Wednesday 28 August 2013

यह पाकिस्तान में ही हो सकता है कि पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या में पूर्व राष्ट्रपति आरोपी हो

ाह केवल पाकिस्तान जैसे देश में ही हो सकता है कि एक पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या का मुख्य आरोपी एक पूर्व राष्ट्रपति व सेनाध्यक्ष को बनाया जाए। जी हां, पाकिस्तान में ऐसा ही हुआ है। पाकिस्तान के इतिहास में जनरल परवेज मुशर्रफ ऐसे पहले पूर्व सेनाध्यक्ष हैं जिन पर एक आपराधिक मामले में मुकदमा चलेगा। जिस देश में सबसे ज्यादा ताकतवर संगठन सेना है और जहां ज्यादातर सैनिक तानाशाह राज करते रहे हैं वहां यह सचमुच एक ऐतिहासिक घटना ही है। रावलपिंडी की आतंकवाद विरोधी अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या के मामले में जनरल परवेज मुशर्रफ पर मुकदमा दर्ज किया है। अदालत ने मुशर्रफ समेत आठ लोगों पर आरोप लगाए हैं। पाकिस्तान की आजादी के 66 सालों के इतिहास में ज्यादातर समय रहा है सैन्य शासन। सरकारी वकील चौधरी मोहम्मद अजहर के मुताबिक मुशर्रफ और मामले के दो अन्य आरोपी, रावलपिंडी पुलिस के पूर्व प्रमुख सौद अजीज व पुलिस अधीक्षक खुर्रम शहजाद की मौजूदगी में आरोप पत्र पढ़ा गया। इन तीनों के अलावा चार अन्य आरोपियों हसनेन गुल, रफाकत हुसैन, शेर जयान और अब्दुल रशीद पर आरोप पहले ही तय हो चुके हैं जबकि हत्याकांड के आठवें आरोपी एजाज शाह का मुकदमा नाबालिग होने के चलते अलग बाल अदालत में चलेगा। मुशर्रफ 1999 में नवाज शरीफ का तख्ता पलटने के बाद 2008 तक पाकिस्तान के शासक रहे। जरदारी की सरकार आने के बाद वे स्वनिर्वासन में दुबई व ब्रिटेन चले गए। चार साल बाद पाकिस्तान के आम चुनावों में शामिल होने के लिए इसी साल मार्च में देश लौटे और यहीं से उनकी मुसीबतें शुरू हो गईं। मुशर्रफ की मुसीबतों का न यह पहला अध्याय है और न अंतिम। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ उन पर राष्ट्रद्रोह का मामला चलाना चाहते हैं, इसके अलावा बलूच नेता नवाब अकबर बुगती की हत्या और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की बर्खास्तगी के मामले की तलवार भी उन पर लटक रही है। हमारी समझ से यह बाहर की बात है कि आखिर क्या सोचकर मुशर्रफ पाकिस्तान लौटे? क्या उन्हें सचमुच यह भ्रम था कि पाकिस्तानी अवाम उन्हें सिर-आंखों पर उठा लेगी और कहेगी कि आप देश की सत्ता पुन सम्भाल लें? वह जब से पाकिस्तान लौटे हैं लगभग तभी से नजरबन्द हैं और उन्हें चुनाव लड़ने से भी अयोग्य घोषित कर दिया गया। पाकिस्तान की अवाम में कोई उनका नाम लेने को तैयार तक नहीं है। राजनीतिक और न्यायपालिका के ताकतवर लोग उनके हाथों हुए अन्याय और अत्याचार, अपमान को भूले नहीं हैं। अब उन पर हत्या का इल्जाम भी बाकायदा दर्ज हो गया है जिसमें सबसे बड़ी फांसी है। देखना अब यह होगा कि पाकिस्तानी फौज अपने पूर्व मुखिया की इस छीछालेदर को किस तरह लेती है? पहले यह लग रहा था कि सम्भवत सेना दबाव बनाकर मुशर्रफ को देश से निकाल देगी पर अब मुकदमों के चलते यह सम्भव नहीं लगता। पाक सेना की मुश्किल यह है कि बेशक आज भी वह सबसे ताकतवर हो, लेकिन उसका सीधा सत्ता हथियान अब मुश्किल है। सेना के अन्दर अब ऐसे भी तत्व उभर रहे हैं जो अब तक की सेना की रणनीति और नीयत दोनों पर सवाल उठा रहे हैं। मुशर्रफ की मुश्किल तालिबानी भी हैं जो लाल मस्जिद हमले के लिए उन्हें सीधे जिम्मेदार मानते हैं और बदला लेने का इंतजार कर रहे हैं। आज से पहले अदालतों ने किसी जनरल पर हाथ नहीं डाला, ताजा हालातों से पता चलेगा कि पाकिस्तान किस ओर बढ़ रहा है। शायद यह बदलाव बेहतर पाकिस्तान की ओर ले जाए।

-अनिल नरेन्द्र

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