Saturday 3 August 2013

तेलंगाना में कांग्रेस ने जुआ खेला है देखें ऊंट किस करवट बैठता है?

यूपीए सरकार की समन्वय समिति ने तेलंगाना राज्य के गठन के लिए अपनी मुहर लगा दी है। मंगलवार को हुई समन्वय समिति की बैठक में इस प्रस्ताव को सहयोगी दलों ने भी मंजूरी दे दी है। इसके बाद शाम इसी मुद्दे पर कांग्रेस कार्यसमिति की महत्वपूर्ण बैठक में देश के 29वें राज्य के रूप में तेलंगाना के गठन को हरी झंडी दे दी गई। केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने गुरुवार को कहा कि पृथक तेलंगाना राज्य के गठन का रास्ता तैयार करने वाला विधेयक संसद के मानसून सत्र में नहीं पेश होगा लेकिन नया राज्य छह महीने में अस्तित्व में आ जाएगा। नए राज्य के गठन में आठ से नौ महीने लगते हैं लेकिन हम जल्द से जल्द गठन करने का प्रयास करेंगे, शिंदे ने कहा। आगामी लोकसभा और आंध्र प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर तेलंगाना बनाने का फैसला लेकर कांग्रेस ने एक बड़ा जुआ खेला है। प्रदेश में बने राजनीतिक हालात, तेलंगाना का मुद्दा और जगन रेड्डी के बढ़ते वर्चस्व के चलते कांग्रेस मजबूर है। राज्य में तेजी से घटते अपने आधार को देखते हुए कांग्रेस का यह फैसला अपने दरकते किले का कुछ हिस्सा बचाने की कोशिश भर है। पिछले दिनों हुए स्थानीय चुनावों के नतीजों से कांग्रेस को साफ समझ में आ गया है कि कोस्टल आंध्र व रायलसीमा में काफी हद तक बाजी हाथ से निकल चुकी है। इसके बाद ही काफी हां-ना के बाद कांग्रेस ने इस नाजुक मसले  पर फैसला किया। कांग्रेस ने अब अपनी उम्मीदें तेलंगाना की सियासत में दबदबा रखने वाले राजनीतिक दल तेलंगाना राष्ट्र समिति टीआरए पर टिकाई हैं। टीआरएस प्रमुख चन्द्रशेखर राव को पाले में लाने के लिए कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने पार्टी के दरवाजे खोल दिए हैं। राव भी पहले कह चुके हैं कि अगर कांग्रेस तेलंगाना राज्य बनाने का रास्ता साफ करती है तो वह अपनी पार्टी के कांग्रेस में विलय को तैयार हैं। प्रस्तावित तेलंगाना राज्य में 17 लोकसभा सीटें होंगी। ऐसे में केंद्र की सत्ता में काबिज होने के लिए कांग्रेस को इन सीटों को हासिल करना सख्त जरूरी है। लिहाजा टीआरएस पर सवार होकर पार्टी अपने सियासी मंसूबे को पाने की पूरी कोशिश करेगी। कांग्रेस अपने इस कदम का लाभ केवल आंध्र प्रदेश में ही नहीं देख रही है। पार्टी के रणनीतिकार अपने आकलन में इस फैसले को दूसरे राज्यों पर पड़ने वाले असर और उससे कांग्रेस को पहुंचने वाले सम्भावित लाभ को भी देख रहे हैं। कांग्रेस के रणनीतिकारों के अनुसार यह आकलन कुछ हद तक सही साबित होने लगा है। उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी बसपा ने राज्य को चार हिस्सों में बांटने की मांग नए सिरे से उठा दी है। कांग्रेसी भी इस बंटवारे के पक्ष में बयान दे रहे हैं। पश्चिम बंगाल में गोरखा मुक्ति मोर्चा नए सिरे से आंदोलन पर उतर आया है। इसके अलावा बोडोलैंड, पृथक जम्मू और विदर्भ का मामला भी उठने लगा है। यदि यह मांगें जोर पकड़ती हैं तो यूपी में सत्तारूढ़ सपा, पश्चिम बंगाल में ममता कमजोर पड़ेंगे और इसका सीधा फायदा कांग्रेस को होगा। कांग्रेस का नेतृत्व इस समय राज्य की राजनीति को दरकिनार कर केंद्र के लिए होने वाले चुनाव को सामने रखे हुए हैं। उनका कहना है कि बड़ी बात यह होगी कि यूपीए सरकार के खिलाफ विपक्ष भ्रष्टाचार और महंगाई जैसे मुद्दों पर जो माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है उसकी दिशा बदल जाएगी। पृथक राज्य के भावनात्मक मुद्दे पर सभी पार्टियों को अपना नजरिया लेकर सामने आना पड़ेगा और वह इसमें ही उलझ जाएंगे। तेलंगाना को पृथक राज्य बनाने की कांग्रेस की अब राजनीतिक मजबूरी भी हो गई थी। तेलंगाना को अलग राज्य बनाने का मुद्दा भावनात्मक स्तर पर ऐसे मुकाम पर पहुंच गया था कि यदि कांग्रेस चुनाव होने तक टाल देती तो उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता था। तेलंगाना में लोकसभा की 17 सीटें हैं। दूसरी तरफ आंध्र और रायलसीमा क्षेत्र में लोगों की भावना हालांकि बंटवारे के खिलाफ हैं पर पिछले चार सालों में वाईएसआर के निधन और उनके बेटे जगन के कांग्रेस छोड़कर अलग वाईआरएस कांग्रेस के गठन से पार्टी का आधार काफी कमजोर हो चुका था जबकि चन्द्रबाबू नायडू की तेलुगूदेशम इस बीच मजबूत हुई है। ऐसे में दोनों तरफ से कांग्रेस को नुकसान दिखाई दे रहा था, जहां तक देश की बात है तो राज्यों को विभाजित करने के बाद भी समस्याएं सुलझी नहीं हैं। गौर करने की बात यह भी है कि नए राज्यों का अपने मूल प्रदेशों से संसाधन बंटवारे को लेकर विवाद रहता है। कहीं-कहीं तो जिले और तहसील तक को लेकर तकरार जारी है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या बंटवारे से समस्याएं सुलझ जाने वाली हैं? तेलंगाना की बात करें तो आंध्र प्रदेश के तटीय इलाकों की तुलना में पठारी इलाकों का पिछड़ना भी इसके मूल में है। अगर सारे क्षेत्रों तक विकास का लाभ पहुंचता और केंद्रीय योजनाएं ढंग से अमल में लाई जातीं तो शायद नए राज्य बनाने की कवायद से बचा जा सकता था। खैर, मैंने जो कहा कि कांग्रेस ने भारी जुआ खेला है देखें ऊंट किस करवट बैठता है?

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