Sunday, 28 December 2014

पिछले 14 महीनों में कांग्रेस 12 चुनाव हारी है और हार थम नहीं रही

यह बहुत दुर्भाग्य की बात है कि जितनी तेजी से भाजपा आगे बढ़ रही है, उससे दोगुनी रफ्तार से कांग्रेस नीचे आ रही है। इतनी पुरानी पार्टी की यह दशा देखकर दुख होता है। पिछले 14 महीनों में कांग्रेस ने 12 राज्यों में लगातार एक के बाद एक चुनाव हारे हैं। अपने 129 साल के इतिहास में ऐसी नाकामी और निरंतर गिरता चला जा रहा सियासी ग्राफ पहले कभी भी कांग्रेस ने नहीं देखा। झारखंड, कश्मीर की हार के बाद (जहां पहले वह सरकार में थी) कांग्रेस के पास सिर्प नौ राज्य बचे हैं। इनमें  भी पूर्वोत्तर के पांच और दो उत्तर भारत के (हिमाचल और उत्तराखंड) और दो दक्षिण (कर्नाटक और केरल) के। जिन राज्यों में कांग्रेस चुनाव हारी है उनमें अधिकांश में वह तीसरे और चौथे नम्बर पर खिसक गई है। दूसरी ओर अब भाजपा के पास 11 राज्यों में सत्ता आ गई है। इनमें आंध्र, पंजाब में वह सहयोगी दल है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन उसके अब तक के इतिहास में सबसे खराब रहा था और वह 44 सीटों पर सिमट गई थी। इसके बाद उसने महाराष्ट्र और हरियाणा में सत्ता गंवाई। दोनों राज्यों में वह तीसरे नम्बर पर रही। झारखंड में झामुमो के साथ सत्ता में ही कांग्रेस चौथे नम्बर पर आ गई। यहां उसे मात्र छह सीटें मिलीं जो क्षेत्रीय दल झारखंड विकास मोर्चा से भी कम हैं। झाविमो को आठ सीटें मिलीं जबकि वह राजद और जद (यू) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी। वहीं जम्मू-कश्मीर की बात करें तो यहां भी वो पांच साल तक सत्ता में भागीदार रही लेकिन नतीजों में चौथे नम्बर  पर रही। पिछले 14 महीनों में कांग्रेस 13 चुनाव हारी। यह हैं मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, सिक्किम, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, जम्मू-कश्मीर और झारखंड। भाजपा के पास 10 राज्य हैं जिनमें सिर्प गोवा छोटा राज्य है बाकी सब बड़े राज्य हैं। सबसे दुर्भाग्य की बात यह है कि कांग्रेस आला कमान ने कभी भी गंभीरता से हार के कारणों पर आत्मचिंतन नहीं किया। न तो सोनिया गांधी ने हार के कारणों को जानने का प्रयास किया और न ही राहुल गांधी ने। उलटा राहुल गांधी ने तो अपना गुस्सा पार्टी के महासचिवों पर निकाल दिया। जम्मू-कश्मीर और झारखंड में मिली करारी हार की समीक्षा बैठक में राहुल पार्टी रणनीतिकारों पर भड़क गए। 12 तुगलक लेन अपने निवास पर बुलाई गई इस बैठक में पहली बार राहुल अपने महासचिवों से नाराज दिखे। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक राहुल ने कहा कि अगर आप लोगों ने मेहनत की होती तो इन दोनों राज्यों में नतीजे भिन्न होते? एक सवाल के जवाब से असंतुष्ट राहुल उन रणनीतिकारों पर बरस पड़े जिन्होंने चुनाव के दौरान उन्हें कांग्रेस की स्थिति बेहद खराब होने की रिपोर्ट दी थी। राहुल ने मीडिया विभाग का कामकाज देख रहे पार्टी महासचिव अजय माकन की तरफ मुखातिब होते हुए पूछा कि क्या कारण है कि पार्टी द्वारा संसद से लेकर सड़क तक मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक अभियान छेड़ने का असर आम आदमी तक नहीं पहुंचा पाए। राहुल ने कहा कि पिछले सात महीने में मोदी सरकार ने ऐसा कुछ भी नहीं किया है जिसे सराहा जाए उलटे धर्मांतरण मिशन के चलते उनकी भारी बदनामी हुई है। फिर क्या वजह है कि मोदी की लोकप्रियता अभी भी बरकरार है? हम (कांग्रेस के लोग) अपनी बात आखिर जनता तक पहुंचाने में क्यों कामयाब नहीं हो पाए हैं? राहुल ने सुझाव दिया कि पार्टी पदाधिकारी निचले स्तर के कार्यकर्ताओं से जुड़ें, उनकी बातें तथा सुझाव सुनें और जानने की कोशिश करें कि आम जनता कांग्रेस से क्या अपेक्षा रखती है? और कांग्रेस की लोकप्रियता का ग्राफ क्यों गिरता जा रहा है? कांग्रेस नेतृत्व बेशक अपने पदाधिकारियों को कोसे पर असल समस्या तो नेतृत्व की है। कांग्रेस आज नेतृत्वहीन है, यह बात कौन राहुल, सोनिया को समझाए?

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