Friday, 6 September 2019

चांद से 35 किमी दूर चंद्रयान निचली कक्षा में पहुंचा विक्रम

कदम-कदम चांद की ओर बढ़ते भारत के चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम ने अपनी कक्षा में बदलाव का आखिरी पड़ाव भी पूरा कर लिया है। अब यह अपनी यात्रा की सबसे नजदीकी कक्षा में पहुंच गया है। सोमवार को ऑर्बिटर से अलग होने के बाद से इसकी कक्षा में बुधवार को दूसरी बार बदलाव किया गया। इस प्रक्रिया को डी ऑर्बिटिंग कहा जाता है। चंद्रमा पर चंद्रयान-2 की सॉफ्ट लैंडिंग के जरिये भारत के सामने अपनी तकनीकी श्रेष्ठता का प्रदर्शन करेगा। अब तक अमेरिका, रूस और चीन ही ऐसा कर सके हैं। भारत ने विक्रम लैंडर को उतारने के लिए चंद्रमा के दो केटर सिम्पेलियस एन और मैनजिनस सी के बीच नौ किलोमीटर लंबे समतल मैदान को चुना है। छह और सात सितम्बर की दरम्यानी रात में चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव में स्थित इस मैदान में यान को उतारा जाएगा। यान को चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर 65 डिग्री से 90 डिग्री अक्षांश पर उतारा जाना है। यह उपयुक्त जगह का चुनाव बड़ी चुनौती है। इसके लिए तकनीकी और वैज्ञानिक कसौटियां बनाईं। इसके आधार पर विक्रम व प्रज्ञान के लिए चंद सतह पर उतरने के समय पेश आने वाले तीन प्रमुख खतरे तय किए गए। विक्रम के लिए 15 डिग्री से कम ढलान वाली जगह को चुना जाएगा। ज्यादा ढलान होने पर उतरते समय संतुलन बनाना मुश्किल हो सकता है। विक्रम के उतरने की जगह पर 0.5 मीटर से बड़े और 32 सेंटीमीटर से ऊंचे बोल्डर नहीं होने चाहिए। ऐसा हुआ तो वे लैंडिंग में बाधक बनने के साथ संतुलन बिगाड़ सकते हैं। किसी बड़ी चट्टान, पहाड़ या ऊंची जगह के साये से भी विक्रम को बचाना होगा। कोशिश की जाएगी कि उसे ज्यादा से ज्यादा समय सूर्य की रोशनी मिले। इससे मिशन की लाइफ बढ़ेगी, जिसे कम से कम चंद्रमा के एक दिन (यानि हमारे 14 दिन) रखने का लक्ष्य है। दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग की एक वजह मिशन की लाइफ बढ़ाना भी थी, क्योंकि ध्रुवों पर सूर्य का प्रकाश ज्यादा समय तक रहता है। देश का दूसरा महत्वाकांक्षी चंद्र मिशन चंद्रयान-2 चांद पर ऐतिहासिक कदम रखने से बस चंद कदम दूर है। चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम बुधवार तड़के 3.42 बजे चांद की निचली कक्षा में पहुंच गया है। इसरो ने बताया कि विक्रम की चंद्रमा की सबसे नजदीकी कक्षा 35 गुणा, 101 किलोमीटर के दायरे में ले जाने का कार्य सफलतापूर्वक और पूर्व निर्धारित योजना के तहत किया गया है। अब अगले तीन दिन तक विक्रम इसी कक्षा में चक्कर लगाता रहेगा। इसरो के मुताबिक विक्रम और उसके भीतर मौजूद रोवर प्रज्ञान तय योजना के मुताबिक सात सितम्बर को अल सुबह से ही पहले 1.00 से 2.00 बजे के बीच चांद की सतह पर उतरने की प्रक्रिया शुरू होगी। छह सितम्बर मध्य रात्रि के  बाद इतिहास रचा जाएगा।

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