Thursday 19 September 2019

नोटबंदी, जीएसटी के असर ने बिठा दी अर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था को लेकर रोजाना जिस तरह से नई-नई खबरें और आंकड़े आ रहे हैं, वे इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि भारत में मंदी का जो माहौल चल रहा है वह मामूली नहीं। भले सरकार या कुछ अर्थशास्त्राr इसे वैश्विक मंदी का असर बता रहे हों या रिजर्व बैंक जैसे वित्तीय संस्थान इसे थोड़े समय का संकट मान कर चल रहे हों, लेकिन उद्योग जगत जिस तरह से हांफते नजर आ रहे हैं, वह हमारी अर्थव्यवस्था के लिए कहीं से अच्छा नहीं कहा जा सकता, खासतौर पर जब प्रधानमंत्री ने अगले पांच साल में पांच लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा है। बृहस्पतिवार को झारखंड में एक सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि चुनाव के समय हमने वादा किया था कि लोगों को कामवार और दमदार सरकार देंगे, एक ऐसी सरकार जो पहले से भी ज्यादा गति से काम करेगी। 100 दिन में देश ने इसका ट्रेलर देखा है, पांच साल की पिक्चर अभी बाकी है। प्रधानमंत्री के दूसरे कार्यकाल में देश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है और पहले 100 दिनों में तो इसकी पिक्चर बहुत खराब रही। पूर्व प्रधानमंत्री और जाने-माने अर्थशास्त्राr डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा है कि देश इस वक्त गंभीर आर्थिक सुस्ती का सामना कर रहा है। सबसे खतरनाक बात यह है कि सरकार को अहसास तक नहीं है कि यह आर्थिक सुस्ती है। मनमोहन सिंह ने इकोनॉमी को पटरी पर लाने के पांच सूत्र भी बताए। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में हुई पार्टी नेताओं की बैठक में मनमोहन सिंह ने कहा कि यही स्थिति रही तो 2024-25 तक पांच हजार अरब डॉलर की इकोनॉमी बनाने का पीएम मोदी का लक्ष्य पूरा होने की उम्मीद नहीं है। उनका कहना था कि सुस्ती का यह दौर नोटबंदी और गलत तरीके से जीएसटी लागू करने से आया है। सरकार गंभीरता दिखाए तो भी निपटने में कोई साल लग सकते हैं। सुस्ती से निपटने के पांच मनमोहनी उपायöपहला, जीएसटी की दरों को तर्पसंगत बनाना होगा। दूसरा, कृषि क्षेत्र पर फोकस हो। तीसरा, मार्केट में मनी फ्लो बढ़ाने को कर्ज की कमी दूर करें। चौथा, ज्यादा रोजगार देने वाले सैक्टरों पर विशेष फोकस और पांचवां नए एक्सपोर्ट मार्केट देखे जाएं। बता दें कि आर्थिक सुस्ती की खबरों के बीच जुलाई में औद्योगिक उत्पादन ग्रोथ रेट 4.3 प्रतिशत हो गई, जो जून में दो प्रतिशत थी। हालांकि यह पिछले साल इसी महीने के 6.5 प्रतिशत से कम है। हालांकि पिछले दिनों अर्थव्यवस्था को संकट से निकालने के लिए वित्तमंत्री ने एक के बाद एक कई उपायों का ऐलान किया है। लेकिन बड़ी समस्या यह है कि आर्थिकी की डांवाडोल स्थिति से निवेशकों से लेकर जनता तक के भीतर एक तरह का खौफ और अविश्वास पैदा हो गया है। लोग खर्च के लिए पैसा निकालने से बच रहे हैं। पता नहीं कब तक लोगों को इस संकट और किसी नए संकट का सामना करना पड़ जाए। यही वजह है कि बाजार में पैसे का प्रवाह नहीं बन पा रहा है और नकदी का संकट है। जब तक यह चक्र टूटेगा नहीं तब तक अर्थव्यवस्था पटरी पर लाना संभव नहीं है, इसलिए जरूरी है कि आर्थिक उपायों के साथ-साथ लोगों में भरोसा भी पैदा करें।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment