Friday 2 August 2013

बटला मुठभेड़ में शहजाद को सजा ः जज शास्त्राr का नपातुला संतुलित फैसला

प्रकाशित: 02 अगस्त 2013
बहुचर्चित और हाई प्रोफाइल बना बटला हाउस केस में जज महोदय ने सजा सुना दी है। साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश राजेन्द्र कुमार शास्त्राr ने इस अत्यंत मुश्किल केस में मेरी राय में एक नपातुला, बैलेंस्ड फैसला सुनाया है। ऐसे हाई प्रोफाइल केसों में जिसे राजनीतिक ज्यादा बना दिया गया हो बनिस्पत कानून व्यवस्था के केस का कोई भी फैसला आसान नहीं होता। हम जज महोदय की दुविधा समझ सकते हैं। ऐसे किसी भी केस में सभी पक्षों को खुश नहीं किया जा सकता पर ज्यादा महत्वपूर्ण होता है सबूतों के आधार पर न्याय करना और न्याय होते दिखना। यह काम जज शास्त्राr ने बाखूबी किया है। उन्होंने न तो आरोपी पक्ष की सारी बातें मानीं न पुलिस की। जो मानी उनकी दलीलें भी दीं और जो न मानी उनकी भी। बटला हाउस मुठभेड़ के इस केस में दोषी शहजाद को उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के बाद उसके परिजनों को चिन्ता और मायूसी तो जरूर हुई लेकिन उन्हें कहीं न कहीं इस बात की राहत भी मिली कि उसे फांसी की सजा नहीं दी गई। बचाव पक्ष के वकीलों ने भी स्पष्ट तौर पर इसे स्वीकार नहीं किया, लेकिन दबी जुबान से वह भी मान रहे थे कि आजीवन कैद की सजा अवश्य ही मिलेगी। अदालत ने शहजाद के वकील की इस दलील को माना कि वह 24-25 साल का नौजवान है और उसके सुधरने की उम्मीद है। इसके अलावा पूरे मुकदमे के दौरान उसके व्यवहार को भी मद्देनजर रखा गया। इससे पहले सोमवार को सीनियर पब्लिक प्रासीक्यूटर सतविन्दर कौर बवेजा ने अपनी दलील में कहा था कि अभियुक्त के खिलाफ 13 सितम्बर 2008 को हुए सिलसिलेवार बम ब्लास्ट मामले में 5 एफआईआर दर्ज हैं। इससे उसकी आपराधिक भूमिका साफ नजर आती है। वह जघन्य मामलों का आरोपी है, जिसमें अनेक लोगों की मौत हो गई थी। उनकी मांग थी कि अदालत सजा देते वक्त यह भी ध्यान रखे कि इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा की हत्या से उसके परिवार को कितनी पीड़ा व परेशानी का सामना करना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों (बच्चन सिंह व माफी सिंह) का हवाला देते हुए सरकारी वकील का कहना था कि उन मामलों की तरह ही इसने भी समाज की अंतरआत्मा को चौंका दिया है। फांसी की सजा देने की मांग करते हुए कहा गया कि शहजाद का अपराध गम्भीर प्रकृति का है। इसका विरोध करते हुए शहजाद के वकील सतीश   ने सजा में नरम रुख बरतने की मांग करते हुए दलील दी थी कि यह किसी भी बिरले मामलों की श्रेणी में नहीं आता क्योंकि  पूरी घटना अचानक हुई है, सुनियोजित नहीं थी। घटना के वक्त शहजाद सिर्प 20 साल का था और पढ़ाई कर रहा था, वह नौजवान है और इसका अपराध कूरता की श्रेणी में नहीं आता। जज शास्त्राr ने पुलिस के शहजाद को मृत्युदंड देने का अनुरोध खारिज करते हुए कहा कि यह मामला दुर्लभतम श्रेणी में नहीं आता है क्योंकि इस मामले की परिस्थितियां दुर्लभतम नहीं हैं। न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले के तथ्यों और दोषी की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मुझे इसकी परिस्थितियां दुर्लभतम नहीं लगतीं और इसलिए यह दुर्लभतम श्रेणी में नहीं आता है और दोषी को मृत्युदंड नहीं दिया जा सकता। अदालत ने कहा कि बटला हाउस के फ्लैट संख्या 108, एल 18 में हुई घटना सुनियोजित नहीं थी और परिस्थितियां बनने पर यह अचानक हो गई। न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा कि पुलिस हमारे जीवन की अभिन्न भाग है। हर स्थिति में हम पुलिस पर भरोसा करते हैं। जब हम सोते हैं, पुलिस जागती है। जहां तक शहजाद के दोषी होने का मामला है जज शास्त्राr ने बड़ी संजीदगी से इस प्रश्न पर फैसला दिया। अपने नौ पृष्ठ के फैसले में अदालत में कहा कि गवाह डॉ. संजीव ललवानी और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर स्पष्ट है कि इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा की मृत्यु गोली लगने से हुई थी। डाक्टर ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि उनकी मौत हमले के दौरान गोली लगने से ही हुई और पुलिस भी यह कह रही है कि गोली जिस हथियार से चली वह शहजाद के पास था। हालांकि पुलिस उस हथियार को सामने नहीं ला सकी पर इससे यह नहीं कहा जा सकता कि शहजाद इसके लिए जिम्मेदार नहीं है। बचाव पक्ष की दलील थी कि शहजाद उस फ्लैट (एल-18) में उपस्थित नहीं था। लेकिन पुलिस ने अदालत के सामने जो सबूत रखे उसके अनुसार दोषी का एल-18 फ्लैट से जब्त किया गया पासपोर्ट इसका मतलब है कि शहजाद वहां था, अन्यथा किसी का पासपोर्ट वहां कैसे आ जाएगा। इसी तरह से शहजाद के नाम से रेलवे आरक्षण का एक टिकट भी उसके फ्लैट में ही मिला था। क्या इस तरह के सबूत को सामान्य कहा जा सकता है। अदालत ने कहा कि यह ऐसे साक्ष्य हैं जो उनके विरोध में जाते हैं। अदालत ने कहा कि एनकाउंटर के समय कोई स्वतंत्र गवाह या स्वतंत्र चश्मदीद नहीं था। इस पर पुलिस ने कहा कि उस क्षेत्र में एक ही धर्म के अधिकांश लोग रहते हैं। अगर लोगों को बताया जाता तो उस क्षेत्र में धार्मिक तनाव उत्पन्न हो सकता था। इस पर जज साहब ने कहा कि कोई भी धर्म अपराधी को प्राश्रय देने की बात नहीं करता। इस तरह की सोच सही नहीं है। फिर भी पुलिस टीम पर हमला जायज नहीं ठहराया जा सकता। न्यायाधीश के अनुसार शहजाद आर्म्स एक्ट के तहत दोषी इसलिए ठहराया गया क्योंकि एनकाउंटर के दौरान उसके पास हथियार था। हालांकि अदालत ने कहा कि उसने उस हथियार को नष्ट कर दिया, लिहाजा उसे साक्ष्य मिटाने का दोषी पाया गया है। इस मामले में पुलिस ने प्रस्तुत किए गए साक्ष्य के दौरान थ्री डी प्रस्तुति भी दी। यह अपने आपमें इस तरह का अहम सबूत था। परिस्थितिजन्य साक्ष्य, फोन कॉल्स, छह चश्मदीद, कुल 70 गवाह, शहजाद और जुनैद फ्लैट से कूद कर भागे थे, सरकारी कामकाज में बाधा उत्पन्न करना, साक्ष्य नष्ट करना यह थी पुलिस की प्रमुख दलीलें। इस फैसले से शहजाद के परिजन खुश नहीं हैं। वह इस फैसले को चुनौती देंगे। जामिया टीचर्स सालिडिटरी एसोसिएशन के एक सदस्य मनीषा सेठी ने इसे एकतरफा बताया। उनका कहना है कि अदालत का फैसला ठोस सबूतों पर आधारित नहीं है। पुलिस ने एक तरफा सबूत पेश किए हैं, जिसके आधार पर फैसला दिया गया है। बटला हाउस के एक निवासी ने इसे फर्जी मुठभेड़ करार देते हुए कहा कि पुलिस और मीडिया इस मुद्दे को बेवजह तूल दे रही है। पुलिस जनता को दिखाने के लिए किसी का आरोप किसी पर मढ़ देती है। उन्होंने कहा कि इस तरह के फैसलों से राजधानी में मुसलमान अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे। वहीं दूसरी ओर शहजाद को फांसी न मिलने से इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा की पत्नी माया शर्मा संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ दिल्ली पुलिस को हाई कोर्ट में अपील करनी चाहिए। दिल्ली पुलिस भी इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा की जान लेने वाले के लिए फांसी की सजा की मांग कर रही है। दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के विशेष आयुक्त एसएन श्रीवास्तव का कहना है कि उनके पास फैसले की प्रति नहीं पहुंची है। सूत्रों की मानें तो शहजाद को उम्र कैद की सजा के बाद स्पेशल सेल के अधिकारियों की एक बैठक हुई थी जिसमें तय हुआ कि आगे की रणनीति फैसले की प्रति आने के बाद  तय होगी। अधिकारियों का कहना है कि बटला हाउस मुठभेड़ आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक लड़ाई थी। उनके अनुसार इंस्पेक्टर शर्मा के हाथ अगर आतंकी आतिफ का मोबाइल न लगा होता तो देशभर में मौत बांट रहे इंडियन मुजाहिद्दीन संगठन का खुलासा न होता। बटला मुठभेड़ के बाद ही पता चला कि दिल्ली ही नहीं यूपी, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक व आंध्र में भी आईएम का नेटवर्प है।
-अनिल नरेन्द्र

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