Saturday, 17 August 2013

...और अब वीवीआईपी घोटाले की बारी

बोफोर्स विवाद के बाद बिचौलियों के शामिल होने और कमीशनखोरी को रोकने के लिए रक्षा मंत्रालय और भारत सरकार ने कई नियमों में इसलिए परिवर्तन किया था कि रक्षा सौदों में घोटालों को रोका जा सके पर दुख से कहना पड़ता है कि दलाली और घोटाले का यह सिलसिला रुका नहीं। अब तो वीवीआईपी घोटाला हो गया है। वीवीआईपी हेलीकाप्टर अगस्ता वेस्टलैंड सौदा विवादों में आ गया है। अब कैग ने भी इस सौदे में भी गड़बड़ी के आरोप लगाए हैं। अपनी रिपोर्ट में कैग ने कहा है कि रक्षा मंत्रालय ने खरीदी नियमों को मनमाने तरीके से बदला। सस्ते हेलीकाप्टर महंगी कीमत पर खरीदने के करार कर लिए। रिपोर्ट मंगलवार को राज्यसभा में पेश की गई। रक्षा मंत्रालय ने 2010 में 3727 करोड़ रुपए में 12 वीवीआईपी हेलीकाप्टर खरीदने का सौदा किया था। इटली की कम्पनी फिनमैविना को हेलीकाप्टर की आपूर्ति करनी थी। इस साल के शुरू में कम्पनी पर सौदे के लिए करीब 350 करोड़ रुपए रिश्वत देने के आरोप लगे। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कई अनियमितताएं गिनाई हैं। एयरफोर्स के मैदानी परीक्षणों के तौर-तरीके सही नहीं थे। सौदे के लिए चुने गए दो हेलीकाप्टरों अगस्ता वेस्टलैंड 101 और सिकोर्स्की के एस 92 को बराबरी के अवसर नहीं दिए गए। मैदानी मूल्यांकन परीक्षण के समय अगस्ता वेस्टलैंड विकास के दौर में था। कम्पनी ने असली हेलीकाप्टर के बजाय मर्लिन एमके-3 और सिव-1 हेलीकाप्टर पर परीक्षण करा दिया। सौदे में गुणवत्ता जरूरतों को जिस मकसद से बदला गया था वह पूरा नहीं हुआ। इसके उलट सौदे के लिए सिर्प एक कम्पनी बची और अगस्ता एडब्ल्यू 101 को चुन लिया गया। अनुबंध समिति में बेस प्राइस 4.871 करोड़ रुपए तय की गई थी। जबकि कम्पनी की ओर से पेशकश ही सिर्प 3.966 करोड़ रुपए की थी यानि भाव जानबूझ कर बढ़ाए गए। 1,240 करोड़ रुपए की लागत से अतिरिक्त हेलीकाप्टरों की खरीदारी से बचा जा सकता था। क्योंकि उस समय वीवीआईपी बेड़े में शामिल हेलीकाप्टरों का उपयोग भी नहीं हो रहा था। अगस्ता वेस्टलैंड ने भारत में निवेश के लिए तय रक्षा मानकों का पालन नहीं किया और कम्पनी ने जिन भारतीय ऑफसेट पार्टनरों को चुना वे इसके काबिल ही नहीं थे। हेलीकाप्टर बनाने वाली कम्पनी इटली में खुद अपने देश में भ्रष्टाचार का मुकदमा झेल रही है और यहां भारतीय वायुसेना के पूर्व प्रमुख सीके त्यागी और उनके रिश्तेदारों के खिलाफ भी सीबीआई ने मुकदमा दर्ज कर रखा है। स्पेक्ट्रम (टूजी) सौदा या कोयला घोटाला जैसे भ्रष्टाचार के मुकाबले आकार में हालांकि यह सौदा बौना ठहरता है लेकिन कैग ने जिस तरीके से इस सौदे में अनियमितताएं गिनाई हैं वे यकीनन चौंकाने वाली जरूर हैं। सबसे चिन्ता की  बात यह है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे देश के अति महत्वपूर्ण लोगों की उड़ान के लिए खरीदे जा रहे इन हेलीकाप्टरों की गुणवत्ता के साथ छेड़छाड़ हुई। कैग की अंगुली सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय और तत्कालीन सुरक्षा सलाहकार पर उठने से मामला अत्यंत गम्भीर हो जाता है। फिर यह चौंकाने वाला कम नहीं कि अगस्ता के ये हेलीकाप्टर अभी बन ही रहे थे कि इनका टेस्ट कर इन्हें पास कर दिया गया। जाहिर है कि यह टेस्ट उन हेलीकाप्टरों पर तो नहीं हुए होंगे जिन्हें वास्तव में हमें इस्तेमाल करना था। टेस्ट के लिए दूसरे हेलीकाप्टरों पर ही परीक्षण करवाकर सर्टिफिकेट ले लिया गया। देश के साथ इससे भद्दा मजाक और क्या हो सकता है। चौंकाने वाली बात यह है कि यह राज भारत में नहीं बल्कि खुद इटली में खुला, जहां कम्पनी पर वहां की राजनीतिक पार्टियों के बीच रिश्वत बांटने के आरोप लगे थे और इस दौरान भारत के साथ हुए सौदे की बात भी खुल गई। जिन दिनों इटली में जांच शुरू हुई और शक की सूइयां घूमने लगीं, उन्हीं दिनों तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वीके मलिक ने टेट्रा ट्रकों की खरीद को मंजूरी देने के लिए उन्हें एक बिचौलिए के जरिए रिश्वत की पेशकश किए जाने का खुसाला किया था। इस पर उठे विवाद के बाद रक्षा मंत्री एके एंटनी ने तीनों प्रमुखों से बातचीत कर रक्षा खरीद की एकीकृत नीति घोषित की। लेकिन हेलीकाप्टर सौदे में शक के मौके बार-बार आने के बावजूद रक्षा मंत्रालय सचेत क्यों नहीं हुआ? या फिर ऊपरी दबाव के कारण सभी नियमों को सोच-समझ कर नजरअंदाज किया गया?
-अनिल नरेन्द्र

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