Tuesday 17 September 2019

आज हरियाण में सिर्प खट्टर की तूती बोल रही है

हरियाणा के विधानसभा चुनावों की घोषणा किसी भी वक्त हो सकती है। पहले जिस तरह के संकेत मिल रहे थे, उससे उम्मीद की जा रही थी कि सोमवार को राज्य में चुनाव की घोषणा हो सकती है। लेकिन अब संभावना जताई जा रही है कि आचार संहिता 19 सितम्बर को लग सकती है। केंद्रीय चुनाव आयोग दीपावली से पहले-पहले चुनाव कराने की तैयारियों में जुटा है। हरियाणा में पिछली बार 26 अक्तूबर को सरकार ने कार्यभार ग्रहण कर लिया था। दो नवम्बर से पहले-पहले नई सरकार का गठन जरूरी है। भाजपा की चुनावी तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। पार्टी इस बार राज्य विधानसभा की कुल 90 में से 50 टिकट पहले चरण में ही घोषित करने की योजना पर काम कर रही है। भाजपा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का पलड़ा फिलहाल सबसे भारी दिखता है। दरअसल हरियाणा के राजनीति के मायने बदलने वाले चौथे लाल मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने विरोधियों को चारों खाने चित कर दिया है। विपक्ष जिस मनोहर लाल को अनुभवहीन बताकर सत्ता परिवर्तन का सपना देख रहा था वह खुद ही आज हाशिये पर आ गया है। प्रदेश व पार्टी में अपनी अलग पहचान व छवि बनाने वाले खट्टर ने यह साबित कर दिया है कि हरियाणा में बिना पर्ची व खर्ची के सरकारी नौकरियां मिल सकती हैं। ऑनलाइन सिस्टम ने ऐसी व्यवस्था कायम की है कि अब इससे भविष्य में कोई भी मुख्यमंत्री छेड़छाड़ की हिमाकत नहीं कर पाएगा। खट्टर पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने अपने मंत्रियों व विधायकों को भी भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार, पक्षपात से दूर रहने का आईना दिखाया। हाल ही के जींद उपचुनाव से धुआंधार बैटिंग कर रहे खट्टर ने अपने तजुर्बे व काम से भाजपा की सभी अन्य दलों से अलग पहचान दिलाई है। कभी इनेलो का गढ़ जींद में मुख्यमंत्री ने कांग्रेस व जजपा के दिग्गज राजनीतिक परिवारों को ऐसी पटखनी दी कि भाजपा की वाह-वाह हो गई। जहां पांच नगर निगम के चुनावों में पहली बार भाजपा की जीत का डंका बजा वहीं जिला परिषदों में भी अधिकतम चेयरमैन भाजपा के चुने गए। कुशल संगठनकर्ता रहे खट्टर के शासनकाल में एक समान विकास की ऐसी परंपरा डाली गई कि लालों (देवी लाल, बंसी लाल और भजन लाल) के गढ़ में भी भाजपा के झंडे घरों की छतों पर लगे नजर आने लगे हैं। जिस जाट बेल्ट में कभी भाजपा का कोई नाम लेवा नहीं था आज उसी जाट बेल्ट में भाजपा और खट्टर की तूती बोल रही है। आज भाजपा हरियाणा में सबसे मजबूत पार्टी बनकर उभरी है। 2014 से पहले भाजपा कभी भी अपने बलबूते पर सरकार नहीं बना पाई। पार्टी हमेशा दूसरे की बैसाखियों से सत्ता सुख प्राप्त करती थी। 1987 में भाजपा ने चौधरी देवी लाल की पार्टी लोकदल से गठबंधन किया था। तब भी उसके महज 17 विधायक चुनकर आए थे। उस दौरान डॉ. मंगल सैन पार्टी को लीड करते थे। उसके बाद 1996 में चौधरी बंसी लाल की हरियाणा विकास पार्टी से गठबंधन किया तो उसके 11 विधायक चुने गए थे मगर 2014 में पार्टी के 47 विधायक जीते और पहली बार अपने दम पर सरकार बनाई और भाजपा को बैसाखियों से छुटकारा मिल गया। 2019 चुनाव में तो ऐसी हालत नजर आ रही है कि पूरे विपक्ष को बैसाखियों की जरूरत पड़े।

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