Friday, 2 November 2018

इंडिया की आयरन लेडी इंदिरा गांधी

बुधवार 31 अक्तूबर को इंदिरा गांधी की 34वीं बरसी थी। यह देखकर दुख हुआ कि सिवाय कांग्रेस पार्टी के उनकी इस पुण्यतिथि पर चुनिन्दा अखबारों में विज्ञापन थे। अखबारों में उनके बारे में एक शब्द नहीं छपा। सारा ध्यान सरदार पटेल की विशाल मूर्ति पर चला गया। यह टाइमिंग भी हो सकता है। भाजपा की सरकार इंदिरा जी को याद तक नहीं करना चाहती और उन्हें भुलाने का हर संभव प्रयास करती है। इंदिरा गांधी भारत के लिहाज से नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के परिप्रेक्ष्य में भी बेहद अहम थीं। अहम सिर्प इसलिए नहीं कि वह भारत की पहली ऐसी सशक्त महिला प्रधानमंत्री थी, जिनके बुलंद हौंसलों के आगे पूरी दुनिया ने घुटने टेक दिए थे। यह उनके बुलंद हौंसले ही थे जिसकी बदौलत बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया। भारत ने उनके राज में ही पहली बार अंतरिक्ष में अपना झंडा स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा के रूप में फहराया था। इतना ही नहीं, उन्होंने पंजाब में फैले उग्रवाद को उखाड़ फेंकने के लिए कड़ा फैसला लेते हुए मुश्किल से मुश्किल कदम उठाने से परहेज नहीं किया। बेशक उनके फैसले की उन्हें अपनी जान से कीमत चुकानी पड़ी। वह इंदिरा ही थीं, जिन्होंने भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बनाने की ओर अग्रसर किया। राजनीतिक स्तर पर भले ही उनकी कई मुद्दों को लेकर आलोचना होती हो, लेकिन उनके सियासी विरोधी भी उनके कठोर निर्णय लेने की काबिलियत को दरकिनार नहीं करते थे। यही चीजें हैं जो उन्हें आयरन लेडी के तौर पर स्थापित करती थीं। 1971 में भारत-पाक के बीच जंग और इंदिरा गांधी के साहसिक फैसले को दुनिया यूं ही नहीं याद रखती है। 1971 की लड़ाई के बाद दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश का उदय हुआ। पाकिस्तान की सरकार ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान की जनता पर जुल्म ढाने शुरू कर दिए। इन सब हालात में पूर्वी पाकिस्तान के लोगों और नेताओं ने भारत से मदद मांगी। इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने मदद देने का फैसला किया। इंदिरा गांधी ने तथ्यों का हवाला देकर बताया कि भारत सरकार का फैसला तर्पसंगत था। उनका कहना था कि उस समय चुप्पी का मतलब ही नहीं था। पूर्वी पाकिस्तान में पश्चिमी पाकिस्तान की सेना अमानवीय अत्याचार कर रही थी, पाकिस्तान की अपनी ही सेना अपने नागरिकों को निशाना बना रही थी। सेना के जवानों ने हजारों बांग्ला महिलाओं का बलात्कार किया और कत्ल किया और सारी दुनिया तमाशा देखती रही। अपने फैसले का बचाव करते हुए इंदिरा जी ने सवाल करने वाले से पूछा कि जब जर्मनी में हिटलर खुलेआम यहूदियों की हत्या कर रहा था, पुरुष-महिलाओं यहां तक कि बच्चों को गैस चैम्बरों में भेजकर मार रहा था तो उस वक्त पश्चिमी देश शांत तो नहीं बैठे। यूरोप के दूसरे देश हिटलर के खिलाफ खड़े हुए। कुछ इसी तरह के हालात पूर्वी पाकिस्तान में बन चुके थे और उनके सामने दखल देने के अलावा और कोई चारा नहीं था। वो पूर्वी पाकिस्तान में नरसंहार होते हुए नहीं देख सकती थीं। आज अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा छाया हुआ है। आज अगर इंदिरा जी होतीं तो शायद वह मंदिर बनाने का कड़ा फैसला भी कर लेतीं। जब उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय सेना भेजी, उन्होंने वोट बैंक पॉलिटिक्स को दरकिनार कर दिया और वह फैसला किया जो भारत के हित में था, मानवता के हित में था। बेशक इंदिरा जी ने आपातकाल लगाने, ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसी गलतियां कीं पर उन्होंने दृढ़ संकल्प और जरूरी एक्शन लेने में कभी परहेज नहीं किया। ऐसी आयरन लेडी के त्याग को भुलाया नहीं जा सकता। बेशक आज उनकी यादों को भुलवाने का पूरा प्रयास हो रहा हो पर देश की जनता इंदिरा जी को कभी नहीं भुला सकती। पता नहीं कि भारत को कभी दूसरी आयरन लेडी नसीब होगी या नहीं। हम इंदिरा जी की 34वीं पुण्यतिथि पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि देते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

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