Tuesday 6 August 2013

केंद्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा ः तोते को पिंजरे में ही रहने दो


केंद्र सरकार ने सीबीआई को ज्यादा स्वायत्तता देने पर सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि तोते को पिंजरे में ही रहने दो। तोते की निगरानी जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में केंद्र सरकार ने जांच एजेंसी को ज्यादा स्वायत्तता देने का विरोध करते हुए जो दलीलें दीं वह अजीबो-गरीब हैं। केंद्र सरकार ने कहा है कि बिना जवाबदेही के सीबीआई निदेशक का कार्यकाल निरंकुश हो सकता है। सीबीआई अफसरों के खिलाफ मोटी उगाही और जांच में हेराफेरी की गम्भीर शिकायतें मिलती रहती हैं, इसलिए सीबीआई की जवाबदेही आवश्यक है। केंद्र सरकार ने सीबीआई के निदेशक का न्यूनतम कार्यकाल तीन साल करने के ब्यूरो के सुझाव को दरकिनार करते हुए कहा है कि बगैर किसी नियंत्रण और निगरानी के सर्वशक्तिमान निदेशक के निरंकुश का खतरा है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल 22 पृष्ठों के हलफनामे में कहा कि समुचित नियंत्रण और संतुलन के बगैर ही सीबीआई के निदेशक का सर्वशक्तिमान होना, संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं होगा और इसके हमेशा ही दुरुपयोग का खतरा बना रहेगा और यह सभी स्तरों पर इस संगठन के स्वतंत्र और निडर होकर काम करने के अनुकूल नहीं होगा। कोयला घोटाले में सीबीआई की जांच में सरकार के हस्तक्षेप से व्यथित सुप्रीम कोर्ट ने देश की शीर्षस्थ जांच एजेंसी की स्वायत्तता को लेकर कार्रवाई शुरू की है। स्वायत्तता पर सरकार के प्रस्ताव पर सीबीआई की आपत्तियों के जवाब में केंद्र सरकार ने अपना रुख स्पष्ट किया है। देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की स्वायत्तता के संबंध में कोई भी निर्णय उच्चतम न्यायालय को लेना है। यह बात सीबीआई निदेशक रणजीत सिन्हा ने रविवार को कही। सीबीआई के स्वायत्तता के सवाल की मंशा साफ हो गई है। वह इसे कई मास्टरों के अधीन रखना चाहती है। सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे को देखने से तो कम से कम ऐसा ही लगता है। सरकार ने सीबीआई के वित्तीय अधिकार बढ़ाने, रिक्त पदों को भरने जैसे कई मुद्दों पर निरंकुशता जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर यह बता दिया है कि वह जांच एजेंसी को अपने चंगुल से निकलने देना नहीं चाहती। वह चाहती है कि तोता पिंजरे में ही रहे। ऐसे में इस जांच एजेंसी का स्वायत्त  होना दूर की बात लगती है। सीबीआई के आला अधिकारी सरकार के कदम और हलफनामे से बेहद नाराज हैं। उनका मानना है कि सरकार ने जो हलफनामा दिया है उससे तो साफ हो गया है कि जांच कार्य सरकार की निगरानी में हो। सरकारी हलफनामे में इस बात पर ज्यादा जोर देने की कोशिश की गई है कि सरकार किस तरह सीबीआई की कार्यप्रणाली को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाने का प्रयास कर रही है। उसने सीबीआई के ऊपर कुछ और मास्टर बिठाने की मंशा सुप्रीम कोर्ट में व्यक्त की है। जांच एजेंसी का मानना है कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच नहीं कर सकती क्योंकि उस पर जवाबदेही कमेटी होगी यानि उसके ऊपर एक मास्टर होगा। लिहाजा उनको खुश करने में जांच अधिकारी लगे रहेंगे। सूत्रों के अनुसार सीबीआई अगली सुनवाई में सरकार के कदमों का विरोध करेगी और सुप्रीम कोर्ट को यह बताएगी कि उसके निदेशक को न तो वित्तीय अधिकार मिला और न ही किसी की नियुक्ति का।                     

                                                                  -अनिल नरेन्द्र

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