Tuesday 27 August 2013

राडिया टेप्स कांड ः कठघरे में खड़ी केंद्र सरकार

बहुचर्चित नीरा राडिया टेप मामला आजकल फिर सुर्खियों में है। उल्लेखनीय है कि पब्लिसिएट नीरा राडिया की मंत्रियों, उद्योगपतियों, पत्रकारों व नौकरशाहों के बीच बातचीत को केंद्र सरकार ने टेप किया था। इसमें सरकारी कामकाज में किस तरह बाहरी दबाव डाला जाता है इसका पता चला। मामला अब तक तो बन्द हो चुका होता अगर यह सरकार के हाथ में होता पर चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में है, इसलिए सरकार भी कुछ हद तक मजबूर है। मजबूर तो है पर अदालत से सहयोग नहीं कर रही। अब भी मामले को दबाने का प्रयास चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से नीरा राडिया के टेलीफोन टेप करने का आदेश दिया था पर केंद्र सरकार ने यह पेश नहीं किए। इस पर अदालत नाराज हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मूल रिकार्ड उपलब्ध न कराने से विवाद के निपटारे में दिक्कत आएगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार का रवैया बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। यही नहीं माननीय अदालत ने मूल रिकार्ड पेश करने तक सरकार का पक्ष सुनने से भी इंकार कर दिया। जस्टिस जीएस सिंघवी की अध्यक्षता वाली बैंच ने कहा कि अदालत केंद्र सरकार का तब तक पक्ष नहीं सुनेगी जब तक जरूरी दस्तावेज पेश नहीं किए जाते। बैंच ने कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत सरकार के वकील अदालत की मदद करने की स्थिति में नहीं हैं। इसके साथ ही अदालत ने केंद्र सरकार को राडिया के टेलीफोन टेपिंग से संबंधित सारा मूल रिकार्ड 27 अगस्त को पेश करने का निर्देश दिया। अदालत ने 2008-09 में टेलीफोन निगरानी के मसले को देखने वाली समीक्षा समिति की कार्रवाई का विवरण भी पेश करने का निर्देश दिया है। वित्तमंत्री को 16 दिसम्बर 2007 को मिली एक शिकायत के आधार पर नीरा राडिया के फोन की निगरानी शुरू हुई थी। उसकी बातचीत रिकार्ड की गई थी। इस शिकायत में आरोप लगा था कि नौ साल की अल्पावधि के भीतर उसने 300 करोड़ रुपए का कारोबार खड़ा कर लिया है। इस केस में एक दिलचस्प मोड़ अब यह आ गया है कि टाटा समूह के पूर्व अध्यक्ष रतन टाटा ने इन राडिया टेपों पर सरकारी मंशा को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया है। रतन टाटा ने संकेत दिया कि शायद राजनीतिक मकसद से ही ऐसा किया गया था। सुप्रीम कोर्ट की उसी बैंच में, जस्टिस जीएस सिंघवी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष, रतन टाटा की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि सार्वजनिक जीवन से जुड़ा प्रत्येक व्यक्ति समुचित निजता की अपेक्षा करता है। इस तरह की बातचीत लीक होने से निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है। साल्वे ने कहा कि सरकार का यह आचरण सवालों को जन्म देता है। मेरे दिमाग में किसी तरह का संदेह नहीं है। जब जांच करने में उनकी दिलचस्पी नहीं थी तो फिर उन्होंने बातचीत टेप क्यों की? सरकार ने पांच हजार घंटे की बातचीत टेप की और फिर उस पर मौन होकर बैठ गई। सरकार ने किसी अन्य मकसद से ऐसा किया था। इसमें राजनीतिक दृष्टि से तमाम विस्फोटक सामग्री है। उन्होंने सवाल किया कि सरकार ने टेप की गई बातचीत के आधार पर कोई कार्रवाई क्यों नही की जबकि वित्तमंत्री को मिली एक शिकायत के बाद ही राडिया के फोन पर निगरानी की गई थी। साल्वे ने कहा कि इस बात की प्रबल सम्भावना है कि टेलीफोन टेपिंग की कोई अन्य वजह थी लेकिन मेरे पास इसे साबित करने के साक्ष्य नहीं हैं। कोई सरकार यह नहीं कह सकती कि वह नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में असमर्थ है। आपको इन अधिकारों और सरकारी गोपनीयता कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करनी ही होगी। चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में है, इसलिए इस पर किसी भी प्रकार की टिप्पणी नहीं की जा सकती पर इतना हम जरूर कहेंगे कि श्री साल्वे की दलील में ही जवाब भी है। वह मानते हैं कि टेपों में विस्फोटक राजनीतिक सामग्री है, इसलिए यह मामला प्राइवेट नहीं है निजी नहीं है यह सरकार और सरकारी कामकाज के तरीकों, उनमें दखलअंदाजी से संबंधित है, इसलिए यह जनता के सामने आना ही चाहिए और इसमें जो कलाकार शामिल हैं वह बेनकाब होने ही चाहिए ताकि भविष्य में सरकार और यह कलाकार 10 बार सोचें सरकारी कामकाज में दखलअंदाजी से।

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