Thursday, 1 August 2013

बीसीसीआई फिक्सरों ने जांच ही फिक्स कर डाली

प्रकाशित: 01 अगस्त 2013
आईपीएल मैच फिक्सिंग की जांच कर रही दो सदस्यीय समिति का फैसला क्या होगा इसका अंदाजा उसी दिन लग गया था जिस दिन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने इसके गठन की घोषणा की थी। दो महीने नहीं बीते कि जांच समिति ने मामले को किसी तरह रफादफा करके आनन-फानन में रिपोर्ट तैयार कर दी और अपनी ओर से आईपीएल-6 से जुड़े तमाम विवादों को विराम दे दिया। लीपापोती का यह तरीका भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने के पुराने आजमाए जा रहे तरीकों की याद दिलाता है। दिल्ली और मुंबई पुलिस की कार्रवाई में तीन क्रिकेटरों, कई फिक्सरों, राजस्थान रायल्स टीम के मेन फ्रेंचाइजी राज पुंद्रा और खुद बीसीसीआई प्रमुख एन. श्रीनिवासन के दामाद, चेन्नई सुपर किंग्स के मैनेजर गुरुनाथ मयप्पन के जेल जाने या बुरी तरह फंस जाने के बाद देश के आधिकारिक क्रिकेट संगठन बीसीसीआई ने मामले से लोगों का ध्यान हटाने के लिए कई सारे करतब किए। पहले इसके कुछ पदाधिकारियों ने दिखाने के लिए इस्तीफा दिया, फिर दो अवकाश प्राप्त जजों की जांच समिति गठित करके श्रीनिवासन भी कुछ दिनों के लिए अलग बैठ गए। अव्वल तो इस समिति के गठन का ही कोई औचित्य नहीं था। बीसीसीआई अगर अपने ढांचे में आई सड़न की तह में जाना चाहती तो उसे सरकार से इसकी जांच सीबीआई या वर्तमान न्यायाधीशों को लेकर गठित न्यायिक समिति से कराने की मांग करनी चाहिए थी। लेकिन उसने ऐसा  बिल्कुल नहीं किया और जांच के नाम पर करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों की आंखों में धूल झोंकने का काम किया है। अपने दामाद की गिरफ्तारी के बावजूद श्रीनिवासन शुरू से ही जिस तरह का अखड़पन दिखाते आए हैं, उसी से साफ है कि वह सब कुछ ठीक हो जाने के प्रति पूर्णतय अश्वस्त थे। इसके बावजूद कई सवाल हैं जिसके जवाब बीसीसीआई को देने होंगे। पहला सवाल तो यह है कि इस मामले में दिल्ली और मुंबई पुलिस की जांच अभी पूरी नहीं हुई है, इसके बावजूद बीसीसीआई ने इन्हें किस आधार पर निर्दोष करार दिया है। कल को पुलिस की जांच में अगर यह दोषी पाए जाते हैं तो इस रिपोर्ट का क्या होगा? दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली और राजस्थान रायल्स के तीन खिलाड़ियों सहित दर्जनों लोगों को आरोपी बनाया है। शीशे की तरह साफ है कि श्रीनिवासन की बीसीसीआई अध्यक्ष पद पर जल्दी वापसी के लिए जांच में इतनी शीघ्रता की गई। भूलना नहीं चाहिए कि यह जांच पैनल शुरू से ही विवादों में रहा। पहले बीसीसीआई के एक अधिकारी ने इसका हिस्सा बनने से इंकार कर दिया, फिर बार-बार बुलावे के बावजूद मुंबई पुलिस के लोग गवाही देने के लिए आए। इस निष्कर्ष का यही अंजाम होना था जो हुआ। बंबई हाई कोर्ट ने बीसीसीआई और एन. श्रीनिवासन को करारा झटका देते हुए मंगलवार को आईपीएल में स्पाट फिक्सिंग और सट्टेबाजी के आरोपों की जांच करने के लिए बोर्ड द्वारा गठित दो सदस्यीय पैनल को अवैध और असंवैधानिक करार दे दिया। न्यायमूर्ति एसजे वजीफदार और एमएस सोनक की खंडपीठ ने बिहार क्रिकेट संघ और उसके सचिव आदित्य वर्मा की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया। पीठ ने याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि जांच पैनल का गठन अवैध और असंवैधानिक है। हमें यह याद रखना चाहिए कि क्रिकेट भले ही अब कुछ-कुछ सिनेमा जैसा हो गया है, जहां सारे घपले-घोटालों को रफा-दफा करके ढाई घंटे में फिल्म की हैपी एंडिंग दिखा दी जाती है।
-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment