Monday, 2 September 2019

एनआरसी ः 4 साल, 1288 करोड़ खर्च और नतीजा किसी को मंजूर नहीं

कश्मीर के बाद आबादी में सबसे ज्यादा मुस्लिम हिस्सेदारी वाले राज्य असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन यानि एनआरसी की आखिरी सूची शनिवार को जारी हो गई। 19 लाख से ज्यादा लोगों के नाम सूची में नहीं हैं। साढ़े चार साल में 1288 करोड़ रुपए खर्च कर 62 हजार कर्मियों द्वारा बनाई गई इस सूची से सरकार से लेकर विपक्ष तक कोई भी इसे सही मानने को तैयार नहीं है। हालांकि 19 लाख एक बड़ी संख्या है, लेकिन असम के ही कई नेता यह सवाल कर रहे हैं कि क्या केवल इतने ही लोग बांग्लादेश से घुसपैठ करके आए थे? एनआरसी के राज्य समन्वयक प्रतीक हजारिका ने बताया कि कुल 3,11,21,004 लोग इस लिस्ट में जगह बनाने में सफल हुए हैं। उन्होंने कहा कि एनआरसी की फाइनल लिस्ट से 19,06,657 लोग बाहर हो गए हैं। असम में विदेशी नागरिकों का मुद्दा भाजपा के एजेंडे में बरसों से था। 1980 के दशक में लंबे हिंसक आंदोलन के बाद प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय हुए असम समझौते में विदेशी नागरिकों की पहचान करने की बात तय हुई थी। 2013 में यूपीए सरकार के समय कोर्ट ने कहा कि यह काम कीजिए लेकिन तब भी शुरू नहीं हुआ। नरेंद्र मोदी सरकार आने पर 2015 में यह काम शुरू हुआ। इस नजरिये से भाजपा श्रेय ले सकती है। लेकिन सियासत इसलिए हो रही है कि कितने हिन्दू और कितने मुस्लिम नाम लिस्ट में आने से छूट गए हैं। बता दें कि एनआरसी आखिर है क्या? एनआरसी किसी भी राज्य में वैध तरीके से रह रहे नागरिकों का रिकॉर्ड है। पहली बार एनआरसी 1951 में तैयार की गई थी। 1980 के आसपास असम में अवैध विदेशी लोगों की बढ़ती गतिविधियों के बाद एनआरसी को अपडेट करने की मांग तेज हुई थी। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और असम गण परिषद की तरफ से एनआरसी के नवीनीकरण की मांग को लेकर 1980 में केंद्र को एक ज्ञापन सौंपा गया। बांग्लादेश से असम आ रहे अवैध अप्रवासियों से असम की संस्कृति की रक्षा करने के लिए यह ज्ञापन सौंपा गया था। फिर जाकर 2015 में आवेदन मांगे गए थे। इस दौरान करीब 6.6 करोड़ आवेदन प्राप्त हुए जिनमें से असम के 3.29 करोड़ लोगों ने अपना नाम दर्ज करने का आवेदन दिया था। हमारे पुरखे यहीं पैदा हुए और यहीं मरे। तमाम दस्तावेज देने के बावजूद हमारा नाम एनआरसी के मसौदे में नहीं था। हमने दोबारा अपील की है। यदि अंतिम सूची में भी नाम नहीं आया तो हम कहां जाएंगे? यह सवाल केवल असम के अल्पसंख्यक बहुल धुबरी जिले के मोहम्मद हफीजुर ही नहीं, बल्कि 40.7 लाख उन लोगों के मन में भी उमड़ रहा है, जिनके नाम अंतिम सूची में नहीं हैं।  अंतिम सूची से बाहर रहने वाले लोगों को तत्काल हिरासत केंद्रों में नहीं भेजा जाएगा। इसके लिए इन लोगों को 10 महीने का वक्त देने का फैसला किया गया है। राज्य में अभी छह हिरासत केंद्र चल रहे हैं जिनमें करीब एक हजार अवैध नागरिक रह रहे हैं। इनमें से ज्यादातर बांग्लादेश और म्यांमार के नागरिक हैं। एनआरसी की अंतिम सूची से बाहर रहने वाले लोगों के लिए विदेशी न्यायाधिकरण में अपील करने की समय सीमा 60 दिन से बढ़ाकर 120 दिन कर दी गई है। राज्य में अगले महीने तक दो सौ अतिरिक्त ऐसे न्यायाधिकरणों की स्थापना की जाएगी। सूची में नाम न होने वाले लोग पहले विदेशी न्यायाधिकरण, उसके बाद हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकेंगे। एनआरसी की अंतिम सूची को लेकर एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि एनआरसी की अंतिम सूची आई है। हम भाजपा से पूछना चाहते हैं कि आप कहते थे कि 50 लाख घुसपैठिये असम में हैं। अब तक वो झूठ बोल रहे थे कि एनआरसी का आंकड़ा झूठा है। अब तो सिर्प 19 लाख लोगों का नाम है। मुझे शक है कि भाजपा एनआरसी बिल के जरिये ऐसा बिल ला सकती है जिससे गैर-मुस्लिमों को नागरिकता दे सकती है, जो समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा। कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि देश के वास्तविक नागरिकों के हितों की रक्षा होनी चाहिए। चौधरी ने कहा कि देश के वास्तविक नागरिकों को एनआरसी में शामिल किया जाना चाहिए। दरअसल सूची आने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास पर इस मुद्दे को लेकर बैठक हुई जिसमें पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर से ताल्लुक रखने वाले वरिष्ठ नेता शामिल हुए। आज जब हर देश अपने और विदेशी नागरिकों की पहचान सुनिश्चित कर रहा है तो हमारी राय में भारत को भी यह तय करना चाहिए कि देश में रहने वाले कौन भारतीय हैं और कौन नहीं? इस पर राजनीति न हो तो बेहतर होगा।

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