरकार की जोरदार आलोचना की है कि वह तथ्यों को पेश करने में असफल रही। जैसा मैंने कहा कि कुलभूषण जाधव की इस जंग में फिलहाल भारत ने पहली लड़ाई जीती है, जंग जीतना बाकी है दोस्तो।

-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 20 May 2017

केजरीवाल बनाम अरुण जेटली बनाम राम जेठमलानी

केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल व अन्य पर दायर 10 करोड़ रुपए के सिविल मानहानि मामले में बुधवार को हाई कोर्ट में दोनों पक्षों के बीच करीब एक घंटे तक ऐसी नोकझोंक हुई जैसी पहले शायद कभी नहीं हुई होगी। कानूनी मुद्दों और कानूनी प्वाइंटों से ज्यादा अरविन्द केजरीवाल के वकील मशहूर वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने अरुण जेटली पर ऐसे हमले किए जिनसे निजी खुंदक निकालने की ज्यादा बू आ रही थी। बढ़ते विवाद के चलते अदालत को जेठमलानी को कहना पड़ा कि वह अपनी हदें लांघ रहे हैं और इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। ज्वाइंट रजिस्ट्रार दीपाली शर्मा के समक्ष केजरीवाल व अन्य आप नेताओं की पैरवी कर रहे जेठमलानी के जेटली को शातिर (क्रूर) कहने पर कोर्ट रूम में जमकर हंगामा हुआ। कई बार अदालत को दोनों पक्षों के वकीलों को शांत करवाना पड़ा। जेठमलानी को भी बहस में सही शब्दों का चयन करने की ताकीद की और यहां तक कह दिया कि वह आर्डर में उनके कहे शब्दों का उल्लेख कर रही है। जेठमलानी चाहें तो इसे चुनौती दे सकते हैं। दोपहर करीब दो बजे संयुक्त रजिस्ट्रार दीपाली शर्मा के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। सुनवाई शुरू होते ही जेठमलानी ने जेटली से कहाöआपके खिलाफ एक लेख इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ। क्या आपने उसे पढ़ा है? जेठमलानी ने जेटली पर आरोप लगाया कि आपने उक्त लेख संडे गार्जियन में प्रकाशित होने से रोका। आपका इस पर क्या कहना है? इस पर जेटली की तरफ से अधिवक्ता राजीव नायर व संदीप सेठी ने इस प्रश्न पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इसका केस से कोई लेना-देना नहीं है। जेठमलानी ने वकीलों से कहा कि केस से मतलब है, जेटली की कोई प्रतिष्ठा नहीं, वह साबित करेंगे। जेटली के वकीलों ने इस पर कड़ा विरोध जताया और चेतावनी दी कि वह उनका (जेटली का) अनादर न करें। जेठमलानी ने कई बार यह प्रश्न पूछा और बार-बार जेटली के वकीलों ने इसका विरोध किया। जेटली ने जवाब दिया कि मैं कुछ प्रमुख समाचार पत्रों को पढ़ता हूं। बड़ी संख्या में अखबारों में मेरे खिलाफ छपता है, यह जरूरी नहीं कि वे मेरी जानकारी में हों। सुनवाई के दौरान एक बार ऐसा मौका आया जब जेठमलानी ने कहा कि जेटली बड़े शातिर (क्रूर) हैं। इस पर अरुण जेटली ने कहाöक्या ये शब्द प्रयोग करने के लिए मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने आपको अनुमति दी है? अगर हां तो मैं 10 करोड़ की मानहानि की राशि को बढ़ाने वाला हूं। जेटली ने कहा कि अपमान की भी एक सीमा होती है। जेठमलानी अपनी खुद की दुश्मनी निकाल रहे हैं। जेटली ने आगे कहा कि आप निजी जिन्दगी को लेकर हमले कर रहे हैं ये ठीक नहीं। जेठमलानी निजी स्वार्थ के चलते यह सब कर रहे हैं, उन्हें केस से अपना नाम वकील के रूप में वापस लेना चाहिए। जेटली के वकीलों ने कहा कि केस के हिसाब से यह प्रासंगिक नहीं। उनका कहना था कि केस जेठमलानी व मुख्यमंत्री के खिलाफ है। भाजपा या फिर जेठमलानी व जेटली के खिलाफ नहीं। इसके बाद भी जेठमलानी ने सवालों की बौछार जारी रखी और यह भी आरोप लगाया कि जेटली अपने अपराध के दोष को छिपाकर लोगों को ठग रहे हैं। इस पर अदालत ने सभी वकीलों द्वारा मुद्दों से हटकर आरोप-प्रत्यारोप पर हदें लांघने की बात कहते हुए चेतावनी दी। जब जेटली ने राम जेठमलानी से कहाöक्या ये शब्द प्रयोग करने के लिए केजरीवाल ने अनुमति दी है? जेठमलानी ने माना वह यह सब अपने मुवक्किल (मुख्यमंत्री) की हिदायत पर ही बोल रहे हैं। वहीं मुख्यमंत्री की तरफ से पेश एक अन्य वकील ने इस पर अनभिज्ञता जताई। फिर जेठमलानी ने कहा कि मैं अपने मुवक्किल से अपनी मर्जी से मिल रहा हूं। मैं उनसे केस समझने के लिए मिलता हूं। जेठमलानी ने कोर्ट में ये भी कहा कि काला धन लाने में मैंने जितनी लड़ाई लड़ी अरुण जेटली ने इस पर पानी फेर दिया। मैं इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट तक गया। भाजपा ने काला धन विदेशों से वापस लाने के नाम पर चुनाव जीताöलेकिन किया कुछ नहीं। इस पर जेटली के वकीलों ने कहा कि यह सब तर्क बेतुके व अपमानजनक हैं। वहीं कोर्ट ने समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों व भाजपा संबंधी बातों पर कहा कि यह सब इस केस से संबंधित नहीं है। गत 15 मई को भी यह सवाल खारिज कर दिए गए थे। इसके बाद मुख्यमंत्री की तरफ से मौजूद एक अन्य अधिवक्ता ने मामले की सुनवाई किसी दूसरे दिन करने का आग्रह किया। फिर कोर्ट ने सुनवाई 28 31 जुलाई की तारीख तय कर दी। पेश मामले में जेटली ने मुख्यमंत्री के अलावा आप नेता राहुल चड्ढा, संजय सिंह, आशुतोष, कुमार विश्वास और दीपक वाजपेयी समेत छह लोगों के खिलाफ यह मामला दायर किया है। आरोप है कि इन सभी ने दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) विवाद में उन्हें बदनाम किया है। उनके खिलाफ आपत्तिजनक बयानबाजी की है जिससे उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है। केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली को शातिर (क्रूर) कहना दिल्ली हाई कोर्ट को पसंद नहीं आया है। न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि अगर यह टिप्पणियां मुख्यमंत्री के हिदायत पर की गई हैं तो पहले सीएम आएं और इन्हें सही साबित करें। इसके बाद ही मानहानि मामले की सुनवाई होगी। इससे पहले सुनवाई का कोई औचित्य नहीं। उन्होंने कहा कि ऐसी टिप्पणियां दुष्कर्मों के मामलों में लगीं तो पीड़िता का तो बार-बार दुष्कर्म होगा। अदालत ने टिप्पणियों को अपमानजनक और अप्रिय करार देते हुए कहा कि इस तरह की बहस की अनुमति नहीं दी जा सकती। बहस तय नियमों के अनुसार होनी चाहिए। एक व्यक्ति जिसने मानहानि का मामला दायर किया है, इस तरह दोबारा उसका अपमान नहीं होना चाहिए। अदालत इसी मामले में आप नेता राहुल चड्ढा की उस अर्जी पर सुनवाई कर रही है, जिसमें उन्होंने अपने बयान में संशोधन करने की अनुमति मांगी है, सुनवाई के दौरान जेटली के वकील राजीव नायर व संदीप सेठी ने अदालत के समक्ष बुधवार को जेठमलानी द्वारा की गई टिप्पणियों का मुद्दा उठाया। इस पर अदालत ने इस बारे में अलग से अर्जी दायर करने को कहा। जेटली के वकीलों का तर्क था कि अगर मुख्यमंत्री की हिदायत पर जेठमलानी ने ऐसा कहा है तो वह मानहानि की रकम 10 करोड़ से बढ़ाकर 20 करोड़ रुपए करेंगे। वहीं अगर जेठमलानी ने खुद ऐसा कहा है तो यह बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के खिलाफ है। चूंकि मामला अदालत में चल रहा है इस पर टिप्पणी नहीं की जा सकती पर बस इतना ही कहेंगे कि जेठमलानी द्वारा बहस का स्तर न तो उन्हें शोभा देता है और न ही उसका इस केस से कोई संबध है। जेठमलानी निजी खुंदक ज्यादा निकाल रहे हैं बनिस्पत ठोस दलीलों के।

-अनिल नरेन्द्र