मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव अपने चरम पर है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने
ही अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। मतदान (28 नवम्बर)
से पहले जो स्थिति है उससे यह साफ है कि चौथी पारी की तैयारी कर रही
भाजपा को कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिल रही है। शायद यही वजह है कि भाजपा अपने पहले
दिए गए नारे को भूल गई है। अब उसके नेता सिर्प जीत की बात कर रहे हैं और आंकड़ों का
दावा उन्होंने छोड़ दिया है। लगभग सभी सर्वेक्षण इस बार मध्यप्रदेश में कांग्रेस की
जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं। यह कांग्रेस के लिए स्वर्ण अवसर है। मध्यप्रदेश की सत्ता
में आने के लिए भरसक प्रयास कर रही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया
का भी मानना है कि पिछले 15 वर्षों से राज्य की सत्ता से बाहर
देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए अभी नहीं तो कभी नहीं वाली स्थिति है। राज्य की
230 विधानसभा सीटों पर 28 नवम्बर को मतदान होगा
जबकि मतगणना 11 दिसम्बर को होगी। राज्य में हमेशा भाजपा और कांग्रेस
के बीच ही सीधा मुकाबला देखने को मिलता रहा है। जब सिंधिया से पूछा गया कि राज्य की
सत्ता में वापस लौटने के लिए क्या कांग्रेस के पास यह बेहतर अवसर है तो पूर्व केंद्रीय
मंत्री ने कहा कि सबसे अच्छा है या नहीं... यह अभी नहीं तो कभी
नहीं। पूर्णविराम। जहां तक मुद्दों की बात है तो एंटी इनकम्बेंसी, किसानों की समस्या और बेरोजगारी सबसे बड़े मुद्दे हैं। यहां तक कि उज्जैन शहर
की अर्थव्यवस्था का जो एक बड़ा आधार महाकाल का मंदिर है वहां भी राम मंदिर इतना बड़ा
मुद्दा नहीं है जितना बेरोजगारी। छिंदवाड़ा जोकि कमलनाथ का पारंपरिक चुनाव क्षेत्र
है वहां भी केवल एक ही मुद्दा हैöनौकरी, नौकरी और नौकरी। रायसेन में पिछले साल कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने वाले शैलेश
साहू सरकारी फार्म भरते हैं, लेकिन वहां उम्मीद नहीं है। बताते
हैं कि किस तरह उनके एक दोस्त को इंजीनियरिंग की डिग्री के बाद 8000 रुपए महीने की नौकरी मिली है और घर में उसे सभी ताने मारते हैं। एक ताजा रिपोर्ट
के अनुसार मध्यप्रदेश में भाजपा की 15 साल की एंटीइनकंबेसी,
जीएसटी, नोटबंदी, किसानों
की नाराजगी और दलित एक्ट ने विधानसभा चुनाव की लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है,
कोई लहर नहीं है। चाहे जिससे बात करिए, उत्तर होता
हैöटक्कर कांटे की है। आम लोग मन की बात नहीं बताते। ऐसी प्रक्रिया
देते हैं जिसका ठोस निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। यहां तक कि विशेषज्ञ भी हवा का रुख
नहीं भांप पा रहे हैं, 230 सीटों में से करीब तीन दर्जन सीटों
पर त्रिकोणीय संघर्ष चल रहा है। बसपा-सपा और बागियों ने भाजपा-कांग्रेस दोनों की नाक में दम कर रखा है। देखें, ऊंट
किस करवट बैठता है?
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