Wednesday, 18 September 2019

सरकार भरती है यूपी के मंत्रियों का आयकर

हम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस फैसले की सराहना करते हैं कि उन्होंने सूबे में एक बहुत गलत परंपरा को समाप्त करने का साहस दिखाया है। मैं बात कर रहा हूं कि राज्य के मुख्यमंत्री समेत सभी मंत्रियों के आयकर का सरकार भुगतान कर रही थी। उत्तर प्रदेश के वित्तमंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने बताया कि उत्तर प्रदेश मिनिस्टर्स सैलरीज एलाउंस एंड मिसलेनियम एक्ट 1981 के अंतर्गत सभी मंत्रियों के आयकर का भुगतान अभी तक राज्य सरकार के कोष से किया जाता रहा है। खन्ना ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशानुसार यह निर्णय लिया गया है कि अब सभी मंत्री अपने आयकर का भुगतान स्वयं करेंगे, सरकारी कोष से यह भुगतान नहीं होगा। खन्ना ने कहा कि एक्ट के इस प्रावधान को समाप्त किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश मंत्री वेतन, भत्ते एवं विविध कानून 1981 जब बना था, विश्वनाथ प्रताप सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे। इस कानून का अब तक 19 मुख्यमंत्रियों और लगभग 1000 मंत्रियों को लाभ मिला है। विश्वनाथ प्रताप सिंह के सहयोगी रहे कांग्रेस के एक नेता ने बताया कि कानून पारित होते समय तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने विधानसभा में तर्प दिया था कि राज्य सरकार को आयकर का बोझ उठाना चाहिए, क्योंकि अधिकांश मंत्री गरीब पृष्ठभूमि से हैं और उनकी आय कम है। व्यवस्था के साथ इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री और सभी मंत्रियों का इनकम टैक्स 1981 से ही सरकारी खजाने से वसूला जा रहा है। इस साल उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रियों का कुल आयकर 86 लाख रुपए जमा किया गया है। अफसोस तो इस बात का है कि चुनाव लड़ते समय ये लोग अपने शपथ पत्र में अपनी सम्पत्ति करोड़ों में दिखाते हैं, लेकिन आयकर अपनी जेब से भरना इसके एजेंडे पर नहीं आता। यह जानते हुए भी कि उत्तर प्रदेश एक पिछड़ा राज्य है और सरकारी खजाने का जन समस्याओं पर खर्च करना प्राथमिकता है। दुख से कहना पड़ता है कि सरकारी खजाने को चूना लगाने को लेकर राज्य के सभी दलों के बीच इस पर समझौता है। बहरहाल अमानत में खयानत का यह किस्सा किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है और सांसद भी कई तरह के आर्थिक लाभ उठाते हैं। जन प्रतिनिधियों के पदमुक्त होने के बाद भी सरकारी बंगले में डटे रहना या छोटी-छोटी सुविधाओं के लिए लड़ने की खबरें आए दिन आती रहती हैं। उत्तर प्रदेश में ही कई पूर्व मुख्यमंत्रियों ने वर्षों से सरकारी बंगलों में कब्जा जमा रखा है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई तो रोते-पीटते वह वहां से हटे। जन प्रतिनिधि अपने लिए सारी सुविधाएं सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं। जनता किस हाल में जी रही है, उस तरफ इनका ध्यान नहीं जाता। इन्हें कोई फर्प नहीं पड़ता। यह भारतीय राजनीति का किस हद तक पतन होने का सूचक है।

-अनिल नरेन्द्र

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