Thursday 15 November 2018

सवाल निजी वाहनों पर पूरा प्रतिबंध लगाने का?

इसमें कोई दो राय नहीं कि दिल्ली में प्रदूषण की समस्या गहराती जा रही है। लेकिन जब हालात खतरे के निशान से पार जाने लगते हैं तब जाकर सरकारी एजेंसियों की नींद खुलती है। उसके बाद ही इस समस्या से निपटने के लिए आनन-फानन में कदम उठाए जाते हैं। अफसोस यह है कि प्रदूषण रोकने के लिए सारा नजला वाहनों पर गिरता है जबकि प्रदूषण के कई और कारण भी हैं। पराली जलाने, कंस्ट्रक्शन इत्यादि से कहीं ज्यादा प्रदूषण होता है। ऑड-ईवन से असहमति जताते हुए पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण एवं संरक्षण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने दिल्ली में गैर-सीएनजी निजी व व्यावसायिक वाहनों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर ली है। मंगलवार को इसका मसौदा तैयार भी कर लिया गया है। ईपीसीए के अनुसार अगर हालात नहीं सुधरते तो हैल्थ इमरजेंसी के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचेगा। यह तो ऊपर वाले का शुक्र है कि राजधानी-एनसीआर में पिछले दो दिन से हल्की बारिश हो रही है जिससे धूल छट गई है, कुछ हद तक। थोड़ा-सा प्रदूषण स्तर घटा है। पर ईपीसीए का निजी वाहनों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना अव्यवहारिक ही नहीं पूरे शहर को ठप करने जैसा होगा। अगर निजी वाहनों को चलने से बंद कर देंगे तो लोग अपने कार्यालय पहुंचेंगे कैसे? अगर सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट व निचली अदालतों के जज भी अदालत नहीं पहुंचेंगे तो क्या होगा? बीमार लोग अगर अस्पताल नहीं पहुंच सकेंगे तो क्या होगा? दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था इस कदर कमजोर है कि कोई भी व्यक्ति डीटीसी बसों के सहारे अपने कामकाज की जगहों पर निश्चित समय पर पहुंचने की उम्मीद नहीं कर सकता। मेट्रो ट्रेन के किराये में बेलगाम बढ़ोत्तरी के बाद लाखों लोगों ने उसके सहारे आवाजाही छोड़ दी है। फिर अभी भी मेट्रो सेवा सब स्थानों पर उपलब्ध नहीं है। मेरा ही उदाहरण ले लीजिए। मैं सुंदर नगर में रहता हूं। मेरे घर के मीलों-मील तक कोई मेट्रो नहीं है या तो जोरबाग जाऊं या फिर प्रगति मैदान मेट्रो स्टेशन। दोनों ही दूर हैं और फिर वहां तक जाऊंगा कैसे? ऐसे हजारों लोगों की भी ऐसी ही समस्या होगी। मेट्रो के बेतहाशा किराये में वृद्धि के कारण से निजी वाहनों के इस्तेमाल को ही ज्यादा बेहतर समझा। उबर इत्यादि में शेयरिंग व्यवस्था भी चली। सवाल तो यह है कि आवाजाही से लेकर बाकी दूसरे सभी जरूरी कामों के लिए सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था को पूरी तरह सहज, सुलभ और सस्ता बनाए बिना निजी वाहनों के उपयोग को कैसे और कितने दिनों तक सीमित किया जा सकता है? बेहतर होगा कि ईपीसीए ऐसे सुझावों से हटकर कोई और ठोस वैकल्पिक व्यवस्था के बारे में सोचे जिससे प्रदूषण लेवल भी घटे और सुझाव भी व्यवहारिक हों।

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