निश्चित
तौर पर श्री गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती के मौके पर करतारपुर योजना का फैसला स्वागतयोग्य है। करीब सात दशक
पहले विभाजन ने सिखों के जिस पवित्र धर्मस्थल करतारपुर साहिब को श्रद्धालुओं की पहुंच
से दूर कर दिया था, वहां तक अब एक कॉरिडोर के जरिये पहुंचने की
घोषणा ही अपने आपमें बहुत सुखद व स्वागतयोग्य है। न केवल पिछले 70 साल से ही इस फैसले का इंताजर कर रहे सिख श्रद्धालु इस फैसले से गद्गद् हैं
बल्कि कुछ हद तक भारत-पाकिस्तान के ठंडे पड़ते रिश्तों में भी
इससे नई गरमाहट आ सकती है। करतारपुर साहिब सिखों के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में शुमार
होता है। यह स्थान भारतीय सीमा से करीब चार किलोमीटर दूर है और इतनी सी दूरी के चलते
भारतीय सिखों को दूरबीन से अपने इस पवित्र गुरुद्वारा साहिब के दर्शन करके संतोष करना
पड़ता था। सिखों के पहले गुरु के जीवन में करतारपुर काफी महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने
अपने जीवन के अंतिम 18 साल यहीं गुजारे थे। दिक्कत यह है कि करतारपुर
भारतीय सीमा से चार किलोमीटर दूर पाकिस्तान के नरोवल जिले में पड़ता है। लंबे समय से
यह मांग की जा रही थी कि सिख तीर्थयात्रियों के लिए एक कॉरिडोर बनाया जाए, जिससे वे बिना किसी वीजा या विशेष अनुमति के दर्शन के लिए वहां जा सकें। इस
कॉरिडोर के बनने का अर्थ यह होगा कि अब सीमा की कंटीली तारें सिख संगत के आड़े नहीं
आएंगी और वह दूरबीन से दर्शन करने की बजाय सीधे वहां के गुरुद्वारे जाकर मत्था टेक
सकेंगे। गुरुवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल के इस परियोजना को हरी झंडी दिखाने के ठीक
एक दिन पहले पाकिस्तान सरकार ने इस परियोजना को न केवल हरी झंडी दिखा दी थी,
बल्कि यह घोषणा भी कर दी थी कि जल्द ही प्रधानमंत्री इमरान खान इस परियोजना
का शिलान्यास करने करतारपुर जाएंगे। इसमें पाकिस्तान की पहल जरूरी भी थी, क्योंकि सारा काम उसी के क्षेत्र में होना था और भारत को तो सिर्प तीर्थयात्रियों
के लिए रास्ता खोलना था। इसके बावजूद पाकिस्तानी अधिकारियों ने भारतीय राजनियकों को
सिख धर्मस्थल पर जाने से रोकने की जो कार्रवाई की वह निन्दनीय है। जबकि पहले विदेश
मंत्रालय ने इसकी अनुमति दी थी और वह अफसर अपना दायित्व पूरा करने गए थे। पाकिस्तान
की इस हरकत ने उस आरंभिक उत्साह पर पानी फेरने का प्रयास किया है जो गुरुवार को भारतीय
कैबिनेट के फैसले के बाद निर्मित हुआ था। पाकिस्तान ने दूसरी हरकत ननकाना साहिब में
भारत विरोधी और खालिस्तान समर्थक नारों और पोस्टरों के माध्यम से की है। विडंबना है
कि करतारपुर गलियारे के माध्यम से एक-दूसरे के करीब आने में लगे
भारत और पाक के बीच इसी मुद्दे पर खटास पैदा होने लगी। दरअसल उग्रवाद को बढ़ावा देना
और उसका राजनयिक इस्तेमाल करना पाकिस्तान की फितरत में है और उसका खामियाजा वह स्वयं
ही भुगत रहा है। यही कारण है कि कराची में चीनी वाणिज्य दूतावास पर बलूचिस्तान के उग्रवादियों
ने हमला किया और दो पुलिस वालों को मार गिराया। पाकिस्तान एक ओर चीन के साथ वन बेल्ट-वन रोड परियोजना और आर्थिक गलियारे की योजना पर काम कर रहा है तो दूसरी ओर
संसाधनों से सम्पन्न अपने ही सबसे बड़े प्रांत बलूचिस्तान को दमन और शोषण का शिकार
बनाए हुए है। यही कारण है कि वहां बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी अब आजादी की मांग कर रही
है। हालांकि यह कॉरिडोर दोनों देशों के रिश्तों को नया आयाम दे सकता है पर इसके लिए
यह भी जरूरी है कि इस कॉरिडोर का इस्तेमाल सद्भाव बढ़ाए न कि यह भारत के]िलए एक और
आतंकी कॉरिडोर बन जाए। सतर्पता भी जरूरी होगी।
-अनिल नरेन्द्र
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