धीरे-धीरे यह
विदित होता जा रहा है कि भारत सरकार और रिजर्व बैंक के बीच रिश्ते खराब होते जा रहे
हैं। रिजर्व बैंक भी सीबीआई की तरह सरकारी चंगुल से आजाद होना चाहता है। दूसरी तरफ
रिजर्व बैंक की नीतियों और कामकाज के तरीकों की आलोचना खुलकर शुरू हो गई है। रिजर्व
बैंक ऑफ इंडिया के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने बैंकों की स्वायत्तता की वकालत की
है। आचार्य ने कहा कि सरकार बैंकों के साथ 20-20 मैच खेलना बंद
कर दे नहीं तो इसके विनाशकारी नतीजे हो सकते हैं। सीबीआई में जिस वक्त केंद्र सरकार
के हस्तक्षेप को लेकर भूचाल मचा है, ठीक उसी समय बैंकों की स्वायत्तता
पर आचार्य की सलाह महत्वपूर्ण मानी जा रही है। बैंकों और मंत्रियों के गठजोड़ की अक्सर
शिकायतें आती रहती हैं। बढ़ते एनपीए और बैंकों का पैसा लेकर विदेश भागे वित्तीय अपराधियों
के साथ नेताओं, नौकरशाहों के संबंध पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
ऐसे में बैंकों के लिए `आजादी' की मांग
उठाकर आचार्य ने चिंता जताने की कोशिश की है कि अगर बैंक अपने मुताबिक काम करें तो
हालत तभी सुधर सकते हैं। वरना विनाशकारी परिणाम के लिए तैयार रहना चाहिए। एडी ऑफ मेमोरियल
लेक्चर में आचार्य ने कहा, जो केंद्र सरकार सेंट्रल बैंकों की
आजादी की कद्र नहीं करती, उसे देर-सबेर
वित्तीय बाजारों की नाराजगी का शिकार होना पड़ता है। महत्वपूर्ण रेगुलेरटी संस्थानों
को नजरअंदाज करने का नतीजा विनाशकारी होता है। उधर भारत के नियत्रंक एवं महालेखा परीक्षक
(कैग) राजीव महर्षि ने बैंकों के मौजूदा एनपीए
संकट में रिजर्व बैंक की भूमिका को लेकर सवाल उठाया है। महर्षि ने पूछा कि जब बैंक
भारी मात्रा में कर्ज देते थे जिससे संपत्ति व देनदारियों में असंतुलन पैदा हुआ तथा
कर्ज फंस गए (एनपीए) तो बैंकिंग क्षेत्र
का नियामक आरबीआई क्या कर रहा था ?
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बैंकिंग क्षेत्र की गैर-निष्पादित राशि (एनपीए) यानी फंसा
कर्ज 2017-18 की सम्पत्ति पर 9.61 लाख करोड़
रुपए तक पहुंच चुका है। क्या आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को एक बार फिर संसदीय समिति
के सामने पेश होना पड़ेगा। इस बार उन्हें आईएल एंड एफएस संकट पर जवाब देना पड़ेगा।
सूत्रों के मुताबिक यह बैठक किसी भी समय हो सकती है। संसद की वित्तीय मामलों की स्थायी
समिति के अध्यक्ष और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली पहले ही कह चुके हैं कि
समिति आईएल एंड एफएस मामले को देखेगी। यह दूसरी बार होगा जब एक साल में ही दूसरी बार
पटेल को संसदीय समिति के समक्ष पेश होना पड़ेगा। बता दें कि इससे पहले उन्हें जून में
पंजाब नेशनल बैंक धोखाधड़ी के मामले में जवाब देने के लिए बुलाया गया था। सरकार और
रिजर्व बैंक में मतभेद और टकराव बढ़ता जा रहा है। यह न तो आरबीआई, न सरकार और न ही देश के लिए अच्छा संकेत है।
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