प्रकाशित: 01 अगस्त 2013
उत्तर प्रदेश में लगता है कि माफिया राज है। गौतम बुद्ध नगर के एसडीएम पद से महिला आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल का निलंबन का ढंग तो यही संकेत देता है। बिना कारण स्पष्ट किए गुरुवार को 2010 बैच की इस महिला अधिकारी को निलंबित कर दिया गया। गौतम बुद्ध नगर में खनन माफियाओं के खिलाफ अभियान छेड़ने वाली 28 वर्षीय दुर्गा शक्ति नागपाल को निलंबित करने का कारण कुछ दूसरा बताया जा रहा है मगर सच कुछ और है। दुर्गा नागपाल ने जिले के बालू खनन माफिया के खिलाफ अभियान छेड़ रखा था। अवैध खनन और परिवहन में लगे दर्जनों वाहनों को जब्त कर लिया था। डेढ़ दर्जन माफियाओं को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। उन्हें निलंबित करने का जो कारण बताया जा रहा है उसके मुताबिक उनके आदेश पर एक निर्माणाधीन धार्मिक स्थल की दीवार ढहा दी गई थी। निश्चित रूप से सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में आदेश जारी किया था कि कोई भी राज्य सरकार बिना पूर्वानुमति के किसी सार्वजनिक जगह पर किसी भी तरह का अवैध निर्माण (धार्मिक) न होने दे। इस पर अमल उतना ही जरूरी है जितना किसी भी समुदाय की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना। दुर्गा नागपाल के निलंबन को लेकर प्रदेश की आईएएस लाबी, खासकर ईमानदार नौकरशाहों में गहरा रोष है। बसपा सरकार के कार्यकाल में खनन विभाग पर माफियाओं का राज था। प्रदेश के सारे ठेके सीधे ऊपर से दिए जाते थे। नदियों के घाटों को सीधे माफिया के हवाले कर दिया जाता था। यह गोरखधंधा बहुत बड़े पैमाने पर काम कर रहा था। पांच साल में खरबों का वारा-न्यारा कर दिया गया। कुछ मंत्री और उनके गुर्गे अकूत धन के स्वामी बन बैठे। मौजूदा सरकार भी उसी के नक्शे कदम पर काम करती दिख रही है। प्रदेश के हर क्षेत्र की बड़ी नदियों के बालू घाट से लेकर पत्थर की खदानों तक पर हर दिन करोड़ों का माल बिना सरकार को कर चुकाए पार किया जा रहा है। सवाल है कि अकसर ऐसा क्यों होता है कि जो अधिकारी जमीन, रेत या तेल माफिया से टकराने की कोशिश करता है उसे किसी न किसी बहाने से किनारे लगा दिया जाता है। इस तरह की कार्रवाई से जहां राज्य को भारी वित्तीय घाटा होता है वहीं ईमानदार अधिकारियों का मनोबल गिरता है। आखिर हरियाणा के आईएएस अफसर अशोक खेमका का मामला हमारे सामने है जिन्हें राबर्ट वाड्रा से जुड़ा जमीन सौदे का मामला सामने लाने का खामियाजा भुगतना पड़ा और कुछ महीने पहले ग्वालियर में रेत माफिया से टकराने की वजह से एक जांबाज पुलिस अधिकारी को अपनी जान तक से हाथ धोना पड़ा था। उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर परोक्ष रूप से ही सही इसका संचालन पार्टी के ही प्रतिनिधि कर रहे हैं। खनन माफियाओं का संबंध सत्ता पार्टी के राजनेताओं से होते हैं, इसलिए जब कोई अधिकारी उनके खिलाफ मुहिम चलाता है तो सत्ताधारी राजनेताओं में खलबली मच जाती है। बहरहाल दुर्गा शक्ति के साथ बरती गई सख्ती के खिलाफ यदि सूबे का आईएएस संगठन खड़ा नजर आ रहा है तो यह युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए बड़ी चुनौती है कि वह प्रशासनिक अमले को राजनीतिक शिकंजे से मुक्त करें। यदि सरकार को अपनी छवि बेदाग रखनी है, तो उसे इस तरह के क्रियाकलाप से बचना चाहिए।
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