Tuesday 13 August 2013

दाऊद उसकी सरजमीं पर है, पहली बार पाकिस्तान न स्वीकारा

आखिरकार पाकिस्तान का एक और सालों पुराना झूठ खुलकर सामने आ ही गया। पहली बार पाकिस्तान ने भारत के मोस्ट वांटेड आतंकी दाऊद इब्राहिम की अपनी सरजमीं पर मौजूदगी की बात कबूल कर ली है। अब तक इस्लामाबाद अंडरवर्ल्ड डॉन के अपने यहां होने से साफ इंकार करता रहा है और इस बात का खुलासा कि डॉन पाकिस्तान में है का किसी और ने नहीं बल्कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विशेष दूत शहरयार खान ने किया है। हालांकि उन्होंने साथ-साथ यह भी जोड़ दिया कि दाऊद को पाक से खदेड़ा जा चुका है और अब वह यूएई में हो सकता है। पाकिस्तान की सत्ता में आने पर नवाज शरीफ ने शहरयार खान को भारत के साथ संबंध सुधारने के लिए नियुक्त किया है। खान ने कहा कि दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में था लेकिन मेरा मानना है कि उसे खदेड़ा जा चुका है। यदि वह पाकिस्तान में है तो उसे खोजकर गिरफ्तार किया जाना चाहिए। हम अपनी सरजमीं पर ऐसे किसी गैंगस्टर को अपनी गतिविधियां चलाने नहीं दे सकते हैं। लंदन में भारतीय पत्रकार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम से पहले संवाददाताओं से बात करते हुए उन्होंने यह कहा। वैसे बता दें कि शहरयार खान 1993 में पाकिस्तान के विदेश सचिव थे जब मुंबई ब्लास्ट के दौरान दाऊद भागकर पाकिस्तान शरण लेने पहुंचा था। सो जब शहरयार कहें कि दाऊद पाकिस्तान में है या था तो उनकी बात को सही माना जाना चाहिए। गौरतलब है कि 1993 में मुंबई में हुए धमाकों के आरोपी दाऊद इब्राहिम और टाइगर मेमन जैसे आरोपी रेड कार्नर नोटिस के बावजूद दो दशक से पाकिस्तान में छिपे हैं। सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मौजूदा व्यवस्था में इंटरपोल सामान्य अपराधियों और आतंकियों के लिए एक ही नोटिस रेड कार्नर जारी करता है। इस रेड कार्नर नोटिस पर कार्रवाई के लिए किसी देश को बाध्य नहीं किया जा सकता। इंटरपोल की इसी कमजोरी का लाभ उठाकर पाकिस्तान दो दशक से दाऊद इब्राहिम को अपने यहां शरण दिए हुए है। हालत यह है कि पाकिस्तान दाऊद की अपने यहां मौजूदगी से ही इंकार कर देता है, जबकि भारत उसके ठिकाने के बारे में बार-बार ठोस सबूत पेश करता रहा है। ध्यान देने की बात है कि संयुक्त राष्ट्र संघ और अमेरिका ने भी दाऊद इब्राहिम को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित कर रखा है। तीन दिन पहले मैंने एक हिन्दी की फिल्म डी डे देखी। मेरी राय में यह एक बहुत बढ़िया फिल्म बनी है। इस फिल्म में वह काम करके दिखाया गया है जो भारत सरकार 20 सालों में नहीं कर सकी। फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह दाऊद इब्राहिम को ओसामा बिन लादेन की तर्ज पर कराची से उठाकर भारत लाया जा सकता है। यदि आप सोचते हैं कि डी डे केवल रॉ एजेंटों और उनके मिशन को लेकर बनी है तो आप गलत हैं। निर्देशक निखिल आडवाणी ने स्पष्ट रूप से यह बताने की कोशिश की है कि रॉ एजेंट वास्तव में क्या हासिल कर सकते हैं। डी डे फिल्म चार रॉ एजेंटों की कहानी है जो पाकिस्तान में शरण लिए गोल्डमैन (दाऊद) को पकड़कर भारत लाने के मिशन पर हैं। सेना का पूर्व अधिकारी रुद्र (अर्जुन रामपाल), सीमा पर अपनी असलियत छिपाकर रहने वाले वली खान (इरफान खान), जोया हुमा कुरैशी और अपराधी से खुफिया एजेंट बने असलम (आकाश दहिया) का लक्ष्य इकबाल (ऋषि कपूर) जो दाऊद की भूमिका निभा रहा है को जिन्दा पकड़कर लाना है। विदेशी जमीन पर अपने मिशन पर लगे एजेंटों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। मिशन के दौरान रुद्र प्रताप सिंह (अर्जुन रामपाल) एक वेश्या (श्रुति हसन) से भावनात्मक रूप से  जुड़ जाता है। रुद्र से अलग वली का अपना परिवार है जिसे वह बहुत चाहता है। गोल्डमैन के बेटे की शादी एक बड़े होटल में है और वहीं उसे पकड़ने का प्लान बनाया जाता है। कागज पर स्पष्ट नजर आने वाला प्लान हकीकत में बहुत धुंधला हो जाता है। गड़बड़ियां होती हैं, कुछ ऐसी समस्याएं आ खड़ी होती हैं जिनके बारे में सोचा भी नहीं था। यह चारों जांबाज अफसर मुसीबत की दलदल में फंसते चले जाते हैं। पाकिस्तानी पुलिस, गोल्डमैन के गुर्गे पीछे पड़ जाते हैं और भारत सरकार भी इनसे पल्ला झाड़ लेती है। तमाम विकट परिस्थितियों में फंसे चारों लोग जान बचा पाते या नहीं? गोल्डमैन को भारत ला पाते हैं या नहीं? यह एक थ्रिलर के रूप में फिल्म में दिखाया गया है। अभिनय की अगर बात करें तो सभी किरदारों ने जोरदार काम किया है। ऋषि कपूर ने अपनी चॉकलेट और रोमांस वाली इमेज से अलग एक डॉन के किरदार को खूब निभाया है। इरफान खान ने ऐसे शख्स का किरदार निभाया है जो फर्ज और परिवार के बीच जूझता रहता है। अर्जुन रामपाल ने कम से कम डायलाग बोलकर भी अपनी बात साफ कह दी। लड़कियों ने भी अच्छी भूमिका निभाई है। फिल्म के लिए बहुत बारीक रिसर्च की गई है। हकीकत में ऐसा ही सब कुछ होता होगा। कुल मिलाकर अच्छी फिल्म है। क्लाइमैक्स क्या है यह नहीं बताऊंगा आप खुद फिल्म देखें और आपको अहसास होगा कि हां वाकई ही क्या ऐसा हो सकता है?
 -अनिल नरेन्द्र

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