Friday, 30 August 2013

खाद्य सुरक्षा विधेयक या वोट सुरक्षा विधेयक?

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की नजरों में खाद्य सुरक्षा विधेयक इतना महत्वपूर्ण गेम चेंजर साबित होगा कि वह बीमारी की हालत में भी इसे लोकसभा में पारित कराने के लिए डटी रहीं और लोकसभा से ही सीधी एम्स अस्पताल गईं जहां उनकी जांच के बाद उन्हें घर भेज दिया गया। सोनिया ने विधेयक पेश करते समय सभी राजनीतिक पार्टियों से इस विधेयक को सर्वसम्मति से पारित करने की अपील करते हुए कहा कि देश और दुनिया के लिए एक ऐसा संदेश देने का समय है जो बिल्कुल साफ और ठोस है कि भारत अपने सभी देशवासियों की खाद्य सुरक्षा की जिम्मेदारी लेता है। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने लोगों से खाद्य सुरक्षा का वादा किया था। हमें यह वादा पूरा करते हुए खुशी हो रही है। कुछ राजनीतिक दलों के खाद्य सुरक्षा के प्रावधानों पर उठाए गए सवालों का जवाब देते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि सवाल यह नहीं है कि हमारे पास साधन हैं या नहीं, हमें साधन जुटाने होंगे। करीब 13 मिनट के हिन्दी और बाद में अंग्रेजी में दिए गए अपने भाषण में सोनिया गांधी ने देशवासियों को याद कराया कि यूपीए सरकार उन्हें पांचवां कानूनी अधिकार देने जा रही है। कांग्रेस एक तरह से अपने चुनावी ट्रंप कार्ड पर लोकसभा की मुहर लगवाने में कामयाब रही। सोमवार को करीब सात घंटे की बहस के बाद और कुछ संशोधनों के बाद यह पारित हो गया। तीन संशोधन यह हुए ः पैकेज्ड खाना नहीं दिया जाएगा, विधेयक में फोर्टिफाइड फूड देने का प्रस्ताव था। आपदा के समय गरीबों को नकदी नहीं बल्कि अनाज ही दिया जाएगा। राज्य सरकारों को दिए जाने वाले अनाज का आवंटन पहले से कम नहीं किया जाएगा। इस बिल पर 318 संशोधन आए थे, स्वीकार कुल तीन हुए। बहस के दौरान कई तेवर देखने को मिले। आमतौर पर सभी दलों ने विधेयक का समर्थन किया। हां भाजपा ने इस पर टीका-टिप्पणी जरूर की। चुनावी साल में कांग्रेस के खाद्य सुरक्षा विधेयक के दांव पर भाजपा ने चतुराई से इसका समर्थन तो किया लेकिन सरकार की नीति व नीयत पर तमाम सवाल खड़े कर साफ कर दिया है कि वह चुनावों में जनता के बीच कांग्रेस को इसे पूरी तरह भुनाने नहीं देगी। लोकसभा में विधेयक पर चर्चा करते हुए डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने इसे कांग्रेस का वोट सुरक्षा विधेयक करार दिया। उन्होंने बिल की खामियां गिनाते हुए सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाए। डॉ. जोशी ने पूछा कि सरकार यह विधेयक दूसरे कार्यकाल के चौथे वर्ष में ही क्यों लाई? उन्होंने सरकार पर सीधा सवाल दागा कि साढ़े तीन छटांक (166 ग्राम) खाद्यान्न से कैसे पेट भरा जा सकता है। डॉ. जोशी ने ग्रामीण क्षेत्रों के 75 फीसदी व शहरी क्षेत्रों के 50 फीसदी गरीबों को ही खाद्य सुरक्षा देने के प्रावधान पर तीखा कटाक्ष करते हुए कहा कि बाकी क्या कोयला व स्पेक्ट्रम खाएंगे? इससे केंद्र सरकार सिर्प वाहवाही लूटेगी और खामियाजा राज्यों को भुगतना पड़ेगा। अंतर्राष्ट्रीय मानकों में महीने में न्यूनतम 14 किलो खाद्यान्न जरूरी है, लेकिन इसमें मात्र पांच किलो की व्यवस्था है यानि एक दिन में 166 ग्राम। उन्होंने परिवार की परिभाषा पर भी सवाल उठाए और कहा कि अगर कोई आदमी अकेला है तो क्या उसे परिवार माना जाएगा? खाद्य सुरक्षा है क्या? मोटे तौर पर आठ राज्यों को मिलेगी खाद्यान्न ढुलाई के लिए मदद ः केंद्र सरकार राज्यों को उनकी सीमा के भीतर अनाज की ढुलाई तथा राशन डीलरों को मार्जिन देने के लिए वित्तीय सहायता मुहैया कराएगी। खाद्य सुरक्षा पर आएगा 1,24,724 करोड़ रुपए का खर्च ः विधेयक के प्रावधान लागू होने पर 612.3 लाख टन अनाज की जरूरत पड़ेगी तथा इससे 2013-14 में 1,24,724 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च का अनुमान है। लोकसभा में बहस के दौरान हमने यह भी देखा कि कैसे उत्तर प्रदेश की सियासत छाई रही। भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को संसद के भीतर और बाहर समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव पर जबरदस्त हमला बोल दिया। लोकसभा में योगी आदित्यनाथ ने जहां मुलायम और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव पर समाजवाद की बजाय परिवारवाद की राजनीति करने का आरोप लगाया वहीं संसद के बाहर योगी यह कहने से भी नहीं चूके कि मुलायम और लालू जैसे समाजवादियों को देखकर शर्म आती है। योगी ने कहा कि मुलायम सिंह यादव लोकतंत्र और समाजवाद की बात तो करते हैं पर समाजवाद को सबसे ज्यादा नुकसान वही पहुंचा रहे हैं। मुलायम खुद अध्यक्ष हैं, बेटा उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री और बहू लोकसभा की सदस्य। दो भाई पार्टी में विराजमान हैं क्या ऐसा समाजवाद होता है? संसद भवन परिसर में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए आदित्यनाथ ने कहा कि अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा कोई राजनीतिक यात्रा नहीं थी। उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह की धर्मनिरपेक्षता का हाल देखिए कि एक तरफ आतंकवाद के आरोप में फंसे युवकों को छुड़वा रहे हैं और दूसरी तरफ संतों की यात्रा का विरोध कर उन्हें जेलों में डाल रहे हैं। मुलायम सिंह यादव ने खाद्य सुरक्षा विधेयक पर टिप्पणी की कि स्पष्ट है कि सरकार इस विधेयक को चुनावों को ध्यान में रखकर ला रही है। केंद्र ने उस समय इस बिल को पेश क्यों नहीं किया जब गरीब भूख से मर रहे थे। कांग्रेस हर चुनाव से पहले कुछ बड़ा करती है। इसमें भी गरीबों के लिए कुछ नहीं है। डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने एक बात और महत्वपूर्ण कही कि हर दिन ढाई हजार लोग खेती करना छोड़ रहे हैं। 15 साल में साढ़े तीन लाख किसानों ने आत्महत्या की है। विधेयक में किसानों के लिए कुछ नहीं है। कुल मिलाकर इसमें संदेह नहीं कि खाद्य सुरक्षा कानून के अस्तित्व में आ जाने से इस कानून को सही ढंग से अमल में लाने वाला तंत्र दुरुस्त हो सकेगा और यदि ऐसा नहीं होता, जिसके आसार भी नजर आ रहे हैं तो इसका मतलब है कि हजारों करोड़ रुपए भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ने वाले हैं।

-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 29 August 2013

सोनिया गांधी का विश्वास निश्चित रूप से हम यूपीए-3 बनाएंगे?

कर्नाटक की दो लोकसभा सीटों के हुए उपचुनाव में जीत के बाद कांग्रेस अध्यक्ष में नया उत्साह आ गया है। दिल्ली में राष्ट्रीय मीडिया सेंटर के उद्घाटन के मौके पर मीडिया कर्मियों के साथ बातचीत में सोनिया गांधी से जब यह पूछा गया कि क्या यूपीए-3 सचमुच अस्तित्व में आएगा तो उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से, शत-प्रतिशत। वह पूरी तरह से मानकर चल रही हैं कि अगले लोकसभा चुनाव में यूपीए बहुमत हासिल करेगा। सोनिया गांधी को भरोसा इसलिए है कि यूपीए ने लोगों को अनेक अधिकार दिए हैं। मसलन सूचना का अधिकार, प्राथमिक शिक्षा का अधिकार और अब खाद्य सुरक्षा। सोनिया इसे यूपीए के लिए गेम चेंजर मान रही हैं। सोनिया अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए या विपक्षियों की हवा खराब करने के लिए ऐसी बातें कर रही हैं पता नहीं। क्योंकि जमीनी हकीकत तो कुछ और ही है। आज सोनिया की सरकार के घटक दल व समर्थन करने वाले दल भी उनके नए उत्साह से इत्तिफाक नहीं रखते। यूपीए के प्रमुख घटक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ही इससे इत्तिफाक नहीं रखती। एनसीपी प्रमुख शरद पवार कह रहे हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद सरकार के गठन में छह क्षेत्रीय पार्टियां मुख्य भूमिका निभाएंगी। जो इन दलों का बहुमत हासिल कर लेगा वही अगला प्रधानमंत्री बन सकेगा। उधर उत्तर प्रदेश में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव 50 लोकसभा सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं और प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं। पवार का यह भी कहना है कि कांग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी, दोनों में से किसी को भी इनके बिना सरकार के लिए जादुई आंकड़े की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। रही बात भारतीय जनता पार्टी की तो लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने भी उतने ही आत्मविश्वास से कहाöअगले आम चुनाव के बाद एनडीए शत-प्रतिशत सत्ता में आएगा। नरेन्द्र मोदी तो समझ ही बैठे हैं कि वह देश के अगले प्रधानमंत्री हैं। हालांकि भाजपा ने इतने शब्दों में विश्वास के कारणों की व्याख्या तो नहीं की लेकिन भाजपा का आंकलन सम्भवत यही है कि लोग यूपीए के दो कार्यकाल से ऊब चुके हैं, दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी के रूप में भाजपा को ऐसा नेता मिल गया है जिसके नाम से उसके समर्थक समूह उत्साहित हैं। इसे विडम्बना ही कहेंगे कि सोनिया गांधी अपनी उम्मीद के पीछे सरकार की उपलब्धियां देख रही हैं। जबकि जमीनी हकीकत कुछ और ही है। यूपीए-2 के राज में एक के बाद एक महाघोटाले सामने आए और सरकार से जवाब दिए नहीं बन रहा। सरकार के कई मंत्री, सांसद इन आरोपों से घिरे हैं। देश की आर्थिक हालत लगभग दिवालिया हो चुकी है। महंगाई, बेरोजगारी, कानून व्यवस्था, विदेश नीति सब तो हाथ से निकल गई है और इन सबके बावजूद सोनिया गांधी को इतना विश्वास पता नहीं किस पर है? भ्रष्टाचार के अधिकांश मामलों में सरकार की ढिलाई के चलते सुप्रीम कोर्ट को सक्रिय होना पड़ा। आज देखा जाए तो कई मायनों में सरकार सुप्रीम कोर्ट ही चला रहा है। मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए अगर सोनिया कहें कि वह शत-प्रतिशत पुन सत्ता में आएंगी तो कहा जा सकता है कि या तो वह सपना देख रही हैं या फिर उन्हें किसी ऐसे करिश्मे की उम्मीद है जो हमें नजर नहीं आ रहा।

केदारनाथ के बाद अब बद्रीनाथ मंदिर को खतरा

उत्तराखंड में प्राकृतिक प्रकोप का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। अभी तक बादल फटने की घटनाएं हो रही हैं। आपदा के दो महीने से ज्यादा समय बीतने के बाद भी पहाड़ में मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। लगातार बारिश से नदियां उफान पर हैं और भूस्खलन से पहाड़ दरक रहे हैं। रुद्रप्रयाग, चमोली और उत्तरकाशी में हालात काबू में नहीं आ रहे हैं। राहत कार्य में मौसम का अड़ंगा है। सेना, बीएसएफ और लोनिवि के तमाम प्रयासों के बावजूद मुख्य मार्गों को अभी तक खोला नहीं जा सका। केदारनाथ मंदिर की तबाही के बाद अब बद्रीनाथ मंदिर के अस्तित्व को भी खतरा पैदा हो गया है। बद्रीनाथ धाम को दोतरफा खतरा पैदा हो गया है। मंदिर के पीछे स्थित नारायण पर्वत पर सिंचाई विभाग की ओर से बनाई गई सुरक्षा दीवार क्षतिग्रस्त होने की खबर मिली है। इससे पर्वत से तेजी से भूस्खलन शुरू हो गया है। इस हाल में नारायणी और इन्द्र धारा नाले में जमा मलबा कभी भी तबाही मचा सकता है। इसके अलावा बद्रीनाथ मंदिर के ठीक नीचे करीब 50 मीटर की दूरी पर स्थित तप्त पुंड के ब्लॉक भी अलकनंदा नदी के तेज बहाव से खोखले हो गए हैं जिससे तप्त पुंड को खतरा बन गया है। भूगर्भ वैज्ञानिक डॉ. डीसी नैनवाल का कहना है कि बद्रीनाथ की दाईं और बाईं ओर की ढलानों पर मिट्टी की मोटी परत जमी है। इससे भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है। मंदिर के ठीक पीछे तीव्र ढलान और ऊपरी भाग में खड़ी चट्टान है। यदि चट्टानों में दरार आती है तब बद्रीनाथ को खतरा हो सकता है। यदि मंदिर के पीछे सुरक्षा दीवार क्षतिग्रस्त हो रही है तो इसका जल्द ट्रीटमेंट करना आवश्यक है। हालांकि मंदिर समिति के सीईओ बीडी सिंह ने कहा है कि बद्रीनाथ मंदिर को कोई खतरा नहीं है। मंदिर से एक किलोमीटर दूर इन्द्रधारा नाले में पानी बढ़ने से मलबा आ गया है लेकिन मंदिर सुरक्षित है। अधिकारियों को अफवाहें फैलाने से बचना होगा। उन्होंने कहा कि सिंचाई विभाग को पत्र लिखकर उन्होंने भविष्य में किसी तरह के खतरे से बचने के लिए मरम्मत का काम तुरन्त कराने का आग्रह किया है। उधर केदारनाथ में जून में आई जल प्रलय के बाद अब पहली बार पूजा का कार्यक्रम बनाया गया है। बन्द हुई पूजा अब 11 सितम्बर को स्वार्थ सिद्धि अमृत योग के शुभ दिन पर दोबारा शुरू होगी। इसके लिए पहली बार पुजारी तथा अन्य लोगों को हेलीकाप्टर के जरिये वहां पहुंचाया जाएगा। श्री बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने बताया कि भीषण प्राकृतिक आपदा से केदारनाथ में मची तबाही के कारण निर्धारित तारीख तक मंदिर तक पहुंचने का कोई और रास्ता निकल पाना बहुत मुश्किल है। गोदियाल ने कहा कि पहले दिन सात बजे शुरू होने वाली पूजा दिनभर जारी रहेगी और इसमें मुख्य पुजारी भीमा शंकर लिंग सहित सिर्प मंदिर समिति के लोग ही शामिल होंगे। गौरतलब है कि 16-17 जून को आई जल प्रलय से केदारनाथ मंदिर और आसपास के क्षेत्र में भारी क्षति पहुंची थी। हालांकि मंदिर का गर्भगृह आपदा से सुरक्षित बच गया था। भीषण तबाही की वजह से केदारनाथ मंदिर में पहली बार पूजा बन्द हो गई जिसे शुरू करने के लिए मंदिर समिति, राज्य सरकार और शंकराचार्य ने 11 सितम्बर का दिन निर्धारित किया है। जय बाबा केदार बद्री विशाल की।

-अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 28 August 2013

यह पाकिस्तान में ही हो सकता है कि पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या में पूर्व राष्ट्रपति आरोपी हो

ाह केवल पाकिस्तान जैसे देश में ही हो सकता है कि एक पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या का मुख्य आरोपी एक पूर्व राष्ट्रपति व सेनाध्यक्ष को बनाया जाए। जी हां, पाकिस्तान में ऐसा ही हुआ है। पाकिस्तान के इतिहास में जनरल परवेज मुशर्रफ ऐसे पहले पूर्व सेनाध्यक्ष हैं जिन पर एक आपराधिक मामले में मुकदमा चलेगा। जिस देश में सबसे ज्यादा ताकतवर संगठन सेना है और जहां ज्यादातर सैनिक तानाशाह राज करते रहे हैं वहां यह सचमुच एक ऐतिहासिक घटना ही है। रावलपिंडी की आतंकवाद विरोधी अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या के मामले में जनरल परवेज मुशर्रफ पर मुकदमा दर्ज किया है। अदालत ने मुशर्रफ समेत आठ लोगों पर आरोप लगाए हैं। पाकिस्तान की आजादी के 66 सालों के इतिहास में ज्यादातर समय रहा है सैन्य शासन। सरकारी वकील चौधरी मोहम्मद अजहर के मुताबिक मुशर्रफ और मामले के दो अन्य आरोपी, रावलपिंडी पुलिस के पूर्व प्रमुख सौद अजीज व पुलिस अधीक्षक खुर्रम शहजाद की मौजूदगी में आरोप पत्र पढ़ा गया। इन तीनों के अलावा चार अन्य आरोपियों हसनेन गुल, रफाकत हुसैन, शेर जयान और अब्दुल रशीद पर आरोप पहले ही तय हो चुके हैं जबकि हत्याकांड के आठवें आरोपी एजाज शाह का मुकदमा नाबालिग होने के चलते अलग बाल अदालत में चलेगा। मुशर्रफ 1999 में नवाज शरीफ का तख्ता पलटने के बाद 2008 तक पाकिस्तान के शासक रहे। जरदारी की सरकार आने के बाद वे स्वनिर्वासन में दुबई व ब्रिटेन चले गए। चार साल बाद पाकिस्तान के आम चुनावों में शामिल होने के लिए इसी साल मार्च में देश लौटे और यहीं से उनकी मुसीबतें शुरू हो गईं। मुशर्रफ की मुसीबतों का न यह पहला अध्याय है और न अंतिम। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ उन पर राष्ट्रद्रोह का मामला चलाना चाहते हैं, इसके अलावा बलूच नेता नवाब अकबर बुगती की हत्या और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की बर्खास्तगी के मामले की तलवार भी उन पर लटक रही है। हमारी समझ से यह बाहर की बात है कि आखिर क्या सोचकर मुशर्रफ पाकिस्तान लौटे? क्या उन्हें सचमुच यह भ्रम था कि पाकिस्तानी अवाम उन्हें सिर-आंखों पर उठा लेगी और कहेगी कि आप देश की सत्ता पुन सम्भाल लें? वह जब से पाकिस्तान लौटे हैं लगभग तभी से नजरबन्द हैं और उन्हें चुनाव लड़ने से भी अयोग्य घोषित कर दिया गया। पाकिस्तान की अवाम में कोई उनका नाम लेने को तैयार तक नहीं है। राजनीतिक और न्यायपालिका के ताकतवर लोग उनके हाथों हुए अन्याय और अत्याचार, अपमान को भूले नहीं हैं। अब उन पर हत्या का इल्जाम भी बाकायदा दर्ज हो गया है जिसमें सबसे बड़ी फांसी है। देखना अब यह होगा कि पाकिस्तानी फौज अपने पूर्व मुखिया की इस छीछालेदर को किस तरह लेती है? पहले यह लग रहा था कि सम्भवत सेना दबाव बनाकर मुशर्रफ को देश से निकाल देगी पर अब मुकदमों के चलते यह सम्भव नहीं लगता। पाक सेना की मुश्किल यह है कि बेशक आज भी वह सबसे ताकतवर हो, लेकिन उसका सीधा सत्ता हथियान अब मुश्किल है। सेना के अन्दर अब ऐसे भी तत्व उभर रहे हैं जो अब तक की सेना की रणनीति और नीयत दोनों पर सवाल उठा रहे हैं। मुशर्रफ की मुश्किल तालिबानी भी हैं जो लाल मस्जिद हमले के लिए उन्हें सीधे जिम्मेदार मानते हैं और बदला लेने का इंतजार कर रहे हैं। आज से पहले अदालतों ने किसी जनरल पर हाथ नहीं डाला, ताजा हालातों से पता चलेगा कि पाकिस्तान किस ओर बढ़ रहा है। शायद यह बदलाव बेहतर पाकिस्तान की ओर ले जाए।

-अनिल नरेन्द्र

84 कोसी वन डे मैच टाई रहा न विहिप हारी न सरकार जीती

सभी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा मैदान है। धार्मिक रूप से भी और सियासी रूप से भी। आखिर यहां पर पूरी 80 लोकसभा सीटें हैं। फिर राम लला का भी सवाल है। 84 ही क्यों भाजपा व विश्व हिन्दू परिषद को 184 कोस की यात्रा भी क्यों न करनी पड़े तो करेंगे और समाजवादी पार्टी हर ऐसे  प्रयास को हर हाल में रोकेगी। क्योंकि धर्मनिरपेक्षता की माला जप कर मुस्लिम वोटों को बनाए रखने की जहां मजबूरी है वहीं कांग्रेस को हर हाल में धक्का पहुंचाना भी सपा की नीति है। अयोध्या के इर्द-गिर्द अधिकतर लोकसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा  है, इसलिए दोनों भाजपा और सपा को कांग्रेस से सीटें छीनने के लिए बहाना चाहिए। 2009 में कांग्रेस ने यूपी में 22 सीटें (लोकसभा) जीती थीं। इनमें 14 सीटें इसी परिक्रमा में आती है। ध्रुवीकरण से लड़ाई सपा बनाम भाजपा हो जाएगी। अयोध्या मुद्दा गर्माने से मुस्लिम वोट सपा में चले जाएंगे। ऐसी स्थिति में राज्य के 12 प्रतिशत ब्राह्मण वोट एकजुट होकर भाजपा को मिलेंगे। 1998 का उदाहरण सामने है तब हिन्दुत्व और अटल लहर में भाजपा को 46 सीटें मिली थी। नरेन्द्र मोदी और भाजपा के प्रभारी अमित शाह का भी यही प्रयास है। इसीलिए कांग्रेस के बड़बोले महासचिव दिग्विजय सिंह ने पूरी घटना को सपा और भाजपा के बीच मैच फिक्सिंग करार दिया है। चुनावी साल में 84 कोसी परिक्रमा के ऐलान और उसे रोकने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की कार्रवाई को कांग्रेस सबसे बड़े राज्य में सांप्रदायिक आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण के प्रयास के रूप में देख रही है। समाजवादी पार्टी को यह फायदा दिखता है कि अगर यूपी में भाजपा उभरती है तो पार्टी को 18 प्रतिशत मुस्लिम वोट अपनी ओर खींचने का मौका मिलता है। नरेन्द्र मोदी के आने के बाद सपा इसी रणनीति पर काम भी कर रही है। इसके तीन ताजा उदाहरण हैं। पहलाöदुर्गाशक्ति नागपाल मामला। दूसराöमुस्लिमों को आरक्षण और तीसरा अयोध्या मुद्दे पर 1990 जैसी सख्ती दिखाना। केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने कहा कि सपा और भाजपा 1990 से ही मिले हैं। वोटों के ध्रुवीकरण के लिए यह ड्रामा रचा गया है। उधर विहिप नेता अशोक सिंघल ने जवाब देते हुए कहा कि बड़े-बड़े साधु-संत गिरफ्तार हुए हैं। आपको फिक्सिंग लगती है? उप्र की मुगलिया सल्तनत और सोनिया को भगवान का श्रॉप लगेगा। आजम खान ने कहा कि कांग्रेस को मैच फिक्सिंग का कुछ ज्यादा ही अनुभव है। फिक्सिंग करके ही तो उनके प्रधानमंत्री ने 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाने दी थी। उमा भारती ने पलटवार करते हुए कहा कि हमारी नहीं, ये तो सपा और केंद्र की फिक्सिंग हैं, वोट बैंक की राजनीति के लिए। कुल मिलाकर 84 कोसी परिक्रमा का यह विहिप-सपा में वन डे मैच टाई रहा। न विहिप जीती न सपा सरकार हारी। राम की नगरी में जहां विश्व हिन्दू परिषद अपने नए एक्शन 84 कोसी परिक्रमा के पहले दिन अपना पराक्रम नहीं दिखा सकी वहीं परिक्रमा क्षेत्र सील करने का दावा कर रही समाजवादी पार्टी की सरकार सरयू तट तक विहिप नेताओं को जाने से रोक नहीं पाई। यह दीगर बात है कि पर्याप्त संख्या न जुट पाने से सरयू पूजन कार्यक्रम विधिवत न हो सका और प्रवीण तोगड़िया, रामविलास वेदांती एवं नृत्यगोपाल दास सरीखे विहिप नेताओं को गिरफ्तार कर प्रशासन ने यात्रा आगे नहीं बढ़ने की बात भी रख ली। यहां सरकार को सुकून है कि यात्रा विफल कर दी वहीं विहिप के लिए यह तो रिहर्सल है लड़ाई तो अभी बाकी है। न कारसेवक, न रामसेवक, न आडवाणी, न कल्याण-कटियार, उमा भारती। दरअसल में बड़ी लड़ाई का रिहर्सल था जो अक्तूबर से शुरू होने वाली है। अशोक सिंघल ने इसका ऐलान भी कर दिया है। संघ के रणनीतिकार जानते थे कि मंदिर मुद्दे पर आंदोलन को सपा सरकार अनुमति नहीं देगी। वे तो शायद इस मुद्दे के ताप का अहसास करना चाहते थे। परिणाम जैसा चाहते थे वैसा मिला। इसका उपयोग अक्तूबर में होगा। सिंघल ने घोषणा कर दी है कि केंद्र अगर 18 अक्तूबर तक संसद में कानून बनाकर मंदिर निर्माण का रास्ता तैयार नहीं करता तो देश में एक लाख स्थानों पर मंदिर निर्माण का संकल्प लिया जाएगा यानि मिशन ध्रुवीकरण अक्तूबर से शुरू होगा। अमित शाह जमीन तैयार कर रहे हैं। मोदी अक्तूबर में उत्तर प्रदेश में बड़ी रैली को सम्बोधित करेंगे। दशहरा-दीपावली का माहौल होने से अयोध्या में बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं। ठीक उसी दौरान 5 राज्यों में विधानसभा का माहौल बनना शुरू होगा। कांग्रेस केंद्र की सत्ता में है। दबाव उस पर होगा। परिणाम देशभर में कांग्रेस विरोधी माहौल बनेगा और फायदा उठाएंगे नरेन्द्र मोदी।


Tuesday, 27 August 2013

राडिया टेप्स कांड ः कठघरे में खड़ी केंद्र सरकार

बहुचर्चित नीरा राडिया टेप मामला आजकल फिर सुर्खियों में है। उल्लेखनीय है कि पब्लिसिएट नीरा राडिया की मंत्रियों, उद्योगपतियों, पत्रकारों व नौकरशाहों के बीच बातचीत को केंद्र सरकार ने टेप किया था। इसमें सरकारी कामकाज में किस तरह बाहरी दबाव डाला जाता है इसका पता चला। मामला अब तक तो बन्द हो चुका होता अगर यह सरकार के हाथ में होता पर चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में है, इसलिए सरकार भी कुछ हद तक मजबूर है। मजबूर तो है पर अदालत से सहयोग नहीं कर रही। अब भी मामले को दबाने का प्रयास चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से नीरा राडिया के टेलीफोन टेप करने का आदेश दिया था पर केंद्र सरकार ने यह पेश नहीं किए। इस पर अदालत नाराज हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मूल रिकार्ड उपलब्ध न कराने से विवाद के निपटारे में दिक्कत आएगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार का रवैया बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। यही नहीं माननीय अदालत ने मूल रिकार्ड पेश करने तक सरकार का पक्ष सुनने से भी इंकार कर दिया। जस्टिस जीएस सिंघवी की अध्यक्षता वाली बैंच ने कहा कि अदालत केंद्र सरकार का तब तक पक्ष नहीं सुनेगी जब तक जरूरी दस्तावेज पेश नहीं किए जाते। बैंच ने कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत सरकार के वकील अदालत की मदद करने की स्थिति में नहीं हैं। इसके साथ ही अदालत ने केंद्र सरकार को राडिया के टेलीफोन टेपिंग से संबंधित सारा मूल रिकार्ड 27 अगस्त को पेश करने का निर्देश दिया। अदालत ने 2008-09 में टेलीफोन निगरानी के मसले को देखने वाली समीक्षा समिति की कार्रवाई का विवरण भी पेश करने का निर्देश दिया है। वित्तमंत्री को 16 दिसम्बर 2007 को मिली एक शिकायत के आधार पर नीरा राडिया के फोन की निगरानी शुरू हुई थी। उसकी बातचीत रिकार्ड की गई थी। इस शिकायत में आरोप लगा था कि नौ साल की अल्पावधि के भीतर उसने 300 करोड़ रुपए का कारोबार खड़ा कर लिया है। इस केस में एक दिलचस्प मोड़ अब यह आ गया है कि टाटा समूह के पूर्व अध्यक्ष रतन टाटा ने इन राडिया टेपों पर सरकारी मंशा को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया है। रतन टाटा ने संकेत दिया कि शायद राजनीतिक मकसद से ही ऐसा किया गया था। सुप्रीम कोर्ट की उसी बैंच में, जस्टिस जीएस सिंघवी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष, रतन टाटा की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि सार्वजनिक जीवन से जुड़ा प्रत्येक व्यक्ति समुचित निजता की अपेक्षा करता है। इस तरह की बातचीत लीक होने से निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है। साल्वे ने कहा कि सरकार का यह आचरण सवालों को जन्म देता है। मेरे दिमाग में किसी तरह का संदेह नहीं है। जब जांच करने में उनकी दिलचस्पी नहीं थी तो फिर उन्होंने बातचीत टेप क्यों की? सरकार ने पांच हजार घंटे की बातचीत टेप की और फिर उस पर मौन होकर बैठ गई। सरकार ने किसी अन्य मकसद से ऐसा किया था। इसमें राजनीतिक दृष्टि से तमाम विस्फोटक सामग्री है। उन्होंने सवाल किया कि सरकार ने टेप की गई बातचीत के आधार पर कोई कार्रवाई क्यों नही की जबकि वित्तमंत्री को मिली एक शिकायत के बाद ही राडिया के फोन पर निगरानी की गई थी। साल्वे ने कहा कि इस बात की प्रबल सम्भावना है कि टेलीफोन टेपिंग की कोई अन्य वजह थी लेकिन मेरे पास इसे साबित करने के साक्ष्य नहीं हैं। कोई सरकार यह नहीं कह सकती कि वह नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में असमर्थ है। आपको इन अधिकारों और सरकारी गोपनीयता कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करनी ही होगी। चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में है, इसलिए इस पर किसी भी प्रकार की टिप्पणी नहीं की जा सकती पर इतना हम जरूर कहेंगे कि श्री साल्वे की दलील में ही जवाब भी है। वह मानते हैं कि टेपों में विस्फोटक राजनीतिक सामग्री है, इसलिए यह मामला प्राइवेट नहीं है निजी नहीं है यह सरकार और सरकारी कामकाज के तरीकों, उनमें दखलअंदाजी से संबंधित है, इसलिए यह जनता के सामने आना ही चाहिए और इसमें जो कलाकार शामिल हैं वह बेनकाब होने ही चाहिए ताकि भविष्य में सरकार और यह कलाकार 10 बार सोचें सरकारी कामकाज में दखलअंदाजी से।

कौन चाहता है सुप्रीम कोर्ट के फैसले को? 4836 सांसद-विधायकों में 1460 दागी हैं

दागी जनप्रतिनिधियों की सदस्यता समाप्त करने और उन्हें चुनाव लड़ने से रोकने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश से बचने के लिए सभी पार्टियां और सांसदों ने माथापच्ची करके आखिर रास्ता निकाल ही लिया। अब दोषी सांसदों और विधायकों की सीट भी बची रहेगी और वे जेल में रहते हुए चुनाव भी लड़ सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इस पर रोक लगा दी थी। लेकिन सरकार ने इस फैसले को पलटने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून में ही बदलाव कर दिया। कैबिनेट ने गुरुवार को संशोधन पर मुहर लगा दी। राजनीति में अपराधियों के बढ़ते प्रवेश को रोकने के लिए अब तक जुबानी चिन्ता प्रकट करती रही हमारी राजनीतिक जमात की कलई लगातार खुलती रही है। सजायाफ्ता सांसदों-विधायकों की सदस्यता समाप्त करने और जेल या हिरासत से चुनाव लड़ने पर रोक लगाने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को पलटने का कैबिनेट ने प्रबंध कर लिया है। दुर्भाग्य से इस पर संसद या राजनीतिक जमात में कोई विरोधी स्वर शायद ही सुनाई देगा। जनहित के मुद्दों को कभी सहमति तो कभी संसाधनों का अभाव बताकर टालने वाली सरकार की दागियों को राहत देने की यह जल्दबाजी हैरत में डालने वाली जरूर है। यह समझ से परे है कि जब इन फैसलों के सन्दर्भ में सरकार अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर कर चुकी है और आगामी दिनों में इसकी सुनवाई होनी है तो उसकी प्रतीक्षा करने में क्या दिक्कत थी? सम्भवत आगामी कुछ दिनों में संसद भी इसे पास कर देगी। क्योंकि सभी पार्टियां सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध कर रही थीं। चूंकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला 10 जुलाई से ही लागू हो गया था यानि बैक डेट से। सवा महीने ही टिका राजनीति का शुद्धिकरण। नए संशोधनों के अनुसार किसी सांसद या विधायक को सजा हो जाती है तो वह 90 दिन के भीतर फैसले के खिलाफ अपील कर निर्णय पर स्टे हासिल कर लेता है तो अयोग्य घोषित नहीं होगा। इसके लिए जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 की उपधारा 4 बदली गई है। जेल में रहते कोई भी व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है। तर्प दिया गया कि जेल जाने के बाद भी उसका वोटर लिस्ट से नाम नहीं हटता, सिर्प वोट देने का हक निलंबित होता है। इसके लिए जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 62 की उपधारा 2 बदली गई है। हां दिखावे के लिए दो शर्तें जोड़ी गई हैं। सजा के बाद भी सदस्य तो बना रहेगा, सदन में जाएगा भी लेकिन सदन की कार्यवाही में वोट देने का अधिकार नहीं होगा। सजायाफ्ता सदस्य अपील के बाद अंतिम फैसले तक वेतन-भत्ते लेने के अधिकार से वंचित रहेगा। चूंकि तमाम पार्टियां इसके हक में हैं, इसलिए अब कानून में बदलाव का रास्ता लगभग साफ है। सम्भव है कि इसी सत्र में सदन में पेश किया जाए और बिना बहस के पारित भी हो जाए। नया कानून लागू होने के बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला खुद-ब-खुद रद्द हो जाएगा। संसद में इस समय 151 से ज्यादा बिल लम्बित हैं। सरकार आम राय का बहाना बनाकर इस पर फैसले नहीं ले पा रही है। लेकिन दागी नेताओं पर संकट आया तो फौरन कानून बदला गया। साफ है कि हमारी राजनीतिक जमात शुचिता, पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर नागरिकों के बदलते मिजाज और अपेक्षाओं को समझ नहीं पा रही या समझना नहीं चाहती और यह स्थिति बेहद चिन्ताजनक है।

-अनिल नरेन्द्र

Sunday, 25 August 2013

दुनिया का नम्बर वन उसैन बोल्ट और सुशील का सनसनीखेज खुलासा

ओलंपिक इतिहास के सबसे सफल प्रिट किंग उसैन बोल्ट रविवार को 4 गुणा 100 मीटर रिले दौड़ का स्वर्ण जीतने के साथ विश्व चैंपियनशिप इतिहास के भी सबसे सफल एथलीट बन गए। इस स्वर्ण के साथ बोल्ट ने अमेरिका के महानतम एथलीट कार्ल लुइस को पीछे छोड़ दिया। कार्ल लुइस के पास आठ स्वर्ण के अलावा एक रजत और एक कांस्य पदक है, जबकि दीगुर (2011) में गलत शुरुआत की वजह से 100 मीटर दौड़ का स्वर्ण गंवा देने वाले उसैन बोल्ट के पास आठ स्वर्णों के अलावा दो रजत पदक  हैं। जमैका की 26 वर्षीय बोल्ट की शैली-एन फ्रेजर-प्रीसी ने भी तीन गोल्ड जीतकर कैरेबियन आइलैंड में खुशी की लहर दौड़ा दी। 6 फुट पांच इंच कद के बोल्ट ने शेष दुनिया के माने जाने वाले एथलीटों को धूल चटा दी। मास्को वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रविवार को स्टेडियम में ट्रैक के तीन मैडल (गोल्ड) के साथ कोसाक डांस करते हुए 50,000 दर्शकों का अभिवादन स्वीकार किया। इतने लम्बे कद के व्यक्ति के लिए यह डांस कर पाना बहुत मुश्किल माना जाता है। लेकिन बोल्ट ने तो पूरी दुनिया फतह कर ली। इसका जश्न भी तो सबसे अलग ही होना चाहिए था न। मेजबान रूस ने अमेरिका को पछाड़ते हुए सबसे अधिक 7 गोल्ड मैडल जीतकर मैडल टेबल पर टॉप किया। अमेरिका के ओवरआल मैडल टैली ज्यादा थी पर रूस से एक गोल्ड मैडल कम था। अमेरिका ने 6 गोल्ड, 14 सिल्वर के साथ कुल 25 मैडल जीतकर दूसरा स्थान हासिल किया। जमैका ने 6, केन्या ने 5, जर्मनी ने 4, इथोपिया और ब्रिटेन ने तीन-तीन गोल्ड मैडल हासिल किए। बात खेलों की हो रही है और रूस की तो भारत के लिए ओलंपिक मैडल जीत चुके पहलवान सुशील कुमार ने सनसनीखेज आरोप लगाया है कि 2010 में वर्ल्ड चैंपियनशिप के फाइनल मुकाबले में हारने के लिए उन्हें करोड़ों ऑफर किए गए थे। सुशील ने खुद इस बात का खुलासा मीडिया को दिया है। उनका कहना है कि मास्को में हो रहे चैंपियनशिप के फाइनल में हार जाने के लिए रूसी कोच की ओर से यह पेशकश की गई थी। सुशील कुमार को इस मुकाबले में रूस के एलन गोगोव से भिड़ना था। उनके अनुसार मुकाबले से ठीक पहले किसी ने उन्हें इस ऑफर के बारे में बताया। यह ऑफर (पेशकश) रूसी पक्ष की ओर से थी और भारतीय टीम के विदेशी कोचों के जरिये पहुंचाया गया था। सुशील ने कहा कि जब उन्हें यह बात पता चली तो उन्हें यकीन नहीं हुआ। बात करोड़ों रुपए की थी, किसी भी पहलवान के लिए यह बहुत बड़ी रकम थी। रूसियों का कहना था कि उनके देश (रूस) में हो रही चैंपियनशिप में उन्हीं का पहलवान जीतना चाहिए। सुशील ने इस ऑफर को फौरन ठुकरा दिया। सुशील कहते हैं कि बात दो-चार करोड़ की नहीं, इज्जत की थी। बाद में सुशील ने इस मुकाबले में गोगोव को
3-1 से हराकर भारत को रेसलिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप का पहला गोल्ड मैडल दिलाया था। क्रिकेट मैच फिक्सिंग, बाक्सिंग मैच फिक्सिंग व फुटबाल मैच फिक्सिंग की बात तो पहले ही सामने आई है पर रेसलिंग में भी अब इस प्रकार का घिनौना खेल चलता है पहली बार सुना है। सुशील ने तो ठुकरा दिया पर और पहलवान लालच में आ सकते हैं। मुश्किल यह है कि इस प्रकार की अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए कोई मैक्सिम नहीं है।

-अनिल नरेन्द्र

दिल्ली के बाद अब मुंबई हिली गैंगरेप से

16 दिसम्बर 2012 को दिल्ली के वसंत विहार इलाके में पैरामेडिकल छात्रा से बस में हुई गैंगरेप की वारदात के बाद कठोरतम कानून बनाने के बाद भी यह वहशी बाज नहीं आ रहे। वसंत विहार केस की घटना के बाद कई ऐसी घटनाएं हुई हैं। ताजा घटना मुंबई की है। देश की आर्थिक राजधानी व महिलाओं के लिए सुरक्षित मानी जाने वाली मुंबई में बृहस्पतिवार को एक 23 वर्षीय महिला फोटोग्राफर को पांच वहशी दरिन्दों ने अपनी हवस का शिकार बनाया। पीड़िता अपने एक सहकर्मी के साथ काम के सिलसिले में परेल इलाके में स्थित बन्द पड़े मिल्स के कम्पाउंड के फोटो खींचने गई थी। वहां पांच वहशियों ने मौका पाकर पीड़िता के साथी को पत्थर से बांध दिया और फिर युवती से गैंगरेप किया। इस घटना ने 16 दिसम्बर को दिल्ली में गैंगरेप की याद ताजा कर दी तो लोगों का गुस्सा फिर भड़क उठा। देश में सड़कों से लेकर संसद तक में मुद्दा उठा। मुंबई पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए 24 घंटे के भीतर ही इस मामले को सुलझा लेने का दावा किया है। पुलिस का दावा है कि इस मामले में संलिप्त पांच में से एक अपराधी को गिरफ्तार कर लिया गया है। दो अपराधियों सहित चार अन्य  की पहचान कर ली गई है। उनकी धरपकड़ के लिए गहन तलाशी अभियान जारी है। गिरफ्तार व्यक्ति का नाम मोहम्मद अब्दुल उर्प चांद है जबकि विजय जाधव, कासिम बंगाली, सलीम और अशफाक फरार हैं। घटना बृहस्पतिवार शाम छह बजे के करीब घटी। पीड़िता और उसका साथी कुछ तस्वीरें लेने के लिए सुनसान पड़े शक्ति मिल्स परिसर में गए थे। वहां पांचों आरोपी उनके पास आए। उनमें से एक ने पीड़िता के मित्र से कहा कि कुछ दिन पहले इलाके में हुई एक हत्या में उसका हाथ है। जब पीड़िता के मित्र ने कहा कि वह पहली बार इस जगह पर आया है तो आरोपी ने एक साथी को फोन किया जो तुरन्त ही वहां पहुंच गया और कहने लगा कि उसे भी हत्या में फोटो पत्रकार के इस साथी का ही हाथ हेने का शक हो रहा है। आरोपियों ने पीड़िता के दोस्त को पत्थर से बांध दिया और युवती के साथ गैंगरेप किया। बड़े दुख से कहना पड़ता है कि हमारे समाज का मानसिक नजरिया बिल्कुल नहीं बदला। 16 दिसम्बर की घटना के बाद जिस तरह पूरे देश में रोष पैदा हुआ था, सरकार ने भी सख्ती दिखाई थी तो उससे लगा था कि शायद अब यह दरिन्दे ऐसा कुकर्म करने से पहले थोड़ा सोचेंगे पर कुछ नहीं बदला। जिस दिन मुंबई की यह घटना हुई उसी दिन दिल्ली में उत्तम नगर इलाके में नौकरी का झांसा देकर एक शादीशुदा महिला से सामूहिक बलात्कार का मामला सामने आया। इस मामले में गिरफ्तार दो मुलजिमों को पेशी के बाद कोर्ट ने न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया है। मुलजिमों के नाम मोहित उर्प मोनू व विकास हैं। तीसरा अपराधी फरार है। देश की बहू-बेटियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म रोकने, दोषियों को सजा और पीड़िता की मदद के लिए सरकार कितनी गम्भीर है 16 दिसम्बर की घटना से ही पता चल जाता है। लगभग 8 महीने हो गए उस घटना को और अभी अदालत में केस चल ही रहा है। पता नहीं कब फैसला होगा, जब उस फैसले पर अमल होगा? उम्मीद की जानी चाहिए कि इसी वर्ष केस का फैसला हो जाएगा और कसूरवारों को सजा। सजा का डर ही इन वहशियों को रोक सके तो रोके वैसे तो यह बाज आने वाले नहीं हैं।

Saturday, 24 August 2013

सीरिया सेना का दमिश्क के फाउटा में रासायनिक हमला

अपने ही देशवासियों के खिलाफ इस प्रकार के हथियार से आदमी कैसे हमला कर सकता है हमारी समझ से तो बाहर है पर सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ रासायनिक हमला किया है। सीरिया में सेना और विद्रोहियों के बीच काफी समय से चले आ रहे संघर्ष ने बुधवार को एक निहायत खतरनाक मोड़ ले लिया। सीरियाई राष्ट्रपति असद के सैनिकों ने दमिश्क में रासायनिक हमला कर सैकड़ों लोगों को मौत की नींद सुला दिया। सीरियाई विद्रोहियों ने जहरीली नर्व गैस से किए गए हमले में कम से कम 1300 लोगों की मौत का दावा किया है। विभिन्न जगहों पर बड़ी संख्या में बिछी लाशों की तस्वीरें भी बता रही थीं कि नरसंहार भयावह है और बड़ी तादाद में मासूम बच्चे और महिलाएं भी मारी गई हैं। यदि विद्रोहियों का दावा सही है तो यह हाल के दशकों में रासायनिक हमले में नरसंहार का यह सबसे बड़ा मामला है। हालांकि बशर अल असद शासन ने रासायनिक हथियार इस्तेमाल करने की बात से साफ इंकार किया है। विपक्ष ने तत्काल अंतर्राष्ट्रीय दखल की मांग की है। अमेरिका समेत पश्चिमी देशों से संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों से इस हमले की जांच कराने की मांग की है। बताया जाता है कि बशर अल असद के वफादार सैनिकों ने राजधानी दमिश्क के उपनगरीय इलाके फाउटा में रासायनिक हथियारों से यह हमला किया। हमले का एक वीडियो यू-ट्यूब पर भी डाला गया है जिसमें लोगों की  लाशें पड़ी दिखाई पड़ रही हैं। वीडियो में लोगों का अस्पताल में इलाज होते भी दिखाया गया है। बताया गया है कि रासायनिक हमले के बाद लड़ाकू विमानों से बमबारी भी की गई। नर्व गैस के मुख्य रूप से दो वर्ग हैंöजी और वी। जी वर्ग में आती है टैबुन, सोमैन, सैरिन और साइक्लो सैरिन जबकि वी वर्ग में वीएएक्स आती है। यह जहरीली रासायनिक गैस है जो स्नायु तंत्र को विषाक्त कर देती है जिससे जीवित रहने के लिए जरूरी शारीरिक क्रियाएं बाधित हो जाती हैं। इराक में 1988 में सद्दाम हुसैन की सेना ने हलबजा में रासायनिक गैस से हमला किया था। उस हमले में तकरीबन 5000 कुर्द लोगों की जान चली गई थी। सीरियाई सेना के पास 300 से ज्यादा बीएम-21 मल्टीपल रॉकेट लांचर हैं। इनसे 120 मिमी के रॉकेट में दो रासायनिक हथियार लोड किए जा सकते हैं। इन हथियारों में सैरिन गैस (नर्व गैस) का उपयोग किया जाता है। सीरियाई सेना के पास 650 टन सैरिन गैस है। सीरियाई सैनिकों द्वारा किया गया इस साल में सातवीं बार रासायनिक हमला है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2011 में शुरू हुए सीरियाई गृहयुद्ध में अब तक 1,20,000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। जबकि 17 लाख से ज्यादा लोग बेघर हो चुके हैं। विपक्ष का दावा है कि अब तक 1400 से 1450 लोग रासायनिक हमलों में मारे जा चुके हैं। सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद लम्बे वक्त से सत्ता पर काबिज हैं। अरब क्रांति के दौरान उनको सत्ता से हटाने के लिए विपक्ष पहले सड़कों पर उतरा, लेकिन बाद में यह संघर्ष हिंसक हो गया। असद सीरिया अल्पसंख्यक शिया समुदाय से आने के बाद भी सत्ता पर काबिज हैं और वहां का बहुसंख्यक सुन्नी विपक्ष यह पचा नहीं पा रहा है। असद सरकार की अब मुसीबतें बढ़ने की उम्मीद है। संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद सीरिया पर सैन्य कार्रवाई का फैसला ले सकती है। अमेरिका ने कथित तौर से इराक पर इसी तरह के सामूहिक विनाश के हथियारों का आरोप लगाते हुए 2003 में हमला कर सद्दाम का तख्ता पलटा था।

-अनिल नरेन्द्र

लड़की से दुष्कर्म का आरोप लगा

लोगों को धर्म और आध्यात्मक का ज्ञान देने वाले 74 साल के आसाराम बापू वैसे तो पिछले कई सालों से विवादों में रहे हैं पर इस बार तो उन पर ऐसा आरोप लगा है जिससे उनके फंसने की पूरी सम्भावना है। इस बार उन पर जोधपुर में अनुष्ठान के बहाने एक किशोरी से दुष्कर्म का मामला दर्ज हुआ है। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा स्थित उनके गुरुकुल की पीड़ित छात्रा ने दिल्ली के कमला मार्केट थाने में शिकायत दर्ज कराई है। पुलिस ने जीरो एफआईआर दर्ज कर मामला जोधपुर पुलिस को सौंप दिया है। कानूनन जिस थाना क्षेत्र में वारदात हुई है उसी में केस दर्ज किया जाता है और वहीं का विवेचना अधिकारी जांच करता है। लेकिन कोई पीड़ित अगर शिकायत लेकर किसी थाने में जाता है और पुलिस अधिकारी को समझ में आए कि मामला संगीन है तो भले ही वारदात किसी अन्य थानाक्षेत्र, जिला या प्रदेश में हुई हो, वह अपने थाने में जीरो एफआईआर दर्ज कर मामला संबंधित थाने को हस्तांतरित कर देता है जिससे संबंधित थाना पुलिस द्वारा जांच की जा सके। एफआईआर की कॉपी संबंधित पुलिस थाने में भेज दी जाती है। दिल्ली के कमला मार्केट थाने के एसएचओ प्रमोद जोशी के अनुसार मेडिकल जांच से बलात्कार की पुष्टि तो नहीं हुई है, लेकिन उसके पहले जो कुछ होता है वह सब सामने आया है। पीड़ित बच्ची ने 10 अगस्त को अपने परिजनों को अपनी तबीयत खराब होने की बात कही। परिजन जब गुरुकुल पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि बच्ची की तबीयत पहले से ठीक है लेकिन वह ऊपरी चक्करों का शिकार है। उसे उपचार के लिए बापू के पास ले जाना होगा। इसके बाद 13 अगस्त को परिजन उसे लेकर जोधपुर में बापू के एक अनुयायी के पास पहुंचे। सभी लोगों को एक आश्रम में ठहराया गया। 15 अगस्त को लड़की के लिए बापू द्वारा अनुष्ठान करने की बात कहते हुए उसे एक कमरे में भेजा गया। कमरे में आसाराम बापू पहले से बैठे थे। किशोरी का आरोप है कि कमरे में बापू ने उसके साथ दुष्कर्म किया और फिर धमकी दी कि अगर घटना के बारे में किसी को बताया तो उसके माता-पिता की हत्या करवा दी जाएगी। खुद बच्ची ने एक समाचार पत्र को बताया कि मैं बापू के छिंदवाड़ा स्थित गुरुकुल में रहती हूं,  वहीं अगस्त के पहले हफ्ते में मेरी तबीयत खराब हो गई। माता-पिता को भी इसकी सूचना दी गई। वे छिंदवाड़ा पहुंचे तो उन्हें  बताया गया कि तबीयत थोड़ी ठीक है। लेकिन झाड़पूंक की जरूरत है जो बापू खुद करेंगे। वे अभी जोधपुर में हैं, इसलिए आप जोधपुर चले जाएं। 15 अगस्त को हम जोधपुर पहुंचे। आसाराम ने मेरे माता-पिता से कहा कि मुझे आश्रम में छोड़ दें। अनुष्ठान की जरूरत है। उसी रात आसाराम मुझे अलग कमरे में ले गए और मेरे साथ गलत काम किया। फिर जान से मारने की धमकी भी दी। अगले दिन मुझे छिंदवाड़ा जाने को कहा। लेकिन मैं माता-पिता के साथ शाहजहांपुर चली गई। मैं डरी हुई थी, इसलिए घर पहुंचकर माता-पिता को पूरा वाकया बताया। वहां से हम दिल्ली पहुंचे। क्योंकि दिल्ली के रामलीला मैदान में 18 से 20 तारीख तक सत्संग होने वाला था। लेकिन हमें किसी ने बापू से मिलने ही नहीं दिया। फिर मैंने 19 अगस्त को मैदान से सटे कमला मार्केट थाने जाकर शिकायत दर्ज कराई। आसाराम के खिलाफ पुलिस ने पॉस्को एक्ट में भी केस दर्ज किया है। इसमें आसाराम को खुद को निर्दोष साबित करना होगा। इस कानून में पीड़ित का बयान ही सबसे अहम माना जाता है। हालांकि आसाराम के प्रवक्ता सुनील वानखड़े का दावा है कि 15 अगस्त को बापू जोधपुर में थे ही नहीं। यह बापू को बदनाम करने की कोशिश है। सब विरोधियों की चाल है, संतों को बदनाम करने की साजिश है। इस मामले में किसी जांच की जरूरत भी नहीं है। जबकि जोधपुर के जिस फार्म हाउस में यह घटना हुई, उसके मालिक रणजीत देवड़ा का कहना है कि 15 अगस्त को आसाराम बापू यहीं थे और यह बच्ची अपने माता-पिता के साथ यहां आई थी। दूसरी ओर आसाराम के खिलाफ यौन शोषण के आरोपों की जांच कर रही पुलिस का कहना है कि स्वयंभू धार्मिक गुरू के खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की का बयान पहली नजर में सही जान पड़ता है। पुलिस ने हकीकत जानने के लिए गुरुवार को मनई गांव में आसाराम के आश्रम में उस स्थान का मुआयना किया, जहां लड़की के अनुसार अपराध को अंजाम दिया गया था। वहां के हालात लड़की के बयानों से मेल खाते हैं। आसाराम इस बार बुरे फंसे हैं। उन पर गम्भीर धाराएं लगाई गई हैं जिनमें धारा 376 (बलात्कार), धारा 354 (छेड़खानी) और धारा 509 (धमकी देना) प्रमुख हैं। इस मामले में आसाराम की गिरफ्तारी भी सम्भव है।

Friday, 23 August 2013

टुंडा के सनसनीखेज खुलासे से फिर बेनकाब हुआ पाकिस्तान

भारत के खिलाफ आतंकवाद को  बढ़ावा देने के  पीछे पाकिस्तान के हाथ होने की बात बार-बार सामने आती है और हर बार पाकिस्तान इससे इंकार करता है। एक बार फिर इस मामले में पाकिस्तान बेनकाब हो गया है पर आदतन मजबूर पाक इस बार भी इसे हवा में उड़ा देगा। मैं बात कर रहा हूं अब्दुल करीम टुंडा की। टुंडा ने खुलासा किया है कि पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई भारत से भागकर पाक पहुंचे आईएम (इंडियन मुजाहिद्दीन) और बीकेआई (बब्बर खालसा इंटरनेशनल) के आतंकियों की पूरी मदद कर रही  है। उन्हें रहने व रोजगार मुहैया कराने के साथ कई नामों से पाकिस्तानी पासपोर्ट भी दिए गए हैं। इससे अंतर्राष्ट्रीय जांच एजेंसी की पूछताछ में पाकिस्तान यह कहकर बच जाता है कि उसके यहां रहा व्यक्ति पाकिस्तानी नागरिक है या इस नाम का कोई व्यक्ति पाकिस्तान में नहीं रह रहा। अब्दुल करीम उर्प टुंडा ने गिरफ्तारी के बाद कई अहम सवालों के जवाब दिए हैं। मसलन दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में ही आईएसआई की पनाह में रह रहा है। लश्कर को पाकिस्तानी सेना और आईएसआई का समर्थन हासिल है। आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों के संचालन में आईएसआई की भरपूर मदद मिलती है। पाकिस्तान में दाऊद इब्राहिम लश्कर के संस्थापक हाफिज सईद वगैरह लगातार सम्पर्प में हैं। टुंडा ने पाकिस्तान के अलावा बंगलादेश, नेपाल और भारत में अपनी दहशतगर्दी का मजबूत जाल बिछा रखा है। बम गुरू टुंडा पाकिस्तान के सरहदी इलाकों में गुपचुप चल रहे अलकायदा ट्रेनिंग कैम्प में भी गया था। सूत्रों के मुताबिक पुलिस ने जब यह सवाल पूछा तो वह पहले तो चुप रहा और बाद में गोलमोल जवाब दिया। टुंडा जेहादी भाषणों के लिए भी खासा लोकप्रिय है। उसे युवाओं को जेहाद के नाम पर आतंकवाद की राह पर धकेलने में महारथ हासिल है। इसलिए आईएसआई ने उसे पाकिस्तान में मदरसा चलाने की जिम्मेदारी सौंपी थी। कराची में उसका `महदूद तालीम इस्लामी दारुल फनून' नाम से मदरसा है जिसमें 500 से अधिक बच्चे पढ़ते हैं। पूछताछ में टुंडा ने बताया कि मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों को जेहाद के अलावा विस्फोटक व हथियारों की ट्रेनिंग भी दी जाती थी। पाक के अन्य शहरों में भी मदरसों में जेहादी भाषण देने के लिए उसे बुलाया जाता था। पाकिस्तान में शेखूपुरा जिले के मुरीदके में स्थित मरकज उज जमात उद दावा मुख्यालय के सामने टुंडा का दो मंजिला मकान है। वहां उसकी तीन पत्नियां व छह बच्चे रहते हैं। टुंडा ने बंगलादेश में 56 साल की उम्र में 18 साल की युवती से तीसरी शादी की थी। मुंबई धमाकों में लश्कर-ए-तैयबा का हाथ होने और दाऊद इब्राहिम के पाक में छिपे होने के सबूतों को पाकिस्तान सिरे से खारिज करता रहा है। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के खास दूत शहरयार खान ने कुछ दिन पहले ही दाऊद से जुड़े तथ्यों को बेबुनियाद बताया था, इसलिए अंदाजा लगाया जा सकता है कि टुंडा के इस खुलासे को पाकिस्तान कहां तक कबूल कर पाएगा कि दाऊद इब्राहिम आईएसआई की सुरक्षा कवच में  रह रहा है और वहां की सेना के साथ भी उसके और लश्कर चीफ के गहरे ताल्लुकात हैं। ऐसे में देखना यह होगा कि भारत किस तरह टुंडा के ताजा खुलासों के आधार पर पाकिस्तान और अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी पर दबाव बना पाता है। कसाब को आखिरी समय तक अपना नागरिक मानने से इंकार करने वाला पाक एक बार फिर बेनकाब हो गया है।
अनिल नरेन्द्र

84 कोसी परिक्रमा पर यूपी सरकार-संतों का टकराव

इस चुनावी साल में अयोध्या के चर्चित राम मंदिर का मुद्दा एक बार फिर बड़े टकराव की ओर बढ़ता दिख रहा है। विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर के मुद्दे पर नए सिरे से लोगों को एकजुट करने के लिए 84 कोसी परिक्रमा की तैयारी कर ली है। यह यात्रा 25 अगस्त से शुरू होकर 13 सितम्बर तक चलनी है। इस योजना की तैयारी में अयोध्या समेत उत्तर प्रदेश के कई शहरों में विहिप ने संत-महात्माओं की भीड़ जुटानी शुरू कर दी है लेकिन उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव सरकार ने विहिप के इस अभियान पर प्रतिबंध का ऐलान कर दिया है। सोमवार को यूपी शासन ने इस परिक्रमा की इजाजत देने से इंकार कर दिया। राज्य के प्रमुख गृह सचिव आरएम श्रीवास्तव और डीजीपी देवराज नागर ने मीडिया को सरकार के फैसले की जानकारी दी। यह रोक 19 अगस्त से 15 सितम्बर तक के लिए लगाई गई है। दोनों अधिकारियों ने कहा कि इस परिक्रमा की अनुमति से एक नई परम्परा पड़ेगी। इससे कानून व्यवस्था भी बिगड़ने की आशंका है। उधर विश्व हिन्दू परिषद व राम जन्मभूमि न्यास के डॉ. राम विलास वेदांती ने कहा कि हम अपने समय से परिक्रमा शुरू करेंगे। सरकार रोकेगी तो वहीं  बैठकर राम नाम का जाप करेंगे। मंदिर में दर्शन-पूजन व परिक्रमा के लिए सरकार की अनुमति की जरूरत नहीं है। यूपी शासन की ओर से प्रमुख गृह सचिव श्रीवास्तव ने बताया कि रोक किस लिए जरूरी है। उन्होंने कहा कि विहिप नेता अशोक सिंघल ने यात्रा का उद्देश्य विवादित राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण बताया है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने विवादित परिसर पर यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। लिहाजा यात्रा की इजाजत नहीं दी जा सकती। उन्होंने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार 84 कोस की परिक्रमा चैत्र पूर्णिमा से बैसाख पूर्णिमा तक चलती है। इस बार यह अवधि 25 अप्रैल से 20 मई के बीच थी। ऐसे में अगस्त-सितम्बर में परिक्रमा यात्रा का कोई औचित्य नहीं है। डीजीपी नागर ने बताया कि छह जिलोंöफैजाबाद, बाराबंकी, गोंडा, बहराइच, बस्ती और अम्बेडकर नगर से यात्रा प्रस्तावित है। सभी जिलों के प्रशासकों को इससे कानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका है। यूपी सरकार ने परिक्रमा रोकने का पूरा इंतजाम कर लिया है। बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों और हवाई अड्डों पर खास नजर रखी जा रही है। टकराव की आशंका देखते हुए अस्थायी जेलों और प्रदर्शनकारियों को ले जाने के लिए बसों का इंतजाम भी शुरू कर दिया है। विहिप और यूपी सरकार में छत्तीस का  आंकड़ा टलने का फिलहाल तो कोई आसार नजर नहीं आ रहा है। विहिप नेताओं अशोक सिंघल व संतों ने गत 17 अगस्त को मुलायम सिंह यादव से मिलकर अयोध्या विवाद टालने का प्रयास किया था, लेकिन सरकार का रवैया निराशाजनक रहा। 84 कोसी परिक्रमा पर मुलायम सिंह यादव को कोई एतराज नहीं था परन्तु अचानक आजम खान के कहने पर परिक्रमा रोकने का सरकारी ऐलान कर दिया गया। विहिप के नेता अशोक सिंघल ने अब कमान खुद सम्भाल ली है। अशोक सिंघल ने कहा कि संत पीछे नहीं हटेंगे। अयोध्या राम मंदिर निर्माण तथा परिक्रमा के लिए लोकतांत्रिक ढंग से संघर्ष होगा। सिंघल ने यह भी कहा कि यह निर्णय न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि वोट बैंक के मद्देनजर हिन्दू समाज के दमन का है। इसमें कोई शक नहीं है कि हिन्दू धार्मिक भावनाओं का दमन वे अपनी पार्टी के अंतर्गत मुस्लिम नेताओं के दबाव के कारण ही कर रहे हैं। लगता है कि विहिप व यूपी सरकार में टकराव तय है। मुलायम सिंह और कांग्रेसी नेताओं द्वारा बार-बार यह कहा जाता रहा है कि कोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए। 60 वर्ष बाद जब यह निर्णय आ गया है कि जहां आज रामलला विराजमान हैं वही उनका जन्म स्थान है तो मुलायम सिंह का कर्तव्य बनता है कि मुस्लिम धार्मिक नेताओं द्वारा दिए गए वचनों का पालन करवाते जिसमें उन्होंने वचन दिया था कि यदि यह सिद्ध हो जाता है कि ढांचा हिन्दू मंदिर को तोड़कर उसके स्थान पर बनाया गया है तो वे अपना दावा वापस ले लेंगे। यह यात्रा यथावत चलेगी क्योंकि यह संतों का आदेश है। जय श्रीराम।

Thursday, 22 August 2013

एडिशनल सेशन जज राजेन्द्र शास्त्राr का साहसी फैसला

दिल्ली में और अन्य राज्यों में पुलिस व्यवस्था में स्टेशन हाउस अफसर यानि एसएचओ एक बहुत महत्वपूर्ण कड़ी होता है। किसी भी इलाके के थाने में एसीपी और एसएचओ ही थाने को चलाते हैं। एसीपी से लेकर पुलिस कमिश्नर तक सभी को एसएचओ के माध्यम से ही कानून व्यवस्था चलानी होती है, इसलिए एसएचओ ईमानदार और चरित्रवान होना जरूरी है और यह बात दिल्ली के नए पुलिस कमिश्नर भीम सेन बस्सी अच्छी तरह समझते हैं। गत मंगलवार को सिविल लाइंस स्थित शाह ऑडिटोरियम में इंस्पेक्टर व सहायक पुलिस आयुक्त स्तर के कर्मियों को सम्बोधित करते हुए बस्सी ने कहा कि राजधानी के थानों में तैनात एसएचओ के खिलाफ किसी भी तरह के करप्शन की शिकायत मिलने पर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि वह इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि कई एसएचओ अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर लोगों से पैसा लेते हैं। अब समय आ गया है जब ऐसे कर्मी अपनी कार्यशैली में  बदलाव लाएं, नहीं तो शिकायत मिलने पर उन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय से राजधानी में रहने वाली महिलाएं व युवतियां अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रही हैं। उन्हें अकेले में घर से निकलने में डर लगता है। इस स्थिति को हमें बदलना होगा। श्री बस्सी की प्राथमिकताएं तो सही हैं पर इन पर कितना क्रियान्वयन होता है यह देखने की बात है। महिलाओं की बात से जब महिला थाने में पुलिस वर्दी में सुरक्षित नहीं तो बाहर क्या आलम होगा आप खुद ही अनुमान लगा लें। गत दिनों साकेत कोर्ट के एडिशनल सेशन जज राजेन्द्र कुमार शास्त्राr ने एक निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए लेडी कांस्टेबल की शिकायत पर एक एसएचओ के खिलाफ संज्ञान लेने का निर्देश दिया। मामला कालका जी थाने क्षेत्र का है। मामला कालका जी थाने में उस समय तैनात लेडी कांस्टेबल सोनिका भाटी और इंस्पेक्टर बीएस राणा के बीच का है। उपरोक्त मामले में 22 वर्षीय लेडी कांस्टेबल ने शिकायत की थी कि सात जनवरी 2012 को जब वह कालका थाने में रात की ड्यूटी पर थी तब उसे तत्काल एसएचओ ने रात एक बजे पहली मंजिल पर बने रेस्ट रूम में बुलाया और मोलेस्टेशन की कोशिश की। इसके खिलाफ पीड़िता ने आपराधिक दंड संहिता की धारा 156(3) के तहत कार्रवाई करने की  मांग करते हुए एसीएमएम के यहां केस फाइल कर दिया। पीड़िता ने अपने क्षेत्र (दक्षिण-पूर्व) के डीसीपी को भी उसी दिन शिकायत दर्ज करा दी। लेकिन कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई और इसी बीच पीड़िता का तबादला सरिता विहार थाने में कर दिया गया। थानाध्यक्ष राणा के खिलाफ विभागीय जांच बैठा दी गई और उस पर सेंसरशिप लगा दी गई। 27 जून 2013 को पीड़िता की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी गई कि आरोपी के खिलाफ कार्रवाई का कोई आधार नहीं है। इसके खिलाफ पीड़िता ने एडिशनल सेशन जज राजेन्द्र कुमार शास्त्राr की अदालत में अपील की। सभी तथ्यों पर गौर करने के बाद माननीय जज महोदय ने कहा कि निचली अदालत मामले की गम्भीरता को समझने में असफल रही है। आरोपी पीड़िता का बॉस और एसएचओ है। यह कार्य स्थल पर एक महिला के सेक्सुअल ह्रासमेंट का मामला है। ऐसे मामलों में उचित तहकीकात की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि पेश मामले में किसी स्वतंत्र बिटनेस का कोई सवाल नहीं है क्योंकि यह घटना रात को एक बजे और थाने की पहली मंजिल पर बने रेस्ट रूम में हुई थी जो सुनसान रहता है। पीड़िता को रात एक बजे रेस्ट रूम में बुलाया गया था। वह विभागीय जांच के दौरान आरोपी पर लगी सेंसरशिप से जाहिर है। इससे पीड़िता की शिकायत को मजबूती मिलती है। पूरे मामले की ज्वाइंट सीपी (विजिलेंस) ने भी जांच की है। एसएचओ जैसे किसी ताकतवर अधिकारी के खिलाफ कोई महिला कर्मी बेवजह ही आरोप नहीं लगाएगी। अदालत ने इस बात पर भी नाखुशी जताई कि बिना एफआईआर दर्ज किए पीड़िता का तबादला कर दिया गया। दिल्ली पुलिस के रवैये को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए जज साहब ने कहा कि जिस दिल्ली पुलिस की जिम्मेदारी अपराध रोकने की है उसी पुलिस ने अपनी एक महिला कर्मी के साथ हुए अपराध के खिलाफ आंखें मूंद लीं। अपने फैसले में जज शास्त्राr ने कहा कि पहली नजर में मामले को देखने से लगता है कि अपराध हुआ है। तत्कालीन एसएचओ के खिलाफ एफआईआर दर्ज न करना कानून का उल्लंघन है। उन्होंने मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट से पीड़िता की शिकायत पर उचित कार्रवाई का आदेश दिया। हम एडिशनल सेशन जज राजेन्द्र कुमार शास्त्राr को इस साहसी फैसले पर  बधाई देते हैं। इस समय महिलाओं पर हर स्तर के अपराध बढ़ रहे हैं और खुद पुलिस ही अपनी महिलाकर्मियों से ऐसा व्यवहार करे बर्दाश्त से बाहर है। जब खुद पुलिस अफसर ऐसे व्यवहार अपने साथियों से करेंगे तो पब्लिक का क्या होगा।
-अनिल नरेन्द्र


कोयला घोटाले की फाइलें किसने गायब कराईं और क्यों कराईं

पहले लूट-खसोट करो फिर जब पकड़े जाओ तो उस लूट-खसोट के सारे दस्तावेजी सबूत ही गायब कर दो, है या नहीं पहले चोरी फिर सीनाजोरी। कोयला आवंटन घोटाले में ठीक यही हुआ है। खबर आई है कि कोयला खदान घोटाले से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण फाइलें ही गायब हो गई हैं। इस मामले से संबंधित 1993 से 2004 के  बीच के कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब होने से सीबीआई के सुप्रीम कोर्ट में चल रहे  केस पर भारी असर पड़ेगा। इन फाइलों के गायब होने की जानकारी खुद कोयला मंत्री द्वारा दी गई है। यह सवाल किया जा सकता है कि जब इतने गम्भीर मामले की जांच चल रही है तो सरकार और संबंधित मंत्रालय इसके प्रति इतने उदासीन क्यों हैं कि उसकी नाक के नीचे से अहम दस्तावेजी सबूत व फाइलें गायब हो गईं? सवाल यह भी है कि जांच जब महत्वपूर्ण दौर से गुजर रही है तभी इस जानकारी का खुलासा क्यों किया जा रहा है? क्या यह फाइलें पहले से गायब हुईं या फिर अब गायब करा दी गईं? सीबीआई सूत्रों ने बताया कि 1993-2004 के बीच की कई फाइलें गुम हैं। इस वजह से 2004 से पहले के मामलों की जांच में दिक्कत आ रही है। हालांकि सीबीआई का कहना है कि उसने जो 13 एफआईआर दर्ज की हैं उनसे जुड़ी सभी फाइलें उनके पास हैं। यह फाइलें 2006 से 2009 के बीच की हैं। यह हालत तो तब है जब खुद सुप्रीम कोर्ट पूरे मामले की निगरानी कर रहा है और जांच की हर गतिविधि पर उसकी नजर है। बुधवार को लोकसभा में मामले को उठाते हुए नेता विपक्ष भाजपा की सुषमा स्वराज ने कहा कि प्रधानमंत्री इसकी जिम्मेदारी लें और सदन को बताएं कि 147 फाइलों का क्या हुआ? लापता फाइलों में कोयला ब्लॉकों के आवेदन भी शामिल होने का दावा करते हुए सुषमा ने आरोप लगाया कि ये फाइलें इसलिए लापता हुई हैं क्योंकि कांग्रेस के कुछ बड़े नाम इसमें शामिल हैं। सुषमा चाहती थीं कि अध्यक्ष मीरा कुमार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सदन में बयान देने का निर्देश दें। प्रधानमंत्री के पास 2006 से 2009 के बीच कोयला मंत्रालय का प्रभार था। राज्यसभा में भी इस मुद्दे को लेकर भारी हंगामा हुआ। खबर है कि 11 कम्पनियों की कोल आवंटन संबंधी फाइलें गायब हैं और इन 11 कम्पनियों को यूपीए सरकार ने ही कोल ब्लॉक आवंटित किए थे और अधिकतर कांग्रेसी इसमें डायरेक्टर हैं या उनकी कम्पनियां हैं। जाहिर-सी बात है कि यह कारनामा इन्हीं में से किसी ने किया है ताकि सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई का केस गिर जाए। पिछले कुछ उदाहरणों से भी यह संदेह करना नावाजिब नहीं कि जानबूझ कर बाधाएं खड़ी की जा रही हैं। करीब 1.76 लाख करोड़ के भ्रष्टाचार के अब तक के इस सबसे बड़े मामले में सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट में बदलाव को लेकर पहले ही सरकार की फजीहत हो चुकी है और सरकार बेनकाब हो चुकी है। सीबीआई की यह रिपोर्ट कानून मंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय और कोयला मंत्रालय के अधिकारियों तक ने न केवल देखी बल्कि रिपोर्टों में कई बदलाव भी करवाए। कहीं सरकार को यह डर तो नहीं कि जांच में यदि परतें उधड़ीं तो घोटाले  की परिधि में कोयला मंत्रालय के प्रभारी रहे प्रधानमंत्री तक न पहुंच जाएं?

84 कोसी परिक्रमा पर यूपी सरकार -संत टकराव

इस चुनावी साल में अयोध्या के चर्चित राम मंदिर का मुद्दा एक बार फिर बड़े टकराव की ओर बढ़ता दिख रहा है। विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर के मुद्दे पर नए सिरे से लोगों को एकजुट करने के लिए 84 कोसी परिक्रमा की तैयारी कर ली है। यह यात्रा 25 अगस्त से शुरू होकर 13 सितम्बर तक चलनी है। इस योजना की तैयारी में अयोध्या समेत उत्तर प्रदेश के कई शहरों में विहिप ने संत-महात्माओं की भीड़ जुटानी शुरू कर दी है लेकिन उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव सरकार ने विहिप के इस अभियान पर प्रतिबंध का ऐलान कर दिया है। सोमवार को यूपी शासन ने इस परिक्रमा की इजाजत देने से इंकार कर दिया। राज्य के प्रमुख गृह सचिव आरएम श्रीवास्तव और डीजीपी देवराज नागर ने मीडिया को सरकार के फैसले की जानकारी दी। यह रोक 19 अगस्त से 15 सितम्बर तक के लिए लगाई गई है। दोनों अधिकारियों ने कहा कि इस परिक्रमा की अनुमति से एक नई परम्परा पड़ेगी। इससे कानून व्यवस्था भी बिगड़ने की आशंका है। उधर विश्व हिन्दू परिषद व राम जन्मभूमि न्यास के डॉ. राम विलास वेदांती ने कहा कि हम अपने समय से परिक्रमा शुरू करेंगे। सरकार रोकेगी तो वहीं  बैठकर राम नाम का जाप करेंगे। मंदिर में दर्शन-पूजन व परिक्रमा के लिए सरकार की अनुमति की जरूरत नहीं है। यूपी शासन की ओर से प्रमुख गृह सचिव श्रीवास्तव ने बताया कि रोक किस लिए जरूरी है। उन्होंने कहा कि विहिप नेता अशोक सिंघल ने यात्रा का उद्देश्य विवादित राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण बताया है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने विवादित परिसर पर यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। लिहाजा यात्रा की इजाजत नहीं दी जा सकती। उन्होंने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार 84 कोस की परिक्रमा चैत्र पूर्णिमा से बैसाख पूर्णिमा तक चलती है। इस बार यह अवधि 25 अप्रैल से 20 मई के बीच थी। ऐसे में अगस्त-सितम्बर में परिक्रमा यात्रा का कोई औचित्य नहीं है। डीजीपी नागर ने बताया कि छह जिलोंöफैजाबाद, बाराबंकी, गोंडा, बहराइच, बस्ती और अम्बेडकर नगर से यात्रा प्रस्तावित है। सभी जिलों के प्रशासकों को इससे कानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका है। यूपी सरकार ने परिक्रमा रोकने का पूरा इंतजाम कर लिया है। बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों और हवाई अड्डों पर खास नजर रखी जा रही है। टकराव की आशंका देखते हुए अस्थायी जेलों और प्रदर्शनकारियों को ले जाने के लिए बसों का इंतजाम भी शुरू कर दिया है। विहिप और यूपी सरकार में छत्तीस का  आंकड़ा टलने का फिलहाल तो कोई आसार नजर नहीं आ रहा है। विहिप नेताओं अशोक सिंघल व संतों ने गत 17 अगस्त को मुलायम सिंह यादव से मिलकर अयोध्या विवाद टालने का प्रयास किया था, लेकिन सरकार का रवैया निराशाजनक रहा। 84 कोसी परिक्रमा पर मुलायम सिंह यादव को कोई एतराज नहीं था परन्तु अचानक आजम खान के कहने पर परिक्रमा रोकने का सरकारी ऐलान कर दिया गया। विहिप के नेता अशोक सिंघल ने अब कमान खुद सम्भाल ली है। अशोक सिंघल ने कहा कि संत पीछे नहीं हटेंगे। अयोध्या राम मंदिर निर्माण तथा परिक्रमा के लिए लोकतांत्रिक ढंग से संघर्ष होगा। सिंघल ने यह भी कहा कि यह निर्णय न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि वोट बैंक के मद्देनजर हिन्दू समाज के दमन का है। इसमें कोई शक नहीं है कि हिन्दू धार्मिक भावनाओं का दमन वे अपनी पार्टी के अंतर्गत मुस्लिम नेताओं के दबाव के कारण ही कर रहे हैं। लगता है कि विहिप व यूपी सरकार में टकराव तय है। मुलायम सिंह और कांग्रेसी नेताओं द्वारा बार-बार यह कहा जाता रहा है कि कोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए। 60 वर्ष बाद जब यह निर्णय आ गया है कि जहां आज रामलला विराजमान हैं वही उनका जन्म स्थान है तो मुलायम सिंह का कर्तव्य बनता है कि मुस्लिम धार्मिक नेताओं द्वारा दिए गए वचनों का पालन करवाते जिसमें उन्होंने वचन दिया था कि यदि यह सिद्ध हो जाता है कि ढांचा हिन्दू मंदिर को तोड़कर उसके स्थान पर बनाया गया है तो वे अपना दावा वापस ले लेंगे। यह यात्रा यथावत चलेगी क्योंकि यह संतों का आदेश है। जय श्रीराम।

Wednesday, 21 August 2013

मोदी का मिशन 2014 और मुसलमान वोट

हालांकि एक के बाद एक सर्वे जो आ रहे हैं वह भले ही एनडीए को डेढ़ सौ के आसपास 2014 के लोकसभा चुनाव में सीटें दे रहे हों पर नरेन्द्र मोदी की अगुवाई से उत्साहित बीजेपी ने अकेले 272 सीटें जीतने का टारगेट तय कर लिया है। रविवार को नई दिल्ली में हुई राष्ट्रीय चुनाव अभियान समिति की पहली बैठक में पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा कि उन्हें भरोसा है कि पार्टी इस बार अपने दम पर बहुमत हासिल कर लेगी। बैठक में लाल कृष्ण आडवाणी सहित तमाम नेता मौजूद थे। बैठक की अध्यक्षता नरेन्द्र मोदी ने की। उन्होंने राजनाथ सिंह की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अगर 272 सीटों का मकसद हासिल करना है तो देश के मतदाताओं के हर तबके को साथ लेने की कोशिश करनी होगी। उन्होंने कहा कि मुस्लिम वोट बीजेपी को नहीं मिलेंगे, यह मानने की कोई वजह नहीं है। उन्होंने कहा कि जब गुजरात में 25 फीसदी मुस्लिम वोट हमें दे सकते हैं तो दूसरे राज्यों में क्यों नहीं दे सकते? गुजरात में मुस्लिम मतदाता के मोदी को वोट देने पर मैं कुछ आंकड़े आपको बताना चाहता हूं जो कुछ दिन पहले गुजरात के एक मुस्लिम नेता श्री जफर सारेशवाला ने बताए। उन्होंने कहा कि अकसर यह सवाल पूछा जाता है कि पिछले 10 सालों में गुजरात में खासकर गुजराती मुसलमानों की तरक्की के लिए मोदी ने क्या किया? 2012 के विधानसभा चुनावों में 31 फीसदी मुसलमानों ने बीजेपी को वोट दिया था। मोदी को 2002 दंगों के लिए दिन-रात कोसा जाता है। बेशक यह दंगे मोदी के लिए एक बदनुमा दाग है पर ऐसा नहीं कि दंगे पहले नहीं हुए और देश के अन्य भागों में नहीं हुए। भारत में आजादी के बाद के इतिहास में सबसे भयानक दंगे 1969 में अहमदाबाद (गुजरात) में हुए थे जिसमें 5000 मुसलमान मारे गए थे। उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री कांग्रेस के हितेन्द्र भाई देसाई थे और देश की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी। इसके बाद दूसरा बड़ा दंगा 1985 में गुजरात में हुआ जिसके बाद अन्य छोटे दंगे हुए जो महीनों तक चले। तब गुजरात के मुख्यमंत्री कांग्रेसी माधव जी सोलंकी थे और भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी। 1987 में गुजरात में फिर दंगे हुए और तब भी गुजरात के मुख्यमंत्री कांग्रेस के अमर सिंह चौधरी थे। इसके बाद 1990 में फिर दंगों की आग गुजरात में भड़की। उस समय भी गुजरात के मुख्यमंत्री कांग्रेस के चिमन भाई पटेल थे और आखिर में 1992 में हुए दंगों के समय भी गुजरात के मुख्यमंत्री कांग्रेस के ही थे। गुजरात के इतिहास के सैकड़ों दंगों में से इन 5 बड़े दंगों के लिए हमारे बुद्धिजीवी और मुस्लिम किसे जिम्मेदार मानेंगे? और याद रखिए कि गुजरात में 2002 के बाद से अमन और शांति कायम है। तो क्या आज तक मुस्लिमों की प्रिय कांग्रेस ने उन दंगों में मारे गए मुसलमानों के लिए कभी अपने मुंह से एक भी शब्द निकाला? क्यों कांग्रेस केवल 2002 दंगों के लिए रोती रहती है? कांग्रेस के राज में उन दंगों में मारे गए मुसलमानों का खून-खून न होकर पानी था क्या? जब गुजरात के मुसलमान 2002 दंगों को भूल चुके हैं तो कांग्रेस क्यों इन्हें बार-बार उछालती है? मीडिया इस बात को नहीं नोट करती कि गुजरात विधानसभा चुनाव (2012) में 8 में से 6 मुस्लिम बहुल सीटों में बीजेपी जीती थी और 2013 के स्थानीय निकायों में भी मुसलमानों ने बीजेपी को ही वोट दिया। इसका प्रमुख कारण है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गुजरात में शांति-अमन और विकास का युग रहा और मुसलमान बस इतना ही चाहते हैं। क्योंकि तरक्की करने में वह सक्षम हैं अगर सुख-शांति रहे। हाल ही में सलमान खान के पिता व क्रिप्ट लेखक सलीम खान ने एक टीवी चैनल पर सवाल किया कि महाराष्ट्र में जब सांप्रदायिक दंगे हुए थे तो कौन बताएगा उस समय के मुख्यमंत्री का नाम? मलियाना दंगों में उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन था? मेरठ दंगों में मुख्यमंत्री कौन था? जब बिहार के भागलपुर में दंगे हुए तो कांग्रेस का शासन था। क्या किसी को याद है कि 1984 के दंगों (दिल्ली) में कौन इंचार्ज था? तो फिर क्यों अकेले नरेन्द्र मोदी को 2002 के दंगों के बारे में लपेटा जाता है? मोदी ने गुजरात में विकास का नया तरीका जो अपनाया है उसमें धर्म, जात का कोई स्थान नहीं। इसी वजह से सम्मानित मुस्लिम स्कॉलर मौलाना वास्तानवी जो खुद एक गुजराती मुसलमान हैं ने कहा था कि गुजराती मुस्लिमों ने मोदी सरकार की नीतियों का भरपूर फायदा उठाया है। एक अन्य नॉन रेजिडेंट गुजराती लॉर्ड एडम पटेल (इंग्लैंड) जब भारत आए थे तो उन्होंने गांधी नगर जाकर मोदी से मुलाकात की और गुजराती मुसलमानों की तरक्की पर बधाई दी। यही नहीं कि गुजरात के मुसलमान ही अकेले मोदी शासन की तारीफ करते हैं। मिली गजेट को दिए एक साक्षात्कार में पूर्व डीजी महाराष्ट्र एसएम शरीफ ने कहा कि तमाम भारत में मुसलमानों के लिए सबसे सुरक्षित जगह गुजरात है। उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमानों को सबसे ज्यादा नुकसान महाराष्ट्र ने पहुंचाया है। यहां पिछले दस सालों से कांग्रेस-एनसीपी का शासन है। मुझे याद है कि एक बार मशहूर फिल्म डायरेक्टर महेश भट्ट ने चुनौती भरे स्वर में कहा कि नरेन्द्र मोदी सुन रहे हों? जिस मजहब को तुम आए दिन कहते हो कि यह आतंकवादियों की अगोसनी है उसके रसूल ने क्या कहा है...? महेश भट्ट को कुछ दिनों के बाद मोदी ने फोन किया कि महेश भाई 5 मुसलमान आएं, 50 आएं, 500 आएं या 5000 आएं मैं मिलने को तैयार हूं मैं आपकी सारी समस्याओं को हल करने के लिए तैयार हूं। गुजरात में मुस्लिम मदरसे के छात्र अब एसएससी और 12वीं का इम्तिहान दे सकते हैं। मुस्लिम स्कूलों और अस्पतालों की संख्या बढ़ी है। हज यात्रा के लिए जहां गुजराती मुसलमानों का कोटा 3500 का है वहां 41000 लोग अब तक आवेदन दे चुके हैं। हज पर जाना मुसलमानों की आर्थिक, सामाजिक तरक्की सुरक्षा का प्रतीक है। गुजरात में कच्छ और भरोच में ऐसे क्षेत्र हैं जहां तेजी से विकास हुआ है। कच्छ में 35 फीसदी मुसलमान हैं भरोच में लगभग 20 फीसदी। गुजरात सरकार के मुलाजिमों में 10 फीसदी मुसलमान हैं जबकि पुलिस में 12 फीसदी। इन सबके बावजूद कांग्रेस नरेन्द्र मोदी को मुस्लिमों का दुश्मन कहे तो इसके पीछे उद्देश्य साफ है। यह केवल रानजीतिक खेल है और वोट बैंक की राजनीति है और यह बात अब मोदी भी समझते हैं और मुसलमान भी। ऐसी कोई वजह नहीं कि भारत के मुसलमानों को नरेन्द्र मोदी से नफरत हो।

-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 20 August 2013

मिस्र फिर उसी मोड़ पर आकर खड़ा है जहां से वह 2011 में चला था

मिस्र दुर्भाग्य से फिर वहीं आकर खड़ा हो गया है, जहां से तहरीर चौक से शुरू हुआ आंदोलन 2011 में चला था। लोकतंत्र का सपना चकनाचूर होता दिख रहा है। वैसे तो जुलाई की शुरुआत से मोहम्मद मुर्सी को अपदस्थ कर देने के बाद से ही मिस्र सुलग रहा था, लेकिन तब भी वहां की सेना से ऐसी  बर्बरता की किसी ने कल्पना नहीं की थी। सिर्प यही नहीं कि हिंसा की तस्वीरें सैन्य कर्मियों की चरम अमानवीयता की कहानी कहती हैं बल्कि करीब साढ़े छह  सौ तक पहुंच गया मृतकों का आंकड़ा हिंसा की भयावहता बताने के लिए ही काफी है। मुर्सी को हटाने के बाद से ही उनके समर्थक उन्हें फिर से सत्ता सौंपने की मांग पर अड़े हुए हैं। लेकिन सेना किसी भी कीमत पर इसके लिए तैयार नहीं दिखती। यह टकराव बढ़ते-बढ़ते इस हद तक पहुंच गया है कि बुधवार को प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के सैनिक अभियान में पांच सौ से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। जनवरी 2011 में ट्यूनीशिया में अरब बसंत के नाम से शुरू हुई व्यवस्था परिवर्तन की लहर एक-एक कर कई अरब देशों में पहुंच गई। मिस्र भी उससे अछूता नहीं रहा और उसने 18 दिनों की क्रांति के बाद 11 फरवरी 2011 को तानाशाह होस्नी मुबारक का तख्ता पलट दिया और लोकतंत्र की ओर कदम बढ़ाए। मुबारक की करीब तीन दशकों की तानाशाही के दौरान उमड़  रहे गुस्से ने मिस्रवासियों को क्रांति के मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया। मुबारक की सत्ता से बेदखली के बाद सेना की देखरेख में हुए चुनावों ने मिस्र को लोकतंत्र का रास्ता दिखाया और मुस्लिम ब्रदरहुड के नेता मोहम्मद मुर्सी को राष्ट्रपति के रूप में देश का नेतृत्व सौंपा गया। यह ठीक है कि लोकतांत्रिक सरकार के प्रमुख के तौर पर मुर्सी ने मिस्र की स्वतंत्र संस्थाओं को एक-एक कर खत्म कर दिया और सारी शक्ति मुस्लिम ब्रदरहुड के हाथों में केंद्रित करके उन्होंने साफ कर दिया था कि सैन्य तंत्र के शासन वाले मिस्र में अब कट्टरपंथी राज चलेगा। बेशक मुस्लिम ब्रदरहुड एक कट्टरपंथी संगठन है पर उन्हें आतंकवादियों की श्रेणी में नहीं कहा जा सकता जैसा कि सेना दलील दे रही है कि मुल्क को आतंकवादियों से खतरा है। इस मामले में सबसे आपत्तिजनक रवैया तो अमेरिका का है। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने दिखावे के तौर पर इस हिंसा की निन्दा की और विरोध स्वरूप हर दो साल में होने वाले अमेरिका-मिस्र संयुक्त सेनाभ्यास को रद्द करने की घोषणा की, जबकि 2011 में भी हिंसा के कारण संयुक्त सेनाभ्यास नहीं हुआ था। अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी ने नरसंहार पर चुप्पी साधकर जल्दी चुनाव की मांग करते हुए पूरी तरह साफ कर दिया है कि महाशक्ति देश मिस्र की सेना के साथ है। मुर्सी के तख्तापलट के बाद अब तक तीन बड़ी हिंसक घटनाएं हुईं जिसमें सैकड़ों की संख्या में लोगों की जानें गईं फिर भी मुस्लिम ब्रदरहुड पीछे हटने को तैयार नहीं है। उधर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने मिस्र के सभी पक्षों को हिंसा खत्म करने और संयम बरतने की अपील की है। कई देशों ने अपने नागरिकों को यात्रा संबंधी अलर्ट जारी किया है। सउदी किंग अब्दुल्ला ने अंतरिम सरकार का समर्थन करते हुए प्रदर्शनकारियों को आतंकी बताया है। मिस्र में यह भयावह स्थिति कब खत्म होगी?

-अनिल नरेन्द्र

टुंडा की गिरफ्तारी दिल्ली पुलिस की उल्लेखनीय सफलता

दिल्ली पुलिस ने भारत के 20 मोस्ट वांटेड आतंकवादियों में शामिल और प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी व बम एक्सपर्ट अब्दुल करीम उर्प टुंडा को गिरफ्तार करके उल्लेखनीय और सराहनीय काम किया है। टुंडा को शुक्रवार दोपहर करीब 3 बजे नेपाल सीमा के बनवासा-महेन्द्रगढ़ इलाके में दबोचा गया। उसके पास से 23 जनवरी को जारी पाकिस्तानी पासपोर्ट मिला है जिस पर उसका नाम अब्दुल कबूस लिखा है। दिल्ली पुलिस ने शनिवार को उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे 3 दिन की पुलिस रिमांड पर भेजा गया। अब्दुल करीम उर्प टुंडा कौन है और क्यों है। उसकी गिरफ्तारी महत्वपूर्ण? दिल्ली के दरियागंज में जन्मे अब्दुल करीम (70 वर्ष) और मूल निवासी पिलखुवा जिला हापुड़ का है। 1985 में अमोनिया, नाइट्रेट और पोटेशियम क्लोरेट से रंगे कपड़ों को चमकाने का कैमिकल बनाते समय हुए विस्फोट में उसका बांया हाथ उड़ने की वजह से ही उसको टुंडा कहा जाता है। अब्दुल करीम टुंडा देसी तकनीक से बम बनाने में माहिर है। वह लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी है। 5-6 दिसम्बर 1993 को विभिन्न स्थानों पर ट्रेनों में हुए बम धमाकों के बाद टुंडा का नाम सामने आया था। हैदराबाद, इन्द्रगढ़ (राजस्थान), लखनऊ, गुलबर्ग (कर्नाटक) समेत सूरत में ट्रेनों में हुए धमाकों में इसका हाथ था। 26/11 मुंबई हमले के बाद पाकिस्तान को सौंपी 20 आतंकवादियों की सूची में पन्द्रहवें नम्बर पर टुंडा का नाम भी था। संयुक्त पुलिस आयुक्त एमएम ओबरॉय के अनुसार लश्कर मुखिया हाफिज सईद के सहयोगी के तौर पर टुंडा को ऐसे कई ऑपरेशन की जानकारी हो सकती है जिन्हें लश्कर ने भारत में अंजाम दिया है। लश्कर के संस्थापक व जमात उद दावा के प्रमुख हाफिज सईद के करीबी टुंडा के अचानक पन्द्रह साल बाद इस तरह देश में प्रवेश करने से सुरक्षा एजेंसियां चौकन्नी हो गई हैं। विशेष पुलिस आयुक्त एसएन श्रीवास्तव बताते हैं कि टुंडा लश्कर कमांडर रेहान उर्प जफर, आजम चीमा उर्प बाबा जी, जकी उर रहमान लखवी के अलावा पाकिस्तान में बैठे बब्बर खालसा इंटरनेशनल के प्रमुख वाधवा सिंह, रतनदीप सिंह तथा इंडियन मुजाहिद्दीन के अब्दुल अजीज का बेहद करीबी है। दाऊद इब्राहिम से भी टुंडा के अच्छे रिश्ते हैं। हालांकि अब्दुल करीम की गिरफ्तारी पर थोड़ा विवाद है। एक सूत्र का कहना है कि उसे एक खाड़ी देश से निर्वासित करके लाया गया है, जबकि दूसरे सूत्र के मुताबिक टुंडा करीब 10 दिन पहले कराची से निकला, फिर दुबई के रास्ते काठमांडू पहुंचा। खुफिया एजेंसियों ने दिल्ली पुलिस को टुंडा के दुबई में होने की सूचना दी थी। हालांकि पुलिस कमिश्नर बीएस बस्सी ने कहा कि यह सीधे तौर पर गिरफ्तारी का मामला है। बहरहाल जैसे भी टुंडा की गिरफ्तारी हुई हो इससे गिरफ्तारी का महत्व कम नहीं होता। टुंडा इसलिए खूंखार है कि वह बम एक्सपर्ट के रूप में लश्कर-ए-तैयबा की अहम कड़ी है। इसका संबंध दाऊद, हाफिज सईद व लश्कर के अन्य कमांडरों सहित अंडरवर्ल्ड से है। मुंबई में 1993 बम धमाके और 97-98 में दिल्ली में हुए धमाकों समेत देशभर में करीब 40 विस्फोटों में शामिल होने का शक है। कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले टुंडा ने दिल्ली और उसके आसपास धमाकों की योजना बनाई पर सफल नहीं हो सकी। टुंडा के इशारे पर पाकिस्तान और बंगलादेश के आतंकियों ने दिल्ली में 24, हरियाणा में 5 और यूपी में 3 बम धमाके किए। सीबीआई ने टुंडा पर जम्मू-कश्मीर से बाहर दिल्ली, हैदराबाद, रोहतक और जालंधर में 43 बम धमाके का आरोप लगाया है। इनमें 20 लोग मारे गए और 400 से ज्यादा घायल हुए। 1996 में इंटरपोल ने जारी किया था रेड कॉर्नर नोटिस। 20 साल से विभिन्न देशों में फिर रहा टुंडा पहली बार गिरफ्त में आया है। 2011 में पाकिस्तान को दोबारा दी गई 49 आतंकवादियों की सूची में भी उसका नाम शामिल था। अब जब पुलिस की गिरफ्त में अब्दुल करीम उर्प टुंडा आ गया है उम्मीद है कि कई नई जानकारियां मिलेंगी। अब्दुल करीम  उर्प टुंडा की गिरफ्तारी आतंकवाद के खिलाफ  लड़ाई में एक बहुत बड़ी सफलता है। दिल्ली पुलिस और हमारी खुफिया एजेंसियों को बधाई।

Sunday, 18 August 2013

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बनाम भावी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

स्वतंत्रता दिवस के ठीक एक दिन पहले गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के कैंपेन कमेटी के मुखिया नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि देश 15 अगस्त को दो भाषण सुनेगा। एक भाषण परम्परागत तरीके से लाल किले से होगा तो दूसरा लाल कॉलेज से होगा। इन दोनों भाषणों के आधार पर लोग अपनी राय तय करेंगे। इन्हीं दावों के बीच गुरुवार को इधर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश को दसवीं  बार लाल किले से सम्बोधित किया वहीं नरेन्द्र मोदी ने मनमोहन सिंह की हर बात और दावे का जवाब दिया। नरेन्द्र मोदी के इस कदम की कुछ लोग आलोचना भी कर रहे हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा कि स्वतंत्रता दिवस जैसे दिन नेताओं को एक-दूसरे की आलोचना नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मैंने आज मनमोहन सिंह को सुना। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आज किसी की भी आलोचना किए बिना हम सबको महसूस करना चाहिए कि भारत के पास भविष्य के लिए असीमित क्षमता है। श्री आडवाणी के विचारों से अधिकतर भाजपा और खासकर मोदी समर्थक नाराज हैं। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री का भाषण एक कांग्रेस प्रवक्ता की तरह था। उन्होंने कांग्रेस शासित प्रदेशों की तो तारीफ की पर भाजपा शासित राज्यों का जिक्र तक नहीं किया। क्या यह देश का प्रधानमंत्री बोल रहा था? वैसे भी श्री मनमोहन सिंह ने लगभग आधे घंटे के भाषण में वही धकियानूसी बातें कही। हालांकि उम्मीद तो यह थी कि मनमोहन सिंह अपने दसवें भाषण में जरूर कोई अच्छी बातें कहेंगे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सीधी चुनौती देकर नरेन्द्र मोदी ने भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में खुद को पेश कर दिया है। भुज के लाल कॉलेज के मैदान से लाल किले के लिए अपनी दावेदारी पेश करते हुए उन्होंने मनमोहन सिंह पर बेहद तीखे प्रहार किए। शायद यह पहली बार होगा जब स्वतंत्रता दिवस जैसे मौके पर किसी प्रधानमंत्री के भाषण पर विपक्ष के किसी नेता ने इतनी कटु आलोचना की हो। नरेन्द्र मोदी लीक से हटकर चलने वाले नेता तो हैं ही, वे अपना रास्ता भी खुद तय करते हैं। भाजपा भले ही मोदी की औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने में देरी कर रही हो, लेकिन मोदी ने खुद ही आगे बढ़कर प्रधानमंत्री को सीधी चुनौती देकर साफ कर दिया है कि 2014 में मुकाबला उनसे ही होना है। इस पैंतरें से मोदी ने भाजपा नेतृत्व पर प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने का भी दबाव बढ़ा दिया है। 15 अगस्त पर पीएम को दिए चैलेंज और उनके भाषण की आलोचना हो रही हो पर भाजपा और संघ के ज्यादातर समर्थकों ने इसे पसंद किया है। उनके समर्थक कह रहे हैं कि यह आक्रामक तेवर जरूरी है। धार जरूरी है। धारदार वार से देशभर में एक अपील जा रही है। युवाओं के अलावा उन वर्गों के लोगों को भी मोदी लुभा रहे हैं जो विकास पर यकीन करते हैं या वे जो अकसर खामोश रहते हैं, आदि-आदि। लेकिन मोदी को ज्यादा पसंद करने वालों का मानना है कि जरूरत से ज्यादा आक्रामकता महंगी भी पड़ सकती है। कई नेता इसे अपरिपक्वता के रूप में भी देख रहे हैं। जहां यह कारण स्वीकार्यता के सवाल को और बढ़ा सकता है। वहीं कइयों का कहना है कि लाल कृष्ण आडवाणी के लीड रोल में होने से गठबंधन बढ़ने के आसार मोदी के मुकाबले ज्यादा हैं। उधर कांग्रेस मोदी को खलनायक बता रही है। कांग्रेस ने मोदी पर पलटवार करते हुए कहा कि वह तुच्छ राजनीति कर रहे हैं। केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि प्रधानमंत्री सबसे अंत में आएंगे। पहले वे हमारे साथ बहस करें। उन्होंने कहा कि मोदी प्रधानमंत्री बनने के लिए इतने उतावले हैं। मोदी के सास-बहू और दामाद धारावाहिक का जिक्र करने पर खुर्शीद ने कहा कि वे खलनायक हैं। गुलाम नबी आजाद ने भी मोदी और पीएम की तुलना खारिज कर दी। उन्होंने कहा कि अगर मैं कहूं कि ओबामा से बड़ा हूं तो मुझे लोग पागल कहेंगे। कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली में कोई तुलना हो सकती है? हमारा कहना है कि कौन राजा भोज है और कौन गंगू तेली है, इसका तो हमें पता नहीं पर अगर एक मिनट के लिए मान भी लिया जाए कि नरेन्द्र मोदी गंगू तेली हैं तो इस तेली ने राजा भोज की हवा निकाल दी। पीएम के रिपोर्ट कार्ड में किसानों की मेहनत की वजह से ही हम खाद्य सुरक्षा कानून पर आगे बढ़े। मनरेगा की बदौलत ग्रामीण क्षेत्रों में करोड़ों गरीब लोगों को रोजगार मिल रहा है। भारत में हर बच्चे को शिक्षा देने के लिए हमने शिक्षा का अधिकार कानून बनाया। मिड डे मील योजना में रोज करीब 11 करोड़ बच्चों को स्कूल में दोपहर का खाना दिया जा रहा है। 2005 में हमने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत की थी। मातृत्व और नवजात मृत्यु दर दोनों तेजी से घटी हैं। कच्छ से करारा कटाक्ष करते हुए मोदी का जवाब था कि विकास और सुशासन पर हमसे बहस करें पीएम, नेहरू के आखिरी भाषण जैसा था उनका सम्बोधन। कांग्रेस में भ्रष्टाचार, परिवारवाद मजबूत है। पहले मामा-भांजा और अब सास-बहू और दामाद का सीरियल चल रहा है। राष्ट्रपति ने सहनशक्ति और भ्रष्टाचार का सवाल उठाया लेकिन पीएम चुप, पाकिस्तान और चीन के सामने भी लाचार है केंद्र। विकास के मोर्चे पर विफल सरकार, इन्दिरा गांधी की योजनाओं को भूल गई कांग्रेस। जैसे अंग्रेजों से मुक्ति पाई वैसे ही भ्रष्टाचार और कुशासन से लड़ना होगा। प्रधानमंत्री ने विकास के लिए नेहरू, इन्दिरा गांधी, राजीव और नरसिंह राव के योगदान का तो जिक्र किया पर सादगी वाले लाल बहादुर शास्त्राr और सरदार पटेल के लिए कुछ नहीं कहा। मनमोहन सिंह की इस दलील, फूड बिल गरीबों की सबसे बड़ी कल्याणकारी योजना पर मोदी का जवाब था कि यह न केवल नाकाफी है बल्कि फूड बिल से किसी और का पेट भरेगा। पीएम ने कहा कि अभी विकास के लम्बे सफर तय करने हैं इस पर मोदी ने कहा कि हर कोई कह रहा है कि यह मनमोहन सिंह का लाल किले पर अंतिम भाषण है तो फिर किस सफर की बात कर रहे हैं? पाकिस्तान और चीन के उकसावे पर भारत की कमजोर एवं लचर प्रतिक्रिया पर मनमोहन सिंह की आलोचना करते हुए मोदी ने उन पर तीखा हमला करते हुए कहा कि भाषण में  पीएम को पाकिस्तान को सख्त संदेश देना चाहिए था। भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध क्यों नहीं छेड़ सकते? इस भ्रष्टाचार का जन्म कहां से हुआ है क्या देश को यह जानने की जरूरत नहीं है। नेतृत्व के सवाल पर ही मिशन-2014 को अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश में जुटे नरेन्द्र मोदी की तैयारी का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि आधे घंटे के प्रधानमंत्री के स्वतंत्रता दिवस सम्बोधन का जवाब मोदी ने एक घंटे तक दिया। मनमोहन की 9 साल की उपलब्धियों के साथ ही कांग्रेस के 60 साल के शासन की बखियां नरेन्द्र मोदी ने उधेड़ कर रख दीं।


-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 17 August 2013

...और अब वीवीआईपी घोटाले की बारी

बोफोर्स विवाद के बाद बिचौलियों के शामिल होने और कमीशनखोरी को रोकने के लिए रक्षा मंत्रालय और भारत सरकार ने कई नियमों में इसलिए परिवर्तन किया था कि रक्षा सौदों में घोटालों को रोका जा सके पर दुख से कहना पड़ता है कि दलाली और घोटाले का यह सिलसिला रुका नहीं। अब तो वीवीआईपी घोटाला हो गया है। वीवीआईपी हेलीकाप्टर अगस्ता वेस्टलैंड सौदा विवादों में आ गया है। अब कैग ने भी इस सौदे में भी गड़बड़ी के आरोप लगाए हैं। अपनी रिपोर्ट में कैग ने कहा है कि रक्षा मंत्रालय ने खरीदी नियमों को मनमाने तरीके से बदला। सस्ते हेलीकाप्टर महंगी कीमत पर खरीदने के करार कर लिए। रिपोर्ट मंगलवार को राज्यसभा में पेश की गई। रक्षा मंत्रालय ने 2010 में 3727 करोड़ रुपए में 12 वीवीआईपी हेलीकाप्टर खरीदने का सौदा किया था। इटली की कम्पनी फिनमैविना को हेलीकाप्टर की आपूर्ति करनी थी। इस साल के शुरू में कम्पनी पर सौदे के लिए करीब 350 करोड़ रुपए रिश्वत देने के आरोप लगे। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कई अनियमितताएं गिनाई हैं। एयरफोर्स के मैदानी परीक्षणों के तौर-तरीके सही नहीं थे। सौदे के लिए चुने गए दो हेलीकाप्टरों अगस्ता वेस्टलैंड 101 और सिकोर्स्की के एस 92 को बराबरी के अवसर नहीं दिए गए। मैदानी मूल्यांकन परीक्षण के समय अगस्ता वेस्टलैंड विकास के दौर में था। कम्पनी ने असली हेलीकाप्टर के बजाय मर्लिन एमके-3 और सिव-1 हेलीकाप्टर पर परीक्षण करा दिया। सौदे में गुणवत्ता जरूरतों को जिस मकसद से बदला गया था वह पूरा नहीं हुआ। इसके उलट सौदे के लिए सिर्प एक कम्पनी बची और अगस्ता एडब्ल्यू 101 को चुन लिया गया। अनुबंध समिति में बेस प्राइस 4.871 करोड़ रुपए तय की गई थी। जबकि कम्पनी की ओर से पेशकश ही सिर्प 3.966 करोड़ रुपए की थी यानि भाव जानबूझ कर बढ़ाए गए। 1,240 करोड़ रुपए की लागत से अतिरिक्त हेलीकाप्टरों की खरीदारी से बचा जा सकता था। क्योंकि उस समय वीवीआईपी बेड़े में शामिल हेलीकाप्टरों का उपयोग भी नहीं हो रहा था। अगस्ता वेस्टलैंड ने भारत में निवेश के लिए तय रक्षा मानकों का पालन नहीं किया और कम्पनी ने जिन भारतीय ऑफसेट पार्टनरों को चुना वे इसके काबिल ही नहीं थे। हेलीकाप्टर बनाने वाली कम्पनी इटली में खुद अपने देश में भ्रष्टाचार का मुकदमा झेल रही है और यहां भारतीय वायुसेना के पूर्व प्रमुख सीके त्यागी और उनके रिश्तेदारों के खिलाफ भी सीबीआई ने मुकदमा दर्ज कर रखा है। स्पेक्ट्रम (टूजी) सौदा या कोयला घोटाला जैसे भ्रष्टाचार के मुकाबले आकार में हालांकि यह सौदा बौना ठहरता है लेकिन कैग ने जिस तरीके से इस सौदे में अनियमितताएं गिनाई हैं वे यकीनन चौंकाने वाली जरूर हैं। सबसे चिन्ता की  बात यह है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे देश के अति महत्वपूर्ण लोगों की उड़ान के लिए खरीदे जा रहे इन हेलीकाप्टरों की गुणवत्ता के साथ छेड़छाड़ हुई। कैग की अंगुली सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय और तत्कालीन सुरक्षा सलाहकार पर उठने से मामला अत्यंत गम्भीर हो जाता है। फिर यह चौंकाने वाला कम नहीं कि अगस्ता के ये हेलीकाप्टर अभी बन ही रहे थे कि इनका टेस्ट कर इन्हें पास कर दिया गया। जाहिर है कि यह टेस्ट उन हेलीकाप्टरों पर तो नहीं हुए होंगे जिन्हें वास्तव में हमें इस्तेमाल करना था। टेस्ट के लिए दूसरे हेलीकाप्टरों पर ही परीक्षण करवाकर सर्टिफिकेट ले लिया गया। देश के साथ इससे भद्दा मजाक और क्या हो सकता है। चौंकाने वाली बात यह है कि यह राज भारत में नहीं बल्कि खुद इटली में खुला, जहां कम्पनी पर वहां की राजनीतिक पार्टियों के बीच रिश्वत बांटने के आरोप लगे थे और इस दौरान भारत के साथ हुए सौदे की बात भी खुल गई। जिन दिनों इटली में जांच शुरू हुई और शक की सूइयां घूमने लगीं, उन्हीं दिनों तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वीके मलिक ने टेट्रा ट्रकों की खरीद को मंजूरी देने के लिए उन्हें एक बिचौलिए के जरिए रिश्वत की पेशकश किए जाने का खुसाला किया था। इस पर उठे विवाद के बाद रक्षा मंत्री एके एंटनी ने तीनों प्रमुखों से बातचीत कर रक्षा खरीद की एकीकृत नीति घोषित की। लेकिन हेलीकाप्टर सौदे में शक के मौके बार-बार आने के बावजूद रक्षा मंत्रालय सचेत क्यों नहीं हुआ? या फिर ऊपरी दबाव के कारण सभी नियमों को सोच-समझ कर नजरअंदाज किया गया?
-अनिल नरेन्द्र

आईएनएस सिंधुरक्षक का डूबना ः दुर्घटना या साजिश?

देश इधर स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी में जुटा था उधर शांतिकाल के समय भारतीय नौसेना के अब तक सबसे भीषण हादसे की खबर आ गई। मंगलवार रात अचानक हुए धमाकों और आग लगने से आईएनएस सिंधुरक्षक पनडुब्बी ध्वस्त हो गई। मुंबई के नौसेना डॉकयार्ड में हुए इस हादसे के वक्त पनडुब्बी में 18 नौसैनिक मौजूद थे, जिनके बचने की उम्मीद कम है। 1977 में करीब 400 करोड़ रुपए में खरीदे गए आईएनएस सिंधुरक्षक के आधुनिकीकरण पर 450 करोड़ खर्च हुए थे। हादसे से दो दिन पहले ही पानी में उतारे गए पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत विक्रांत एवं देश में बनी नाभिकीय पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत के आधुनिकीकरण की खुशी काफूर हो गई। सिंधुरक्षक में मध्यरात्रि जोरदार धमाके हुए और आग लग गई। शुक्र है कि सिंधुरक्षक में तैनात दो कूज मिसाइलें और चार टारपीडो अगर दग जातीं तो मुंबई में भारी तबाही मच जाती। पनडुब्बी में तैनात क्लास एस कूज मिसाइलों की मारक क्षमता 235 किलोमीटर है। सौभाग्य से दुर्घटना के वक्त शिपयॉर्ड में खड़ी इस पनडुब्बी के इंजन स्टार्ट नहीं थे। सिंधुरक्षक में आग लगने की घटना पर सवाल उठ रहे हैं। यह एक हादसा है या कोई साजिश है, इसका खुलासा तब हो पाएगा जब बोर्ड ऑफ इन्क्वायरी की रिपोर्ट आएगी। हालांकि नौसेना प्रमुख डीके जोशी ने कहा है कि किसी साजिश की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बोर्ड ऑफ इन्क्वायरी हर कोण से जांच करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि पनडुब्बी में बैटरी चार्ज की वजह से आग लगने की आशंका कम है। इस पनडुब्बी में बैटरियों से निकलने वाले हाइड्रोजन से या हथियारों में धमाकों से विस्फोट हुआ होगा। प्राथमिक जांच में यह आशंका जताई जा रही है कि पनडुब्बी में टारपीडो लोड करने, आक्सीजन सिलेंडर फटने या बैटरी से निकली हाइड्रोजन से यह हादसा हुआ हो सकता है। सूत्रों के अनुसार सिंधुरक्षक को मुंबई से बुधवार सुबह निगरानी मिशन पर रवाना हुआ था। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एहतियात के तौर पर उसे अपने रुटीन निगरानी कार्य के लिए गहरे समुद्र में उतरना था। रात में उसमें पानी के भीतर हमला करने वाली टारपीडो मिसाइलें लोड किए जाने थे। इसके लिए नौसेना की मानक परिचालन प्रक्रिया है। लेकिन इसका ठीक से पालन नहीं होने के कारण या किसी अन्य वजह से दुर्घटना हुई। सिंधुरक्षक में फरवरी 2010 में भी आग लग चुकी है तब वजह थी बैटरी से निकले हाइड्रोजन की। निसंदेह भारतीय नौसेना के लिए एक बड़ा आघात है। यह आघात इसलिए भी बड़ा है कि यह स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर हुआ है। निसंदेह नौसेना और देश को इस हादसे से उभरना होगा और सबक भी लेना होगा। इस हादसे में हमारे 18 बहादुर नौसैनिकों के मरने की आशंका है, इसलिए हमें यह पता करना अब जरूरी है कि यह दुर्घटना थी या साजिश? वैसे भी यह अच्छी बात नहीं कि सैन्य तैयारियों के क्रम में हमारी सेनाएं ऐसे हादसों में दो-चार होती रही हैं, कहीं हमारे लड़ाकू विमान गिर जाते हैं, कहीं हमारे सैनिकों के सिर काट लिए जाते हैं। इसमें आर्थिक नुकसान तो होता ही है देश की प्रतिष्ठा भी घटती है और हमारी सैन्य तैयारियों पर प्रभाव पड़ता है।
-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 15 August 2013

मुस्लिम बहुल हैदराबाद व कांग्रेस गढ़ से मोदी का मिशन 2014 का श्रीगणेश


भारतीय जनता पार्टी का चेहरा बने नरेन्द्र मोदी ने भाजपा के मिशन 2014 का धमाकेदार श्रीगणेश कर दिया है। रविवार को नरेन्द्र मोदी ने हैदराबाद में `नवभारत युवा मेरी' के जरिए एक विशाल रैली को सम्बोधित करते हुए कांग्रेस नीत केंद्र सरकार की नाकामियों को गिनाते हुए भविष्य का एक सपना दिखाने का प्रयास किया है। हैदराबाद की इस रैली में नरेन्द्र मोदी के भाषण में सब कुछ था, नहीं थी तो कट्टरता। कांग्रेस को सबसे ज्यादा सांसद देने वाले आंध्र प्रदेश की राजधानी में अगर लाखों लोग घंटों प्रतीक्षा करके एक भाजपा वह भी उत्तरी भारतीय को सुनने आए तो इससे मोदी की बढ़ती लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है। मेरा नहीं ख्याल कि किसी भी पार्टी का कोई भी नेता इतनी बड़ी रैली नहीं कर सकता जैसी मोदी की यह रैली हुई। मोदी के निशाने पर थी कांग्रेस और उसकी यूपीए सरकार। मोदी ने तेलुगू भाषा से भाषण शुरू कर खुद को सिर्प गुजराती या उत्तरी भारतीय नेता होने की छवि मिटाने का प्रयास भी किया। आमतौर पर हर भाषण में गुजरात का उदाहरण देने वाले मोदी ने इस सभा में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व तमिलनाडु की जमकर तारीफ की। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तारीफ करते हुए कहा कि एमपी की लाडली योजना से दूसरे राज्यों को सबक लेना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने रमन सिंह और जयललिता सरकार की योजनाओं की भी प्रशंसा की। हैदराबाद के लाल बहादुर स्टेडियम में आयोजित इस रैली में मोदी ने कहा कि कांग्रेस देश पर बोझ बन गई है। दिल्ली की सल्तनत देश को सुरक्षा नहीं दे सकती। यूपीए सरकार हर मोर्चे पर फेल हो गई है। वह देश की हिफाजत नहीं कर सकती, क्योंकि वह गले तक वोट बैंक की राजनीति में डूबी हुई है। मोदी ने कहा कि भारतीय सीमा में घुसकर पाकिस्तानी सैनिकों ने पांच भारतीय जवानों की बेरहमी से हत्या कर दी और प्रधानमंत्री ने मुंह तक नहीं खोला। मोदी ने कहा कि दिल्ली की सल्तनत ने एक के बाद एक लगातार ऐसे काम किए जिससे राजनेताओं से जनता का भरोसा उठ गया। यह भरोसा दोबारा कायम करना है तो जनशक्ति के विकास मंत्र लेकर आगे चलना होगा और सबको विकास की धारा से जोड़ना होगा। तेलंगाना गठन भाजपा का संकल्प रहा था, लेकिन मोदी सीमांध्र  को अलग छोड़ना नहीं चाहते। लिहाजा उन्होंने दोनों की भावना को सहलाया, साथ ही तेलुगूदेशम पार्टी (टीडीपी) व अन्नाद्रमुक को चारा भी डाल दिया। वर्तमान कटुता का हवाला देते हुए कहा कि भाजपा दोनों राज्यों का समानांतर विकास चाहती है। इसके लिए सोच और इच्छाशक्ति होनी चाहिए। भीड़ से उन्होंने `जय तेलंगाना, जय सीमांध्र का नारा' लगवाकर एकजुटता का संदेश देने का प्रयास किया। हैदराबाद में मोदी ने पांच मंत्र भी दिए। इंडिया फर्स्ट-एक ही मजहब। भारत का संविधान एक ही धर्मग्रंथ। देश की एक ही शक्ति जनशक्ति। एक ही भक्ति-राष्ट्रभक्ति और एक ही लक्ष्य-कांग्रेस फ्री इंडिया। मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के अंदाज पर भाषण का समापन किया। ओबामा की तरह रैली में मौजूद लोगों से यस वी कैन, यस वी डू के नारे लगवाए। जनसभा का महत्व इसलिए भी बढ़ता है कि जनसभा में आने वाले लोगों से बतौर शुल्क पांच रुपए लिए गए। इसके बावजूद एक लाख से ज्यादा लोग स्टेडियम में मौजूद थे। बहुत से लोगों को स्टेडियम में जगह नहीं मिल सकी और वे बाहर ही रह गए। जमा रकम को उत्तराखंड आपदा राहत कोष में दान किया जाएगा। मोदी ने कहा कि आज खाने को रोटी नहीं, पहनने को कपड़ा नहीं और बीमार को दवाई नहीं मिल रही है। नरेन्द्र मोदी के अभियान की शुरुआत पहले उत्तर प्रदेश से करने की भाजपा की योजना थी। लेकिन उत्तर भारत के बजाय पार्टी ने प्रधानमंत्री पद के अपने अघोषित उम्मीदवार से चुनावी रणभेरी उत्तर भारत की बजाय दक्षिण के हैदराबाद शहर से बजवाई। हैदराबाद वैसे भी मुस्लिम बहुल है, जहां लोकसभा सीट पर कांग्रेस सहयोगी एमआईएम का कब्जा है। तेलुगू भाषियों का दिल जीतने के लिए और कांग्रेस के गढ़ में धावा बोलकर नरेन्द्र मोदी ने मिशन 2014 का शानदार आगाज जरूर किया है।
-अनिल नरेन्द्र

66 वर्षों के बाद भी देश में मायूसी, स्वतंत्रता का उत्साह गायब


हर वर्ष की तरह बृहस्पतिवार को हम अपने देश का 66वां स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे। स्वतंत्रता दिवस का आम आदमी के लिए कोई विशेष महत्व नहीं रहा। अधिकतर लोगों के लिए यह एक छुट्टी का दिन बनकर रह गया है। स्कूलों, कार्यालयों, कॉलेजों में छुट्टी और सरकारी इमारतों पर तिरंगा फहराया जाएगा, भाषण होंगे, परेडें होंगी व कुछ कवि सम्मेलन, मुशायरे इत्यादि होंगे। लाखों देशभक्तों के बलिदान और अतुलनीय संघर्ष के बाद जिस आजादी को हमने हासिल किया था, वह जज्बा अब गायब होता जा रहा है। शायद बढ़ती समस्याओं ने हमारा उत्साह कम कर दिया है। आज देश समस्याओं से घिरा हुआ है। कहीं तो देश के खिलाफ साजिशें चल रही हैं तो गरीब आदमी अपनी दो वक्त की रोटी व रोजी को लेकर परेशान है। वैसे कहने को तो भारत ने इन 66 वर्षों में कई क्षेत्रों में तरक्की की है। भारत एक सुपर पॉवर बन गया है। समुद्र से आसमान तक भारत की शक्ति बढ़ी है। देशी तकनीक से निर्मित पहले विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत का जलावतरण कर भारत 35,000 टन से ज्यादा वजन वर्ग के युद्धपोत का डिजाइन एवं निर्माण करने की क्षमता रखने वाले चुनिन्दा देशों में शामिल हो गया है। परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम स्वदेशी मिसाइल पृथ्वी-2 का सोमवार को सफलतापूर्वक परीक्षण हुआ। 350 किलोमीटर दूरी तक की मारक क्षमता रखने वाली इस मिसाइल का परीक्षण रक्षा बलों के उपयोग के उद्देश्य से किया गया है। ऐसा नहीं कि भारत ने इन 66 वर्षों में उन्नति नहीं की। बहुत-सी उपलब्धियां हैं पर फिर भी देश में मायूसी का माहौल है। सरकार और जनता की दूरी बढ़ती जा रही है। भारत की आम जनता को सबसे ज्यादा निराशा हमारी राजनीतिक व्यवस्था, प्रशासनिक व्यवस्था ने किया है। इसमें गिरावट का आलम यह है कि कई बार भ्रम होने लगता है कि देश को जनता द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार चला रही है या अदालतें चला रही हैं? हमारे नैतिक मूल्य धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं तभी तो अमानवीय हरकतों का बोलबाला है। बेरोजगारी व महंगाई ने जनता की कमर तोड़कर रख दी है। देश की एकता और अखंडता दोनों को आज घर के अन्दर और बाहर से चुनौती मिल रही है, आतंकवाद सिर चढ़कर बोल रहा है। 66 वर्ष के बाद भी सरकार लोगों को दो वक्त की रोटी देने में असफल रही है। इतने वर्षों में हम छोटे राज्यों को बनाने का फॉर्मूला नहीं बना सके। एक ओर केंद्र और राज्यों में अधिकारियों की कमी है तो दूसरी ओर देश का युवा जबरदस्त बेरोजगारी झेल रहा है। नेता लोग अपनी जेबें भरने के लिए हर सिस्टम, परम्परा को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे। अगर कोई ईमानदार अफसर इसके खिलाफ आवाज उठाता है तो उसे दबा दिया जाता है। ऐसे माहौल से पैदा होने वाली निराशा से हमारी इतने वर्षों की उपलब्धियां भी नजरअंदाज हो रही हैं। चौतरफा तरक्की के बावजूद आज देशवासियों में उत्साह नहीं है, मायूसी ही छाई हुई है। प्यारे देशवासियों यह मायूसी  खुशी में पलटेगी और फिर खुशी लौटेगी। सभी प्यारे देशवासियों को 66वीं स्वतंत्रता दिवस पर बधाई।
 -अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 14 August 2013

दुर्गा शक्ति के बाद अब खेमका-वाड्रा प्रकरण

उत्तर प्रदेश की आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन का मामला अभी थमा नहीं कि हरियाणा के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा की कम्पनी स्काई लाइट हॉस्पिटेलिटी और रियल एस्टेट की कम्पनी डीएलएफ के बीच हुए सौदे का फिर से मामला उठाकर नया विवाद आरम्भ कर दिया है। खेमका ने अपनी रिपोर्ट में सीधे-सीधे वाड्रा की कम्पनी पर हेराफेरी और धोखाधड़ी के संगीन आरोप लगाए हैं। खेमका ने सौदे की जांच के लिए गठित तीन सीनियर आईएएस अधिकारियों को हाई पावर कमेटी द्वारा वाड्रा-डीएलएफ डील को क्लीन चिट देने पर भी गम्भीर सवाल खड़े किए हैं। मुख्य सचिव को भेजी अपनी रिपोर्ट में उन्होंने कहा है कि इस जमीन सौदे में कई स्तर पर भारी घालमेल हुआ है। राबर्ट वाड्रा की कम्पनी स्काई लाइट हॉस्पिटेलिटी ने गुड़गांव के सिकोहपुर गांव में 3.53 एकड़ जमीन खरीदी थी। एक महीने के भीतर ही यहां आवासीय कॉलोनी का लाइसेंस लेकर इस जमीन को डीएलएफ को 50 करोड़ रुपए में बेच दिया गया जबकि यह 7.5 करोड़ रुपए में खरीदी गई थी। चकबंदी विभाग के महानिदेशक पद पर रहते हुए खेमका ने इसका म्यूटेशन रद्द कर दिया था। खेमका ने रिपोर्ट में पहला सवाल यही खड़ा किया है कि आखिरकार सिकोहपुर गांव से खरीदी गई जमीन का एक महीने के भीतर ही इतना रेट कैसे बढ़ गया। जमीन को फर्जी कागजों के आधार पर खरीदा गया था, इसकी म्यूटेशन रद्द की गई। खेमका की रिपोर्ट के मुताबिक सिकोहपुर की खरीदी जमीन और डीएलएफ को बेची जमीन की दोनों सेल डीड फर्जी हैं। खेमका के आरोपों का खंडन करते हुए हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कहा कि इस मामले में प्रदेश सरकार ने किसी गैर-कानूनी तौर पर बचाव या समर्थन नहीं किया है। मुख्य सचिव को रिपोर्ट सौंपी गई है और वह इस मामले को देखेंगे। कांग्रेस की प्रतिक्रिया थी कि खेमका प्रकरण के पीछे भाजपा का हाथ है और आईएएस अधिकारी अशोक खेमका विपक्ष के हाथों में खेल रहे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता मीम अफजल ने वाड्रा के भूमि सौदा विवाद पर खेमका की राय को उठाने के समय पर सवाल उठाया और साथ ही रेत माफिया के खिलाफ कार्रवाई करने के मामले में आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति की भूमिका का समर्थन किया और कहा कि नागपाल और खेमका के बीच तुलना नहीं की जा सकती। नागपाल नियमों पर चल रही हैं और मीडिया के पास नहीं गई हैं जबकि इसके विपरीत यह व्यक्ति (खेमका) टीवी चैनलों पर इंटरव्यू दे रहा है। खेमका द्वारा इस मुद्दे को उठाए जाने का जो समय है वह भी शंका उत्पन्न करता है क्योंकि यह मुद्दा ऐसे समय में आया है जब नागपाल का मुद्दा चर्चा में है। चौंकाने वाली बात यह है कि जब वे चैनलों पर इंटरव्यू दे रहे थे इसके तत्काल बाद भाजपा ने उनके रुख की पुष्टि की। यह साफ जाहिर करता है कि इस सबके पीछे भाजपा है। उधर भाजपा ने कहा कि हेराफेरी के आरोपों के बाद उचित तरीके से जांच की जरूरत है। प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने कहा कि जो भी तथ्य सार्वजनिक हुए हैं वह एक गम्भीर मुद्दा हैं। जब फर्जीवाड़े के आरोप हैं तो उचित तरीके से जांच की जरूरत है। सोनिया गांधी द्वारा उत्तर प्रदेश की निलंबित आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल का समर्थन किए जाने की ओर इशारा करते हुए जावडेकर ने कहा कि अलग-अलग लोगों के लिए हो नियम नहीं लागू हो सकते। अशोक खेमका को बहरहाल आप पार्टी का खुला समर्थन मिला है। आप ने खेमका को भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के खिलाफ आम आदमी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ने का न्यौता देते हुए कहा कि खेमका के ताजा खुलासे से यह साफ हो गया है कि हरियाणा सरकार कई अनैतिक और गैर-कानूनी कार्यों को भी बढ़ावा दे रही है और खुद भी प्रत्यक्ष रूप से इन कार्यों में संलिप्त है। उधर दुर्गा शक्ति का मामला तो इधर राबर्ट वाड्रा का और दोनों में ही आईएएस अधिकारी जुड़े हैं। दुर्गा शक्ति मामले का सेंटरस्टेज पर होने से निश्चित रूप से अशोक खेमका की टाइमिंग पर प्रश्न उठ सकता है पर इससे आरोप नहीं झड़ते। खेमका के आरोपों में कितना दम है कौन तय करेगा? हरियाणा सरकार को कम से कम इतना तो बताना ही चाहिए कि जो खुलासे किए हैं वे सही हैं या नहीं? नियम कायदे की बात करने वाली सरकार को यह बताना चाहिए कि दो साल पहले खेमका का स्थानांतरण गलत था या नहीं? चिट्ठी में जो खुलासे किए गए हैं वह बेहद गम्भीर हैं लिहाजा हरियाणा सरकार को समुचित तथ्यों के साथ सामने आना चाहिए। दुर्गा शक्ति नागपाल के मामले में सक्रिय हुई केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर भी गम्भीरता दिखानी चाहिए। अब तो खुद हरियाणा के सांसद ने भी यह मांग उठा दी है। 
-अनिल नरेन्द्र

हमें तुम पर गर्व है पीवी सिंधु

विश्व बैंडमिंटन चैंपियनशिप में करीब 30 साल बाद कांस्य पदक पर कब्जा जमाने वाली पीवी सिंधु ने भारतीय खिलाड़ियों के लिए एक नई मिसाल तो कायम की है, साथ ही उनको यह संदेश भी देने की कोशिश की है कि भारत में क्रिकेट के अलावा और भी कई खेल हैं। क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों में भी युवा खिलाड़ी रुचि ले रहे हैं, यह देखकर भारतीय खेलों के अच्छे भविष्य की उम्मीद अब हम कर सकते हैं। सिंधु ने पिछले एक साल से ही चमक बिखेरनी शुरू कर दी थी पर वह देश की स्टार शटलर सायना नेहवाल से पहले बैडमिंटन विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतेंगी, इसकी  कल्पना शायद ही किसी ने की हो। वैसे भी महिला एकल में यह सफलता पाने वाली पहली भारतीय हैं। पीवी सिंधु ने ड्रॉ देखकर ही समझ लिया था कि उनके लिए सफर आसान नहीं। लेकिन इस उभरती हुई भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी ने कहा कि उन्होंने कभी भी खुद को कम करके नहीं आंका और एक के बाद एक चुनौती को पार करते हुए चीन के ग्वांग्यू में वर्ल्ड चैंपियनशिप में ऐतिहासिक ब्रांज मेडल हासिल कर अपने साथ-साथ देश की शान को बढ़ाया है। 18 वर्षीय सिंधु इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता के सिंगल्स मुकाबले में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। सिंधु ने कहा कि मैं सेमीफाइनल में दुनिया की तीसरे नम्बर की खिलाड़ी थाइलैंड की रतचानोक इंतानोन से हारने से थोड़ी निराश जरूर हूं लेकिन मैं ब्रांज मेडल जीतने से खुश हूं। यह मेरी पहली वर्ल्ड चैंपियनशिप थी और यह मेरे लिए बड़ी जीत है। सिंधु  ने कांस्य पदक ही नहीं जीता बल्कि इस अभियान के दौरान दो बार चीनी दीवार को भी लांघा। उन्होंने प्री-क्वार्टर फाइनल में दूसरी वरीय और पिछली वर्ल्ड चैंपियन यिहाम वांग को और क्वार्टर फाइनल में चीन की ही ही शिनियान को हराकर यह साबित कर दिया कि वह बीग लीग की खिलाड़ी बन गई हैं। यह सही है कि उन्हें सायना जैसी सफलताएं पाने के लिए अभी लम्बा रास्ता तय करना है पर अभी वह 18 वर्ष की हैं वह दिन भी दूर नहीं जब वह नेशनल चैंपियन बनेगी और ओलंपिक्स में अपना नाम लिखवा सकेंगी। दरअसल सिंधु की यह उपलब्धि भारतीय खेलों के लिए इसलिए भी महत्व रखती है दरअसल भारत में ग्लैमर, पैसा और रुतबा जिस प्रकार क्रिकेट से जुड़ा है वैसा अन्य खेलों के साथ नहीं है इसके बावजूद भारत में बिना कोई विशेष सरकारी सहायता के युवा खिलाड़ी दूसरे खेलों में लगे हैं। उसे प्रोत्साहित ही किया जाना चाहिए। देश में खेलों को बढ़ावा देने के लिए पेशेवर आधारभूत ढांचा स्थापित करने की आवश्यकता है। इसके लिए कारपोरेट सेक्टर को भी इन खेलों को बढ़ावा देने के लिए पेशेवर खिलाड़ियों को प्रोत्साहन व सुविधाएं प्रदान करने के लिए आगे आना होगा। हमारी डिफेंस में खासकर आर्मी में अन्य खेलों में कई खिलाड़ी आगे आए हैं। सवा सौ करोड़ की आबादी वाले इस देश में दो-चार ओलंपिक पदकों पर ही संतोष कर लेने की मानसिकता को अब त्यागना होगा। हॉकी, कुश्ती, तीरंदाजी, फुटबाल, खो-खो, कबड्डी, साइकिलिंग, तैराकी जैसे अनेक खेलों में हमें विश्व स्तर पर चीन की तरह खिलाड़ी तैयार करने होंगे। सिंधु को इस शानदार सफलता पर बधाई।
 -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 13 August 2013

दाऊद उसकी सरजमीं पर है, पहली बार पाकिस्तान न स्वीकारा

आखिरकार पाकिस्तान का एक और सालों पुराना झूठ खुलकर सामने आ ही गया। पहली बार पाकिस्तान ने भारत के मोस्ट वांटेड आतंकी दाऊद इब्राहिम की अपनी सरजमीं पर मौजूदगी की बात कबूल कर ली है। अब तक इस्लामाबाद अंडरवर्ल्ड डॉन के अपने यहां होने से साफ इंकार करता रहा है और इस बात का खुलासा कि डॉन पाकिस्तान में है का किसी और ने नहीं बल्कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विशेष दूत शहरयार खान ने किया है। हालांकि उन्होंने साथ-साथ यह भी जोड़ दिया कि दाऊद को पाक से खदेड़ा जा चुका है और अब वह यूएई में हो सकता है। पाकिस्तान की सत्ता में आने पर नवाज शरीफ ने शहरयार खान को भारत के साथ संबंध सुधारने के लिए नियुक्त किया है। खान ने कहा कि दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में था लेकिन मेरा मानना है कि उसे खदेड़ा जा चुका है। यदि वह पाकिस्तान में है तो उसे खोजकर गिरफ्तार किया जाना चाहिए। हम अपनी सरजमीं पर ऐसे किसी गैंगस्टर को अपनी गतिविधियां चलाने नहीं दे सकते हैं। लंदन में भारतीय पत्रकार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम से पहले संवाददाताओं से बात करते हुए उन्होंने यह कहा। वैसे बता दें कि शहरयार खान 1993 में पाकिस्तान के विदेश सचिव थे जब मुंबई ब्लास्ट के दौरान दाऊद भागकर पाकिस्तान शरण लेने पहुंचा था। सो जब शहरयार कहें कि दाऊद पाकिस्तान में है या था तो उनकी बात को सही माना जाना चाहिए। गौरतलब है कि 1993 में मुंबई में हुए धमाकों के आरोपी दाऊद इब्राहिम और टाइगर मेमन जैसे आरोपी रेड कार्नर नोटिस के बावजूद दो दशक से पाकिस्तान में छिपे हैं। सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मौजूदा व्यवस्था में इंटरपोल सामान्य अपराधियों और आतंकियों के लिए एक ही नोटिस रेड कार्नर जारी करता है। इस रेड कार्नर नोटिस पर कार्रवाई के लिए किसी देश को बाध्य नहीं किया जा सकता। इंटरपोल की इसी कमजोरी का लाभ उठाकर पाकिस्तान दो दशक से दाऊद इब्राहिम को अपने यहां शरण दिए हुए है। हालत यह है कि पाकिस्तान दाऊद की अपने यहां मौजूदगी से ही इंकार कर देता है, जबकि भारत उसके ठिकाने के बारे में बार-बार ठोस सबूत पेश करता रहा है। ध्यान देने की बात है कि संयुक्त राष्ट्र संघ और अमेरिका ने भी दाऊद इब्राहिम को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित कर रखा है। तीन दिन पहले मैंने एक हिन्दी की फिल्म डी डे देखी। मेरी राय में यह एक बहुत बढ़िया फिल्म बनी है। इस फिल्म में वह काम करके दिखाया गया है जो भारत सरकार 20 सालों में नहीं कर सकी। फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह दाऊद इब्राहिम को ओसामा बिन लादेन की तर्ज पर कराची से उठाकर भारत लाया जा सकता है। यदि आप सोचते हैं कि डी डे केवल रॉ एजेंटों और उनके मिशन को लेकर बनी है तो आप गलत हैं। निर्देशक निखिल आडवाणी ने स्पष्ट रूप से यह बताने की कोशिश की है कि रॉ एजेंट वास्तव में क्या हासिल कर सकते हैं। डी डे फिल्म चार रॉ एजेंटों की कहानी है जो पाकिस्तान में शरण लिए गोल्डमैन (दाऊद) को पकड़कर भारत लाने के मिशन पर हैं। सेना का पूर्व अधिकारी रुद्र (अर्जुन रामपाल), सीमा पर अपनी असलियत छिपाकर रहने वाले वली खान (इरफान खान), जोया हुमा कुरैशी और अपराधी से खुफिया एजेंट बने असलम (आकाश दहिया) का लक्ष्य इकबाल (ऋषि कपूर) जो दाऊद की भूमिका निभा रहा है को जिन्दा पकड़कर लाना है। विदेशी जमीन पर अपने मिशन पर लगे एजेंटों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। मिशन के दौरान रुद्र प्रताप सिंह (अर्जुन रामपाल) एक वेश्या (श्रुति हसन) से भावनात्मक रूप से  जुड़ जाता है। रुद्र से अलग वली का अपना परिवार है जिसे वह बहुत चाहता है। गोल्डमैन के बेटे की शादी एक बड़े होटल में है और वहीं उसे पकड़ने का प्लान बनाया जाता है। कागज पर स्पष्ट नजर आने वाला प्लान हकीकत में बहुत धुंधला हो जाता है। गड़बड़ियां होती हैं, कुछ ऐसी समस्याएं आ खड़ी होती हैं जिनके बारे में सोचा भी नहीं था। यह चारों जांबाज अफसर मुसीबत की दलदल में फंसते चले जाते हैं। पाकिस्तानी पुलिस, गोल्डमैन के गुर्गे पीछे पड़ जाते हैं और भारत सरकार भी इनसे पल्ला झाड़ लेती है। तमाम विकट परिस्थितियों में फंसे चारों लोग जान बचा पाते या नहीं? गोल्डमैन को भारत ला पाते हैं या नहीं? यह एक थ्रिलर के रूप में फिल्म में दिखाया गया है। अभिनय की अगर बात करें तो सभी किरदारों ने जोरदार काम किया है। ऋषि कपूर ने अपनी चॉकलेट और रोमांस वाली इमेज से अलग एक डॉन के किरदार को खूब निभाया है। इरफान खान ने ऐसे शख्स का किरदार निभाया है जो फर्ज और परिवार के बीच जूझता रहता है। अर्जुन रामपाल ने कम से कम डायलाग बोलकर भी अपनी बात साफ कह दी। लड़कियों ने भी अच्छी भूमिका निभाई है। फिल्म के लिए बहुत बारीक रिसर्च की गई है। हकीकत में ऐसा ही सब कुछ होता होगा। कुल मिलाकर अच्छी फिल्म है। क्लाइमैक्स क्या है यह नहीं बताऊंगा आप खुद फिल्म देखें और आपको अहसास होगा कि हां वाकई ही क्या ऐसा हो सकता है?
 -अनिल नरेन्द्र