Friday, 30 November 2018

वैज्ञानिकों के एक नहीं दो चमत्कार

वैज्ञानिकों ने चमत्कार एक बार फिर करके दिखा दिया है। वह भी एक नहीं दो। पहला चीन के एक वैज्ञानिक ने दावा किया है कि उन्होंने पहली बार जीन में बदलाव कर दो बच्चियों को पैदा करने में सफलता हासिल की है। और दूसरा है मंगल ग्रह पर नासा का मार्स की सतह पर सफलतापूर्वक इनसाइट का उतारना। पहले बात करते हैं चीनी वैज्ञानिकों के चमत्कार की। शेनझान के अनुसंधानकर्ता ही जियांनकुई ने उन्होंने दावा किया कि इस तकनीक से पैदा बच्चों में एचआईवी से लड़ने की कुदरती क्षमता होगी। माना जा रहा है कि इस कामयाबी से नए सिरे से जीवन को लिखा जा सकता है। उन्होंने सात दंपतियों के बांझपन के उपचार के दौरान भ्रूण बदल डाले। एक दंपति को इसी माह जुड़वा बच्चियां पैदा हुई हैं, जिससे बदलाव की पुष्टि होती है। एक अमेरिकन वैज्ञानिक ने भी कहा है कि उन्होंने चीन में हुए इस अनुसंधान में हिस्सा लिया। अमेरिका में इस तरह के जीन-परिवर्तन प्रतिबंधित है क्योंकि डीएनए में बदलाव भावी पीढ़ियों तक असर पहुंचाएंगे और अन्य जीन्स को नुकसान पहुंचने का खतरा होता है। मंगलवार को शुरू हो रहे जीन-एडिटिंग के एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन से पहले जियांनकुई ने कहा कि प्रयोग में शामिल दंपतियों ने पहचान जाहिर करने से मना कर दिया है। वह यह भी नहीं बताएंगे कि वह कहां रहते हैं और यह प्रयोग कैसे हुआ। हालांकि इस दावे की स्वतंत्र रूप से कोई पुष्टि नहीं हो सकी है। वहीं कुछ वैज्ञानिक इस खबर को सुनकर ही हैरान हैं। हालांकि एक अमेरिकन डाक्टर, डॉ. एरिक टोपोल ने कहा कि हम इंसानों के आपरेटिंग निर्देशों से डील कर रहे हैं जो बड़ी बात है। वहीं पेंसलवेनिया विश्वविद्यालय के डाक्टर किरण मुसुनुरी ने कहा कि इंसानों पर प्रयोग नैतिक रूप से ठीक नहीं है। इसकी निन्दा हो। दूसरा चमत्कार कह सकते हैं वह है नासा के यान का मंगल ग्रह तक पहुंचना। मंगल ग्रह के रहस्य उजागर करने के लिए इसकी चट्टानी सतह को खोदने के लिहाज से डिजाइन किया गया नासा का रोबोटिक इनसाइट अंतरिक्ष यान सोमवार को सफलतापूर्वक लाल ग्रह की सतह पर उतरा। अंतरिक्ष यान से भेजे सिग्नल में संकेत दिया गया है कि उन्हें मंगल ग्रह पर धूप मिल रही है। नासा के मार्स ओडिसी आर्बिटर ने सिग्नल भेजे जो मंगलवार को भारतीय समयानुसार सुबह सात बजे पृथ्वी पर पहुंचे। धूप मिलने के संकेतों से साफ हो गया है कि अंतरिक्ष यान की बैटरी रिचार्ज हो सकती है। ओडिसी ने कुछ तस्वीरें भेजी हैं जिनमें इनसाइट को सतह पर उतरते देखा जा सकता है। सात महीने की लगातार यात्रा के बाद इनसाइट सोमवार को लाल ग्रह की सतह पर सफलतापूर्वक उतर गया। इनसाइट पहली बार मंगल ग्रह के सुदूर इलाके में खुदवाई करके ग्रह की भूमिगत संख्या का अध्ययन करेगा। साथ ही भूकंपीय गतिविधियों को भी इसके जरिये दर्ज किया जाएगा। इनसाइट को इसी साल 5 मई को प्रक्षेपित किया गया था। 6200 मील प्रति घंटे की रफ्तार से 301,223,981 मील दूरी इसने तय की है।

-अनिल नरेन्द्र

सत्यपाल मलिक ने साबित कर दिया कि वह किसी के रबड़ स्टांप नहीं हैं

आमतौर पर राज्यपालों को केंद्र का रबड़ स्टांप कहा जाता है जो हर महत्वपूर्ण फैसला केंद्र सरकार के अनुसार करते हैं। उनकी नियुक्ति केंद्र सरकार सोच-समझ कर करता है ताकि जरूरत पड़ने पर वह उनकी इच्छानुसार चले। पर कभी-कभी ऐसे राज्यपाल भी आ जाते हैं जो चुनौती का मुकाबला अपने विवेक से कर लेते हैं और ऐसा करने में वह केंद्र की इच्छा को नजरंदाज कर लेते हैं। इसीलिए केंद्र अकसर ऐसे नेताओं को राज्यपाल बनाते हैं जो या तो उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता हों या फिर भरोसेमंद नौकरशाह हों, जनरल हों। ऐसा कम ही होता है कि केंद्र किसी राजनीतिक नेता को वह भी जो उसकी पार्टी का न हो को राज्यपाल बनाए। पर जम्मू-कश्मीर में केंद्र सरकार ने ऐसा ही किया है कि श्री सत्यपाल मलिक को जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया। सत्यपाल मलिक ने एक ऐसा फैसला किया जिसकी केंद्र को कभी उम्मीद नहीं थी। मामला था सूबे में नई सरकार बनाने का और राष्ट्रपति शासन समाप्त करने का। केंद्र चाहता था कि सूबे में पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद लोन के नेतृत्व में सरकार बने जिसका समर्थन भाजपा करे। सज्जाद लोन कई दिनों से पीडीपी के विधायकों को तोड़ने की कवायद में लगे हुए थे। पर राज्यपाल ने न तो लोन को मौका दिया और न ही पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन को जिसको नेशनल कांफ्रेंस बाहर से समर्थन देना चाहती थी। सत्यपाल मलिक ने शनिवार को ग्वालियर में आयोजित एक कार्यक्रम में 21 नवम्बर को राज्य विधानसभा भंग करने के फैसले पर अपना पक्ष रखा। जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग करने पर गवर्नर के बयान से सियासी बवाल खड़ा होना स्वाभाविक ही है। गवर्नर ने पहले यह कहकर सबको चौंका दिया कि यदि मैं दिल्ली की तरफ देखता तो मुझे सज्जाद लोन को मुख्यमंत्री बनाना पड़ता। ऐसा करता तो इतिहास मुझे बेइमान के रूप में याद करता और इतिहास में बेइमान के तौर पर दर्ज होना नहीं चाहता था। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार सोशल मीडिया के जरिये नहीं बनती है। जबकि सज्जाद लोन और महबूबा मुफ्ती दोनों ने इनका सहारा लिया। राज्यपाल ने कहा कि लोन कह रहे हैं कि उन्होंने व्हाट्सएप पर अपना पत्र मुझे भेजा था और महबूबा ने कहा कि उन्होंने सरकार बनाने का दावा ट्वीट करके पेश किया। उन्होंने कहा यह पता नहीं था कि सरकारें व्हाट्सएप संदेश पर बनती हैं? सरकार बनाने का दावा व्हाट्सएप पर पेश नहीं होता है। राज्यपाल ने कांग्रेस, पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस की नीयत पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि अगर उन्हें सरकार बनानी ही थी तो दिन में ही राजभवन आकर मुझसे मिल सकते थे। उन्होंने कहा कि उस दिन ईद की छुट्टी थी, क्या वह उम्मीद करते हैं कि राज्यपाल फैक्स मशीन के पास बैठकर उनके फैक्स का इंतजार करते? अगर पीडीपी प्रमुख महबूबा और एनसी नेता उमर सरकार बनाने पर गंभीर होते तो वे मुझे फोन कर सकते थे या चिट्ठी भेज सकते थे। गवर्नर सत्यपाल मलिक ने साबित कर दिया कि वह एक सियासी गवर्नर हैं, किसी पार्टी या सरकार के रबड़ स्टांप नहीं। उनके इस फैसले पर सियासी बवाल जरूर होगा।

Thursday, 29 November 2018

करतारपुर कॉरिडोर का फैसला स्वागतयोग्य है पर सतर्पता भी जरूरी

निश्चित तौर पर श्री गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती के मौके पर करतारपुर योजना का फैसला स्वागतयोग्य है। करीब सात दशक पहले विभाजन ने सिखों के जिस पवित्र धर्मस्थल करतारपुर साहिब को श्रद्धालुओं की पहुंच से दूर कर दिया था, वहां तक अब एक कॉरिडोर के जरिये पहुंचने की घोषणा ही अपने आपमें बहुत सुखद व स्वागतयोग्य है। न केवल पिछले 70 साल से ही इस फैसले का इंताजर कर रहे सिख श्रद्धालु इस फैसले से गद्गद् हैं बल्कि कुछ हद तक भारत-पाकिस्तान के ठंडे पड़ते रिश्तों में भी इससे नई गरमाहट आ सकती है। करतारपुर साहिब सिखों के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में शुमार होता है। यह स्थान भारतीय सीमा से करीब चार किलोमीटर दूर है और इतनी सी दूरी के चलते भारतीय सिखों को दूरबीन से अपने इस पवित्र गुरुद्वारा साहिब के दर्शन करके संतोष करना पड़ता था। सिखों के पहले गुरु के जीवन में करतारपुर काफी महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 18 साल यहीं गुजारे थे। दिक्कत यह है कि करतारपुर भारतीय सीमा से चार किलोमीटर दूर पाकिस्तान के नरोवल जिले में पड़ता है। लंबे समय से यह मांग की जा रही थी कि सिख तीर्थयात्रियों के लिए एक कॉरिडोर बनाया जाए, जिससे वे बिना किसी वीजा या विशेष अनुमति के दर्शन के लिए वहां जा सकें। इस कॉरिडोर के बनने का अर्थ यह होगा कि अब सीमा की कंटीली तारें सिख संगत के आड़े नहीं आएंगी और वह दूरबीन से दर्शन करने की बजाय सीधे वहां के गुरुद्वारे जाकर मत्था टेक सकेंगे। गुरुवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल के इस परियोजना को हरी झंडी दिखाने के ठीक एक दिन पहले पाकिस्तान सरकार ने इस परियोजना को न केवल हरी झंडी दिखा दी थी, बल्कि यह घोषणा भी कर दी थी कि जल्द ही प्रधानमंत्री इमरान खान इस परियोजना का शिलान्यास करने करतारपुर जाएंगे। इसमें पाकिस्तान की पहल जरूरी भी थी, क्योंकि सारा काम उसी के क्षेत्र में होना था और भारत को तो सिर्प तीर्थयात्रियों के लिए रास्ता खोलना था। इसके बावजूद पाकिस्तानी अधिकारियों ने भारतीय राजनियकों को सिख धर्मस्थल पर जाने से रोकने की जो कार्रवाई की वह निन्दनीय है। जबकि पहले विदेश मंत्रालय ने इसकी अनुमति दी थी और वह अफसर अपना दायित्व पूरा करने गए थे। पाकिस्तान की इस हरकत ने उस आरंभिक उत्साह पर पानी फेरने का प्रयास किया है जो गुरुवार को भारतीय कैबिनेट के फैसले के बाद निर्मित हुआ था। पाकिस्तान ने दूसरी हरकत ननकाना साहिब में भारत विरोधी और खालिस्तान समर्थक नारों और पोस्टरों के माध्यम से की है। विडंबना है कि करतारपुर गलियारे के माध्यम से एक-दूसरे के करीब आने में लगे भारत और पाक के बीच इसी मुद्दे पर खटास पैदा होने लगी। दरअसल उग्रवाद को बढ़ावा देना और उसका राजनयिक इस्तेमाल करना पाकिस्तान की फितरत में है और उसका खामियाजा वह स्वयं ही भुगत रहा है। यही कारण है कि कराची में चीनी वाणिज्य दूतावास पर बलूचिस्तान के उग्रवादियों ने हमला किया और दो पुलिस वालों को मार गिराया। पाकिस्तान एक ओर चीन के साथ वन बेल्ट-वन रोड परियोजना और आर्थिक गलियारे की योजना पर काम कर रहा है तो दूसरी ओर संसाधनों से सम्पन्न अपने ही सबसे बड़े प्रांत बलूचिस्तान को दमन और शोषण का शिकार बनाए हुए है। यही कारण है कि वहां बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी अब आजादी की मांग कर रही है। हालांकि यह कॉरिडोर दोनों देशों के रिश्तों को नया आयाम दे सकता है पर इसके लिए यह भी जरूरी है कि इस कॉरिडोर का इस्तेमाल सद्भाव बढ़ाए न कि यह भारत के]िलए एक और आतंकी कॉरिडोर बन जाए। सतर्पता भी जरूरी होगी।

-अनिल नरेन्द्र

नोटबंदी से खेती बर्बाद और किसानों की कमर टूटी

नोटबंदी एक आत्मघाती कदम था यह किसी से छिपा नहीं। इससे देश की अर्थव्यवस्था को ऐसा झटका लगा है जिससे अब भी देश उभर नहीं सका। पर केंद्र सरकार के मंत्री हमेशा इसका बचाव करते दिखे। खुद प्रधानमंत्री ने तो इसे एक चुनावी मुद्दा बना दिया। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के दौरान बिलासपुर की एक जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में नोटबंदी, नक्सलवाद, विकास और कांग्रेस के घोषणा पत्र का जिक्र करते हुए कहा कि नोटबंदी की वजह से मां-बेटे रुपयों की हेराफेरी पर जमानत पर घूम रहे हैं। हालांकि इस दौरान उन्होंने राहुल और सोनिया गांधी का नाम नहीं लिया। उन्होंने कहाöवह नोटबंदी का हिसाब मांग रहे हैं, वह भूल गए कि नोटबंदी के चलते ही नकली कंपनियां बंद हुईं और उनका खेल सामने आया। उनको जमानत लेनी पड़ी। 2016 में मोदी सरकार द्वारा लिए गए नोटबंदी के फैसले पर देश में लगातार चर्चा होती है। विपक्ष इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार देता है और सरकार इसे फायदेमंद बताती है। सरकार ने आठ नवम्बर 2016 को रात 12 बजे से नोटबंदी लागू की थी। पहली बार केंद्र सरकार के ही कृषि मंत्रालय ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि किसानों पर नोटबंदी के फैसले का काफी बुरा असर पड़ा था। वित्त मंत्रालय से जुड़ी संसद की एक स्थायी समिति की  बैठक में कृषि मंत्रालय ने माना है कि नकदी की कमी के चलते लाखों किसान, रबी सीजन में बुआई के लिए बीज-खाद नहीं खरीद सके। जिसका उन पर काफी बुरा असर पड़ा। कृषि मंत्रालय ने नोटबंदी के असर पर एक रिपोर्ट भी संसदीय समिति को सौंपी है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसी रिपोर्ट का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री पर हमला बोला। उन्होंने दावा किया कि अब तो केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने भी मान लिया है कि नोटबंदी से कृषकों की कमर टूट गई है। नोटबंदी ने करोड़ों किसानों का जीवन नष्ट कर दिया है। अब उनके पास बीज-खाद खरीदने के लिए पर्याप्त पैसा भी नहीं है। लेकिन आज भी मोदी हमारे किसानों के दुर्भाग्य का मजाक उड़ाते हैं। अब उनका कृषि मंत्रालय भी कहता है कि नोटबंदी से किसानों की कमर टूट गई है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भी मोदी सरकार पर करारा हमला बोलते हुए कहा कि नोटबंदी व खामियायुक्त जीएसटी ने देश की अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया है। मोदी सरकार पारदर्शिता लाने और भ्रष्टाचार से लड़ने के वादे पर सत्ता में आई, लेकिन हम भ्रष्टाचार सिर्प बढ़ता हुआ देख रहे हैं। डॉ. Eिसह ने कहा कि मोदी सरकार को यह बताना चाहिए कि उसने कौन-सा वादा पूरा किया है? किसान कर्ज के बोझ तले मरता जा रहा है, मोदी सरकार ने हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा किया था, लेकिन यह वादा जुमला बनकर रह गया। भारतीय जनता पार्टी के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने चित्रकूट के रामायना मेला मैदान में आयोजित किसान सभा को संबोधित करते हुए कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के साथ वादाखिलाफी की है। प्रधानमंत्री ने किसानों से कई वादे किए थे। सरकार के कार्यकाल के पांच साल पूरे होने को है, पर कोई वादा पूरा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि किसानों को फसलों की लागत तक नहीं मिल पा रही है। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा कि अच्छे दिनों के आने का सपना दिखाने वाली सरकार ने देश में बुरे दिन ला दिए। मंडला (मध्यप्रदेश) में एक चुनावी रैली में राहुल गांधी ने नोटबंदी को देश का सबसे बड़ा घोटाला बताया और कहा कि नोटबंदी से बड़ा घोटाला देश में कभी नहीं हुआ। राहुल ने कहा कि पीएम ने कहा यह काले धन के खिलाफ लड़ाई है। ईमानदार लोग बैंक के सामने खड़े दम तोड़ रहे थे तो चोर बैंक के पीछे से काला धन सफेद कर गए। संसदीय समिति को सौंपी रिपोर्ट में कृषि मंत्रालय ने माना है कि नोटबंदी के फैसले से देश के 26 करोड़ किसानों पर बुरा असर पड़ा था। नोटबंदी के दौरान किसान या तो खरीफ की फसल बेच रहे थे या फिर रबी फसलों की बुआई कर रहे थे। ऐसे में कैश की बेहद जरूरत होती है, लेकिन नकदी की कमी के चलते लाखों किसान ठंड में रबी के सीजन में बुआई के लिए बीज और खाद नहीं खरीद सके।

Wednesday, 28 November 2018

कारण न गिनाएं, बताएं कि मंदिर कैसे बनेगा

अयोध्या में श्रीराम का मंदिर बने यह महज चुनावी मुद्दा नहीं है, इससे करोड़ों भारतवासियों की आस्था जुड़ी है। केवल हिन्दू ही नहीं, मुसलमान सहित अन्य धर्म के लोग भी श्रीराम को मानते हैं। अयोध्या के मुसलमान तो इस विवाद से तंग आ चुके हैं और वह कई बार कह चुके हैं कि मंदिर बनाओ और इस क्लेश को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म करो। पर सवाल यह है कि मंदिर बनेगा कैसे, कौन इसे बनाएगा? जिनकी दुकानें चल रही हैं वह तो इस मामले को लटकाए रखेंगे? जिन नेताओं को राम मंदिर सिर्प चुनाव के समय याद आता है उनसे इसके समाधान की उम्मीद कम रखनी चाहिए। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अयोध्या में राम लला के दर्शन करने के बाद प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि जब भी चुनाव आते हैं तो मंदिर का मुद्दा उठाया जाता है। चुनाव के दौरान सब लोग राम-राम करते हैं और चुनाव के बाद आराम करते हैं। हम कब तक इंतजार करेंगे? हिन्दुओं की भावना से अब खेलना बंद करो। उन्होंने सवाल किया कि राम मंदिर कब बनेगा? उद्धव ने कहा कि सीएम योगी ने कहा थाöमंदिर था, है और रहेगा, लेकिन दुख इस बात का है कि मंदिर दिख नहीं रहा है। अब चुनाव में कुछ ही दिन बाकी रह गए हैं। यह आखिरी सत्र होगा तो मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाओ, मंदिर बनाओ। आरएसएस के सरसंघचालक ने दो टूक कहाöकारण न गिनाएं, सोचो कि मंदिर कैसे बनेगा? कानून के जरिये राम मंदिर निर्माण का दबाव बनाने के मकसद से अयोध्या में आयोजित विहिप की धर्मसभा रविवार को भाषणों के साथ खत्म हो गई। मंदिर निर्माण की तारीख को लेकर सब्र रखने की बातें कही गईं। न कोई बड़ा ऐलान हुआ न प्रस्ताव पारित हुआ। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलवर में एक चुनावी रैली में कहा कि राम मंदिर पर कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट में खतरनाक खेल, खेल रही है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अयोध्या पर लोगों की बातें सुनकर फैसला करना चाहता है, लेकिन कांग्रेस महाभियोग लाकर जजों को डरा रही है। करीब चार घंटे बाद विहिप की हुंकार रैली में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मोदी को जवाब दिया। उन्होंने कहा कि काम नहीं होने के कारण तो कोई भी बता सकता है। अगर व्यस्तता या समाज की संवेदना नहीं समझने के कारण यह मामला कोर्ट की प्राथमिकता नहीं है तो सरकार सोचे कि मंदिर बनाने के लिए कानून कैसे आ सकता है? जल्द से जल्द यह कानून लागू किया जाए। वहीं उद्धव ठाकरे ने यह भी कहा कि केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार रहे या न रहे, मंदिर का निर्माण हर हाल में किया जाएगा। अगर मामला अदालत में ही जाना है तो चुनाव प्रचार के दौरान लोगों से कहें कि भाइयों-बहनों हमें माफ करो। यह भी हमारा चुनावी जुमला था। पांच राज्यों के चुनावों में पहली बार अयोध्या का जिक्र किया, अपनी अलवर की रैली में जहां उन्होंने कहा था कि कांग्रेस न्याय प्रक्रिया में दखल देती है। जब अयोध्या का केस सुप्रीम कोर्ट में चल रहा था तो कांग्रेस के नेता और राज्यसभा सांसद ने कहा था कि 2019 तक केस मत चलाओ, क्योंकि 2019 में चुनाव हैं। मोदी ने नाम तो नहीं लिया पर गालिबन उनका इशारा कपिल सिब्बल पर था। जब सुप्रीम कोर्ट के जज अयोध्या जैसे संवेदनशील मसलों में देश को न्याय दिलाने की दिशा में सबको सुनना चाह रहे थे तो कांग्रेस के सांसद और वकील सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्तियों के खिलाफ महाभियोग लाकर उन्हें डरा-धमका रहे हैं। बता दें कि कांग्रेस नेता और वकील कपिल सिब्बल ने दिसम्बर 2017 में सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में 2019 लोकसभा चुनाव तक राम मंदिर मामले की सुनवाई टालने की अपील की थी। सिब्बल ने कहा है कि मंदिर मुद्दे पर जनवरी से लेकर नवम्बर 2018 तक सुनवाई में पेश नहीं हुआ हूं। मोदी इस मुद्दे को सिर्प चुनावी मकसद से उछाल रहे हैं। वहीं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक ताजा बयान में कहा कि मंदिर मामले में कोई निर्णय लेने से पहले पार्टी और सरकार जनवरी में सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई का इंतजार करेगी। एक चैनल को दिए इंटरव्यू में भाजपा अध्यक्ष ने उम्मीद जताई कि जनवरी में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी और सब कुछ ठीक हो जाएगा। शाह ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के अयोध्या दौरे पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि उद्धव अपने जीवन में पहली बार अयोध्या गए। धर्मसभा के मंच से विवादित जमीन पर अपना दावा करते हुए जमीन बंटवारे का फार्मूला न मानने वाले विहिप के बयान पर पक्षकारों ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई है। हिन्दू-मुस्लिम दोनों पक्षकारों ने साफ कहाöविहिप किस हैसियत से जमीन मांग रही है। बाबरी मस्जिद मामले के पक्षकार हाजी महबूब ने पूछा कि विहिप किस हैसियत से जमीन मांग रही है? वह तो पक्षकार भी नहीं हैं। रामजन्म भूमि के पक्षकार निर्मोही अखाड़ा के प्रतिनिधि महंत दिनेंद्र दास ने कहा कि हम 1885 से ही मुकदमा लड़ रहे हैं। हाई कोर्ट में निर्मोही अखाड़ा, राम लला और सुन्नी वक्फ बोर्ड को बराबर हिस्से के बंटवारे का फैसला किया गया था। राम मंदिर के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट से पूरी जमीन मांगी है। मालिकाना हक हमारा है, विहिप कौन होता है? विहिप सियासत कर रही है। पक्षकार महंत धर्मदास ने कहा कि धर्मसभा के बहाने विहिप चुनावी ड्रामा कर रही है। विहिप जमीन मांगने वाले कौन? इनका इतिहास क्या है? भीड़ जुटाकर किसी का हक नहीं ले सकते। वादी नहीं, पार्टी नहीं हैं तो किस हैसियत से जमीन मांग रहे हैं। चुनाव पास आता है तो शिगूफा छोड़ने अयोध्या चले आते हैं। वहीं शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का कहना है कि कोई भी राजनीतिक दल कभी भी राम मंदिर नहीं बनवाएंगे। वह मंदिर के नाम पर सियासत करते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 27 November 2018

ان بریک ایبل ایم سی میری کوم

دسویں مہیلا باکسنگ چمپیئن شپ کے آخری دن سنیچر وار کو اسٹیڈیم کھچا کھچ بھرا ہوا تھا ۔یہ پہلا موقعہ جب اتنی بڑی تعداد میں ناظرین اسٹیڈیم تک پہنچے تھے۔وجہ صاف تھی ہر کوئی اپنی پسندیدہ باکسر ایم سی میری کوم کو گولڈ میڈل جیتتے ہوئے دیکھنا چاہتا تھا ۔مقابلہ سخت تھا ۔سامنی تھی یوکرین کی 13سال چھوٹی ہنا اکھوتے ۔میری کوم نے اپنے ناظرین کو مایوس نہیں کیا اور ہنا کو 5-0سے ہرا کر گولڈ میڈیل جیت لیا ۔میری کوم نے ٹونامنٹ کے سبھی چار مقابلے 5-0سے جیتے تین بچوں کی ماں 35سالہ میری کوم نے گولڈ میڈیل جیت کر تاریخ رقم کر دی یہ ان کا چھٹہ گولڈ میڈیل ہے ۔ورلڈ چمپین شپ میں چھ گولڈ جیتنے والی دینا کی پہلی مہیلا باکسر بنی جیت کے بعد میری کوم نے کہا کہ میں اموشن ہو رہی ہوں اب 2020اولمپک کی تیاری ہے وہاں میری ویٹ کٹیگری نہیں ہے 51کلو میں کھیلنا ہوگا امید ہے کہ میں کوالیفائی کر لوں گی ۔وہاں گولڈ جیتنا میرا خواب ہے 8سال بعد ورلڈ چمپین شپ میں بھارت کو گولڈ اور 2010میں بھی میری کوم نے گولڈ دلایا تھا سونیا فائنل میں ہی ہاریں ۔بھارت نے اس چمپئین شپ میں ایک گولڈ میڈیل سمیت چار میڈیل جیتے تھے ۔اس ورلڈ باکسنگ چمپین شپ میں 66دیشوں کے کھلاڑی اترے تھے 21دیشوں نے میڈیل جیتا 13دیشوں کے کھلاڑی فائنل میں پہنچے میں نے کئی مقابلے دیکھے میری کوم کا فائنل بھی دیکھا اس چمپئین شپ کے منتظمین اور منعقد کرنے والوں کو کامیاب ٹورنامنٹ کرانے والوں کو مبارکباد دینا چاہتا ہوں اریجمنٹ باکسنگ رنگ وغیرہ عالمی معیار کے تھے ایسا نہیں لگ رہا تھا کہ یہ دہلی کے اسٹیڈیم میں مقابلہ چل رہا ہے یا امریکہ کے لوس ویگس میں ۔مقابلہ جیتنے کے بعد میری کوم کے خوشی کے آنسو رکنے کو نام نہیں لے رہے تھے آخر 8سال بعد انہوں نے گولڈ میڈیل جیتا تھا۔یہ ان کی اور ان کے گھر والوں کی محنت جد وجہد و قربانی کا ہی پھل ہے ۔میری کوم ان بریک ایبل ہیں ۔انہوںنے 18سال کے کئیرئر میں اس کو ثابت کر دیا ہے ۔خطابی مقابلے سے عین پہلے میری کوم کی طبیعت خراب ہو گئی تھی ۔ممبر پارلیمنٹ اور تین بچوں کی 35سالہ ماں میری کوم تیز درد سے پریشان تھیں ۔ٹیم انتظامیہ الجھن میں پڑ گیا کہ انہیں مقابلے میں اتارا جائے یا نہیں لیکن دوائیں لے کر پھر مکے باز کی طرح میری کوم رنگ میں اتر کر عزم اور اپنی طاقت دکھاتے ہوئے ہنا ہی نہیں بلکہ درد کو بھی شکست دے دی ۔مقابلے کے دوران ظاہر تک نہیں ہونے دیا کہ درد سے انہیں پریشانی ہے ۔میری کوم کی جیت کے معنی یہ بھی ہیں کہ بیٹی بچاﺅ ،بیٹی پڑھاﺅ کی ڈگر میں رواں دواں اپنے دیش کی بچیوں کے کے لئے منی پور اور بھارت کی آئی کون اور ارجن ایوارڈ ،پدم شری اور راجیو رتن کھیل ایوارڈ اور پدم بھوشن سے نوازی جا چکی میر ی کوم راہ عمل کا ذریعہ بن چکی ہیں ۔میری کوم خاتون طاقتور کی مثال بن گئی ہیں۔

(انل نریندر)

مدھیہ پردیش میں کانگریس کےلئے ابھی نہیں تو کبھی نہیں والی پوزیشن

مدھیہ پردیش میں اسمبلی چناﺅ مہم اپنے شباب پر ہے کانگریس اور بھاجپا دونوں نے ہی اپنی پوری طاقت جھونک دی ہے ۔پولنگ 28نومبر سے پہلے کی جو حالت ہے اس سے یہ صاف ہے کہ چوتھی پاری کی تیاری کر رہی بھاجپا کو کانگریس سے زبردست چنوتی مل رہی ہے۔شاید یہی وجہ ہے کہ بی جے پی اپنے پہلے دئے گئے نارے کو بھول گئی ہے اب اس کے نیتا صرف جیت کی بات کر رہے ہیں انہوںنے نمبروں کا دعوی چھوڑ دیا ہے تقریبا سبھی سروے اس مرتبہ مدھیہ پردیش میں اس مرتبہ کانگریس کی جیت کی پیش گوئی کر رہے ہیں ۔یہ کانگریس کے لئے سنہرا موقع ہے ۔مدھیہ پردیش کے اقتدار میں آنے کے لئے زبردست کوشش کر رہی کانگریس کے سنئیر لیڈر جوتر آدتیہ سندھیا کا بھی کہنا ہے کہ پچھلے پندرہ برسوں سے ریاست میں اقتدار سے دور رہی دیش کی سب سے پرانی پارٹی کے لئے ابھی نہیں تو کبھی نہیں والی پوزیشن ہے ۔ریاست کی 230اسمبلی سیٹوں پر 28نومبر کو ووٹ پڑنے ہیں جبکہ گنتی 11دسمبر کو ہوگی ریاست میں ہمیشہ بھاجپا اور کانگریس کے درمیان سیدھا مقابلہ دیکھنے کو ملتا رہا ہے ۔جب سندھیا سے پوچھا گیا کہ ریاست کے اقتدار میں واپس لوٹنے کے لئے کیا کانگریس کے پاس بہتر مواقع ہیں تو سابق مرکزی وزیر نے کہا کہ سب سے اچھا ہے یا نہیں ...یہ ابھی نہیں تو کبھی نہیں ۔جہاں تک اشوز کی بات ہے تو سرکار مخالف ماحول ،کسانوں کا مسئلہ اور بے روزگاری سب سے بڑے اشو ہیں یہاں تک کہ اجین جو شہر کی معیشت کا ایک بڑی بنیاد مہا کال کا مندر ہے وہاں بھی رام مندر اتنا بڑا اشو نہیں ہے جتنا بے روزگاری ۔چھندواڑا جو کمل ناتھ کا اپنا چناﺅی حلقہ ہے وہاں بھی صرف ایک اشو ہے نوکری اور نوکری ۔رام سین میں پچھلے سال کالج کی تعلیم مکمل کرنے والے شیلیش ساہو سرکاری بھارم بھرتے ہیں لیکن وہاں امید نہیں ہے کہ بتاتے ہیں کہ کس طرح ان کے ایک دوست کو انجینیرنگ کی ڈگری کے بعد 8ہزار روپئے مہینے کی نوکری ملی ہے اور گھر میں اسے سبھی تعنی مارتے ہیں ۔ایک تازہ روپورٹ کے مطابق مدھیہ پردیش میں 15سال کی سرکار مخالف لہر ،جی ایس ٹی،نوٹ بندی ،کسانوں کی ناراضگی اور دلت ایکٹ نے اسمبلی چناﺅ کی لڑائی کو دلچسپ بنا دیا ہے ۔کوئی لہر نہیں ہے چاہے جس سے بات کیجئے جواب دلچسپ ملتا ہے ۔ریاست میں کانٹے کی ٹکر ہے ۔عام لوگ اپنے دل کی بات نہیں بتاتے ایسی رائے ظاہر کرتے ہیں جس کا کوئی نتیجہ نہیں نکالا جا سکتا یہاں تک ماہرین بھی ہوا کا رخ بھانپ نہیں پا رہے ہیں ۔230سیٹوں میں سے قریب 3درجن سیٹوں پر سہ رخی لڑائی چل رہی ہے ،بسپا سپا اور باغیوںنے بھاجپا کانگریس دونوں کی ناک میں دم کر رکھا ہے ۔دیکھیں ووٹ کس کروٹ بیٹھتا ہے؟

(انل نریندر)

अनब्रेकेबल एमसी मैरीकॉम

दसवीं महिला बॉक्सिंग चैंपियनशिप के आखिरी दिन शनिवार को स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था। यह पहला मौका था जब इतनी बड़ी संख्या में दर्शक स्टेडियम तक पहुंचे थे। वजह साफ थी। हर कोई अपनी पसंदीदा बॉक्सर एमसी मैरीकॉम को गोल्ड जीतते देखना चाहता था। मुकाबला कड़ा था। सामने थी यूकेन की 13 साल छोटी हाना ओखोट। मैरीकॉम ने अपने दशकों को निराश नहीं किया और हाना ओखोट को 5-0 से हराकर गोल्ड मैडल जीत लिया। मैरीकॉम ने टूर्नामेंट के सभी चार मुकाबले 5-0 से जीते। तीन बच्चों की मां, 35 साल की मैरीकॉम ने गोल्ड जीतकर इतिहास रच दिया। यह उनका छठवां गोल्ड मैडल है। वर्ल्ड चैंपियनशिप में छह गोल्ड जीतने वाली वह दुनिया की पहली महिला बॉक्सर हैं। जीत के बाद मैरी ने कहाöमैं इमोशनल हो रही हूं। अब 2020 ओलंपिक की तैयारी। वहां मैरी वेट कैटेगरी नहीं है। 57 किलो में खेलना होगा। उम्मीद है कि मैं क्वालीफाई कर लूंगी। वहां गोल्ड जीतना मेरा सपना है। आठ साल बाद वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारत को गोल्ड, 2010 में भी मैरीकॉम ने ही गोल्ड दिलाया था। सोनिया फाइनल में हारीं, भारत ने इस चैंपियनशिप में एक गोल्ड सहित चार मैडल जीते। इस वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में 66 देशों के खिलाड़ी उतरे। 21 देशों ने मैडल जीता। 13 देशों के खिलाड़ी फाइनल में पहुंचे। मैंने कई मुकाबले देखे, मैरीकॉम का फाइनल भी देखा। इस चैंपियनशिप के आयोजकों, आर्गेनाइजेशन वालों को सफल टूर्नामेंट पर बधाई देना चाहता हूं। अरेंजमेंट, बॉक्सिंग रिंग इत्यादि विश्व स्तरीय थे। ऐसा नहीं लग रहा था कि यह दिल्ली के स्टेडियम में प्रतियोगिता चल रही है या अमेरिका के लास वेगास में। मुकाबला जीतने के बाद मैरीकॉम के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। आखिर आठ साल बाद उन्होंने स्वर्ण पदक जीता था। यह उनकी और उनके परिवार की मेहनत, संघर्ष और त्याग का ही तो प्रतिफल है। मैरीकॉम अनब्रेकेबल है, उन्होंने 18 साल के करियर में यह बार-बार साबित किया है। खिताबी मुकाबले से ऐन पहले मैरी की तबीयत खराब हो गई थी। संसद सदस्य और तीन बच्चों की पैंतीस वर्षीय मैरीकॉम तेज दर्द से हलकान थीं। टीम प्रबंधन असमंजस में पड़ गया कि उन्हें मुकाबले में उतारा जाए या नहीं। लेकिन दवाएं लेकर फिर मुक्केबाज की तरह मैरी रिंग में उतरकर दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाते हुए हाना ही नहीं बल्कि दर्द को भी परास्त कर मुकाबले के दौरान जाहिर तक नहीं होने दिया कि दर्द से उन्हें परेशानी है। मैरीकॉम की जीत का मायना यह भी है कि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की डगर में अग्रसर अपने देश की बच्चियों के लिए मणिपुर और भारत की आइकॉन और अर्जुन अवार्ड, पद्मश्री, राजीव रत्न पुरस्कार और पद्मभूषण से नवाजी जा चुकी मैरीकॉम प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं। मैरी महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन गई हैं।

-अनिल नरेन्द्र

मध्यप्रदेश में कांग्रेस के लिए अभी नहीं तो कभी नहीं वाली स्थिति

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव अपने चरम पर है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। मतदान (28 नवम्बर) से पहले जो स्थिति है उससे यह साफ है कि चौथी पारी की तैयारी कर रही भाजपा को कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिल रही है। शायद यही वजह है कि भाजपा अपने पहले दिए गए नारे को भूल गई है। अब उसके नेता सिर्प जीत की बात कर रहे हैं और आंकड़ों का दावा उन्होंने छोड़ दिया है। लगभग सभी सर्वेक्षण इस बार मध्यप्रदेश में कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं। यह कांग्रेस के लिए स्वर्ण अवसर है। मध्यप्रदेश की सत्ता में आने के लिए भरसक प्रयास कर रही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी मानना है कि पिछले 15 वर्षों से राज्य की सत्ता से बाहर देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए अभी नहीं तो कभी नहीं वाली स्थिति है। राज्य की 230 विधानसभा सीटों पर 28 नवम्बर को मतदान होगा जबकि मतगणना 11 दिसम्बर को होगी। राज्य में हमेशा भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सीधा मुकाबला देखने को मिलता रहा है। जब सिंधिया से पूछा गया कि राज्य की सत्ता में वापस लौटने के लिए क्या कांग्रेस के पास यह बेहतर अवसर है तो पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सबसे अच्छा है या नहीं... यह अभी नहीं तो कभी नहीं। पूर्णविराम। जहां तक मुद्दों की बात है तो एंटी इनकम्बेंसी, किसानों की समस्या और बेरोजगारी सबसे बड़े मुद्दे हैं। यहां तक कि उज्जैन शहर की अर्थव्यवस्था का जो एक बड़ा आधार महाकाल का मंदिर है वहां भी राम मंदिर इतना बड़ा मुद्दा नहीं है जितना बेरोजगारी। छिंदवाड़ा जोकि कमलनाथ का पारंपरिक चुनाव क्षेत्र है वहां भी केवल एक ही मुद्दा हैöनौकरी, नौकरी और नौकरी। रायसेन में पिछले साल कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने वाले शैलेश साहू सरकारी फार्म भरते हैं, लेकिन वहां उम्मीद नहीं है। बताते हैं कि किस तरह उनके एक दोस्त को इंजीनियरिंग की डिग्री के बाद 8000 रुपए महीने की नौकरी मिली है और घर में उसे सभी ताने मारते हैं। एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में भाजपा की 15 साल की एंटीइनकंबेसी, जीएसटी, नोटबंदी, किसानों की नाराजगी और दलित एक्ट ने विधानसभा चुनाव की लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है, कोई लहर नहीं है। चाहे जिससे बात करिए, उत्तर होता हैöटक्कर कांटे की है। आम लोग मन की बात नहीं बताते। ऐसी प्रक्रिया देते हैं जिसका ठोस निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। यहां तक कि विशेषज्ञ भी हवा का रुख नहीं भांप पा रहे हैं, 230 सीटों में से करीब तीन दर्जन सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष चल रहा है। बसपा-सपा और बागियों ने भाजपा-कांग्रेस दोनों की नाक में दम कर रखा है। देखें, ऊंट किस करवट बैठता है?

Sunday, 25 November 2018

بڑے ستارے ،بڑے بجٹ کی فلم کامیاب ہونے کی گارنٹی نہیں

ٹھگس آف ہندوستان سے پانچ سو کروڑ روپئے کی کمائی کی امید لگائی جا رہی تھی لیکن تاریخ گواہ ہے کہ بڑے بجٹ سے بڑے ستاروں کے ساتھ بنی مہنگی فلمیں تاش کے پتوں کی طرح بکھرتی رہی ہیں ۔کچھ فلمیں ایسی ہوتی ہیں جن سے امید ہوتی ہے لیکن اتنی بھی نہیں کہ وہ بڑی فلمیں مان لی جائیں ایسی سرپارائز ہٹ فلمیں بھی ہیں جن کے سکیول بھی ہٹ ہو رہے ہیں فلم صنعت دیوالی کی آتش بازی ختم ہونے کے بعد سناٹے اور اندھیرے میں ڈوبی ہوئی ہے پہلی بار بنی عامر خاں اور امیتابھ بچن کی جوڑی سے جیسی امیدیں فلم صنعت نے باندھی ہوئی تھیں ان کے لاکھون فین نے ان کی بات ہونا تو دور رہی بلکہ اس جوڑی کی فلم نے مایوسی پیدا کر دی ہے۔وجے کرشن آچاریہ کی ہدایت میںبنی ٹھگس آف ہندوستان پر پانی کی طرح پیسہ بہایا گیا مہنگے سیٹس بنائے گئے تھے مگر تین سو کروڑ میں بنی یہ میگا بجٹ فلم اپنی اسٹار کاسٹ کے باوجود ریلیز کے دوسرے دن ہی فلاپ ہو گئی کہاں اس فلم سے پانچ سو کروڑ روپئے کی کمائی کی امید لگائی جا رہی تھی وہاں اب دو سو کروڑ سے اوپر کمائی پہنچنے کی دور دور تک امید نہیں ہے یہ فلم بالی ووڈ کی سب سے بڑی ناکام فلم ثابت ہونے جا رہی ہے ۔بالی ووڈ کی تاریخ گواہ ہے دس بڑی بجٹ سے بڑے ستاروں کے ساتھ بنی مہنگی فلموں کے فلاپ ہونے کی لسٹ لمبی ہے کچھ ایسی فلمیں بھی ہوتی ہیں جن سے زیادہ امید نہیں ہوتی لیکن وہ امید سے کہیں زیادہ بجنس کر لیتی ہیں ۔حال ہی میں ریلیز ہوئی پیار کا پنچنامہ اور اس کا سکیول اسی سال ریلیز سونو کے ٹیٹو کی سیوٹی کے بڑی ہٹ فلم ہونے کی امید نہیں تھی لیکن سیوٹی نے تو سو کروڑ کلب میں جا کر کما ل کر دکھایا اسی طرح عرفان خان کی فلم ہندی میڈیم اجے دیوگن کی فلم ریڈ ،کنگنا رناوت دی دو فلمیں کیون اور تنو ویڈس منو ،ادتیہ رام کپور اور شردھا کپور کی فلم آشقی 2آیوشمان کھرانا کی فلم وکی ڈونر وغیرہ نے باکس آفس میں امیدوں سے کہیں زیادہ بجنس دیا ۔نتیجہ یہی نکلتا ہے کہ فلم کی اسٹوری اچھی ہونی چاہئیے مقالے ایسے ہوں جو ناظرین کو چھو جائیں تبھی فلم ہٹ ہوتی ہے ۔مہض بڑا اسٹار،سپر اسٹار ہونا فلم کی گارنٹی نہیں ہوتی ۔امیتابھ بچن ،شاح رخ خان ،عامر خان یہاں تک کہ سلمان خان جیسی ستاروں کی فلمیں بھی اچھا کاروبار نہیں دے سکیں ۔چھوٹی فلموں کے ہٹ ہونے کا زیادہ چلن شروع ہو گیا ہے ۔اکشے کمار کی فلمیں بے شک اتنے بڑے بجٹ کی نہ ہوں لیکن وہ چلتی ہیں ۔بہر حال ٹھگس آف ہندوستان کا فلاپ ہونا بے حد مایوس کن ہے ۔

(انل نریندر)

बड़े सितारे, बड़े बजट की फिल्म के कामयाब होने की गारंटी नहीं

ठग्स ऑफ हिन्दुस्तान से 500 करोड़ रुपए की कमाई की उम्मीद लगाई जा रही थी, लेकिन इतिहास गवाह है कि बड़े बजट से, बड़े सितारों के साथ बनी महंगी फिल्में ताश के पत्तों की तरह भी ढहती रही हैं। कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जिनसे उम्मीद होती है लेकिन इतनी भी नहीं कि वह बड़ी फिल्में मान ली जाएं। ऐसी सरप्राइज हिट फिल्में भी हैं, जिनके सीक्कवल भी हिट रहे हैं। फिल्म उद्योग दीवाली की आतिशबाजी खत्म होने के बाद सन्नाटे और अंधेरे में डूबा हुआ है। पहली बार बनी आमिर खान और अमिताभ बच्चन की जोड़ी से जैसी उम्मीदें फिल्म उद्योग को बांधी थीं, इनके लाखों फैन ने भी बांधी थीं, पूरी होने की बात तो दूर, इस जोड़ी की फिल्म ने उन्हें निराशा की गहराई तक धकेल दिया है। विजय कृष्ण आचार्य के निर्देशन में बनी ठग्स ऑफ हिन्दुस्तान पर पानी की तरह पैसा बहाया गया था। महंगे सेट्स खड़े किए गए थे, मगर 300 करोड़ में बनी यह मेगा बजट फिल्म अपनी स्टार कास्ट के बावजूद रिलीज के दूसरे दिन ही ध्वस्त हो गई। जहां इस फिल्म से 500 करोड़ रुपए की कमाई की उम्मीद लगाई जा रही थी, वहां अब 200 करोड़ रुपए से ऊपर पहुंचने की कोई संभावना दूर-दूर तक नहीं है। ठग्स ऑफ हिन्दुस्तान बॉलीवुड की बड़ी असफल फिल्म साबित होने जा रही है। बॉलीवुड की फ्लॉप होने वाली मेगा बजट फिल्म सिर्प ठग्स ऑफ हिन्दुस्तान ही नहीं बॉलीवुड का इतिहास गवाह है कि दसियों बड़े बजट से बड़े सितारों के साथ बनी महंगी फिल्मों के फ्लाप होने की लिस्ट लंबी है। कुछ ऐसी फिल्में भी होती हैं जिनसे ज्यादा उम्मीद नहीं होती पर वह उम्मीद से कहीं ज्यादा बिजनेस कर लेती हैं। हाल ही में रिलीज हुई प्यार का पंचनामा और इसका सीक्कवल तथा इसी साल रिलीज सोनू के टीटू की स्वीटी के बड़ी हिट फिल्म होने की उम्मीद नहीं थी। सोनू के टीटू की स्वीटी ने तो 100 करोड़ क्लब में जाने का कमाल कर दिखाया। इसी प्रकार इरफान खान की फिल्म हिन्दी मीडियम, अजय देवगन की फिल्म रेड, कंगना रनौत की दो फिल्मों क्वीन और तनु वेड्स मनु, आदित्य राजकपूर और श्रद्धा कपूर की फिल्म आशिकी-2, आयुष्मान खुराना की फिल्म विक्की डोनर और दम लगा के हईशा इत्यादि ने बॉक्स ऑफिस पर उम्मीदों से कहीं ज्यादा बिजनेस किया। निष्कर्ष यही निकलता है कि फिल्म का कंटेंट अच्छा होना चाहिए, उसकी कहानी, डायलॉग ऐसे हों जो दर्शकों को छू जाएं तभी फिल्म हिट होती है। महज बड़ा स्टार, सुपर स्टार होने से फिल्म के हिट होने की गारंटी नहीं होती। अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, आमिर खान यहां तक कि सलमान खान स्टारर फिल्में भी अच्छा बिजनेस नहीं कर पाईं। छोटी फिल्मों के हिट होने का ज्यादा प्रचलन शुरू हो गया है। हां, अक्षय कुमार की फिल्म बेशक इतने बड़े बजट की फिल्में न हों पर वह चलती हैं। ठग्स ऑफ हिन्दुस्तान का फ्लाप होना बेहद निराशाजनक है।

-अनिल नरेन्द्र

گورنر نے تو سبھی کے پاﺅں تلے زمین کھسکا دی

جموں کشمیر میں بدھوار کو سیاسی ہلچل تیزی سے بدلی اور صبح ریاست میں سرکار کی تشکیل کے لئے پی ڈی پی ،کانگریس اور نیشنل کانفرنس کے درمیان اتحاد کی بات بن گئی تو شام کو پی ڈی پی کی چیف محبوبہ مفتی نے سرکار بنانے کا دعوی پیش کیا اس کے ٹھیک بعد پیپلز کانفرنس کے لیڈر سجاد لون نے بھی دعوی پیش کر دیا لیکن تھوڑی ہی دیر بعد گورنر ستیہ پال ملک نے اسمبلی بھنگ کرنے کا اعلان کر دیا ۔گورنر کے اس فیصلے سے سیاسی طوفان آگیا اور اس فیصلے کی مخالفت اور حمایت بھی ہو رہی ہے ۔گورنر نے جموں و کشمیر اسمبلی بھنگ کرنے کی چار دلیلیں پیش کی ہیں ۔ایک برعکس نظریات والی سیاسی پارٹیوں کے ساتھ آنے سے پائیدار سرکار بنانا نا ممکن تھا ،ان میں وہ پارٹیاں بھی شامل تھیں جو اسمبلی کو بھنگ کرنے کی مانگ کر رہی تھیں ۔پچھلے کچھ برسوں کا تجربہ رہا ہے ،مخلوط ماینڈیڈ کے ساتھ پائیدار سرکار بنانا ممکن نہیں ہوتا جو پارٹیاں ساتھ آئی تھیں وہ ذمہ دار سرکار بنانے کی جگہ اقتدار پانے کی کوشش میں تھیں ۔دوسرا :سرکار بنانے کے لئے دیگر ممبران اسمبلی کی حمایت ضروری تھی ایسے میں خرید و فرخت اور پیسے کے لین دین کے امکانات زیادہ تھے ۔ریاست میں اس طرح کی بھی رپورٹ مل رہی تھی کہ جمہوریت کے لئے اس طرح کی سر گرمیاں مفاد میں نہیں تھیں اور اسے سیاسی عمل آلودہوتا اس لئے اسمبلی بھنگ کرنے کا فیصلہ کرنا پڑا ۔تیسرا:اگر برعکس نظریات والی پارٹیوں کی سرکار بن بھی جاتی تو اس کے لمبے چلنے میں شبہ تھا ۔عکسریت حاصل کرنے کے چکر میں ان میں کبھی بھی ٹوٹ پھوٹ ہو جاتی اور سرکار مضبوط نہ ہوتی ۔چوتھی:ریاست میں سلامتی پس منظر کو دیکھتے ہوئے یہاں دہشتگردی مخالف کارروائیوں میں تعینات سیکورٹی فورس کے لئے جو کہ آہستہ آہستہ حالات پر قابو پانے لگی ہے ۔ایک مضبوط اور اتحادی ماحول کی ضرورت ہے ۔بیشک گورنر کی دلیلوں میں دم ہے لیکن اس فیصلے کی مخالفت کرنے والوں کا کہنا ہے کہ آئین اور روایت کا تقا ضہ تو یہی تھا کہ گورنر سب سے پہلے سب سے بڑئے اتحاد کو سرکار بنانے کےلئے مدعو کرتے اور اسے اسمبلی میں جلدی اپنی عکسریت ثابت کرنے کو کہتے گورنر ستیہ پال ملک جیسے منجھے ہوئے سیاست داں کو صوبے کا گورنر بنا کر بھاجپا نئے ساتھیوں کے ساتھ مل کر اپنی سرکار بنانا چاہتی تھی اسے سجاد لون کی شکل میں ایک نیا ساتھی بھی ملا جو پی ڈی پی اور دوسری پارٹیوں کے باغی ممبران کو اپنے ساتھ لانے کی حکمت عملی پر آگے بڑھ رہے تھے ۔اس نئے سیاسی تجزئے کو سمجھتے ہی تلوار اور ڈھال کی طرح ایک دوسرے سے ملنے والی پی ڈی پی اور نیشنل کانفرنس ایک ساتھ آنے پر رضا مند ہو گئیں ان کا ایک ساتھ اسٹیج پر آنا کسی کو بھی حیرت میں ڈال سکتا ہے کیونکہ جموں وکشمیر کو خصوصی ریاست کا درجہ بچائے رکھنا اور بھاجپا کو اقتدار سے دور رکھنے کے بجائے ان کے درمیان عام رائے کے سبھی اشو ندارد ہیں ۔لیکن پی ڈی پی اور نیشنل کانفرنس و کانگریس کے ایک اسٹیج پر آنے سے یہ طے ہو گیا تھا کہ سرکار بنانے کے لئے ضروری اکثریت تو حاصل کر لیتے۔ایسی صورت میں بھاجپا کے مرکزی لیڈر شپ کے پاس دو ہی متابادل تھے پہلے اسمبلی بھنگ کر کے نئے چناﺅ کرانا اور صوبے میں غیر بھاجپا حکومت بنتے دیکھنا ۔اسمبلی بھنگ کر کے گورنر ملک نے پی ڈی پی نیشنل کانفرنس و کانگریس کو تو اتنا نہیں چونکایا جتنا اس نے بھاجپا کو حیرت میں ڈال دیا ہوگا کیونکہ صحیح معنوں میں مرکز میں قائم بھاجپا سرکار کے ان قدموں کو بھی روک دیا جس کے تحت بھاجپا سجا د لون کے کندھوں پر بندوق رکھ سرکار بنانا چاہتی تھی اور مانا کہ دو ممبر ہونے کے باوجود وہ سرکار بنانے کا دعوی کرنے کی پوزیشن کو مضحکہ خیز بنانے جا رہے تھے ۔

(انل نریندر)

राज्यपाल ने तो सभी के पांव तले जमीन खिसका दी

जम्मू-कश्मीर में बुधवार को सियासी घटनाक्रम तेजी से बदला। सुबह राज्य में सरकार गठन के लिए पीडीपी, कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के बीच गठबंधन की बात तय हुई तो शाम को पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने सरकार बनाने का दावा पेश किया। इसके ठीक बाद पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद लोन ने भी दावा पेश कर दिया। लेकिन थोड़ी ही देर में राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विधानसभा भंग करने का ऐलान कर दिया। राज्यपाल के इस फैसले से सियासी तूफान आ गया। राज्यपाल के फैसले का विरोध भी हो रहा है और समर्थन भी। राज्यपाल ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग करने के चार तर्प दिए। पहलाöविपरीत विचारधारा वाली राजनीतिक पार्टियों के एक साथ आने से स्थिर सरकार बनाना असंभव था। इनमें वह पार्टियां भी शामिल थीं, जो विधानसभा भंग करने की मांग कर रही थीं। पिछले कुछ सालों का अनुभव रहा है कि टूटे जनादेश के साथ स्थिर सरकार बनाना संभव नहीं होता। जो पार्टियां एक साथ आई थीं, वह जिम्मेदार सरकार बनाने की जगह सत्ता पाने की कोशिश में थीं। दूसराöसरकार बनाने के लिए अन्य विधायकों का समर्थन जरूरी था। ऐसे में हार्स ट्रेडिंग यानि खरीद-फरोख्त और पैसे के लेन-देन की संभावनाएं अधिक थीं। रियासत में इस तरह की रिपोर्ट भी मिल रही थी। लोकतंत्र के लिए इस तरह की गतिविधियां हितकारी नहीं थीं। इससे राजनीतिक प्रक्रिया दूषित होती, इसलिए विधानसभा भंग करने का फैसला करना पड़ा। तीसराöअगर विपरीत विचारधारा वाले दलों की सरकार बन भी जाती तो उसके लंबे चलने में गहरा संदेह था। बहुमत हासिल करने के चक्कर में कभी भी इनमें टूट होती। सरकार स्थिर न होती। चौथाöरियासत में सुरक्षा परिदृश्य को देखते हुए यहां आतंक निरोधी ऑपरेशनों में तैनात सुरक्षा बलों के लिए, जोकि धीरे-धीरे हालातों पर नियंत्रण पाने लगे हैं, एक स्थिर और सहयोगी वातावरण की जरूरत है। बेशक राज्यपाल के तर्कों में दम है पर इस फैसले का विरोध करने वालों का कहना है कि संविधान और परंपरा का तकाजा तो यही था कि राज्यपाल सबसे बड़े गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते और उसे विधानसभा में जल्दी अपना बहुमत साबित करने को कहते। सत्यपाल मलिक जैसे मंजे हुए राजनीतिज्ञ को सूबे का राज्यपाल बनाकर भाजपा नए सहयोगी के साथ मिलकर अपनी सरकार बनाना चाहती थी। उसे सज्जाद लोन के रूप में एक नया सहयोगी भी मिला जो पीडीपी और दूसरे दलों के असंतुष्टों को अपने साथ लाने की रणनीति पर आगे बढ़ रहे थे। इस नए राजनीतिक समीकरण को समझते ही तलवार और ढाल की तरह एक-दूसरे से मिलने वाली पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस एक साथ आने पर सहमत हो गई। इनका एक साथ मंच पर आना किसी को भी आश्चर्य में डाल सकता है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को बचाए रखना और भाजपा को सत्ता से दूर रखने के सिवाय इनके बीच आम सहमति के सभी मुद्दे नदारद हैं। लेकिन पीडीपी-नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस को एक मंच पर आने से यह तय हो गया था कि सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत वह जुटा लेते। ऐसी सूरत में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के पास दो ही विकल्प थेöविधानसभा भंग करके नया चुनाव कराना और सूबे में गैर-भाजपा सरकार  बनते देखना। विधानसभा भंग करके राज्यपाल मलिक ने पीडीपी, नेकां और कांग्रेस को तो इतना नहीं चौंकाया जितना उन्होंने भाजपा को चौंकाया होगा क्योंकि सही मायनों में उन्होंने केंद्र में स्थापित भाजपा सरकार के उन कदमों को भी रोक दिया है जिसके तहत भाजपा सज्जाद गनी लोन के कांधों पर बंदूक रखकर सरकार बनाना चाहती थी और मात्र दो विधायक होने के बावजूद वह सरकार बनाने का दावा कर स्थिति को हास्यास्पद बनाने जा रहे थे।

Saturday, 24 November 2018

जोगी-माया से छत्तीसगढ़ में मुकाबला हुआ त्रिकोणीय

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो चुका है। मंगलवार को यहां अंतिम चरण में 72 सीटों पर लगभग 72 ही फीसदी वोटिंग दर्ज की गई। यह आंकड़ा बढ़ा है। दूसरे चरण में पहले चरण की 18 सीटों पर 76 फीसदी से अधिक वोट डाले गए थे, अगर दोनों चरणों की वोटिंग को जोड़ें तो औसत आंकड़ा 74 फीसदी से अधिक है। इन सीटों को जीतने के लिए कांग्रेस-भाजपा और मायावती-अजीत जोगी गठबंधन ने पूरी ताकत झोंक दी है। पर पिछली बार करीब दो दर्जन ऐसी सीटें रहीं, जिन पर हार-जीत का फासला कुल पड़े वोटों के पांच फीसदी से भी कम था। इन सीटों पर तमाम गणित के बावजूद पार्टियों की सांसें अटकी हैं। उनकी सांसें पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की एंट्री से और तेज हो गई हैं। राज्य की सत्ता भारतीय जनता पार्टी के पास ही रहेगी या 15 साल बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी होगी या फिर मायावती-अजीत जोगी की पार्टियों के गठबंधन के रूप में उभरे तीसरे मोर्चे के हाथ सत्ता की चाबी रहेगी? पिछले चुनाव में भाजपा को 49 सीटों के मुकाबले कांग्रेस को 39 सीटें मिली थीं। लेकिन दोनों दलों को पूरे राज्य में मिले वोट का अंतर महज 97 हजार (0.7 फीसदी) का ही था। कुल 90 सीटों पर हार-जीत का अंतर 5000 से कम था। तखतपुर में भाजपा ने कांग्रेस को महज 567 वोट से तो बिल्ला और मोहाला में कांग्रेस ने भाजपा को केवल 950 और 956 वोटों से हराया था। लेकिन तब अजीत जोगी कांग्रेस के साथ थे। इस बार जोगी-बसपा की सभी 90 सीटों पर मौजूदगी है और कई सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बागी भी चुनाव को चतुष्कोणीय बना रहे हैं। इससे हार-जीत का अंतर कम होने की संभावना है। इस बार छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रचार बहुत तीखा रहा। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जमकर प्रचार किया। इनके अलावा अमित शाह और नवजोत सिंह सिद्धू भी सक्रिय रहे। राहुल लगातार राफेल का मुद्दा उठाते रहे तो मोदी परिवारवाद के जरिये राहुल पर तीखे प्रहार करते दिखे। उल्लेखनीय है कि पहले चरण में आठ नक्सल प्रभावित जिलों की 18 सीटों पर 12 नवम्बर को मतदान हुआ था। नक्सलियों की तमाम धमकियों के बावजूद 76.28 फीसदी वोट पड़े। बैलेट ने बुलेट को मात दे दी। इन चुनावों के परिणाम वैसे तो 11 दिसम्बर को आने हैं पर सर्वे शुरू हो चुके हैं। पर हिन्दुस्तान टाइम्स डॉट कॉम के एक सर्वेक्षण के अनुसार छत्तीसगढ़ में भाजपा फिर जीत की ओर बढ़ेगी। इस सर्वे के अनुसार भाजपा को 42-43 सीटें मिलने की संभावना है जबकि कांग्रेस 36-37 सीटों तक पहुंच सकती है। अजीत जोगी-मायावती गठबंधन को सात सीटों पर जीतने की भविष्यवाणी की गई है। यह सर्वे सट्टेबाजों के भावों पर आधारित है। फिलहाल सभी संबंधित उम्मीदवारों की सांसें अटकी पड़ी हैं।

-अनिल नरेन्द्र

टीवी एंकर पर सोमनाथ भारती की अभद्र टिप्पणी

आम आदमी पार्टी के विधायक और पूर्व मंत्री सोमनाथ भारती अपने बेअदबी और गंदी जुबान के लिए पहले भी चर्चा में आ चुके हैं। इस बार तो उन्होंने बदजुबानी में सारी हदें पार कर दीं। मामला सुदर्शन न्यूज में एक महिला एंकर से बदजुबानी का है। सोमनाथ भारती ने चैनल की एंकर को वो शब्द कहे जिन्हें मैं यहां दोहराना नहीं चाहता। मैंने वह वीडियो क्लिप देखा है जहां महिला एंकर को गलत शब्द कहे गए। एक वकील कम विधायक इस प्रकार की भाषा बोल सकता है मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। इस क्लिप के वायरल होने पर सोमनाथ भारती ने सोशल मीडिया पर माफी तो मांगी लेकिन साथ ही चैनल को धमकी भी दे डाली कि आगे से कोई भी आप नेता उनके चैनल को बाइट नहीं देगा। सोमनाथ भारती ने ट्विटर पर लिखा कि यह पूर्ण रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है। न्यूज चैनल (सुदर्शन न्यूज) अपनी टीआरपी के चक्कर में फोनों पर कही गई मेरी बात को तोड़-मरोड़ कर दिखा रहा है। मैं सभी महिलाओं को शक्ति के रूप में मानता हूं और उनकी इज्जत करता हूं। हालांकि मेरे शब्द महिला पत्रकार के लिए नहीं थे लेकिन अगर मेरे शब्दों से उन्हें ठेस पहुंची है तो मैं माफी मांगता हूं। साथ ही चैनल से यह अपील करता हूं कि वह टीआरपी बढ़ाने और पब्लिसिटी पाने के लिए स्टंट न करें। 17 मिनट 33 सैकेंड्स में से केवल 20 सैकेंड के हिस्से को सार्वजनिक करना यह साबित करता है कि आपका चैनल भाजपा का एक औजार है। सोमनाथ भारती पर एक महिला पत्रकार ने एफआईआर दर्ज करा दी है। दिल्ली के वसंत पुंज की रहने वाली महिला पत्रकार रंजना अंकित द्विवेदी सेक्टर-57 (नोएडा) स्थित एक मीडिया हाउस में टीवी एंकर पर कार्यरत है। उनका कहना है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री की आंखों पर मिर्ची फेंकने के मामले में मंगलवार को उनके टीवी चैनल पर एक कार्यक्रम किया गया है। उन्होंने इसी उद्देश्य से मंगलवार को टीवी पर चल रहे लाइव डिबेट के दौरान मालवीय नगर से आप विधायक सोमनाथ भारती से जनता की नाराजगी से जुड़े कुछ सवाल पूछे थे। इसके जवाब में उन्होंने गंदी-गंदी गालियां दीं और भाजपा का दलाल कहने के साथ कई अमर्यादित और अश्लील भाषाओं का इस्तेमाल कर चैनल को बंद तक कराने की धमकी दे डाली। उन्होंने महिला थाना पुलिस को डिबेट के दौरान रिकॉर्ड हुई वीडियो की फुटेज भी सौंपी है। महिला थाना प्रभारी इंस्पेक्टर सीता कुमारी का कहना है कि पत्रकार की शिकायत पर रिपोर्ट दर्ज कर जांच की जा रही है। भारती के खिलाफ आईपीसी की धारा 504 और 509 के तहत मुकदमा भी दर्ज हुआ है। धारा 504 यानि अपमानित करने में अधिकतम दो वर्ष की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। वहीं धारा 509 यानि महिला की लज्जा को अपमानित करने में अधिकतम तीन वर्ष की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। आप पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि सोमनाथ भारती को टीवी पर इस प्रकार की टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी।

Friday, 23 November 2018

वसुंधरा के मुकाबले मैदान में उतरे मानवेंद्र सिंह

राजस्थान में कांग्रेस ने अपनी पार्टी के सभी दिग्गज चेहरों को टिकट देने के बाद सत्तारूढ़ भाजपा के महारथियों को घेरने की रणनीति के तहत झालरापाटन सीट से लड़ रही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ पूर्व भाजपा नेता जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह को उतारने का ऐलान किया है। कांग्रेस हाई कमान ने भाजपा के दिग्गज जसवंत सिंह के बेटे को ठीक उसी समय वसुंधरा के खिलाफ उम्मीदवार बनाने की घोषणा की, जब मुख्यमंत्री अपना पर्चा दाखिल कर रही थीं। वसुंधरा के खिलाफ राजनीतिक पृष्ठभूमि के चर्चित चेहरे को उतार कर कांग्रेस ने राजस्थान में दोहरा सियासी दांव चलने का साफ संदेश दिया है। मानवेंद्र सिंह की उम्मीदवारी के जरिये यह संकेत देने की कोशिश है कि जब मुख्यमंत्री के लिए विधानसभा का चुनाव आसान नहीं तो सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही भाजपा की राह कितनी कठिन है। भाजपा का लगभग पूरा चुनावी दारोमदार वसुंधरा पर है। ऐसे में सीएम को अपने क्षेत्र में ज्यादा समय देना पड़ा तो वह अन्य सीटों के लिए चुनावी प्रचार न करने से पार्टी को नुकसान हो सकता है। झालरापाटन की सीट पारंपरिक रूप से भाजपा के खाते में रही है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे 2003 से यहां से तीन बार विधायक चुनी जा चुकी हैं और चौथी बार अपनी दावेदारी कर रही हैं। 2013 के पिछले विधानसभा चुनाव में वह 60869 वोटों से जीती थीं। उन्हें 63.14 फीसद वोट मिले तो दूसरे स्थान पर रहीं मीनाक्षी चन्द्रावत की झोली में 29.53 फीसद वोट आए थे। इस सीट पर कुल लगभग ढाई लाख मतदाता हैं। दूसरी ओर मानवेंद्र सिंह के पिता और भाजपा के वरिष्ठतम नेताओं में से एक रहे जसवंत सिंह पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं। पार्टी ने वर्ष 2014 में जसवंत सिंह को टिकट नहीं दिया था। माना जाता है कि मानवेंद्र सिंह और उनके परिवार के मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से रिश्ते अच्छे नहीं थे। मानवेंद्र सिंह ने अक्तूबर में बाड़मेर में स्वाभिमान रैली की और भाजपा से औपचारिक रूप से अलग हो गए। इसके बाद वह पिछले महीने कांग्रेस में शामिल हुए। इस मुकाबले के चलते अब पूरे प्रदेश में झालरापाटन सीट सबसे अहम बन गई है और रोचक मुकाबला होने का आसार है। मानवेंद्र सिंह के मैदान में आने से अब इस सीट पर राजे का राजपूत समीकरण गड़बड़ा गया है। टिकट मिलने के बाद कांग्रेस के उम्मीदवार मानवेंद्र सिंह ने कहा कि वो वसुंधरा राजे को पूरी ताकत से चुनौती देंगे। मानवेंद्र की उम्मीदवारी के सहारे कांग्रेस ने राजस्थान में भाजपा के मजबूत ठाकुर वोट बैंक में भी सेंध लगाने का दांव चला है। वसुंधरा सूबे में ठाकुर समुदाय की निर्विवाद सबसे बड़ी नेता हैं। मगर जसवंत Eिसह के परिवार की भी उनके इलाके में अपनी पकड़ है। हालांकि भाजपा के लिए राहत की बात है कि झालरापाटन मानवेंद्र के लिए नया क्षेत्र है। चुनाव में तीन हफ्ते से कम समय ही बचा है और वसुंधरा को उनकी परंपरागत सीट पर मात देना उनके लिए आसान नहीं होगा।

-अनिल नरेन्द्र

सिख कत्लेआम में पहली बार 34 साल बाद फांसी की सजा

1984 के सिख दंगों में जिसमें 5000 सिख पूरे देश में मारे गए थे में जिस एक मामले में पुलिस क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर चुकी थी उसमें 34 साल बाद दो आरोपियों को सजा दिलाना इतना आसान नहीं था। इसके पीछे तीन साल पहले ही केंद्र सरकार द्वारा गठित एसआईटी की कड़ी मेहनत छिपी है। केंद्र सरकार ने दंगा पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए 2015 में ही इस नई एसआईटी का गठन किया था। जिसमें दिल्ली पुलिस के तेजतर्रार ऑफिसर कुमार ज्ञानेश भी शामिल हैं। उनके अलावा एसआईटी में रिटायर्ड आईपीएस प्रमोद अस्थाना और रिटायर्ड सेशन जज राकेश कुमार भी सदस्य थे। एसआईटी ने 32 साल पुराने केस में जब जड़ें खोदनी शुरू कीं तो पुलिस को अहम साक्ष्य और गवाह मिले। इस टीम का गंभीर मामलों में तकड़ा इंवेस्टीगेशन का तजुर्बा टीम के काम आया। सिख दंगों में महिपालपुर में दो लोगों की हत्या के मामले में इंस्पेक्टर अनिल और जगदीश की टीम ने विदेशों तक में गवाहों को ढूंढा। जिसमें एक गवाह इटली में मिला था। वह मृतक अवतार सिंह का भाई रतन सिंह था। उसकी गवाही इस मामले में काफी अहम साबित हुई। आरोपियों को सजा के बाद सिख दंगों के मामले में दिल्ली पुलिस की साफ छवि भी सामने आई है। पटियाला हाउस स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अजय पांडे की अदालत ने मामले के दोषी यशपाल सिंह को फांसी की सजा सुनाते हुए महिपालपुर घटना का जिक्र किया है। वहीं दोषी नरेश सहरावत को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। अदालत ने सिख दंगों को मानवता के खिलाफ अपराध मानते हुए नरसंहार की श्रेणी में रखा है। अदालत ने संगत सिंह, कुलदीप सिंह व सुरजीत सिंह की चश्मदीद गवाही को फैसले का अहम आधार मानते हुए कहा कि इन तीनों गवाहों के बयान महज उनकी आपबीती पर आधारित नहीं, बल्कि अस्पताल के रिकॉर्ड से भी इसकी पुष्टि हुई है। नवम्बर 1984 को महिपालपुर इलाके में गंभीर रूप से जले पांच सिखों को मरा मानकर पुलिस अस्पताल लेकर पहुंची। पांचों को डाक्टर के सामने शव के रूप में लाया गया लेकिन डाक्टर ने जांच की तो पता चला कि तीन लोगों में सांस आ रही है, जबकि दो लोग मर चुके हैं। तीन जले लोगों को वार्ड में भर्ती करा दिया गया। यही तीन जिन्दा बचे लोगों में संगत सिंह, कुलदीप सिंह व सुरजीत सिंह ने मंगलवार को यशपाल सिंह के खिलाफ फांसी का फंदा तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। घटना की पीड़ा को उठाते हुए अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड बताते हैं कि महिपालपुर स्थित संगत सिंह व अवतार सिंह की दुकान पर उन्मादी भीड़ पहुंची और दुकान को लूटना शुरू किया, यह दोनों भाई वहां से भाग निकले। रास्ते में इन्हें हरदेव सिंह व कुलदीप सिंह भी अपनी जान बचाने के लिए भागते दिखे। इन चारों ने अपने साथी सिख एवं कार्गो कंपनी में कार्यरत सुरजीत सिंह के घर पर शरण ली। यह पांचों वहां छिप गए और खिड़की से बाहर के हालात देखने लगे। तभी वहां उन्मादी भीड़ पहुंची, भीड़ का नेतृत्व यशपाल और नरेश कर रहे थे। भीड़ ने सुरजीत के घर की खिड़की रॉड से तोड़ी और फिर पांचों सिखों की बुरी तरह पिटाई की। इन पर मिट्टी का तेल डाला गया और आग लगा दी गई। पांचों सड़क पर पड़े थे। मौके पर पहुंची पुलिस ने अवतार सिंह, हरदेव सिंह, कुलदीप सिंह, संगत सिंह व सुरजीत को मरा मानकर वहां से उठाया और उन्हें राम मनोहर लोहिया अस्पताल लेकर पहुंच गई। डाक्टरों ने जब जांच की तो संगत सिंह, कुलदीप सिंह व सुरजीत की सांस चल रही थी जबकि हरदेव और अवतार सिंह मर चुके थे। 33 साल बाद में तीनों चश्मदीद गवाह के तौर पर अदालत के समक्ष खड़े थे, इन्होंने ही यशपाल सिंह व नरेश सहरावत को पहचाना और यही इन अभियुक्तों की सजा का आधार बने। एसआईटी चौरासी के दंगों में आठ मामलों में आरोप पत्र दाखिल कर चुकी है, जिसमें यह पहले मामले में फैसला आया है। फैसले को हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी पर हमें नहीं लगता कि इस केस में ठोस सबूतों के चलते फैसले में कोई ठोस परिवर्तन होगा। ज्यादा से ज्यादा फांसी की सजा उम्रकैद में बदल सकती है। जहां हमें इस बात का संतोष है कि 34 साल बाद सिख दंगों में आखिरकार कुछ तो न्याय मिला है, वहीं हम उम्मीद करते हैं कि इस राष्ट्रीय शर्म के मामले में अन्य केसों में भी इसी तरह की गहन जांच होगी और मानवता के खिलाफ किए गए अपराध में अपराधियों को सजा मिलेगी।

Thursday, 22 November 2018

लौंगोवाल के असल हीरो

बॉर्डर फिल्म दो बातों के लिए हमेशा याद रहेगी। पहली तो थी कि मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी की अभूतपूर्व बहादुरी और दूसरी थी उपहार सिनेमा (दिल्ली) में इस फिल्म के प्रदर्शन के समय भयंकर आग लगना। उपहार सिनेमा के मालिक अंसल बंधु अभी तक उसका खामियाजा भुगत रहे हैं। फिल्म का गाना संदेशे आते हैं हमें तड़पाते हैं, जो चिट्ठी आती है वो पूछे जाती है, के घर कब आओगे, लिखो कब आओगे, तुम बिन से घर सूना-सूना है...। यह उस फिल्म का गाना है जो भारतीय सेना के मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के जीवन पर बनी थी। लौंगोवाल युद्ध के असली हीरो और महावीर चक्र विजेता चांदपुरी का निधन शनिवार को मोहाली के एक निजी अस्पताल में हो गया। चांदपुरी के बड़े बेटे हरदीप सिंह चांदपुरी ने बताया कि इस साल 22 अगस्त को ही उनके कैंसर के बारे में पता चला था। 1971 में भारत-पाक युद्ध के समय लड़े गए पश्चिमी सेक्टर के राजस्थान के मनुस्थल में लौंगोवाल चौकी पर मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी थे। युद्ध के समय उनका अदम्य साहस इतिहास में दर्ज हो गया। महज 22 साल के चांदपुरी पंजाब रेजिमेंट की 23वीं बटालियन की अगुवाई कर रहे थे। उन्होंने महज 90 भारतीय सैनिकों के साथ पाकिस्तान के 2000 सैनिकों को परास्त किया था। लौंगोवाल चौकी पर चांदपुरी को सूचना मिली थी कि दुश्मन बड़ी संख्या में उनकी तरफ बढ़ रहे हैं। चांदपुरी ने भारतीय सेना से मदद मांगी जो नहीं मिल पाई। अब उनके सामने यही था कि पीछे लौटें या मौजूदा संसाधनों के साथ दुश्मन का मुकाबला करें। चांदपुरी अपनी टुकड़ी की हौंसला अफजाई करते हुए पूरी रात लड़े और दुश्मनों को पीछे लौटने पर मजबूर कर दिया। इसके लिए उन्हें वीरता पुरस्कार महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा वीरता सम्मान है। लौंगोवाल का युद्ध और उसमें चांदपुरी के नायकत्व की अहमियत बताने के लिए जेपी दत्ता ने बॉर्डर फिल्म बनाई। इस फिल्म में कुलदीप सिंह चांदपुरी की भूमिका सन्नी देओल ने बाखूबी निभाई थी। सन्नी देओल की एक्टिंग देखने वाली थी और इसकी बहुत सराहना भी हुई। इस लड़ाई में करीब 90 सैनिकों की बदौलत भारतीय फौज एक बड़ी फौज का सामना कर रही थी। कुछ ही समय के अंदर लौंगोवाल चौकी पर पाकिस्तानी टैंक गोला बरसाने लगे। रात होते-होते पाकिस्तान के 12 टैंक तबाह कर दिए और आठ किलोमीटर दूर तक पाकिस्तानी टैंक व सैनिकों को खदेड़ दिया। 2004 में दिल्ली में एक कार्यक्रम में वरिष्ठ भाजपा नेता एलके आडवाणी ने चांदपुरी की खुले मंच से तारीफ की थी। उन्होंने कहा कि ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने 1971 में पाक को ऐसा खदेड़ा कि उसके बाद उसने भारत के साथ सीधा युद्ध लड़ने की हिम्मत नहीं दिखाई। ऐसे बहादुर कुलदीप सिंह चांदपुरी को हम सलाम करते हैं और उनकी आत्मा को शांति देने की प्रार्थना करते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

सीबीआई बनाम सीबीआई क्राइम थ्रिलर का सनसनीखेज एपिसोड

सीबीआई बनाम सीबीआई महाभारत ने सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर सनसनी पैदा कर दी। इस बार सनसनी पैदा करने वाले थे डीआईजी मनीश कुमार सिन्हा। सीबीआई के डीआईजी मनीश कुमार सिन्हा ने अपने ट्रांसफर के खिलाफ याचिका में आरोप लगाया कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ जांच में हस्तक्षेप किया था। अस्थाना पर दर्ज तीन करोड़ रुपए की रिश्वतखोरी केस की जांच डीआईजी सिन्हा कर रहे थे। उन्होंने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मेरे पास एक रॉ अफसर की कॉल रिकॉर्डिंग है। इसमें वह अफसर कह रहा है कि पीएमओ को मैनेज कर लिया है। इस केस में अस्थाना का साथ दे रहे सरकार में बैठे लोगों के नाम सामने आ रहे थे। इसलिए मेरा नागपुर ट्रांसफर किया गया ताकि जांच आगे न बढ़े। सिन्हा ने आगे कहा कि 20 अक्तूबर को मैं सीबीआई के डिप्टी एसपी देवेन्द्र कुमार के ऑफिस और घर की तलाशी ले रहा था। उसी वक्त सीबीआई डायरेक्टर का फोन आया। उन्होंने मुझसे कहा कि एनएसए अजीत डोभाल ने कहा है कि तलाशी रोक दी जाए। इसके बाद एके बस्सी भी अस्थाना का मोबाइल जब्त कर उनके घर की तलाशी लेना चाहते थे। तब भी कहा गया कि एनएसए अजीत डोभाल ने इसकी इजाजत नहीं दी है। केंद्रीय राज्यमंत्री हरिभाई पारथीभाई चौधरी पर आरोप लगे हैं कि उन्होंने कार्मिक मंत्रालय के जरिये सीबीआई डायरेक्टर अलोक वर्मा की जांच प्रभावित करने का दबाव बनाया। क्योंकि वर्मा की रिपोर्टिंग कार्मिक मंत्रालय को है। आरोप है कि हरिभाई को कुछ करोड़ रुपए अहमदाबाद के विपुल नाम के एक व्यक्ति के जरिये पहुंचाए गए। सना ने 20 अक्तूबर को पूछताछ के दौरान यह तथ्य बताए थे। डीआईजी मनीश सिन्हा ने सनसनीखेज आरोप लगाए हैं और वह भी सुप्रीम कोर्ट में। यह कोई चुनावी रैली में  लगाए जा रहे आरोप नहीं हैं जिन्हें हलके से लिया जा सकता है, यह आरोप देश की सर्वोच्च न्यायालय में एक सीबीआई के जिम्मेदार अफसर ने लगाए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सिन्हा द्वारा उच्चतम न्यायालय में दिए हलफनामे की पृष्ठभूमि में मंगलवार को नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला बोला और कहा कि दिल्ली में चौकीदार ही चोर नामक क्राइम थ्रिलर चल रहा है और  लोकतंत्र रो रहा है। राहुल ने ट्वीट कर कहा कि दिल्ली में चौकीदार ही चोर थ्रिलर के नए एपिसोड में सीबीआई के डीआईजी द्वारा एक मंत्री, एनएसए, कानून सचिव और कैबिनेट सचिव के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। उन्होंने दावा किया कि वहीं गुजरात से लाया उसका साथी करोड़ों वसूली उठा रहा है। अफसर थक गए हैं। भरोसे टूट गए हैं। कांग्रेस ने सीबीआई के डीआईजी एमके सिन्हा द्वारा लिखित हलफनामे में लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की स्वतंत्र जांच की सोमवार को मांग की थी और कहा था कि उनसे प्रधानमंत्री कार्यालय और मोदी सरकार के कामकाज पर सवाल खड़े हो गए हैं। पार्टी ने यह भी कहा कि वह संसद में भी यह मुद्दा उठाएंगे। पार्टी ने कहा है कि इसने मोदी सरकार के साथ शीर्ष नौकरशाही की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। शपथ पत्र में साफ है कि मंत्री, कानून सचिव, केंद्रीय सतर्पता आयुक्त से लेकर राष्ट्रीय सलाहकार अजीत डोभाल तक अपराधियों को बचाने और बेगुनाहों को फंसाने के खेल में शरीक हैं। कांग्रेस का यह भी कहना है कि बचाने और फंसाने के खेल में भ्रष्टाचार की बात सामने आ गई है। इसलिए संसद के जरिये इसकी निष्पक्ष जांच कराई जानी चाहिए। मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि सरकार के शीर्ष स्तर के अधिकारियों और मंत्रियों पर गंभीर आरोप विपक्ष या राह चलते किसी व्यक्ति ने नहीं, बल्कि सीबीआई के डीआईजी ने लगाए हैं। 70 साल में पहली बार हुआ है कि सीबीआई के एक आला अधिकारी ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) और केंद्रीय सतर्पता आयुक्त केवी चौधरी पर आरोपित को बचाने में संदेहास्पद भूमिका पर प्रकाश डाला है। देखें कि इस क्राइम थ्रिलर के अगले एपिसोड में क्या होता है?

Wednesday, 21 November 2018

क्या निजी वाहनों पर प्रतिबंध लगाना प्रदूषण का हल है?

राजधानी दिल्ली-एनसीआर में बढ़ती प्रदूषण की समस्या से कैसे निपटा जाए? क्या सम-विषम योजना को फिर लागू किया जाए या फिर निजी पेट्रोल-डीजल वाहनों पर पूरी तरह रोक लगाई जाए? यह सवाल पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (ईपीसीए) के सामने है। ईपीसीए ने राष्ट्रीय राजधानी में दोबारा आपात स्थिति बनने पर निजी वाहनों पर पूर्ण प्रतिबंध या सम-विषम व्यवस्था लागू करने की सिफारिश की है। यह हैरान करने वाली बात है कि पिछले दो सालों की तुलना में इस वर्ष दिल्ली में कम प्रदूषण दर्ज किया गया है। सीपीसीबी ने एक जनवरी से 11 नवम्बर तक दिल्ली की वायु गुणवत्ता 158 दिन खराब दर्ज की है, जबकि इसी अवधि में वर्ष 2016 में 197 दिन तो वर्ष 2017 में 166 दिन दिल्ली की वायु गुणवत्ता खराब रही थी। कहने का मतलब यह है कि प्रदूषण की समस्या सिर्प इस साल की नहीं है। इसके लिए ठोस स्थायी कदम उठाने की जरूरत है। अगर ईपीसीए दिल्ली में निजी वाहनों पर रोक लगाती है तो दिल्ली ठप हो जाएगी। इस प्रतिबंध से दिल्लीवासियों का सामान्य रह पाना असंभव होगा। सितम्बर 2018 तक राजधानी में पंजीकृत वाहनों की संख्या करीब 1.10 करोड़ है। इनमें से 38 लाख वाहन 10 15 साल पुराने वाहनों की सूची में आ गए हैं। बचे हुए 72 लाख वाहनों में 30 फीसदी कारें व 66 फीसदी दोपहिया वाहन हैं। ऑटो, टैक्सी और अन्य व्यावसायिक वाहनों की संख्या महज चार फीसद है। इस तरह करीब 48 लाख दोपहिया एवं करीब 25 लाख कारें हैं। दोपहिया तो पेट्रोल चालित ही हैं। कारों में लगभग 10.5 लाख सीएनजी, 2.5 लाख डीजल चालित एवं करीब 12 लाख पेट्रोल चालित हैं। आंकड़ों के अनुसार करीब 30 लाख यात्री रोजाना बसों से सफर करते हैं और लगभग 29 लाख मेट्रो से चलते हैं। जबकि तकरीबन 60 लाख यात्री बेहतर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के अभाव में मजबूरी से निजी वाहनों का सहारा लेने पर विवश हैं। ऐसे में अगर निजी वाहनों पर ही रोक लगा दी जाती है तो यह सभी 60 लाख यात्री या तो सड़क पर आ जाएंगे या फिर घर बैठने पर मजबूर हो जाएंगे। इन अतिरिक्त यात्रियों को ढोने की क्षमता न डीटीसी एवं कलस्टर बस सेवा की है और न ही दिल्ली मेट्रो की। चूंकि ओला और उबर कंपनी की भी ज्यादातर टैक्सियां डीजल चालित हैं, लिहाजा उनका भी कोई सहारा नहीं मिल पाएगा। अब अगर दिल्ली में प्रदूषण की गर्भ में जाएं तो 38 फीसदी प्रदूषण की वजह सड़कें की धूल, 11 फीसदी औद्योगिक इकाइयों, 12 फीसदी घरेलू, छह फीसदी कंक्रीट है। विशेषज्ञों का कहना है कि निजी वाहन दिल्ली-एनसीआर में सिर्प तीन फीसदी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। इसलिए जब तक बाकी बड़े कारणों को रेखांकित नहीं किया जाता और उसके स्थायी समाधान के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जाते, निजी वाहनों पर प्रतिबंध लगाने का कोई तुक नहीं है। यह समस्या आज की नहीं है। पराली जलाने से मामला और खराब हो रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

पंजाब को फिर से अस्थिर करने के प्रयास

पंजाब में हाई अलर्ट के बावजूद अमृतसर के राजासांसी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से कुछ दूरी पर स्थित अदलिवाला गांव में निरंकारी भवन पर रविवार सुबह चल रहे समागम के दौरान किया गया ग्रेनेड हमला पंजाब को एक बार फिर अशांत करने की अलगाववादियों की सुनियोजित मंशा हो सकती है, लिहाजा इस मामले को बेहद गंभीरता से लेने की जरूरत है। ऐसी घटनाएं वही तत्व अंजाम देते हैं जो निर्दोष-निहत्थे लोगों की जान लेकर आतंक और नफरत का माहौल पैदा करने का इरादा रखते हैं। चूंकि पंजाब में ऐसे तत्व रह-रह कर सिर उठाने की कोशिश करते रहे हैं इसलिए यह सर्वथा उचित है कि पंजाब पुलिस अदलिवाला गांव के निरंकारी भवन में अंजाम दी गई इस कायराना वारदात को आतंकी हमले के रूप में ले रही है। इतनी जल्दी भले ही किसी निष्कर्ष पर न पहुंचा जा सके, पर समागम में मौजूद दो-ढाई सौ लोगों को निशाना बनाकर किए गए इस हमले को किसी व्यक्ति पर हमला भी नहीं माना जा सकता। जाहिर है इसके जरिये माहौल खराब करने का नापाक इरादा था। हमलावरों को पता था कि निरंकारी भवन में रविवार की सुबह बहुत भीड़ होती है, इसलिए उन्होंने यह दिन या मौका चुना। पुलिस के मुताबिक निरंकारी भवन में सत्संग चल रहा था। गेट पर दो सेवादार गगनदीप सिंह और अर्जुन तैनात थे। करीब 11.15 बजे बाइक पर पगड़ी पहने दो व्यक्ति आए। वह पंजाबी बोल रहे थे। नकाबपोश दोनों हमलावरों ने सेवादारों की कमर पर पिस्तौल रखी। इसके बाद एक ने हॉल में 100 मीटर अंदर जाकर स्टेज की तरफ ग्रेनेड फेंका। प्रत्यक्षदर्शी गुरभाग सिंह ने बताया कि ग्रेनेड कान के पास से निकला और विस्फोट हो गया। इसी बीच हमलावर फरार हो गए। पंजाब में निरंकारी और चरमपंथियों के टकराव से ही पंजाब में आतंकवाद शुरू हुआ था। खात्मे के बावजूद पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से बब्बर खालसा के चीफ वधावा सिंह, खालिस्तान जिन्दाबाद फोर्स के रंजीत सिंह नोटा आतंकवाद को फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। पंजाब पुलिस और साथ ही राज्य सरकार को इसलिए भी कहीं अधिक सतर्पता बरतने और इस घटना की सघन जांच करने की जरूरत है, क्योंकि करीब 40 साल पहले इन्हीं स्थितियों में आतंकवाद का पंजाब में उभार हुआ था। यह महज इत्तेफाक नहीं हो सकता कि तब भी निरंकारी निशाने पर थे और गत दिवस भी उन्हें ही आतंकित किया गया। महज तीन दिन पहले पंजाब पुलिस ने यह खुफिया सूचना जारी की थी कि राज्य में जैश--मोहम्मद के कुछ आतंकवादी घुस आए हैं। उसके अगले दिन खूंखार आतंकी जाकिर मूसा को अमृतसर में देखे जाने की बात भी कही गई। शहर में मूसा के पोस्टर भी लगाए गए थे। इसी तरह पिछले सप्ताह पठानकोट जिले के माधोपुर में कुछ लोगों ने हथियार के बल पर एक वाहन लूट लिया था। ऐसे में लाजिमी तो यही था कि सभी धार्मिक और संवेदनशील जगहों पर सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद कर दी जाती। अगर सुरक्षा व्यवस्था सही होती तो मोटर साइकिल सवार नकाबपोश हथियार का डर दिखाकर निरंकारी भवन का दरवाजा खुलवा कर यूं भीड़ पर ग्रेनेड फेंकने में सफल नहीं हो पाते। चन्द दिनों पहले ही सेना प्रमुख ने पंजाब में नए सिरे से आतंकवाद को उभारने की कोशिशों पर देश को आगाह किया था। यदि उनके अंदेशे को गंभीरता से लिया गया होता तो शायद इस खौफनाक हमले को रोका जा सकता था जिसमें तीन लोगों की जान गई और करीब 20 लोग घायल हो गए।

Tuesday, 20 November 2018

सवाल आंध्रा-बंगाल में सीबीआई की नो एंट्री का

आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल की सरकार ने शुक्रवार को अपने राज्य में सीबीआई के प्रवेश पर रोक लगा दी है। सरकार ने राज्य में कानून के तहत अपनी शक्तियों के इस्तेमाल के लिए दी गई सामान्य रजामंदी वापस ले ली। इस सामान्य रजामंदी वापस लेने के बाद सीबीआई को इन राज्यों में किसी भी प्रकार के छापे या जांच की कार्रवाई के लिए राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी, जबकि सामान्य सहमति स्वत मंजूरी की तरह होती है। बता दें कि सीबीआई दिल्ली पुलिस प्रतिष्ठान कानून 1946 के तहत काम करती है। इस कानून की धारा 6 के तहत सीबीआई को मामलों की जांच के अधिकार मिले हैं। धारा 6 के अनुसार सीबीआई के किसी भी सदस्य को राज्य के किसी भी हिस्से में जांच व कार्रवाई से जुड़े अधिकारों के इस्तेमाल के लिए राज्य सरकार की सहमति की जरूरत होगी। मोदी सरकार से मार्च में रिश्ते तोड़ने के बाद से नायडू आरोप लगाते रहे हैं कि केंद्र सीबीआई जैसी एजेंसियों का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को निशाना साधने में कर रही है। नायडू कुछ कारोबारियों, प्रतिष्ठानों पर आयकर विभाग के हालिया छापे से भी नाराज हैं। वहीं शुक्रवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नायडू के समर्थन में उतरते हुए एनडीए सरकार पर सीबीआई और आरबीआई जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों को बर्बाद करने का आरोप लगाया। भाजपा सियासी फायदों व बदले के लिए सीबीआई का इस्तेमाल कर रही है। वहीं भाजपा ने आंध्र और पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा सीबीआई को दी गई शक्तियां वापस लेने पर तीखा हमला बोला। भाजपा प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने आरोप लगाया कि यह भ्रष्टाचार छिपाने की कोशिश है। वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने नायडू के फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि उन्होंने सही किया है। सीबीआई और आयकर विभाग का दुरुपयोग किया जा रहा है। नायडू, आयकर विभाग के अधिकारियों को भी अपने राज्य में मत घुसने देना। सीबीआई प्रवक्ता ने कहा कि आंध्र में पाबंदी पर राज्य सरकार की ओर से कोई जानकारी नहीं मिली है। आदेश की सूचना मिलने के बाद कानूनी विकल्प पर विचार करेंगे। वैसे सीबीआई की कानूनी वैधता पर पहली बार सवाल नहीं उठे हैं। उच्चपदस्थ सरकारी सूत्रों ने बताया कि डीएसपीई के तहत सीबीआई के गठन और काम पर पहले भी कई बार केंद्र सरकार को बचाव करना पड़ चुका है। गुवाहाटी हाई कोर्ट तो नवम्बर 2013 को अपने फैसले में सीबीआई के गठन और इसके कामकाज को ही असंवैधानिक करार दे चुका है। हालांकि सीबीआई का कहना है कि मामले का आंध्र के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू के उस फैसले से कोई संबंध नहीं है। गुवाहाटी हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता नवेन्द्र कुमार की रिट याचिका पर सुनवाई के बाद सीबीआई के गठन को ही असंवैधानिक बताया था। फैसले में हाई कोर्ट ने कहा था कि अदालत एक अप्रैल 1963 के उस प्रस्ताव को खारिज करती है, जिसके तहत सीबीआई का गठन किया गया था। सीबीआई डीएसपीई का हिस्सा या अंग नहीं है। सीबीआई को किसी भी लिहाज से डीएसपीई एक्ट 1946 के तहत पुलिस संस्था नहीं माना जा सकता। गुवाहाटी हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ दो बार केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी। केंद्र की अपील पर तत्कालीन चीफ जस्टिस ने अपने निवास पर ही सुनवाई की थी और हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला लंबित है। इस चुनावी वर्ष में सीबीआई पर प्रतिबंध केंद्र सरकार के लिए धक्का है। इसमें कोई शक नहीं कि जो भी सरकार केंद्र में आई उसने सीबीआई का दुरुपयोग किया चाहे वह यूपीए हो और चाहे एनडीए हो। सवाल यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि इन राज्यों में जो केस सीबीआई ने दर्ज कर रखे हैं जिनमें जांच हो चुकी है उनका क्या होगा? कहा तो यह भी जा रहा है कि नायडू के इस एक्शन के पीछे उन्हें व्यक्तिगत डर है। सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को दो करोड़ और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को दो करोड़ 95 लाख रुपए की रिश्वत लेने का दावा करने वाले सतीश बाबू सना हैदराबाद के हैं। उसे नायडू का करीबी माना जाता है। चर्चा है कि नायडू के साथ उसके लेन-देन के पुख्ता दस्तावेज मौजूद हैं। सना ने सीबीआई के सामने माना है कि एक तेदेपा सांसद ने उसे बचाने के लिए सीबीआई निदेशक से बात की थी। जांच में इन दस्तावेजों के बाहर आने की संभावना है। नई अधिसूचना के बाद आंध्र में सना के खिलाफ सीबीआई जांच रोकी जा सकेगी। बताया जा रहा है कि सीबीआई खुद मामले की जांच शुरू नहीं कर सकती। राज्य और केंद्र सरकार के कहने या हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही जांच कर सकती है। ऐसे में अगर कोई राज्य सीबीआई को वैन करता है तो कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार का आदेश रद्द हो जाएगा। यह तय है कि केंद्र सरकार आंध्र और पश्चिम बंगाल के ताजा वैन पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा एक बार फिर खटखटाएगी। वैसे भी सुप्रीम कोर्ट में गुवाहाटी हाई कोर्ट का फैसला लंबित है। हो सकता है कि उसी आधार पर केंद्र सरकार इन दो राज्यों के वैन को चुनौती दे। देखें, आगे क्या होता है?

-अनिल नरेन्द्र

Sunday, 18 November 2018

श्रीलंका में गहराता सियासी संकट

पड़ोसी देश श्रीलंका में सियासी घमासान चल रहा है। अब तो बात हाथापाई तक आ चुकी है। श्रीलंका की संसद में बृहस्पतिवार को उस वक्त हंगामा हो गया जब महिंद्रा राजपक्षे व उनके समर्थकों ने चुनाव की मांग की और कहा कि अध्यक्ष को ध्वनिमत से उन्हें पद से हटाने का कोई अधिकार नहीं है। इसके बाद दोनों पक्षों के बीच लात-घूंसे चले। राजपक्षे समर्थकों ने स्पीकर पर बोतल व किताबें भी फेंकीं। दरअसल राजपक्षे के खिलाफ अविश्वास पस्ताव पारित होने के बाद दूसरे दिन जब सांसद दोबारा संसद में एकत्रित हुए तो स्पीकर कारू जयसूर्या ने कहा कि देश में अब कोई भी पधानमंत्री नहीं है। राजपक्षे ने इस पर कहा कि न तो ध्वनिमत से पधानमंत्री को उनके पद से हटाया जा सकता है और न ही स्पीकर जयसूर्या को पधानमंत्री नियुक्त करने या हटाने का कोई अधिकार है। हंगामे की स्थिति तब शुरू हुई जब स्पीकर ने बर्खास्त पधानमंत्री विकमसिंघे की पार्टी का यह अनुरोध स्वीकार कर लिया कि राजपक्षे की नए चुनाव की मांग पर सदन का मत लिया जाए। श्रीलंका के सुपीम कोर्ट ने सिरिसेना-राजपक्षे की जोड़ी को बेशक बड़ा झटका दिया है, लेकिन श्रीलंका की राजनीति अब सिरिसेना बनाम विकमसिंघे के विवाद की बजाय राष्ट्रवाद बनाम उदारवाद की बहस में तब्दील होती जा रही है, जिसमें राष्ट्रवादी सिरिसेना राजपक्षे के मुकाबले, जिन्हें सिंहसियों और बौद्धों का समर्थन पाप्त है, उदारवादी विकमसिंघे के कमजोर पड़ने की आशंका है। सिरिसेना इसलिए चुनाव कराना चाहते भी हैं। अच्छी बात यह है कि शीर्ष अदालत द्वारा व्यवस्था देने के बाद स्पीकर ने संसद की बैठक बुलाई। लेकिन राजपक्षे और उनके समर्थकों के तौर-तरीकों को देखते हुए यह स्पष्ट नहीं है कि संसद कितने दिन चलेगी। अब निगाहें सुपीम कोर्ट पर टिकी हैं कि वह अगले महीने क्या फैसला सुनाता है? यह कितनी बड़ी विडम्बना की बात है कि जनवरी 2015 में राष्ट्रपति चुने गए जिस सिरिसेना ने श्रीलंका की लोकतांत्रिक व्यवस्था को विकेंद्रित करते हुए उसे ताकत दी थी जिसके कारण आज सुपीम कोर्ट से लेकर चुनाव आयोग जैसी संस्थाएं राष्ट्रपति के फैसले को असंवैधानिक बता पा रही हैं, आज वही सिरिसेना राष्ट्रवाद का तर्प देकर अपने देश को पुरानी व्यवस्था की ओर ले जाना चाहते हैं। वह राजपक्षे के तानाशाही तौर-तरीकों से भरे विवादास्पद राष्ट्रपति काल को भूलकर उनके साथ हो गए हैं। श्रीलंका में राजनीतिक गतिरोध के पीछे आर्थिक संकट है। भुगतान संतुलन की समस्या से देश का व्यापार बैठ गया है और उस पर भारी विदेशी कर्जा है, इसी को आधार बनाकर सिरिसेना-राजपक्षे विकमसिंघे पर देश को चीन, भारत और सिंगापुर के हाथों बेच देने का आरोप लगा रहे हैं। सभी के हित में है कि श्रीलंका में यह राजनीतिक अस्थिरता जल्द खत्म हो और लोकतंत्र मजबूत हो।

-अनिल नरेन्द्र

ताऊ देवीलाल की खून-पसीने से सींची विरासत तार-तार

हरियाणा के सबसे पभावशाली राजनीतिक परिवार में गत काफी दिनों से भयंकर महाभारत चल रहा है। ताऊ देवीलाल और उनके परिवार से हमारे परिवार के पुराने संबंध हैं। ताऊ अक्सर मेरे स्वर्गीय पिता श्री के. नरेन्द्र से मिलने आते थे। उन्होंने अपने खून-पसीने से इस पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल को खड़ा किया। पुराने नाते की वजह से ताऊ देवीलाल की विरासत को तार-तार होते देख दुख हो रहा है। जहां तक चौधरी ओम पकाश चौटाला का संबंध है, मैं उन्हें बहुत परिपक्व राजनीतिक नेता मानता हूं। वह हर कदम सोच-समझकर उठाते हैं। चौटाला और उनके भाई के परिवार में जो युद्ध चल रहा है उसमें रोज नए मोड़ आ रहे हैं। पार्टी किसकी है, कौन है इसका मालिक यह लड़ाई जोरों से चल रही है। सोमवार को दोनों धड़ों ने इनेलो पर अपना-अपना हक जताया। पैरोल पर जेल से बाहर आने के बाद दिल्ली में कार्यकर्ताओं से अजय चौटाला ने कहा कि इनेलो कार्यकर्ताओं से उनका हक कोई नहीं छीन सकता। इनेलो कार्यकर्ताओं को कांग्रेसी कहने वालों को कांग्रेस मुबारक। दूसरी ओर अभय चौटाला ने जींद और हिसार में बैठक करके शक्ति पदर्शन किया और दावा किया कि इनेलो पर उनका हक है। तिहाड़ से 14 दिन की पैरोल मिलने के बाद दिल्ली के 18 जनपथ स्थित आवास पर कार्यकर्ताओं से मिलने पहुंचे इनेलो के पधान महासचिव और दुष्यंत व  दिग्विजय के पिता डा. अजय चौटाला खुलकर अपने बेटें दुष्यंत और दिग्विजय के साथ खड़े हो गए। उनके तेवर काफी तीखे थे। अजय ने कहा कि पार्टी किसी की बपौती नहीं है। ओम पकाश चौटाला की भी नहीं। उधर दुष्यंत और  दिग्विजय चौटाला को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने के बाद बुधवार को पधान महासचिव अजय चौटाला को भी इंडियन नेशनल लोकदल से निष्कासित कर दिया गया है। नेता पतिपक्ष अभय चौटाला की पेस कांपेंस में यह दावा किया गया कि यह निष्कासन पार्टी सुपीमो ओम पकाश चौटाला के हस्ताक्षर से किया गया है। दिग्विजय चौटाला ने कहा कि अजय चौटाला के निष्कासन का पत्र फर्जी है। इसे चंडीगढ़ में मंगलवार की रात तैयार किया गया। ओम पकाश चौटाला को विश्वास में नहीं लिया गया। यह बात जगजाहिर है कि ओम पकाश चौटाला के दोनों बेटों अजय सिंह और अभय सिंह की भी पारंभ से ही ठनी रही है। अभय सिंह की छवि विवादित रही है। ग्रीन ब्रिगेड में उनके कारनामे और दिल्ली के पांच सितारा होटल में हुए हंगामे की कहानियां कौन नहीं जानता। वक्त ने रंग बदला और टीचर घोटाले में ओम पकाश चौटाला और उसके बड़े बेटे अजय सिंह दोनों दस-दस वर्ष के लिए जेल चले गए। अजय सिंह की विरासत की कमान दुष्यंत चौटाला और उसके भाई दिग्विजय सिंह ने संभाली। अभय सिंह इन दिनों हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं। ताऊ देवीलाल के खून-पसीने से सींची इंडियन नेशनल लोकदल यूं तार-तार होते देख दुख हो रहा है। उम्मीद है कि यह पारिवारिक अंतर्द्वंद्व जल्द हल होगा।

Saturday, 17 November 2018

चीन से होवित्जर, पाक से वज्र तोपें करेंगी मुकाबला

कारगिल की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाली बोफोर्स तोप के बाद नई जैनरेशन की तोप के लिए भारतीय थल सेना का तीस साल लंबा इंतजार अंतत खत्म हो गया है। भारतीय सेना को गत दिनों तब दिवाली का तोहफा मिला जब रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने सेना पमुख बिपिन रावत की मौजूदगी में `के-9 वज्र' तोप और एम-777 -2 अल्ट्रा लाइट होवित्जर तोप भारतीय सेना को सौंप दी। इससे पहले  तीन दशक पहले बोफोर्स तोप सेना में शामिल की गई थी। `के-9 वज्र' तोप की 28 से 38 किलोमीटर तक की मारक क्षमता है। यह तीस सेकेंड में 3 और 3 मिनट में 15 गोले दागने की क्षमता रखती है। रक्षा मंत्रालय के पवक्ता कर्नल अमन आनंद ने बताया कि `के-9 वज्र' को 4,366 करोड़ रुपए की लागत से शामिल किया गया है। कुल 100  तोपों में से 10 तोपों की पहली खेप की आपूर्ति साउथ कोरिया इस महीने करेगा। बाकी तोपें भारत में ही बनाई जाएंगी। 40 `के-9 वज्र' तोपें नवम्बर 2019 में और बाकी 50 तोपों की आपूर्ति 2020 में की जाएगी। यह पहली ऐसी तोप है जिसे भारतीय पाइवेट सेक्टर (लार्सन एंड इब्रो) ने बनाया है। यह पाक से लगी देश की पश्चिमी सीमा के लिए उपयोगी मानी जा रही है। कपोजिट गन टोइंगव्हीकल ः 130 एमएम और 155 एमएम की आर्टिलरी गन ले जाने में सक्षम यह व्हीकल दो टन तक के गोला बारुद ले जाने में सक्षम है। यह काम्पकैट गन ट्रेक्टर है जिसमें केन भी लगी है। यह भारी भरकम गोला बारूद और हथियार ले जा सकेगा। यह 50 किलोमीटर पति घंटे की स्पीड से इसे खींचकर ले जा सकती है। देश में विकसित इस व्हीकल को अशोक लेलेंड ने बनाया है। होवित्जर की खासियत यह है कि इन्हें हेलीकाप्टरों के जरिए आसानी से ऊंचाई वाले इलाकों में ले जाया जा सकता है। इस लिहाज से ये पहाड़ी क्षेत्रों जैसे चीन से लगी सीमा पर अहम साबित हो सकती हैं। कारगिल युद्ध के समय भी काफी ऊंचाई पर बैठे दुश्मनों को निशाना बनाने के लिए ज्यादा दमदार तोपों की जरूरत महसूस की गई थी। इराक और अफगानिस्तान के युद्ध में भी इसका इस्तेमाल हुआ था। इस समय 52 कैलिवर की `एम-777' तोप का इस्तेमाल अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया कर रहा है। रक्षा मंत्रालय पवक्ता के मुताबिक सेना को इन तोपों की आपूर्ति से भारत दोनों सीमाओं पर हर तरह के हमले का जवाब देने में सक्षम हो जाएगा। इन तोपों की आपूर्ति अगस्त 2019 से शुरू हो जाएगी और यह पूरी पकिया 24 महीने में पूरी होगी। हम मोदी सरकार को बधाई देना चाहते हैं कि अंतत उन्होंने बिना किसी आलोचना की परवाह किए इन तोपें को खरीदने का साहस दिखाया और भारतीय सेना के हाथ मजबूत किए। जय हिंद।

-अनिल नरेन्द्र

श्री राम मंदिर निर्माण के लिए चौतरफा दबाव

राम मंदिर अभियान जोर पकड़ता जा रहा है। अयोध्या में राम मंदिर मुद्दे का समय से समाधान नहीं हुआ तो समाज में आशांति फैलेगी। यह चेतावनी विश्व हिंदू परिषद ने दी है। विहिप ने कहा है कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था और पाथमिकताओं को दुनिया समझे और भव्य राम मंदिर निर्माण का मार्ग पशस्त हो। सवाल है कि यह मुद्दा हल कैसे हो? जहां तक सुपीम कोर्ट का सवाल है राम मंदिर का मुद्दा उसके लिए पाथमिकता नहीं रखता, उच्चतम न्यायालय ने राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर शीघ्र सुनवाई से इंकार कर दिया है। पधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने कहा कि उसने पहले ही अपीलों को जनवरी में उचित पीठ के पास सूचीबद्ध कर दिया है। अखिल भारतीय हिंदू महासभा की ओर से उपस्थित अधिवक्ता वरुण कुमार के मामले पर शीघ्र सुनवाई करने के अनुरोध को खारिज करते हुए पीठ ने कहा ः हमने आदेश पहले ही दे दिया है। अपील पर जनवरी को सुनवाई होगी। विवादित ढांचे के मामले के समाधान में हो रही देरी साधु-संत व धर्मचारियों के साथ-साथ पक्षकारों को भी अखरने लगी है। मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी के आवास पर गत fिदनों हिंदू पक्षकार महंत धर्मदास समेत सूफी संतों ने बैठक कर निर्णय लिया कि अयोध्या मामले में पतिदिन सुनवाई की मांग के लिए राष्ट्रपति को पत्र भेजेंगे और कहा कि मामले की पतिदिन सुनवाई के लिए अलग बैंच बननी चाहिए। हिंदू पक्षकार महंत धर्मदास ने कहा कि अयोध्या मामले को लेकर कोई आपस में लड़े हम नहीं चाहते। मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी ने कहा कि अयोध्या मामले की कोर्ट जल्द सुनवाई करे ताकि इस मामले का समाधान हो। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सैयद गैयूरूल हसन रिजवी ने कहा है कि विवादित स्थान पर राम मंदिर बनना चाहिए ताकि देश का मुसलमान सुकून, सुरक्षा और सम्मान के साथ रह सके। विश्व हिंदू परिषद ने विश्वास व्यक्त किया है कि मोदी सरकार संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए कानून पारित कराएगी जिससे वहां कानूनी तरीके से मंदिर का निर्माण हो सकेगा। विहिप के अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष अलोक कुमार ने संवाददाताओं से कहा कि उन्हें विश्वास है कि सरकार राम मंदिर निर्माण के लिए विधेयक लाएगी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बाहर के नेता भी दलगत भावना से ऊपर उठकर इसका समर्थन करेंगे तथा इसे भारी बहुमत से पारित करेंगे। राम मंदिर मामले में अध्यादेश लाने के लिए अब तो राजग घटक दल भी दबाव बनाने लगे हैं। शिव सेना पवक्ता व सांसद संजय राउत ने कहा कि सरकार यदि संसद में राम मंदिर का पस्ताव लाती है तो भाजपा-कांग्रेस के साथ ही 400 से ज्यादा सांसदों का समर्थन मिलेगा। राम मंदिर के लिए अब आंदोलन की नहीं अध्यादेश की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र में, राज्य में हिंदूवादी सरकार है, राम मंदिर के लिए उस पर नहीं तो किस पर दबाव बनाएंगे? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने श्री राम मंदिर निर्माण के पक्ष में माहौल बनाने के साथ ही कांग्रेस, सपा और बसपा को घेरने की बिसात बिछानी शुरू कर दी है। संघ परिवार की रणनीति 5 नवम्बर को अयोध्या में आयोजित हुई धर्म सभा के जरिए यह संदेश देने की है कि हिंदू समाज मंदिर निर्माण में अब देरी नहीं देख सकता। साथ ही यह भी बताना है कि कांग्रेस अध्यक्ष भले ही मंदिर-मंदिर घूम रहे हों, लेकिन अयोध्या मुद्दे पर फैसले में देरी के पीछे उन्हीं पार्टी का षड्यंत्र है। विहिप उपाध्यक्ष चपंत राय ने कहा कि कपिल सिब्बल और राजीव धवन को यह बताना पड़ेगा कि शीर्ष कोर्ट में वे मंदिर मुद्दे पर फैसला क्यों टालना चाहते हैं? उत्तर पदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राम मंदिर का मुद्दा उठाते हुए कांग्रेस से यह बताने को कहा कि उसे भगवान राम की चिंता है या मुगल बादशाह बाबर की। विश्व हिंदू परिषद समेत तमाम संत समाज अब इस मसले का हल चाहता है। सुपीम कोर्ट से इस मुद्दे के हल की उम्मीद बहुत कम नजर आती है। अगर इसे हल करना है तो अब मोदी सरकार को पहल करनी होगी। पधानमंत्री भी बीजेपी का, मुख्यमंत्री भी बीजेपी का, राज्यपाल भी बीजेपी का और राष्ट्रपति भी बीजेपी का। अब और क्या चाहिए?

Friday, 16 November 2018

राफेल सौदे में अनियमितताओं को साबित करने का दायित्व अब विपक्ष पर

बहुचर्चित राफेल विमान सौदे में केंद्र सरकार ने जो जवाब सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया है उससे तो विपक्ष को अब साबित करना होगा कि इस डील में कहां-कहां, कैसे-कैसे गड़बड़ी हुई है। कांग्रेस सहित तमाम विपक्ष ने सरकार पर तमाम तरह के आरोप लगाए हैं। अब तक राफेल की कीमत पर चुप्पी साध रही मोदी सरकार ने सोमवार को सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यह विमान कितने का पड़ा। सरकार ने यह भी सार्वजनिक कर दिया कि पूरा सौदा कितने में हुआ। हालांकि पिछली सुनवाई में केंद्र ने दलील दी थी की कीमत जैसी सूचनाएं गोपनीयता कानून के तहत आती हैं और हमने संसद को भी यह जानकारी नहीं दी है। इस पर कोर्ट ने सरकार से हलफनामा मांगा था। सोमवार को दाखिल रिपोर्ट में सरकार ने बताया कि यूपीए की 2013 की रक्षा खरीद प्रक्रिया से ही 36 राफेल की डील हुई है। इसे 24 अगस्त 2016 को सुरक्षा पर कैबिनेट ने मंजूरी दी। सालभर में फ्रांसीसी पक्ष के साथ 74 बैठकों में इसे फाइनल किया गया और 23 सितम्बर 2016 को भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच दस्तखत हुए। दसॉ के मुकाबले भारत में राफेल बनाने के लिए एचएएल (हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड) ने 2.7 गुना वक्त मांगा, इसलिए उनसे समझौता नहीं हो सका था। कीमत को लेकर कांग्रेस के आरोपों पर फ्रांसीसी कंपनी दसॉ के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने बताया कि भारत को इस सौदे में पहले विमान के मुकाबले नौ प्रतिशत सस्ता मिल रहा है। आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच फ्रांसीसी कंपनी का स्पष्टीकरण महत्वपूर्ण है। दसॉ के सीईओ ने सौदे से जुड़े हर पहलू पर खुलकर बात की। दसॉ एविएशन ने दावा किया कि यह सौदा साफ-सुथरा और नौ प्रतिशत सस्ता है। ट्रैपियर ने एक साक्षात्कार में कहा कि 18 तैयार विमानों की जितनी कीमत है, उसी दाम में 36 विमानों का सौदा किया गया। दाम दोगुने होने चाहिए थे, पर चूंकि यह दो सरकारों के बीच करार हुआ और कीमतें उन्होंने तय कीं। इसलिए हमें भी नौ प्रतिशत कम दाम पर सौदा करना पड़ा। सीईओ ने कहा कि रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर चुनने का फैसला उनकी कंपनी का था। रिलायंस के अलावा भी 30 कंपनियां उनके साथ जुड़ी हुई हैं। कांग्रेस के आरोपों पर ट्रैपियर ने कहा कि मैं झूठ नहीं बोलता। जो सच मैंने पहले कहा था, वही आज भी कह रहा हूं। मेरी छवि झूठ बोलने वाले की नहीं है। भारतीय वायुसेना इस सौदे से खुश है। उधर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि सरकार ने हलफनामे में माना है कि उन्होंने बिना वायुसेना से पूछे कांट्रेक्ट बदला और 30 हजार करोड़ रुपए अंबानी की जेब में डाला। पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस राफेल सौदे पर भ्रम फैलाने की कोशिश कर रही है। यूपीए सरकार ने सौदे को लटकाए रखा जबकि यह वायुसेना के लिए जरूरी था। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में राफेल सौदे की सीबीआई जांच हो या नहीं, इस पर बुधवार को चार घंटे की मैराथन सुनवाई के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के साथ सरकार की सफाई और वायुसेना को भी सुना। हालांकि राफेल की कीमत को सार्वजनिक करने की मांग कर रहे याचिकाकर्ताओं को तब झटका लगा, जब कोर्ट ने कहा कि जब तक हम खुद कीमत सार्वजनिक न करें, तब तक इस पर कोई चर्चा नहीं होगी। रिलायंस डिफेंस को ऑफसेट पार्टनर बनाने पर याची प्रशांत भूषण ने कहा कि रिलायंस डिफेंस के पास ऐसी क्षमता नहीं है। उसे फायदा पहुंचाने के लिए भारत सरकार के कहने पर ऐसा हुआ है। रिलायंस डिफेंस को पार्टनर बनाने के लिए नियम बदले गए हैं। यह करप्शन है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि 2015 में ऑफसेट गाइडलाइंस क्यों बदली गईं? रक्षा मंत्रालय के अफसर ने कहा कि नियमों में तो 2014 में बदलाव हुए थे, उन्हें 2015 में मंजूर किया गया। जस्टिस केएम जोसेफ ने सवाल उठाया कि अगर ऑफसेट पार्टनर देरी करता है तो कौन जिम्मेदार होगा? इस पर अफसर ने कहा कि ऑफसेट पार्टनर के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है। इस पर कोर्ट ने कहा कि कांट्रेक्ट के तहत तीन महीने में ऑफसेट की डीटेल (दसॉ को) देनी है, तो आप कैसे कह सकते हैं कि आपको स्पष्ट जानकारी नहीं मिली है? जजों ने पूछा कि वायुसेना से कोई है क्या? इसके बाद एयर मार्शल व एयर वाइस मार्शल को बुलाया गया। उनसे पूछाöआखिरी बार जेट विमान कब शामिल हुए थे? अफसरों ने बताया कि आखिरी खेप 1985 में मिराज की मिली थी, पड़ोसी देशों की तैयारियों को देखते हुए आधुनिक विमानों की सख्त जरूरत है। याची ने कहा कि यह डील भारत-फ्रांस की सरकारों के बीच नहीं है जैसे चीन युद्ध के दौरान थी। यह दसॉ के साथ कारोबारी सौदा व समझौता है। केंद्र ने माना कि फ्रांस की सरकार ने 36 विमानों की कोई गारंटी नहीं दी है, लेकिन उससे लेटर ऑफ कंफर्ट मिला है, जो गारंटी जैसी ही है। सरकार की ओर से अटार्नी जनरल ने राफेल सौदे के खिलाफ सुनवाई पर सवाल उठाते हुए कहाöकोर्ट यह फैसला नहीं कर सकती कि कौन-सा विमान और कौन-से हथियार खरीदे जाएं, यह विशेषज्ञों का काम है। ज्यूडिश्यरी रिव्यू नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि अगर दाम की पूरी जानकारी सामने आ जाए तो विरोधी उसका फायदा उठा सकते हैं। देखना अब यह है कि क्या पूरे सौदे की विभिन्न बिन्दुओं पर सच्चाई सामने आएगी या नहीं? क्या दूध का दूध-पानी का पानी होगा? विपक्ष के दो प्रमुख आरोप थे। पहला यह कि इस सौदे में मानक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और रिलायंस डिफेंस को ऑफसेट कांट्रेक्ट देने के लिए सरकार ने कहा था। सरकार ने दोनों आरोपों का जवाब दिया है। इसके बावजूद विपक्ष अपनी बात पर अड़ा हुआ है। अब चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट के आधीन है इसलिए उम्मीद की जाती है कि माननीय अदालत इन सभी मुद्दों पर अपना फैसला देगी। पर इतना जरूर है कि सरकार के जवाब से विपक्ष बैकफुट पर है और उसे साबित करना होगा कि यह सिर्प चुनावी मुद्दा नहीं है, इसमें अनियमितताएं हुई हैं। इसे साबित करने का दायित्व अब विपक्ष पर है।

-अनिल नरेन्द्र