इसमें
कोई दो राय नहीं हो सकती कि संशोधित मोटर वाहन अधिनियम के तहत जुर्माने की भारी राशि
के डर से वाहन चालक अब अनुशासित हो रहे हैं। लोग अब ट्रैफिक नियमों का सख्ती से पालन
कर रहे हैं और उल्लंघन नहीं कर रहे हैं। दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के डाटा के अनुसार व
नया मोटर अधिनियम लागू होने से अकेले दिल्ली में चालान करीब 79 प्रतिशत कम हो गए हैं। दिल्ली में
सड़क हादसों में कमी और बुराड़ी-भलस्वा-मुपुंदपुर कॉरिडोर को मौत-मुक्त करने के लिए दिल्ली सरकार
के साथ मिलकर सड़क सुरक्षा पर काम करने वाली सेव लाइफ फाउंडेशन ने संशोधित अधिनियम
लागू होने के पहले 29 अगस्त और लागू होने के बाद 11 सितम्बर को अधिनियम की सख्ती से क्या बदलाव आए हैं, इसका
सर्वे किया है। सर्वे में साफ हुआ है कि अभी सख्ती कम है तब कार में सीट बेल्ट लगाने
वाले 14 प्रतिशत, हेलमेट लगाने वाले 11.3
प्रतिशत बढ़े हैं। ट्रिपल राइडिंग में 13.4 प्रतिशत
की कमी आई है। सेव लाइफ फाउंडेशन के संस्थापक पीयूष तिवारी ने बताया कि संशोधित अधिनियम
लागू होने के पहले 1190 और बाद में 1294 वाहनों के सैंपल सर्वे के रिजल्ट केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय, दिल्ली सरकार और महाराष्ट्र सरकार को सौंपे हैं। सरकार से सिफारिश की है कि
नियम को सख्ती से लागू करे, इससे नियम पालन करने वाले और बढ़ेंगे।
दूसरी ओर नए मोटर वाहन एक्ट की वजह से परेशानी में घिरे विभिन्न ऑटो-टैक्सी, बस-ट्रक ऑपरेटरों के संगठन
यूनाइटेड फ्रंट ऑफ ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (यूएफटीए) ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर इस कानून में संशोधन नहीं किया गया
तो हम हड़ताल करेंगे। इससे ऑटो-टैक्सी और बस-ट्रक एवं ओला-उबर जैसी टैक्सी सेवा एक दिन के लिए प्रभावित
हुई। 19 सितम्बर की एक दिवसीय हड़ताल से दिल्ली की इनमें सफर
करने वाली जनता को भारी परेशानी हुई। मजबूरन मेट्रो व दिल्ली परिवहन बसों का सहारा
लेना पड़ा। मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस का कहना है कि जिस तरह से केंद्र सरकार की ओर
से नए मोटर वाहन एक्ट के तहत बस-ट्रक चालकों का चालान काटा जा
रहा है वह हतप्रभ करने वाला है। अगर ऐसे ही चलता रहा तो हम अपना कारोबार बंद करने पर
मजबूर होंगे। दिल्ली ऑटोरिक्शा संघ व प्रदेश टैक्सी यूनियन ने कहा कि नए कानून के अनुसार
किसी वाहन से कोई दुर्घटना होती है और उसमें किसी की मौत हो जाती है तो बीमा कंपनी
पांच लाख रुपए तक का ही मुआवजा देगी उसके बाद का पैसा वाहन मालिक को देना है। उन्होंने
कहा कि ऐसे में अगर कोर्ट किसी को 50 लाख रुपए का मुआवजा देने
को कहता है तो फिर एक टैक्सी मालिक कहां से देगा? भारतीय टूर
ऑपरेटरों की एसोसिएशन का कहना है कि एक बस 45 लाख की आती है और
वह अगर दो राज्यों से होकर जाती है तो दो साल में ही उतना पैसा रोड टैक्स, टोल टैक्स और पांच नम्बर समेत आरटीओ अधिकारियों में दे देते हैं। तरह-तरह के टैक्स लगाकर सरकार ऐसा साबित करना चाहती है कि हम चोर हैं। सड़कों की
क्या हालत है यह किसी से छिपी नहीं। वाहन खरीदते वक्त सरकार रोड टैक्स इसीलिए तो लेती
है। सरकार को नए कानून बनाने से पहले उसे यहां के इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी सोचना चाहिए।
ट्रक ऑपरेटरों का कहना है कि आर्थिक मंदी के कारण माल ढुलाई में भारी कमी आई है और
उस पर थोड़ी-सी ओवरलोडिंग पर लाखों का चालान हो जाता है। हम कहां
से इतना चालान भरें? इसमें कोई शक नहीं कि नए कानून से ट्रैफिक
वाउलेशनों में कमी आई है और लोग अनुशासित हो रहे हैं पर दूसरी ओर कुछ मामलों में वाहन
चालकों को बिना वजह तंग भी किया जा रहा है, इसलिए जहां यह अधिनियम
कुल मिलाकर सही है वहीं इसके क्रियान्वयन में कमी को दूर किया जाना चाहिए।
-अनिल नरेन्द्र
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