दिल्ली में और अन्य राज्यों में पुलिस व्यवस्था में स्टेशन हाउस
अफसर यानि एसएचओ एक बहुत महत्वपूर्ण कड़ी होता है। किसी भी इलाके के थाने में एसीपी
और एसएचओ ही थाने को चलाते हैं। एसीपी से लेकर पुलिस कमिश्नर तक सभी को एसएचओ के माध्यम
से ही कानून व्यवस्था चलानी होती है, इसलिए एसएचओ ईमानदार और चरित्रवान होना जरूरी
है और यह बात दिल्ली के नए पुलिस कमिश्नर भीम सेन बस्सी अच्छी तरह समझते हैं। गत मंगलवार
को सिविल लाइंस स्थित शाह ऑडिटोरियम में इंस्पेक्टर व सहायक पुलिस आयुक्त स्तर के कर्मियों
को सम्बोधित करते हुए बस्सी ने कहा कि राजधानी के थानों में तैनात एसएचओ के खिलाफ किसी
भी तरह के करप्शन की शिकायत मिलने पर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने
कहा कि वह इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि कई एसएचओ अपने अधिकारों का दुरुपयोग
कर लोगों से पैसा लेते हैं। अब समय आ गया है जब ऐसे कर्मी अपनी कार्यशैली में बदलाव लाएं, नहीं तो शिकायत मिलने पर उन पर कड़ी
कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय से राजधानी में रहने वाली महिलाएं
व युवतियां अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रही हैं। उन्हें अकेले में घर से निकलने में
डर लगता है। इस स्थिति को हमें बदलना होगा। श्री बस्सी की प्राथमिकताएं तो सही हैं
पर इन पर कितना क्रियान्वयन होता है यह देखने की बात है। महिलाओं की बात से जब महिला
थाने में पुलिस वर्दी में सुरक्षित नहीं तो बाहर क्या आलम होगा आप खुद ही अनुमान लगा
लें। गत दिनों साकेत कोर्ट के एडिशनल सेशन जज राजेन्द्र कुमार शास्त्राr ने एक निचली
अदालत के फैसले को खारिज करते हुए लेडी कांस्टेबल की शिकायत पर एक एसएचओ के खिलाफ संज्ञान
लेने का निर्देश दिया। मामला कालका जी थाने क्षेत्र का है। मामला कालका जी थाने में
उस समय तैनात लेडी कांस्टेबल सोनिका भाटी और इंस्पेक्टर बीएस राणा के बीच का है। उपरोक्त
मामले में 22 वर्षीय लेडी कांस्टेबल ने शिकायत की थी कि सात जनवरी 2012 को जब वह कालका
थाने में रात की ड्यूटी पर थी तब उसे तत्काल एसएचओ ने रात एक बजे पहली मंजिल पर बने
रेस्ट रूम में बुलाया और मोलेस्टेशन की कोशिश की। इसके खिलाफ पीड़िता ने आपराधिक दंड
संहिता की धारा 156(3) के तहत कार्रवाई करने की मांग करते हुए एसीएमएम के यहां केस फाइल कर दिया।
पीड़िता ने अपने क्षेत्र (दक्षिण-पूर्व) के डीसीपी को भी उसी दिन शिकायत दर्ज करा दी।
लेकिन कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई और इसी बीच पीड़िता का तबादला सरिता विहार थाने में
कर दिया गया। थानाध्यक्ष राणा के खिलाफ विभागीय जांच बैठा दी गई और उस पर सेंसरशिप
लगा दी गई। 27 जून 2013 को पीड़िता की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी गई कि आरोपी
के खिलाफ कार्रवाई का कोई आधार नहीं है। इसके खिलाफ पीड़िता ने एडिशनल सेशन जज राजेन्द्र
कुमार शास्त्राr की अदालत में अपील की। सभी तथ्यों पर गौर करने के बाद माननीय जज महोदय
ने कहा कि निचली अदालत मामले की गम्भीरता को समझने में असफल रही है। आरोपी पीड़िता
का बॉस और एसएचओ है। यह कार्य स्थल पर एक महिला के सेक्सुअल ह्रासमेंट का मामला है।
ऐसे मामलों में उचित तहकीकात की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि पेश मामले में किसी
स्वतंत्र बिटनेस का कोई सवाल नहीं है क्योंकि यह घटना रात को एक बजे और थाने की पहली
मंजिल पर बने रेस्ट रूम में हुई थी जो सुनसान रहता है। पीड़िता को रात एक बजे रेस्ट
रूम में बुलाया गया था। वह विभागीय जांच के दौरान आरोपी पर लगी सेंसरशिप से जाहिर है।
इससे पीड़िता की शिकायत को मजबूती मिलती है। पूरे मामले की ज्वाइंट सीपी (विजिलेंस)
ने भी जांच की है। एसएचओ जैसे किसी ताकतवर अधिकारी के खिलाफ कोई महिला कर्मी बेवजह
ही आरोप नहीं लगाएगी। अदालत ने इस बात पर भी नाखुशी जताई कि बिना एफआईआर दर्ज किए पीड़िता
का तबादला कर दिया गया। दिल्ली पुलिस के रवैये को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए जज साहब
ने कहा कि जिस दिल्ली पुलिस की जिम्मेदारी अपराध रोकने की है उसी पुलिस ने अपनी एक
महिला कर्मी के साथ हुए अपराध के खिलाफ आंखें मूंद लीं। अपने फैसले में जज शास्त्राr
ने कहा कि पहली नजर में मामले को देखने से लगता है कि अपराध हुआ है। तत्कालीन एसएचओ
के खिलाफ एफआईआर दर्ज न करना कानून का उल्लंघन है। उन्होंने मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट
से पीड़िता की शिकायत पर उचित कार्रवाई का आदेश दिया। हम एडिशनल सेशन जज राजेन्द्र
कुमार शास्त्राr को इस साहसी फैसले पर बधाई
देते हैं। इस समय महिलाओं पर हर स्तर के अपराध बढ़ रहे हैं और खुद पुलिस ही अपनी महिलाकर्मियों
से ऐसा व्यवहार करे बर्दाश्त से बाहर है। जब खुद पुलिस अफसर ऐसे व्यवहार अपने साथियों
से करेंगे तो पब्लिक का क्या होगा।
-अनिल नरेन्द्र
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