Tuesday, 6 August 2013

अफगानिस्तान में भारत को खतरे की एक झलक


जैसे-जैसे अमेरिका का अफगानिस्तान से निकलने का समय करीब आता जा रहा है तालिबान मजबूत होता जा रहा है और भारत का अफगानिस्तान में रहने का खतरा बढ़ता जा रहा है। पाकिस्तान और तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान के निशाने पर भारत रहेगा। अफगानिस्तान में भारत के कई विकास प्रोजैक्ट्स चल रहे हैं और पाकिस्तान कतई नहीं चाहेगा कि यह ज्यादा लम्बे चलें और भारत का प्रभाव उस क्षेत्र में बना रहे। अमेरिका के हटने के बाद का क्या नजारा हो सकता है इसका ताजा नमूना हमारे सामने आ गया है। अफगानिस्तान के जलालाबाद शहर में भारत के वाणिज्य दूतावास को निशाना बनाकर आत्मघाती हमला किया गया। शनिवार को हुए इस हमले में 12 लोगों की मौत हो गई है। 24 अन्य घायल हो गए। मरने वालों में तीनों हमलावर सहित आठ बच्चे शामिल हैं। भारतीय वाणिज्य दूतावास के सभी भारतीय सुरक्षित हैं। माना जाता है कि भारत सरकार को जलालाबाद वाणिज्य दूतावास समेत अपने दूतावासों पर हमले की आशंका थी और इसीलिए पिछले हफ्ते सुरक्षा अधिकारियों ने काबुल का दौरा किया था। खास बात यह है कि यह हमला ऐसे समय हुआ है जब अमेरिका ने अलकायदा के सम्भावित हमलों के मद्देनजर न केवल अलर्ट जारी किया है बल्कि मध्य-पूर्व के अपने कुछ दूतावासों को रविवार के दिन बन्द रखने की घोषणा की है। जर्मनी और ब्रिटेन ने भी खतरे को देखते हुए यमन स्थित अपने दूतावासों को रविवार और सोमवार को बन्द रखने का ऐलान किया है। यह हमला उस समय किया गया जब बहुत से लोग वीजा आवेदन के लिए कतार में खड़े थे। जलालाबाद में भारतीय वाणिज्य दूतावास में हुए इस हमले में पता चला है कि शामिल सभी आत्मघाती हमलावर पाकिस्तान के नागरिक थे। हमला सुनियोजित योजना से स्थानीय मॉड्यूलों की मदद से किया गया। हालांकि भारत सरकार ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया है लेकिन संकेतों में विदेश मंत्रालय ने इस ओर इशारा जरूर किया है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि अफगानिस्तान के सीमापार बसे कुछ ऐसे समूह हैं जो वहां सुरक्षा और शांति व्यवस्था को ध्वस्त करना चाहते हैं। जाहिर-सी बात है कि यह हमला पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के इशारे पर ही हुआ। इसके प्रमाण भारत सरकार के पास भी हैं और अमेरिका के पास भी। यह आश्चर्यजनक है कि आईएसआई की ओर से तालिबान को भारतीय दूतावास पर हमले का निर्देश दिए जाने की बात से अवगत होने के बावजूद न तो अमेरिका इस हमले को रोक सका और न ही भारत। आगामी दिन और भी ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं क्योंकि अमेरिका अब अगले साल निकलने के लिए तालिबान तक से वार्ता व समझौता करने को व्याकुल है। यदि अमेरिका तालिबान से समझौता करके अथवा इसके बगैर अगले वर्ष अफगानिस्तान से निकल जाता है तो भारत के लिए वहां अपनी उपस्थिति बनाए रखना बहुत मुश्किल हो सकता है और यदि ऐसा हुआ तो न केवल अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में खर्च किए गए अरबों रुपए बर्बाद हो जाएंगे बल्कि भारत के लिए खतरा भी बढ़ जाएगा। 2014 में भारत में लोकसभा चुनाव होने हैं अगर यूपीए की फिर सरकार बनती है तो भारत को खतरा और बढ़ जाएगा क्योंकि यूपीए सरकार का आतंकवाद से लड़ने का ट्रैक रिकार्ड कोई बहुत उत्साहजनक नहीं है। आने वाले महीने अमेरिका व भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हैं।

                                                                                                                                                   -अनिल नरेन्द्र

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