Monday, 23 September 2019

प्लास्टिक नहीं की अपील अच्छी है पर विकल्प कहां हैं?

देश में ही नहीं विश्व मंचों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार देश को दो अक्तूबर से प्लास्टिक-शून्य करने की प्रतिबद्धता जताई और फिर उसे मथुरा के अपने एक सितम्बर के भाषण में दोहराया। वे ऐसे नेता हैं जिनकी बात देश सुनता ही नहीं, बल्कि काफी हद तक मानता भी है। लिहाजा समाज की भूमिका में परिवर्तन लाने के लिए सरकार की अच्छी अपील कारगर भी होती है। स्वच्छ भारत का ज्वलंत उदाहरण हैं। दरअसल प्लास्टिक का इस्तेमाल समाज की आदत भी बन गया है और कुछ हद तक मजबूरी भी है। जब यह लाया गया था तब (शायद आज भी) वह सबसे बेहतरीन विकल्प था। किन्तु आज जब उसकी हानि का पता चल गया है तो इसमें परिवर्तन का समय है। पर कई मायनों में इसका विकल्प अब तक सही से पेश नहीं किया जा सकता। दुकानदार अपना सामान इसी में ग्राहकों को देते आ रहे हैं। कम कीमत की लागत आने के कारण छोटे-छोटे दुकानदार इसे इसलिए इस्तेमाल करते हैं क्योंकि यह सबसा सस्ता साधन है। सरकार के अधिकारी भी यह नहीं बता पा रहे हैं कि सरकारी उपक्रम या उनके परोक्ष निर्देश पर चलने वाली संस्थाएं, कैसे और किस समतुल्य मैटेरियल और सुविधा से फाड़ो और फेंको दूध के प्लास्टिक पैकेट अगले ही हफ्ते में बदलेंगे और पानी की बोतलों का क्या विकल्प तैयार किया गया है? क्या राज्यों में मौजूदा सरकारी कोऑपरेटिव दुग्ध संस्थाएं वैकल्पिक पैकेजिंग व्यवस्था तैयार कर चुकी हैं? शायद यही कारण है कि खाद्य आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने मंगलवार को कहा कि एक बार इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक का विकल्प मिलने तक पानी की बोतलें बंद नहीं होंगी। उन्होंने माना कि अभी पानी की बोतल का जो विकल्प बताया जा रहा है, वह महंगा है। उन्होंने कहा कि एक दम बोतल बंद पानी पर रोक नहीं लगाई जा सकती। क्योंकि इससे बड़ी तादाद में लोगों का रोजगार जुड़ा है। वहीं पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने एकल प्रयोग वाले (Eिसगल यूज) प्लास्टिक का प्रयोग बंद करने के बारे में स्थिति को स्पष्ट करते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि इसका प्रयोग प्रतिबंधित करने जैसी कोई बात नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी दो अक्तूबर को इस श्रेणी के प्लास्टिक का प्रयोग लोगों की स्वप्रेरणा से बंद करने के लिए देशव्यापी जनांदोलन की शुरुआत करेंगे। रामविलास पासवान की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में प्लास्टिक उद्योग के लोगों ने कहा कि कुल उद्योग साढ़े सात लाख करोड़ रुपए का है और करोड़ों लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से इससे जुड़े हैं। बेशक प्लास्टिक पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है, लेकिन क्या पॉलिथीन  का सस्ता, सुंदर और टिकाऊ विकल्प मिल गया है और उसका उत्पादन शुरू हो गया है?

-अनिल नरेन्द्र

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